भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का महिला सम्मेलन में सम्बोधन

खूंटी : 25.05.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का महिला सम्मेलन में सम्बोधन(हिन्दी, 111.04 किलोबाइट)

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खूंटी की इस पवित्र धरती पर आकर मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं। पिछले वर्ष, 15 नवम्बर को धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाने और उनकी प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मुझे मिला था। सभी देशवासियों की ओर से, मैं भगवान बिरसा की जन्म-स्थली तथा क्रांतिकारियों की बलिदान-स्थली खूंटी की इस पवित्र धरती को नमन करती हूं।

मुझे हमेशा यह सोचकर आश्चर्य होता है कि कुल 25 वर्ष से भी कम अवधि के अपने जीवन-काल में भगवान बिरसा मुंडा ने क्या नहीं कर दिखाया? विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य को चुनौती देते हुए भगवान बिरसा ने गर्जना की थी, "अबुआ राज एटे जाना, महारानी राज टुण्डु जाना।” अर्थात, हमारा राज शुरू हुआ और महारानी विक्टोरिया के राज का अंत हुआ।

खूंटी की इसी पवित्र धरती पर स्थित ‘डोंबारी बुरू’ को झारखंड का जलियांवाला बाग भी कहा जाता है। डोंबारी बुरू का नरसंहार, जलियांवाला बाग से लगभग 20 वर्ष पहले हुआ था। वहां अंग्रेजों ने निर्दोष लोगों को चारों तरफ से घेरकर गोलियों से भून दिया था। भगवान बिरसा लड़ते रहे, और अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए, वहां से निकलने में सफल हो पाए। वे उलगुलान को नेतृत्व देते रहे।

देवियो और सज्जनो,

इस सम्मलेन का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में जनजातीय समुदायों के महिला स्वयं सहायता समूहों के योगदान का स्मरण करना तथा आने वाली पीढ़ियों को जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए प्रेरित करना है। मैं इस महत्वपूर्ण सम्मलेन के आयोजन के लिए केन्द्रीय जन-जातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा जी और उनकी पूरी टीम को बधाई देती हूं।

यह एक सुखद संयोग है कि श्री अर्जुन मुंडा जी खूंटी लोक सभा क्षेत्र से ही सांसद हैं। खूंटी की इसी धरती की संतान, श्री कड़िया मुंडा जी ने जन-सेवा के लंबे योगदान के द्वारा झारखंड को एक विशेष पहचान दिलाई है। उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित भी किया है।

देवियो और सज्जनो,

आज के इस महिला सम्मेलन में उपस्थित सभी बहनों और बेटियों को मैं विशेष बधाई देती हूं। मैं आप सभी को कहना चाहूंगी कि महिला होना अथवा आदिवासी समाज में जन्म लेना कोई disadvantage नहीं है। मेरी कहानी आप सबके सामने है। मुझे महिला होने और एक आदिवासी समाज में जन्म लेने पर गर्व है। हमारे देश में महिलाओं के योगदान के अनगिनत प्रेरक उदाहरण मौजूद हैं। समाज-सुधार, राजनीति, अर्थ- व्यवस्था, शिक्षा, विज्ञान व अनुसंधान, व्यवसाय, खेल-कूद और सैन्य बलों तथा अनेक अन्य क्षेत्रों में हमारी बहनों और बेटियों ने अमूल्य योगदान दिया है। ऐसी कितनी ही महिलाएं हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं और नेतृत्व प्रदान कर रही हैं। यह भारतीय लोकतंत्र की शक्ति ही है जिसकी वजह से मैं यहां आप सबके बीच में उपस्थित हूं।

राष्ट्रपति के रूप में देश भर में शिक्षण संस्थानों के दीक्षांत समारोहों में मैंने देखा है कि हमारी बेटियां, बेटों से अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। राष्ट्रपति भवन में भी पद्म पुरस्कार, रक्षा अलंकरण पुरस्कार प्रदान करते हुए, civil services के विभिन्न batches से मिलते हुए मुझे महिलाओं की अदम्य शक्ति का अहसास हुआ है। हाल के वर्षों में पद्म पुरस्कार प्राप्त करने वाले लोगों में हमारी जन-जातीय बहनों की संख्या काफी अधिक हुई है। पहले वे गुमनामी में रह जाती थीं। आज राष्ट्रपति भवन का दरबार हाल हमारी जन- जातीय बहनों के सम्मान में तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। उस अनुभव से मुझे विशेष प्रसन्नता होती है।

प्यारी बहनों,

किसी भी कार्य में सफल होने के लिए यह अत्यंत जरुरी है कि आप अपनी प्रतिभा को पहचाने और दूसरों के पैमाने पर अपना आंकलन नहीं करें। आपके अंदर असीम शक्ति है, आप उस शक्ति को जगायें। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मैंने एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था "हर महिला की कहानी मेरी कहानी”। उस लेख में मैंने लिखा था कि, "एक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज के निर्माण के लिए, महिला-पुरुष समानता पर आधारित जड़ीभूत पूर्वाग्रहों को समझना और उनसे मुक्त होना जरुरी है। यदि महिलाओं को मानवता की प्रगति में बराबर का भागीदार बनाया जाये तो हमारी दुनिया अधिक खुशहाल होगी।"

झारखण्ड की राज्यपाल के रूप में यहां के लोगों की सेवा करने का अवसर मुझे मिला। इसलिए आप लोग मुझे जानते हैं और मैं भी आप लोगों की प्रतिभा और क्षमताओं से भलीभांति परिचित हूं। मेरा मानना है कि महिला सशक्तीकरण के सामाजिक और आर्थिक दोनों पहलू समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। झारखण्ड की हमारी परिश्रमी बहनें और बेटियाँ, राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश के आर्थिक विकास में अहम योगदान देने में सक्षम है। मैं आप सभी बहनों से अपील करूंगी कि आप अपनी प्रतिभा पहचाने, और विश्वास के साथ आगे बढ़ें।

मैं झारखंड की धरती से ही जुड़ी कुछ बहनों के प्रेरक योगदान का उल्लेख करना चाहूंगी। मैं अमर बलिदानी वीरांगना फूलो-झानो मुर्मु को भी नमन करती हूं। उन्होंने हूल क्रांति का सन्देश घर-घर पहुंचाया तथा स्त्री-सेना का गठन कर, अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध किया। पद्म श्री से सम्मानित, श्रीमती जमुना टुडु ‘Lady Tarzan of Jharkhand’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने जंगलों को बचाने के लिए अद्भुत निष्ठा और साहस के साथ कार्य किया है। संयोग से जमुना टुडु जी मेरी जन्म-स्थली मयूरभंज की रहने वाली हैं।

जिस प्रकार, इस धरती की बेटी अकली टुडू जी ने अपने क्षेत्र में अनेक बाधाओं को पार करते हुए, तालाबों को विकसित किया, वह जल संरक्षण और संवर्धन की राष्ट्रीय प्राथमिकता के संदर्भ में अत्यंत प्रेरणादायक है। पद्म श्री से सम्मानित, सरायकेला की श्रीमती छुटनी महतो ने, समाज में, अंधविश्वास पर आधारित महिला विरोधी कुप्रथा को समाप्त करने का प्रयास किया है और अनेक महिलाओं का जीवन बचाया है।

देवियो और सज्जनो,

खेल के क्षेत्र में झारखंड की बेटियों की देश-विदेश में पहचान है। सिमडेगा जिले को हॉकी की नर्सरी कहा जाता है। वहां से ब्यूटी डुंगडुंग, प्रमोदिनी लकड़ा, महिमा टेटे, और दीपिका सोरेंग जैसी प्रतिभाशाली लड़कियां हॉकी के खेल में अपनी पहचान बना रही हैं। इसी खूंटी जिले की बेटी निक्की प्रधान ने सिमडेगा की सलीमा टेटे के साथ टोक्यो ओलिम्पिक में हमारी महिला हॉकी टीम के ऐतिहासिक प्रदर्शन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पद्म श्री तथा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित दीपिका कुमारी, विश्व की सर्वश्रेष्ठ आर्चर रह चुकी हैं। भारत का झंडा ऊंचा करने वाली, झारखण्ड की इन बेटियों पर मुझे गर्व है। आप इन सभी के जीवन से प्रेरणा ले और अपने द्वारा चुने हुए क्षेत्र में आगे बढें।

देवियो और सज्जनो,

जनजातीय समाज अनेक क्षेत्रों में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। इनमें से एक है इस समाज में दहेज प्रथा का प्रचलन न होना। दुर्भाग्य से, हमारे समाज के बहुत से लोग, यहां तक कि सुशिक्षित लोग भी, आज तक दहेज प्रथा को छोड़ नहीं पाये हैं। यह एक शर्मनाक कलंक है। इस संदर्भ में जनजातीय समाज का उदाहरण सभी देशवासियों के लिए अनुकरणीय है।

देवियो और सज्जनो,

देश में लाखों परिवारों को Self Help Groups से जोड़ा गया है। महिला शक्ति झारखंड राज्य की ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को ऊर्जा प्रदान करती है। इसलिए झारखंड में अधिक से अधिक बहनों और बेटियों को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ना और उनके कौशल का विकास करके उन्हें रोजगार प्रदान करने का काम अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन के माध्यम से महिलाओं में उनके अधिकारों तथा सरकार द्वारा उनके हित में संचालित विभिन्न योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा होगी और अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा।

मेरा मानना है कि आने वाले समय में, अनेक क्षेत्रों में, महिलाओं के नेतृत्व में विकास की गाथाएं लिखी जाएंगी। ऐसे स्वर्णिम भविष्य के लिए मैं आप सभी को, विशेषकर अपनी बहनों और बेटियों को शुभकामनाएं देती हूं।

जय हिन्द!     
जय झारखंड!

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