भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के अवसर पर सम्बोधन

नई दिल्ली : 30.09.2022

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के अवसर पर सम्बोधन(हिन्दी, 482.09 किलोबाइट)

68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में पुरस्कृत सभी विजेताओं को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। भारतीय सिनेमा को असाधारण योगदान देने वाली आशा पारेख जी को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ दिये जाने परमैं उन्हें विशेष तौर पर बधाई देती हूं। आशा पारेख जी ने दर्शकों का असीम प्रेम अर्जित किया। उनकी पीढ़ी की हमारी बहनों ने अनेक बंधनों के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई। आशा जी का सम्मान, अदम्य महिला शक्ति का सम्मान भी है।‌

फिल्म का निर्माण टीम-वर्क तथा कठिन परिश्रम के बल पर ही संभव हो पाता है। इसलिए पुरस्कृत फिल्मों की टीम के सभी सदस्यों को मैं बधाई देती हूं।

‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ के संदर्भ में राष्ट्र और फिल्म दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। फिल्म निर्माण के साथ-साथ film industry की एक बेहतर समाज और राष्ट्र के निर्माण में भी प्रमुख भूमिका है।

मुझे बताया गया है कि स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में पिछले वर्ष नवंबर में हुए International Film Festival of India में विशेष आयोजन किए गए। अगली पीढ़ी के सिनेमा के प्रतिनिधि के रूप में 75 युवा प्रतिभाओं को अनेक गतिविधियों से जुड़ने का अवसर देकर प्रोत्साहित किया गया। India @75 के बैनर तले सन 1948 से 2019 तक की देश की 18 चुनी हुई फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया। ऐसे प्रयासों से भारतीय फिल्मों की अब तक की विकास-यात्रा का परिचय प्राप्त होता है। साथ ही भारतीय सिनेमा की विश्व-स्तरीय प्रतिष्ठा का मार्ग भी प्रशस्त होता है। आज के पुरस्कार समारोह सहित ऐसे सभी प्रयासों के लिए मैं सूचना एवं प्रसारण मंत्री, श्री अनुराग सिंह ठाकुर जी की पूरी टीम तथा film Industry से जुड़े सभी लोगों की सराहना करती हूं।

देवियो और सज्जनो,

Audio-visual माध्यम होने के कारण फिल्म का प्रभाव अन्य सभी कला-माध्यमों की अपेक्षा अधिक व्यापक है। प्राचीन काल से ही नाटक सबसे अधिक प्रभावशाली audio-visual कला-माध्यम हुआ करता था। सदियों पहले से हमारे देश में कला की कसौटी थी – सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्। यहां शिवम् का अर्थ है कल्याणकारी या मंगलकारी। आचार्य भरत मुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ में नाटक के मुख्य उद्देश्य बताए हैं। उनके अनुसार आनंद उत्पन्न करना, विषाद को दूर करना और ज्ञान में वृद्धि करना नाटक-मंचन के परिभाषित प्रयोजन हैं। मैं मानती हूं कि फिल्मों के लिए भी ये सभी प्रयोजन उतने ही प्रासंगिक हैं।

यह तथ्य उल्लेखनीय है कि दादा साहब फाल्के द्वारा बनाई गई पहली भारतीय फीचर-फिल्म, ‘राजा हरिश्चन्द्र’ में सत्यनिष्ठा, त्याग और बलिदान के जीवन-मूल्यों का भारतीय संदर्भ में चित्रण किया गया है।

फिल्म एक Industry तो है ही यह हमारी संस्कृति व जीवन-मूल्यों की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। सिनेमा हमारे समाज को मजबूती से जोड़ने और राष्ट्र के निर्माण का माध्यम भी है।

मैं यह मानती हूं कि भारतीय आदर्शों और चरित्रों पर आधारित अच्छी फिल्में व्यवसाय की दृष्टि से भी सफल होती हैं। उदाहरण के लिए, मैं सन 1982 में प्रदर्शित रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित ‘गांधी’ फिल्म का उल्लेख करना चाहूंगी। उस फिल्म ने भारत सहित विश्व-स्तर पर भारी सफलता अर्जित की। उस फिल्म की सबसे बड़ी सफलता यह है कि उसके द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों और आदर्शों के प्रति विश्व-समुदाय में सम्मान और व्यापक हुआ।

देवियो और सज्जनो,

‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के साथ-साथ हमारा देश अपनी प्रगति-यात्रा के अमृत-काल से गुजर रहा है। इस संदर्भ में, मुझे ऐसा लगता है कि ज्ञात-अज्ञात स्वाधीनता सेनानियों की जीवन-गाथाओं से जुड़ी feature और non-feature फिल्मों का दर्शक-गण स्वागत करेंगे। अनेक देशवासी ऐसी फिल्मों के निर्माण की अपेक्षा भी करते हैं जिनसे समाज में संवेदनशीलता और एकता को बढ़ाने, राष्ट्र के विकास की गति को तेज करने तथा पर्यावरण-संरक्षण के प्रयासों को बल मिले।

इस संदर्भ में, मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आज पुरस्कृत की गई फिल्मों में प्रकृति और पर्यावरण, सांस्कृतिक परम्पराओं, सामाजिक मुद्दों, पारिवारिक जीवन-मूल्यों तथा हमारे राष्ट्रीय जीवन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

इस सभागार में उपस्थित फिल्म समुदाय के लोग भारत की इंद्रधनुषी विविधता में एकता के संवाहक हैं। आज हरियाणवी, डिमासा और तुलु जैसी भाषाओं में बनाई गई फिल्मों को पुरस्कृत किया गया है। यह सांस्कृतिक संवेदनशीलता का अच्छा उदाहरण है।

बहनो और भाइयो,

भारतीय सिनेमा, विशेषकर फ़िल्म संगीत, विश्व-स्तर पर भारत के soft-power के प्रसार का बहुत अच्छा माध्यम रहा है। इसी वर्ष जुलाई में उज्बेकिस्तान में Shanghai Co-operation Organization के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित की गई। मुझे बताया गया है कि बैठक के बाद समापन समारोह में एक विदेशी बैंड द्वारा 1960 के दशक की एक हिंदी फ़िल्म का लोकप्रिय गीत प्रस्तुत किया गया।

भारतीय फिल्मों का पूरे विश्व में स्वागत किया जा रहा है। इस soft-power का और अधिक प्रभावी उपयोग करने के लिए हमें अपनी फिल्मों की गुणवत्ता में वृद्धि करनी होगी।

अब हमारे देश में एक क्षेत्र में बनी फिल्में अन्य सभी क्षेत्रों में भी अत्यधिक लोकप्रिय हो रही हैं। इस प्रकार भारतीय सिनेमा सभी देशवासियों को एक सांस्कृतिक सूत्र में बांध रहा है। यह फिल्म समुदाय का भारतीय समाज को बहुत बड़ा योगदान है।

फिल्मों का सबसे अधिक प्रभाव युवाओं और बच्चों पर पड़ता है। इसलिए फिल्म उद्योग से जुड़े आप सभी लोगों से समाज की यह अपेक्षा है कि भारत की भावी पीढ़ी का निर्माण करने में इस माध्यम का सदुपयोग हो।

भाइयो और बहनो,

मैं एक बार फिर सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देती हूं। मैं जूरी के सभी सदस्यों की भी सराहना करती हूं। मैं Indian Film Industry के स्वर्णिम भविष्य के लिए अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करती हूं। मुझे विश्वास है कि Indian Film Industry, निरंतर और अधिक मजबूत होती रहेगी तथा विश्व-स्तर पर सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करेगी।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.