भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का दिव्यांगजन सशक्तीकरण हेतु राष्ट्रीय पुरस्कारों की प्रस्तुति के अवसर पर सम्बोधन

नई दिल्ली : 03.12.2023

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का दिव्यांगजन सशक्तीकरण हेतु राष्ट्रीय पुरस्कारों की प्रस्तुति के अवसर पर सम्बोधन

आज का यह दिन पूरे विश्व के दिव्यांग-जन के साथ-साथ समस्त विश्व समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आज विश्व की कुल आबादी में लगभग 15 प्रतिशत दिव्यांग-जन हैं। उन सब का सशक्तीकरण भारत सहित पूरे विश्व समुदाय के लिए उच्च प्राथमिकता है। इस संदर्भ में यह पुरस्कार समारोह अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैं देशवासियों की ओर से आज के सभी पुरस्कार विजेताओं को हार्दिक बधाई देती हूं।

ये राष्ट्रीय पुरस्कार दिव्यांग-जन के सशक्तीकरण का सराहनीय माध्यम हैं। दिव्यांग-जनों से जुड़ी व्यक्तिगत और संस्थागत उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करने और पुरस्कृत करने से सब का उत्साहवर्धन होता है।

इस समारोह के आयोजन के लिए मैं सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री, डॉक्टर वीरेंद्र कुमार जी और उनकी पूरी टीम की सराहना करती हूं। मुझे दिए गए आमंत्रण पत्र में यह लिखा गया था कि इस राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में मेरी उपस्थिति से दिव्यांग-जनों का मनोबल बढ़ेगा और उन्हें प्रेरणा मिलेगी। लेकिन, मैं यह कहना चाहती हूं कि इन पुरस्कार विजेताओं सहित, दिव्यांग-जन के संघर्षों और उपलब्धियों के बारे में जानकर मेरा मनोबल बढ़ता है, सभी देशवासियों का मनोबल बढ़ता है। सब के लिए प्रेरणा स्वरूप सभी पूर्व और वर्तमान पुरस्कार विजेताओं तथा अन्य दिव्यांग-जनों को मैं विशेष बधाई देती हूं तथा उनके अदम्य सकारात्मक भाव को नमन करती हूं।

मुझे यह जानकर, और देखकर बहुत खुशी होती है कि पिछले कुछ वर्षों में दिव्यांग-जन के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव आया है और उनकी उपलब्धियों में सराहनीय वृद्धि हुई है। इसके लिए मैं सभी stakeholders को बधाई देती हूं।

देवियो और सज्जनो,

हमारा नया संसद भवन विश्व के सबसे बड़े और जीवंत लोकतन्त्र का नया मंदिर भी है। हम सब के लिए यह प्रसन्नता और गर्व की बात है कि नए संसद भवन का प्रत्येक हिस्सा दिव्यांग-जन के लिए सुगम्य है, accessible है। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारा लोकतन्त्र विशाल और जीवंत होने के साथ- साथ समावेशी और संवेदनशील है। इससे सीख लेकर सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दिव्यांग-जनों की आवश्यकताओं को आरंभ से ही ध्यान में रखा जाए और उनके लिए physical access तथा digital access सुलभ रहें। Renovation की जगह Innovation की सोच के साथ काम करना चाहिए। इसी संदर्भ में यह एक सुखद उदाहरण है कि हमारे देश में manufacturers, दिव्यांग-जन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर customized vehicles उपलब्ध करा रहे हैं।

समावेशी और संवेदनशील विकास को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ सरकारी संस्थाएं, व्यापारिक उद्यम और प्रबुद्ध नागरिक कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। सबसे अधिक सुखद बात यह है कि स्वयं दिव्यांग-जन ने अपनी असाधारण उपलब्धियों से उनके प्रति समाज की सोच बदली है।

‘स्वच्छ भारत अभियान’, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान’ तथा ‘टीबी मुक्त भारत’ जैसे अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभियानों में दिव्यांग-जनों को Campaign Ambassadors बनाया गया है। निर्वाचन आयोग द्वारा भी दिव्यांग-जन को Brand Ambassadors बनाया गया है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, विश्व समुदाय Sustainable Development Goals 2030 के लिए प्रतिबद्ध है। भारत ने इनमें से कई लक्ष्यों को प्राप्त करने में सराहनीय गति से कार्य किया है। गरीबी को दूर करने, स्वास्थ्य और कल्याण, अच्छी शिक्षा, gender equality, स्वच्छता एवं पेय जल आदि से जुड़े Sustainable Development Goals को प्राप्त करने से दिव्यांग-जन के सशक्तीकरण को विशेष बल मिलता है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि हमारे देश ने इन लक्ष्यों को उच्च प्राथमिकता दी है और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है। ऐसे प्रयासों से inclusive eco-system का निर्माण होता है तथा दिव्यांग-जन सहित विशेष सहायता योग्य सभी वर्गों को अपने अवसर और अधिकार प्राप्त होते हैं। शायद इसीलिए, इस वर्ष के अंतर-राष्ट्रीय दिव्यांग-जन दिवस की theme है: “United in action to rescue and achieve the SDGs for, with and by persons with disabilities”.

देवियो और सज्जनो,

अनेक चुनौतियों को पार करते हुए, उपलब्ध सुविधाओं का समुचित उपयोग करते हुए, अपनी अदम्य विजय भावना के बल पर भारत के दिव्यांग खिलाड़ियों ने इसी वर्ष एक नया इतिहास रचा है। उन्होंने Asian Para Games में 111 पदक जीतकर भारत की शान बढ़ाई है। मुझे इस बात की विशेष प्रसन्नता है कि उन Asian Para Games में भारत की टीम में बेटियों की संख्या लगभग 40 प्रतिशत थी और पदक विजेताओं में भी लगभग 40 प्रतिशत बेटियां ही थीं। अवसर मिलने पर हमारी बेटियां हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करती हैं। दिव्यांगता से प्रभावित सभी खिलाड़ियों सहित बेटियों के प्रदर्शन में निरंतर उल्लेखनीय प्रगति हो रही है। इसके पीछे पद्मश्री तथा खेल रत्न से सम्मानित डॉक्टर दीपा मलिक तथा सुश्री अवनि लेखरा जैसी असाधारण महिला खिलाड़ियों ने प्रेरक भूमिका निभाई है। दिव्यांगता से प्रभावित ऐसी महान महिला खिलाड़ियों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत की बेटी शीतल देवी ने अद्भुत इतिहास रचा है। केवल 16 वर्ष की आयु में शीतल ने इस वर्ष के Asian Para Games में दो स्वर्ण सहित तीन पदक जीते हैं। शीतल को विश्व की सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज का दर्जा दिया गया है। सर्वाधिक प्रेरक तथ्य यह है कि बेटी शीतल के दोनों हाथ नहीं हैं और वह अपने पैरों से तीरंदाजी करती है।

आज के पुरस्कार विजेताओं सहित, विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियां प्राप्त करने वाले सभी दिव्यांग-जनों से मैं अपेक्षा करती हूं कि वे अन्य दिव्यांग-जनों की यथाशक्ति सहायता अवश्य करें। दिव्यांग-जनों द्वारा अन्य दिव्यांग-जनों की सहायता करने के अनेक प्रेरक उदाहरण विद्यमान हैं। तमिलनाडु के निवासी श्री एस. रामकृष्णन जी का गर्दन से नीचे का शरीर लकवा-ग्रस्त है। उन्होंने दिव्यांग-जनों के पुनर्वास, शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के लिए सराहनीय योगदान दिया है। उनके संस्थान की सहायता से प्रतिवर्ष 15 हजार से अधिक दिव्यांग-जन लाभान्वित होते हैं। उनके श्रेष्ठ कार्यों के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। जम्मू-कश्मीर के श्री जावेद अहमद टाक एक आतंकी हमले में घायल होने के बाद wheel-chair से चलते-फिरते हैं। वे पिछले दो दशकों से दिव्यांग बच्चों की शिक्षा और कल्याण के लिए कार्यरत हैं। दिव्यांग-जनों को वे संदेश देते हैं: Be A Part, Not Apart यानी भिन्न नहीं, अभिन्न बनो। श्री जावेद टाक जी को भी पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। मैंने कश्मीर से तमिलनाडु तक दिव्यांग-जनों के लिए दिव्यांग-जनों द्वारा कार्य करने के उदाहरण इसलिए दिए हैं कि उनसे प्रेरणा लेकर सभी दिव्यांग-जन एक दूसरे की सहायता करें तथा अन्य सभी देशवासी भी दिव्यांग-जन के हित में निष्ठा के साथ सक्रिय रहें।

मुझे विश्वास है कि समुचित सुविधाओं, अवसरों और सशक्तीकरण के प्रयासों के बल पर हमारे देश में सभी दिव्यांग-जनों का जीवन समतापूर्ण और गरिमापूर्ण होगा। इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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