भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का झारखंड राज्य सरकार द्वारा आयोजित नागरिक अभिनंदन समारोह में सम्बोधन

रांची : 25.05.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का झारखंड राज्य सरकार द्वारा आयोजित नागरिक अभिनंदन समारोह में सम्बोधन (हिन्दी, 155.1 किलोबाइट)

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झारखंड की इस धरती को मैं प्रणाम करती हूँ। आप सबके स्नेहपूर्ण स्वागत ने मुझे भाव-विभोर कर दिया है। उत्साह से भरे ऐसे स्वागत के लिए मैं राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री महोदय, राज्य सरकार की पूरी टीम और झारखंड के सवा-तीन करोड़ से अधिक निवासियों को दिल से धन्यवाद देती हूं।

मुझे झारखंड आकर विशेष प्रसन्नता होती है। आप सब लोगों के बीच यहां आना, मुझे अपने घर आने जैसा ही लगता है। रांची के हवाई अड्डे पर उतरते ही, ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट’ का नाम देखकर, धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की पवित्र धरती पर होने का सौभाग्य, मुझे खुशी से भर देता है। रांची की जेल में ही भगवान बिरसा के कारावास और महा-बलिदान की अमर-गाथा लिखी गई। कल मुझे रांची में धरती आबा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला। पिछले वर्ष 15 नवम्बर को भी मुझे उनके जन्म-स्थान और गांव उलिहातू जाने का और उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का अवसर मिला था। उनके जन्म और कर्म से जुड़े प्रत्येक स्थान पर जाना मेरे लिए तीर्थ-यात्रा के समान होता है।

भगवान बिरसा का केवल झारखंड में ही नहीं बल्कि सभी देशवासियों के हृदय में आदरणीय स्थान है। झारखंड का कोना-कोना महान विभूतियों की स्मृतियों से जुड़ा हुआ है। तिलका मांझी, सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो और अल्बर्ट एक्का जैसे अनेक वीरों की गाथाओं से यहां का गौरवशाली इतिहास परिपूर्ण है। कल रांची में स्थित परमवीर चक्र विजेता लांस नायक अल्बर्ट एक्का की प्रतिमा के समक्ष मुझे श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर मिला। पिछले वर्ष अक्तूबर में मुझे अपनी त्रिपुरा यात्रा के दौरान, अगरतला में स्थित एल्बर्ट एक्का स्मृति- उद्यान में जाने और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने का सौभाग्य मिला था। ऐसी पवित्र धरती का निवासी होने के नाते आप सभी बहुत भाग्यशाली हैं। यह मेरा भी सौभाग्य है कि राज्यपाल के रूप में, मुझे लगभग 6 वर्षों तक झारखंड की पवित्र भूमि पर जन-सेवा का अवसर मिला।

भाइयो और बहनो,

कल मुझे देवघर के बैद्यनाथ धाम मंदिर में पूजा-अर्चना करने का भी सौभाग्य मिला। देवघर में ज्योतिर्लिंग, दुमका में बासुकिनाथ धाम, गिरीडीह में जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की तपोभूमि और रामगढ़ में छिन्न-मस्तिका शक्तिपीठ जैसे पावन तीर्थ स्थल यह सिद्ध करते हैं कि झारखंड की यह भूमि सदियों से आध्यात्मिक स्थली भी रही है।

देवियो और सज्जनो,

वर्तमान झारखंड राज्य का अस्तित्व भले ही ज्यादा पुराना नहीं हो, लेकिन प्राचीन काल से ही, इस क्षेत्र की अलग पहचान रही है। भारतीय परंपरा में एक श्लोक उपलब्ध है, जो इस प्रकार है:

अयस्कपात्रे पय: पानम्     
शालपत्रे च भोजनम्     
शयनम् खर्जूरी पत्रे     
झारखण्डे विधीयते।

अर्थात

झारखंड क्षेत्र में रहने वाले लोग, लोहे के बर्तन में पानी पीते हैं, साल के पत्ते पर भोजन करते हैं और खजूर के पत्तों पर सोते हैं।

इस श्लोक से यह भी स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल से ही झारखंड क्षेत्र में लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था और उसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। साथ ही, प्रकृति के अनुरूप तथा प्रकृति पर आधारित जीवन-शैली का परिचय भी इस श्लोक से मिलता है।

जल-जंगल-जमीन को पूरा सम्मान देते हुए उन्हीं पर आधारित जीवन-शैली को अपनाकर झारखंड के लोगों ने जो उदाहरण प्रस्तुत किया था वह पर्यावरण संकटों के इस दौर में और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। जल संरक्षण के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित श्री साइमन ओरांव के प्रयास सबके लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं।

इस राज्य का झारखंड नाम इसलिए सार्थक है कि इस राज्य का लगभग तीस प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छादित है। इस अनमोल वन-संपदा को और अधिक सुरक्षित और संवर्धित करते हुए ही आधुनिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना सबके लिए स्थायी लाभ का सही रास्ता है।

भाइयो और बहनो,

अधिकांश परम्पराओं में मानव समुदाय को जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ माना गया है। ‘न हि मानुषात् श्रेष्ठतरम् हि किंचित्’ अर्थात मनुष्य से बढ़कर कुछ भी नहीं है, यही विचारधारा अधिकांश सभ्यताओं के विकास की प्रेरक रही है। लेकिन, झारखंड जैसे क्षेत्रों में मानव समुदाय को तथा जीव-जंतुओं और वनस्पतियों को एक समान महत्व दिया गया है। इसीलिए, यहां के लोगों की मूल विचारधारा में समस्त प्रकृति एवं जीव जगत के लिए स्नेह, सम्मान एवं संरक्षण की भावना दिखाई देती है। उदाहरण के लिए करमा का त्योहार प्रकृति के प्रति प्रेम का त्योहार है। इस पर्व के अवसर पर, करमा वृक्ष को केंद्र में रखकर महिलाएं नृत्य करती हैं। हम सब हर वर्ष देखते हैं कि वसंत ऋतु के आगमन पर पुराने पत्ते झड़ते हैं और हरे-भरे नए पत्तों और फूलों के रंग में प्रकृति मानों स्वयं नृत्य करने लगती है। इस प्राकृतिक उल्लास को व्यक्त करने के लिए आदिवासी तथा अन्य सभी समाजों के युवक-युवतियां अपने केशों में शाल के फूलों को सजाकर खुशी से नाचते-गाते हैं। सरहुल त्योहार को मनाने का यह तरीका प्रकृति प्रेम की परंपरा को जीवंत बनाए रखने का सुंदर उदाहरण है। इसके लिए मैं झारखंड के सभी लोगों की, विशेषकर यहां की बहनों और बेटियों की सराहना करती हूं।

झारखंड के समाज की एक अन्य मौलिक विशेषता है, व्यक्ति की जगह समूह को महत्व देना। जब समाज की सोच सामूहिकता पर आधारित होती है तो समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। सहकारिता और सामूहिकता की इस भावना को निरंतर और अधिक शक्तिशाली बनाना चाहिए। आज ही मैंने खूंटी में एक महिला सम्मेलन को संबोधित किया था जहां पर उपस्थित बहनों और बेटियों के उत्साह को देखकर मुझे विश्वास होता है कि यहाँ सामूहिकता की भावना निरंतर प्रबल हो रही है।

भाइयो और बहनो,

झारखंड का प्राकृतिक सौन्दर्य मनमोहक है। इसलिए, Eco-tourism के क्षेत्र में झारखंड में विकास की अपार संभावनाएं हैं। मुझे विश्वास है कि इस क्षेत्र में समुचित विकास के द्वारा राज्य के युवाओं के लिए रोजगार तथा उद्यम के अनेक अवसर प्राप्त होंगे।

झारखंड की धरती को रत्न-गर्भा भी कहा जाता है क्योंकि इस राज्य की धरती के गर्भ में अमूल्य खनिज पदार्थ विद्यमान हैं। खनिज संपदा की दृष्टि से झारखंड देश के सबसे समृद्ध राज्यों में है। मैं मानती हूं कि झारखंड के सबसे मूल्यवान रत्न यहां के आप सभी भाई-बहन और बच्चे हैं। यहां के लोग परिश्रमी हैं, स्नेही हैं और सरल हैं।

झारखंड के लोग नृत्य-संगीत, उत्सव और उल्लास के लिए जाने जाते हैं। नागपुरी लोक-गीतों और लोक-नृत्य झूमर के प्रमुख कलाकार श्री मुकुन्द नायक, नागपुरी तथा सदरी के लोक-गायक, नर्तक और संगीतकार श्री मधु मंसुरी हसमुख, रंगकर्मी डॉक्टर गिरिधारी राम गौंझू ‘गिरिराज’ तथा प्रसिद्ध छउ नर्तक श्री शशधर आचार्य जैसे सम्मानित कलाकारों ने झारखंड के सांस्कृतिक उत्कर्ष से देश-विदेश को परिचित कराया है। यहां के जीवन में कला सहज रूप से घुली-मिली है। जैसे यहां प्रकृति की सुंदरता पाई जाती है वैसे ही स्वभाव और कला की सुंदरता भी देखी जाती है।

भाइयो और बहनो,

झारखंड की एक-चौथाई से कहीं अधिक आबादी हमारे जनजातीय भाई-बहनों की है। जनजातीय समाज की संस्कृति, भाषा तथा आर्थिक व्यवस्था के संरक्षण के लिए, संविधान की पांचवीं अनुसूची में स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं। पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों के पीछे जो गहरे विचार और मूल भावनाएं हैं उनको मजबूत बनाना हमारे समावेशी लोकतंत्र को और अधिक ऊर्जा प्रदान करेगा। झारखंड राज्य उन 10 राज्यों में शामिल है, जहां Scheduled Areas घोषित किए गए हैं, तथा Tribes Advisory Councils का गठन किया गया है।

भाइयो और बहनो,

झारखंड में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग स्थापित हैं। आज से लगभग 115 वर्ष पहले जमशेद जी टाटा ने देश का पहला बड़ा कारख़ाना झारखंड के क्षेत्र में ही स्थापित किया। आजादी के बाद बोकारो में सार्वजनिक क्षेत्र का विशाल स्टील प्लांट स्थापित किया गया। झारखंड में अनेक आधुनिक उद्योग, विशेषकर खनिज पदार्थों पर आधारित उद्योग स्थापित हैं। इन उद्योगों से आधुनिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। हाल के वर्षों में झारखंड के infrastructure को बड़े पैमाने पर विकसित करने के प्रयास किए गए हैं। मैं चाहती हूं कि आधुनिक विकास का लाभ सभी वर्गों, विशेषकर वंचित समुदायों के जन-जन तक पहुंचे।

मेरी शुभकामना है कि निकट भविष्य में ही झारखंड विकास की दृष्टि से देश के अग्रणी राज्यों में अपना स्थान बनाए। मुझे विश्वास है कि झारखंड के हमारे सभी भाई-बहन और बच्चे बहुत ही अच्छा जीवन-स्तर प्राप्त करेंगे तथा खुशहाली और समृद्धि से भरपूर जीवन बिताएंगे। इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

जय हिन्द!     
जय झारखंड!

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