भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 200वां जन्मोत्सव – ज्ञान ज्योति पर्व – स्मरणोत्सव समारोह में संबोधन

टंकारा : 12.02.2024

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यह मेरा सौभाग्य है कि आज के दिन, महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की जन्म-भूमि, टंकारा में आने का, मुझे अवसर मिला है। स्वामी जी की पावन स्मृति में, सभी देशवासियों की ओर से, मैं उन्हें सादर नमन करती हूं।

स्वामी जी की 200वीं जयंती, पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है। इस अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर पर, ‘जन्मोत्सव ज्ञान-ज्योति पर्व, स्मरणोत्सव समारोह’ का आयोजन करने के लिए मैं दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा, श्री महर्षि दयानन्द सरस्वती स्मारक ट्रस्ट, टंकारा तथा समस्त आर्य संगठनों की सराहना करती हूं।

देवियो और सज्जनो,

हमारी भारत-भूमि धन्य रही है जिसने महर्षि दयानन्द सरस्वती जैसी अद्भुत विभूतियों को जन्म दिया है। महान आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक श्री ऑरोबिंदो ने, महर्षि दयानन्द सरस्वती की महानता को व्यक्त करते हुए कहा था कि वे मनुष्यों और संस्थाओं के मूर्तिकार थे। मुझे बताया गया है कि आर्य समाज संस्था से जुड़े लगभग 10 हजार केंद्र आज मानवता के विकास और कल्याण के लिए कार्यरत हैं।

स्वामी जी के आदर्शों का गहरा प्रभाव लोकमान्य तिलक, लाला हंसराज, स्वामी श्रद्धानन्द और लाला लाजपत राय जैसे महापुरुषों पर पड़ा। स्वामी जी और उनके असाधारण अनुयायियों ने भारत के लोगों में नई चेतना और आत्म-विश्वास का संचार किया।

काठियावाड़ की इस धरती ने भारत-माता के महानतम सपूतों को जन्म दिया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के बाद की पीढ़ियों में इसी क्षेत्र में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म हुआ। स्वामी जी ने समाज सुधार का बीड़ा उठाया और सत्य को सिद्ध करने के लिए ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक अमर ग्रंथ की रचना की। महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति में जन-जन को शामिल करते हुए उसे आध्यात्मिक आधार दिया और ‘सत्य के प्रयोग’ नामक आत्मकथा की रचना की। ये दोनों ग्रंथ हमारे देशवासियों का ही नहीं बल्कि मानवता का मार्गदर्शन करते रहे हैं और करते रहेंगे। काठियावाड़ में जन्मे इन दोनों महापुरुषों के जीवन से सभी देशवासियों तथा पूरी मानवता को प्रेरणा मिलती रहेगी।

इन दोनों महान विभूतियों से जुड़े एक तथ्य का मैं उल्लेख करना चाहूंगी। अपने ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में स्वामी जी ने नमक कानून का विरोध किया था। उस ग्रंथ के प्रकाशन के लगभग 5 दशकों के बाद महात्मा गांधी ने नमक कानून का उल्लंघन किया और हमारे स्वाधीनता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया। देश की सोई हुई आत्मा को जगाने, समाज को नैतिकता और समानता के आदर्शों से जोड़ने तथा देशवासियों में आत्म-गौरव का संचार करने में सौराष्ट्र की इस भूमि ने पूरे राष्ट्र को सही दिशा दिखाई है।

भारत के आधुनिक इतिहास का अध्ययन करने वाले यह जानते हैं कि आरंभ में स्वामी जी संस्कृत में ही अपनी बात कहते और लिखते थे। लेकिन उन्होंने यह सोचा कि उन्हें सामान्य लोगों से सीधा संपर्क बनाना चाहिए। इसलिए, स्वामी जी ने समाज को सही दिशा दिखाने के लिए जन-भाषा हिन्दी का प्रयोग करना शुरू किया।

देवियो और सज्जनो,

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने 19वीं सदी के भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने का बीड़ा उठाया। उनके द्वारा फैलाए गए प्रकाश से रूढ़ियों और अज्ञान का अंधेरा दूर हुआ। वह प्रकाश तब से लेकर आज तक देशवासियों का मार्गदर्शन करता रहा है और भविष्य में भी करता रहेगा।

स्वामी जी ने समाज को आधुनिकता और सामाजिक न्याय का रास्ता दिखाया। उन्होंने बाल-विवाह और बहु-विवाह का कड़ा विरोध किया। उन्होंने विधवा-विवाह को प्रोत्साहित किया। वे नारी-शिक्षा और नारी-स्वाभिमान के प्रबल पक्षधर थे। आर्य समाज द्वारा कन्या पाठशालाओं और छात्राओं के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना के द्वारा महिला सशक्तीकरण को अमूल्य योगदान दिया गया है। आज हमारी बेटियां विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। यह बदलाव, नारी स्वाभिमान के प्रति स्वामी जी के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

महात्मा गांधी मानते थे कि छुआ-छूत को दूर करने के लिए स्वामी दयानन्द जी का अभियान, समाज सुधार का उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य था। गांधीजी ने स्वयं भी स्वामी जी के उस अस्पृश्यता उन्मूलन अभियान को सर्वाधिक महत्व दिया।    

स्वामी जी के समानता तथा समावेश के आदर्शों के अनुरूप, अखिल भारतीय दयानन्द सेवाश्रम संघ द्वारा जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों में विद्यालय चलाए जा रहे हैं; आदिवासी युवाओं के लिए कौशल विकास केंद्र चलाए जा रहे हैं। इन स्कूलों और केन्द्रों में छात्रों को निशुल्क आवास और शिक्षा प्रदान की जाती है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आर्य समाज द्वारा स्वामी जी की 200वीं जयंती मनाने के दो वर्ष तक चलने वाले स्मरणोत्सव के दौरान बहुत ही उपयोगी मुद्दों पर केन्द्रित आयोजन किए गए हैं। पारिवारिक और सामाजिक सौहार्द, प्राकृतिक कृषि तथा नशा मुक्ति से जुड़े आयोजन स्वामी जी के आदर्शों के अनुरूप एक स्वस्थ समाज तथा स्वर्णिम भविष्य के निर्माण में सहायक सिद्ध होंगे।

गुजरात के वर्तमान राज्यपाल, आचार्य देवव्रत आर्य जी, प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में अमूल्य मार्गदर्शन करते रहे हैं। Sustainable agriculture, मानवता के भविष्य और स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। स्वच्छ जल और अच्छी मिट्टी के बिना शरीर स्वस्थ नहीं रह सकता। प्राकृतिक कृषि को अपनाना climate change की चुनौतियों का सामना करने में भी सहायक होगा। आचार्य देवव्रत जी ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों और आदर्शों को पूरी निष्ठा के साथ आगे बढ़ाया है। इसके लिए मैं उनकी विशेष सराहना करती हूं।

अगले वर्ष स्वामी जी द्वारा आर्य समाज की स्थापना के 150 वर्ष पूरे हो जाएंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि आर्य समाज से जुड़े सभी लोग पूरे विश्व को श्रेष्ठ बनाने की स्वामी जी की सोच को कार्यरूप देने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे। मैं एक बार फिर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की स्मृति को नमन करती हूं और आर्य समाज परिवार की विश्व-व्यापी सफलता की कामना करती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत! 
 

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