भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 'पंचायतों को प्रोत्साहन' विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन और राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर सम्बोधन
नई दिल्ली : 17.04.2023
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आज राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार से सम्मानित सभी सरपंचों, ग्राम प्रधानों एवं पंचायत प्रतिनिधियों को हार्दिक बधाई! अपने प्रयासों के बल पर आपने अपने पंचायत को विकास के इस शिखर पर पहुंचाया है। इसके लिए आप और आपके सभी पंचायतवासी प्रशंसा के पात्र हैं। मैं आशा करती हूं भविष्य में भी आपकी पंचायत विकास के नए प्रतिमान स्थापित करती रहेगी, और दूसरी पंचायतों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करेगी।
देवियो और सज्जनो,
भारत गांवों का देश है। देश की आत्मा गांवों में बसती है। पिछले कुछ दशकों के दौरान शहरीकरण में आई तेजी के बावजूद अधिकांश जनता गांवों में ही निवास करती है। शहरों में रहने वाले अधिकांश लोग भी किसी न किसी तरह से गांवों से जुड़े हैं। गांव वह आधारभूत इकाई है जिसके विकसित होने से पूरा देश विकसित बन सकता है। इसलिए हमारे गांवों को विकसित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गांव के विकास का model कैसा हो और इसे कैसे कार्यरूप दिया जाए, इसका निर्णय लेने का अधिकार ग्रामवासियों को होना चाहिए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस बात को बखूबी समझते थे। इसीलिए उन्होंने ‘ग्राम-स्वराज’ के जरिये ‘आदर्श ग्राम’ के निर्माण की कल्पना की। गांधी जी के लिए स्वराज सत्ता नहीं, बल्कि सेवा का साधन था। कालांतर में भी अनेक महापुरुषों ने ग्राम विकास और स्व-शासन के model प्रस्तुत किए और गांवों के विकास के लिए प्रयास किए। ऐसा ही एक उदाहरण नानाजी देशमुख का है जिन्होंने ‘ग्रामोदय’ और ‘स्वालंबन’ के माध्यम से देश के अनेक गांवों का उत्थान किया।
हमारे संविधान-निर्माताओं ने भी ग्राम-पंचायतों में स्व-शासन के महत्व को रेखांकित करते हुए संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में ग्राम पंचायतों के संगठन और उन्हें शक्तियां और अधिकार प्रदान करने का उल्लेख किया। इसी प्रावधान को मूर्त रूप देने के लिए भारत सरकार ने 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत पंचायत संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
देवियो और सज्जनो,
आप सब जानते हैं कि प्रत्येक पांच वर्ष में पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव करने का प्रावधान है जिससे समाज के हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। लेकिन यह देखा गया है कि ये चुनाव लोगों में कभी-कभी कटुता भी उत्पन्न करते हैं। ग्रामवासियों के बीच, चुनाव के कारण आपसी मनमुटाव न बढ़े, इसी को ध्यान में रखते हुए पंचायत चुनावों को राजनीतिक पार्टियों से अलग रखा है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि जिस समाज में परस्पर सद्भाव होता है, लोगों में एक-दूसरे पर विश्वास होता है, वह समाज ज्यादा फलता- फूलता है।
इस संदर्भ में, मैं गुजरात सरकार द्वारा वर्ष 2001 के बजट में शुरू की गई ‘समरस ग्राम’ योजना का उल्लेख करना चाहूंगी जिसके तहत उन पंचायतों को पुरस्कृत करने का प्रावधान था जिन्होंने अपने प्रतिनिधियों का चुनाव सर्व- सम्मति से यानि बिना चुनाव के किया हो। इस योजना के पीछे सोच यह थी कि गांव में शांति और सद्भावना बनी रहे और चुनाव के कारण आने वाली कड़वाहट से बचा जा सके। मेरा मानना है कि गांव परिवार का ही विस्तृत रूप है। परिवार में मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए। सारे सामुदायिक कार्य यथासंभव आम सहमति से होने चाहिए। अगर चुनाव की नौबत भी आए तो ये चुनाव ग्रामवासियों में विभाजन न लाएं।
देवियो और सज्जनो,
आप सब जानते हैं कि United Nations द्वारा अधिक संपन्न, अधिक समतावादी और अधिक संरक्षित विश्व की रचना के लिए वर्ष 2030 तक 17 Sustainable Development Goals को प्राप्त करने का संकल्प लिया गया है। Sustainable Development के इन Goals की प्राप्ति के लिए भारत सरकार भी प्रतिबद्ध है। वस्तुत: सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ की भावना इसी प्रतिबद्धता का परिचायक है।
मुझे बताया गया है कि पंचायती राज मंत्रालय ने United Nations के 17 Sustainable Development Goals को Localization of Sustainable Development Goals के तहत 9 themes में समाहित किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता होती है कि इन themes के आधार पर ही राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान किए जा रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि पंचायती राज मंत्रालय का यह कदम Sustainable Development Goals के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होगा। इस महत्वपूर्ण कदम के लिए मैं केन्द्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री, श्री गिरिराज सिंह जी और उनके सभी सहयोगियों की प्रशंसा करती हूं।
संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में उल्लेखित 29 कार्यकारी विषयों पर पंचायतों को कार्य करने की शक्ति दी गई। इन विषयों के अंतर्गत आने वाली योजनाओं और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के द्वारा किया जाता है। इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए सभी मंत्रालयों, राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के बीच बेहतर convergence और उनके साझा प्रयास आवश्यक हैं।
देवियो और सज्जनो,
किसी भी समाज के सर्वांगीण विकास के लिए महिलाओं की भागीदारी अत्यंत आवश्यक होती है। महिलाओं के पास अपने और अपने परिवार तथा समाज की भलाई के लिए अधिक से अधिक निर्णय लेने के अधिकार होने चाहिए। यह अधिकार परिवार और ग्राम स्तर पर उनके सशक्तीकरण से प्राप्त होगा। मुझे यह जानकर प्रसन्नता होती है कि देश में 2.75 लाख से अधिक स्थानीय ग्रामीण निकायों के 31.5 लाख से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधियों में 46 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि हैं। मैं बहनों और बेटियों से अपील करूंगी कि वे ग्राम पंचायतों के कार्यों में सक्रिय रूप से भागीदारी करें। मैं उनके परिवार से भी अपील करूंगी कि वे अपने घर की महिलाओं के इन प्रयासों में सहयोग दें।
देवियो और सज्जनो,
आज global warming मानवता के लिए बहुत बड़े खतरे के रूप में हमारे सामने उपस्थित है। इस वैश्विक चिंता से निपटने के लिए हर स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन वाली अर्थ- व्यवस्था बनने का लक्ष्य तय किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबके प्रयास और साथ की आवश्यकता है। आज स्थायी हरित ऊर्जा और शून्य-कार्बन उत्सर्जन के लिए पंचायतों को पुरस्कृत होते देख कर संतुष्टि होती है कि जमीनी स्तर पर भी इस समस्या के समाधान के प्रयास हो रहे हैं।
पंचायतें केवल सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वय का स्थान ही नहीं हैं बल्कि वे नए-नए नेतृत्वकर्ता, योजनाकार, नीति-निर्माता और innovator पैदा करने का स्थान भी है। एक पंचायत के best practices को अन्य पंचायतों में अपनाकर हम अपने गांवों को तेजी से विकसित और समृद्ध बना सकेंगे। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि आगामी चार दिनों तक विषय-आधारित सम्मेलनों में पंचायतों की उपलब्धियों और SDGs में उनके योगदान पर चर्चा होगी। मुझे विश्वास है कि इस मंथन से निकला अमृत देश की पंचायतों के विकास और ग्रामीणों के कल्याण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!