भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्बोधन

विज्ञान भवन : 05.09.2023

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्बोधन

महान शिक्षाविद्, असाधारण शिक्षक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आज जयंती मनाई जा रही है। वे चाहते थे कि उनके जन्मदिन को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाए। उस श्रेष्ठ विचारक और शिक्षक की पावन स्मृति को मैं सादर नमन करती हूं।

आज ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए सभी शिक्षकों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं।

मैं समझती हूं कि आज के दिन, विशेष रूप से, हर व्यक्ति को अपने विद्यार्थी जीवन की याद आती है और अपने शिक्षक भी याद आते हैं। मैं सभी देशवासियों की ओर से निष्ठावान शिक्षकों के प्रति आदर व्यक्त करती हूं।

आज के दिन मुझे अपने आदरणीय शिक्षक तो याद आते ही हैं, वे बच्चे भी याद आते हैं जिन्हें मैंने ओडिशा के रायरंगपुर में श्री ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में पढ़ाया था। उन बच्चों के प्यार को मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में शामिल करती हूं।

किसी के भी जीवन में आरंभिक शिक्षा का बुनियादी महत्व होता है। अनेक शिक्षाविदों द्वारा बच्चों के संतुलित विकास के लिए three-H formula का उल्लेख किया जाता है। इनमें पहला H है Heart, दूसरा H है Head और तीसरा H है Hand. Heart या हृदय का संबंध संवेदनशीलता, मानवीय-मूल्यों, चरित्र-बल और नैतिकता से है। Head या मस्तिष्क का संबंध मानसिक 
विकास, तर्क-शक्ति तथा पठन-पाठन से है। Hand या हाथ का संबंध हस्त- कौशल तथा शारीरिक श्रम के प्रति सम्मान से है। Three-H पर आधारित इस प्रणाली का ही रूप महात्मा गांधी के शिक्षा संबंधी विचारों में पाया जाता है। इसे वे बच्चे के हाथों का, दिमाग का और आत्मा का विकास कहते थे। ऐसे समग्र विकास पर जोर देने से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव हो पाता है।

मेरा मानना है कि हृदय का विकास अर्थात चरित्र-बल और नैतिकता का विकास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जैसे किसी मकान की मजबूती उसकी नींव के मजबूत होने पर आधारित होती है, उसी तरह जीवन को सार्थक बनाने के लिए चरित्र-बल की आवश्यकता होती है। चरित्र-बल का निर्माण बच्चों की आरंभिक शिक्षा के दौरान शुरू हो जाता है।

श्रम, कौशल एवं उद्यम के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए इस वर्ष कौशल विकास और उद्यमशीलता के क्षेत्रों में योगदान देने वाले शिक्षकों को भी सम्मानित किया गया है। साथ ही, उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन करने वाले शिक्षकों को भी पुरस्कृत किया गया है। मेरा ध्यान इस बात पर गया कि पूरे देश के स्कूलों में शिक्षिकाओं की संख्या 51 प्रतिशत से अधिक है जबकि आज के पुरस्कार विजेताओं में उनकी संख्या 32 प्रतिशत है। उच्च शिक्षण संस्थानों में पुरस्कृत शिक्षिकाओं की संख्या केवल 23 प्रतिशत है जबकि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उन संस्थानों में महिला अध्यापिकाओं की कुल संख्या लगभग 43 प्रतिशत है। अध्यापन कार्य में महिलाओं की भागीदारी को देखते हुए मैं चाहूंगी कि राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों में महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो। छात्राओं और अध्यापिकाओं को प्रोत्साहित करना महिला सशक्तीकरण के लिए बहुत जरूरी है।

उपस्थित शिक्षक-गण,

आप सब ही वास्तव में बच्चों के भविष्य का निर्माण करते हैं। इस प्रकार, आप सब राष्ट्र के भविष्य का भी निर्माण करते हैं। राष्ट्र-निर्माता के रूप में आप सब के महत्व को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। शिक्षकों के प्रति समुचित सम्मान के भाव को बढ़ाने के लिए इस नीति में अनेक प्रावधान किए गए हैं और उन पर कार्य भी किया जा रहा है। शिक्षकों की भर्ती और नियुक्ति से लेकर, उनके continuous professional development तथा career management and progression के लिए सुविचारित व्यवस्था की गई है। शिक्षकों के शिक्षण के प्रति भी नए दृष्टिकोण के साथ विचार किया गया है।

हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं को समझना और उन क्षमताओं को विकसित करने में बच्चे की मदद करना शिक्षकों का भी कर्तव्य है और अभिभावकों का भी। बच्चे की मदद करने के लिए, शिक्षकों में बच्चे के प्रति संवेदनशीलता का होना आवश्यक है। शिक्षक स्वयं भी माता-पिता होते हैं। कोई भी माता-पिता यह नहीं चाहते कि उनके बच्चे को मात्र एक समूह के सदस्य के रूप में देखा जाए। हर माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चे पर विशेष ध्यान दिया जाए और उनके साथ प्रेम का व्यवहार किया जाए। माता-पिता बड़े विश्वास के साथ अपने बच्चों को अध्यापकों की देख-रेख में सौंपते हैं। एक साथ एक कक्षा के 40-50 बच्चों में प्यार बांटने का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। यदि कोई शिक्षक इस सुखद अवसर को कठिनाई समझेंगे तो ऐसे शिक्षक भी परेशान होंगे और बच्चों का नुकसान तो होगा ही।

माता-पिता, परिवारजनों तथा मित्रों के अलावा हर व्यक्ति को अपने शिक्षक ही याद रहते हैं। शिक्षकों से जो सराहना मिलती है, प्रोत्साहन मिलता है, अथवा दंड मिलता है, बच्चों को सब कुछ याद रहता है। यदि उनके सुधार की भावना से उन्हें दंडित किया जाता है तो समय के साथ बच्चों को इसका एहसास हो जाता है। इसलिए, मैं मानती हूं कि बच्चों को प्यार करना, उन्हें ज्ञान देने से अधिक जरूरी है।

देवियो और सज्जनो,

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक मजबूत और जीवंत शिक्षा प्रणाली को विकसित करने पर जोर दिया गया है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार माना गया है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में शिक्षकों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

हमारी शिक्षा नीति भारतीय संस्कारों और गौरव से जुड़ने को प्राथमिकता देती है। भारत की प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृति, ज्ञान प्रणालियों और परम्पराओं से प्रेरणा प्राप्त करना भी हमारी शिक्षा नीति का स्पष्ट सुझाव है। हमारे शिक्षक और विद्यार्थी चरक, सुश्रुत तथा आर्यभट से लेकर पोखरण और चंद्रयान-3 तक की उपलब्धियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें, उनसे प्रेरणा लें तथा बड़ी सोच के साथ राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए कार्य करें। हमारे विद्यार्थी और शिक्षक मिलकर कर्तव्य काल के दौरान भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में तेजी से आगे ले जाएंगे, यह मेरा दृढ़ विश्वास है।

शिक्षक दिवस के अवसर पर आप सभी को शुभकामनाएं देते हुए, मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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