भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संगीत नाटक अकादमी के ‘अकादमी फ़ेलोशिप’ और ‘अकादमी पुरस्कार’ प्रदान करने के अवसर पर सम्बोधन

नई दिल्ली : 06.03.2024

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संगीत नाटक अकादमी के ‘अकादमी फ़ेलोशिप’ और ‘अकादमी पुरस्कार’ प्रदान करने के अवसर पर सम्बोधन (हिन्दी, 117.45 किलोबाइट)

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संगीत नाटक अकादमी के ‘अकादमी फ़ेलोशिप’ और ‘अकादमी पुरस्कार’ प्रदान करने के अवसर पर सम्बोधन

विभिन्न भारतीय कला-विधाओं में अपने उत्कृष्ट कौशल का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों के बीच उपस्थित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। आज Performing arts के क्षेत्र में सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘अकादमी Fellowship’ और ‘अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किए जा रहे सभी कलाकारों और कलाविदों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं।

संगीत नाटक अकादमी ने पिछले लगभग सात दशकों से विभिन्न कला-विधाओं के प्रोत्साहन एवं प्रचार-प्रसार के लिए योगदान दिया है। Performing arts एवं Intangible heritage के क्षेत्र में इस संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्य महत्वपूर्ण हैं।

देवियो और सज्जनो,

अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरने के बाद भी भारत की सभ्यता जीवंत बनी हुई है। इस जीवंतता का एक प्रमुख कारण है भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत। हमारी सांस्कृतिक विरासत में Performing arts का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

प्राचीन काल से ही कला-विधाओं को भारतीय संस्कृति में उच्च स्थान दिया गया है। भरत मुनि के नाट्य-शास्त्र को वेदों के समकक्ष रखते हुए उसे पंचम वेद कहा गया है। उनके नाट्य-शास्त्र में कला-विधा की जो व्यापकता एवं समग्रता मिलती है वह संसार के किसी अन्य ग्रंथ में दुर्लभ है।

देवियो और सज्जनो,

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कला के बारे में लिखा है कि कला में मनुष्य स्वयं को अभिव्यक्त करता है। मैं इस धारणा में विश्वास रखती हूँ कि कला केवल कला के लिए नहीं होती है। कला के सामाजिक उद्देश्य भी होते हैं। इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जब कलाकारों ने समाज कल्याण के लिए अपनी कला का प्रयोग किया। कलाकार अपनी कला के माध्यम से रूढ़ियों और पूर्वाग्रहों को चुनौती देते रहे हैं। वे अपनी कला से समाज को जगाते रहे हैं। हमारी कलाएं भारत की soft-power का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। इसलिए भारतीय कलाएं हमारी विदेश नीति का भी अभिन्न अंग हैं।

देवियो और सज्जनो,

आज के परिवेश में तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं। इसके अनेक कारण हैं। हम आध्यात्मिकता को छोड़ कर भौतिक सुख पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। भौतिक सुख एवं धन के पीछे भागने से जीवन एकांगी हो जाता है।

कला से जुड़ाव हमें सृजनशील बनाता है। कला, सत्य की खोज का मार्ग प्रदान करती है। कला के सानिध्य में हम अध्यात्म और अपने मूल से जुड़ते हैं। कला, जीवन को सार्थकता प्रदान करती है। भारतीय परंपरा में कला एवं साहित्य विहीन व्यक्ति को मानवता से विहीन माना जाता रहा है। इस प्रकार, कला मानवता की पहचान है।

देवियो और सज्जनो,

लोक जीवन में उल्लास का संचार करने वाले लोक गीत और नृत्य भी हमारी  कला परंपरा का अंग हैं। सरकार Folk artists को पद्म पुरस्कारों से  सम्मानित करती है। इस वर्ष श्री भागवत पधान जी, श्री बदरप्पन एम. जी, श्री दसारी कोंडप्पा जी जैसे लोक-कलाकारों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित  करने की घोषणा की गई है।

मुझे बताया गया है कि संगीत नाटक अकादमी, 'लोक जन प्रथा उत्सव' की एक श्रृंखला आयोजित करती है। लोक एवं आदिवासी कलाकारों के लिए संगीत नाटक अकादमी द्वारा 'लोक संगम' एवं 'लोक प्रतिभा' जैसे उत्सवों का भी आयोजन किया जाता है। मैं इस संस्थान द्वारा लोक कलाओं एवं कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करती हूं तथा ऐसे आयोजनों की सफलता की कामना करती हूँ। मैं आशा करती हूँ कि यह अकादमी ऐसे कलाकारों को अधिक से अधिक अवसर प्रदान करेगी जो साधन सम्पन्न नहीं हैं।

देवियो और सज्जनो,

कला एवं कलाकारों ने भारत की विविधता को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य किया है। यह कार्य करके हमारे कलाकारों ने संविधान में निहित मूल कर्तव्यों का पालन भी किया है। भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह हमारी गौरवशाली सामासिक संस्कृति का महत्व समझे एवं उसका संरक्षण करे। साथ ही लोगों में समरसता एवं भाईचारे की भावना का निर्माण करना, हर प्रकार के भेदभाव को दूर करना तथा महिलाओं की गरिमा पर आघात करने वाली कुप्रथाओं को समाप्त करना भी नागरिकों के मूल कर्तव्य हैं। इस प्रकार संगीत नाटक अकादमी की गतिविधियां देशवासियों के संवैधानिक कर्तव्यों से भी जुड़ी हुई हैं।

मैं आज सम्मानित सभी कलाकारों को एक बार फिर बधाई देती हूं। मैं आशा करती हूं कि आप सब संगीत एवं नाटक के विभिन्न रूपों और विधाओं के माध्यम से भारतीय कला-परंपरा को और भी अधिक समृद्ध बनाएंगे।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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