भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का दिव्यांग-जन सशक्तीकरण के क्षेत्र में 2024 के राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में सम्बोधन

नई दिल्ली : 03.12.2024

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मैं सभी देशवासियों की ओर से, आज पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति और संस्था को हार्दिक बधाई देती हूं।

इन पुरस्कारों का बहुत व्यापक सामाजिक महत्व है। आज के पुरस्कार विजेता, समाज के सामने, Role Model के रूप में प्रतिष्ठित हो रहे हैं। इनका अनुकरण करके, अन्य व्यक्ति और संस्थान, दिव्यांग-जन के सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। वास्तव में दिव्यांग-जन के अदम्य उत्साह को देखकर हम सभी को प्रेरणा मिलती है। आज के पुरस्कार-विजेता दिव्यांग-जन की उपलब्धियों के बारे में जानकर सभी का मनोबल बढ़ा होगा। मैं अपने इस विश्वास को दोहराती हूं कि जीवन के प्रति, दिव्यांग-जन के सकारात्मक दृष्टिकोण से मेरा मनोबल बढ़ता है, समाज का मनोबल बढ़ता है। आप जैसे पुरस्कार-विजेता दिव्यांग- जन, प्रेरणा का लक्ष्य नहीं, प्रेरणा के स्रोत हैं।

दिव्यांग-जन में निहित नेतृत्व की क्षमता के आधार पर ही, इस वर्ष के अंतर-राष्ट्रीय दिव्यांग-जन दिवस के विषय को चुना गया है। इस वर्ष का विषय है ‘Amplifying the leadership of persons with disabilities for an inclusive and sustainable future.’ इस विषय के अनुरूप, आज के पुरस्कार समारोह से, दिव्यांग-जन में नेतृत्व की क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। दिव्यांग-जन में उद्यमिता यानी entrepreneurship को बढ़ावा देने, उनका कौशल-विकास करने, उन्हें रोजगार दिलाने, उनके उत्पादों की खरीद को preference देने की व्यवस्था करने, तथा marketing की सुविधाएं प्रदान करने से उनमें नेतृत्व की क्षमता बढ़ेगी।

इस पुरस्कार समारोह का आयोजन करने के लिए मैं दिव्यांग-जन सशक्तीकरण विभाग की पूरी टीम की सराहना करती हूं। मुझे विश्वास है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉक्टर वीरेंद्र कुमार जी के कुशल नेतृत्व में इस टीम के सदस्य दिव्यांग-जन के सशक्तीकरण के प्रयासों को नित नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाते रहेंगे। मैं पुरस्कार विजेताओं का चयन करने के लिए मंत्री जी सहित, जूरी के सभी सदस्यों की सराहना करती हूं।

थोड़ा सा प्रोत्साहन मिलने पर, दिव्यांग-जन अपनी प्रतिभा और क्षमता के बल पर बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल करते हैं। वर्ष 2012 के Paralympics में भारत ने केवल एक पदक प्राप्त किया था। पिछले दशक में जागरूकता और सहायता बढ़ाने के प्रयासों का स्पष्ट परिणाम यह दिखाई दिया है कि वर्ष 2024 के Paralympics में हमारे खिलाड़ियों ने 29 पदक जीते हैं।

देवियो और सज्जनो,

प्रति वर्ष ‘अंतर-राष्ट्रीय दिव्यांग-जन दिवस’ का आयोजन करना, मानव समुदाय में संवेदनशीलता का प्रमाण है। विश्व-समुदाय में अपने दिव्यांग साथियों के सशक्तीकरण की भावना का होना बहुत अच्छी बात है। इस भावना के साथ सभी दिव्यांग-जन को सहजता और बराबरी का अनुभव कराना पूरी मानवता का कर्तव्य है। दिव्यांग-जन को हर तरह से बाधामुक्त वातावरण सुलभ कराना समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए।

वास्तव में उसी सुविधा को प्रभावी कहा जा सकता है जिसका उपयोग दिव्यांग-जन सुगमता से कर सकें। सही मायने में उसी समाज को संवेदनशील कहा जा सकता है जिसमें दिव्यांग-जन को समान सुविधाएं तथा अवसर प्राप्त होते हैं। Ease of living के पैमानों पर प्रगति को तभी सार्थक माना जाएगा जब दिव्यांग-जन की ease of living भी बढ़ेगी। इसी सोच के साथ सुगम्य भारत के निर्माण का राष्ट्रीय लक्ष्य तय किया गया है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सुगम्य भारत अभियान के लिए अनेक मंत्रालय और विभाग मिलकर Whole of the Government Approach के साथ काम कर रहे हैं। मैं चाहूंगी कि दिव्यांग-जन के हित में, विशेषकर उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण के क्षेत्रों में, सभी सम्बद्ध मंत्रालय एकजुट होकर काम करें। ग्रामीण क्षेत्रों और दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले दिव्यांग-जन के कल्याण और विकास के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है।

पहले केवल तीन प्रकार की दिव्यांगताओं को कानूनी मान्यता दी जाती थी। वर्ष 2016 में नए अधिनियम द्वारा 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को मान्यता दी गई है। इस विस्तार के द्वारा नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ उन दिव्यांग-जन तक भी पहुंच रहा है जो पहले इससे वंचित थे। यह दिव्यांग-जन के कल्याण और विकास के लिए बहुत बड़ा परिवर्तन सिद्ध हुआ है।

देवियो और सज्जनो,


दिव्यांग होना किसी तरह की कमी नहीं है। यह एक विशेष अवस्था है, एक special condition है। इस विशेष अवस्था के अनुसार विशेष सुविधाएं, उपकरण, training और counseling उपलब्ध कराने को सरकार द्वारा प्राथमिकता दी जा रही है। यह समाज की भी प्राथमिकता होनी चाहिए।

हमारे दिव्यांग-जन को sympathy नहीं, empathy चाहिए, कृपा नहीं, संवेदनशीलता चाहिए, special attention नहीं, natural affection चाहिए। समाज का यह दायित्व है कि दिव्यांग-जन को समाज के अन्य सदस्यों के साथ समानता, गरिमा और सम्मान का अनुभव हो।

देवियो और सज्जनो,

मुझे आप सबके साथ यह साझा करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि इस वर्ष, फरवरी में, राष्ट्रपति भवन में ‘Purple Fest’ का आयोजन किया गया। उस उत्सव में बहुत बड़ी संख्या में लोग आए। मुझे दिव्यांग-जन से भेंट करने और संवाद करने का सुअवसर मिला। दिव्यांग-जन के साथ बिताया गया समय मुझे अमूल्य लगता है क्योंकि उनसे मुझे बहुत कुछ जानने को मिलता है।

मुझे आप सबको यह बताते हुए भी हर्ष का अनुभव हो रहा है कि राष्ट्रपति भवन की website को दिव्यांग-जन के लिए सुगम्य बनाया गया है। यह देश की ऐसी पहली website है जो GIGW3 के मानकों के अनुरूप है। इन websites को दृष्टि-बाधित दिव्यांग-जन भी access कर सकते हैं। इस प्रकार यह समावेशी website का एक उदाहरण है।

इसी वर्ष राष्ट्रपति भवन में एक कैफेटेरिया की शुरुआत की गई है। उस कैफेटेरिया को दिव्यांग-जन चलाते हैं। वे बड़े उत्साह के साथ अपना काम करते हैं। उस कैफेटेरिया में जाने वाले लोगों को भी अच्छा अनुभव होता है। वहां काम करने वाले युवा दिव्यांग-जन बहुत खुशी से रोज काम पर आते हैं। लोगों से मिलने और अपना काम करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है और उनकी जीवनशैली बेहतर हुई है। ऐसे सशक्तीकरण से उनके माता-पिता और परिवारजन भी खुशी महसूस करते हैं।

काम करने का अवसर, किसी भी व्यक्ति की तरह, दिव्यांग-जन में भी, आत्म-विश्वास और सार्थक जीवन जीने की भावना पैदा करता है। इस प्रकार रोजगार, उद्यम तथा आर्थिक सशक्तीकरण के जरिए दिव्यांग- जन के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।

वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारे दिव्यांग-जन बराबरी के भागीदार बनें, ऐसी सोच के साथ, सरकार और समाज को मिलकर काम करना है, इसी अनुरोध के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!

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