भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के 21वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर संबोधन

हैदराबाद : 28.09.2024

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सबसे पहले मैं, उन सभी विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देती हूं जिन्हें इस दीक्षांत समारोह में उपाधियां प्रदान की गई हैं।

अपनी असाधारण उपलब्धियों के लिए पदक हासिल करने वाले सभी विद्यार्थियों की प्रसन्नता से मुझे भी आनंद मिलता है।

मैं, विद्यार्थियों को उनके जीवन और करियर में एक प्रमुख उपलब्धि हासिल करने के मुकाम तक पहुँचाने के लिए संकाय-सदस्यों और विश्वविद्यालय की पूरी टीम के योगदान की प्रशंसा करती हूं।

मैं, हमारे ही परिवार-जनों को मिले संतुष्टि के भाव को समझ सकती हूं जिन्होंने छात्रों की हर प्रकार से मदद की है।

मैं, निर्योग्यता, न्याय तक पहुंच, जेल और किशोर न्याय और कानूनी सहायता से संबंधित मुद्दों को उठाने के लिए एनएएलएसएआर के प्रयासों की प्रशंसा करती हूं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि एनएएलएसएआर ने पशुओं के लिए एक केंद्र स्थापित किया है। यह जानकार मुझे लगभग 20 वर्ष पहले ओडिशा में मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास विभाग के मंत्री के रूप में मेरे कार्यकाल की याद आती है। वहां मुझे महसूस हुआ कि जानवरों की सुरक्षा और कल्याण के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए व्यापक प्रयास किए जाने चाहिए। मैं, युवा पीढ़ी से अपेक्षा करती हूं कि वे मानवता की भलाई के लिए पशु-पक्षियों, पेड़ों और जल स्रोतों की रक्षा करें। एनएएलएसएआर का एनिमल लॉ सेंटर इस दिशा में उठाया गया एक अच्छा कदम है।

मुझे खुशी है कि इस विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अध्ययन पर भी ध्यान दिया जा रहा है। वैश्विक कानूनी परिदृश्य में, न्यायविद और न्यायाधीश किसी विवाद के संबंध में पक्षों के मूल्यांकन के लिए एल्गोरिदम की सहायता ले रहे हैं। आज उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को भविष्य के पेशेवर कानून जानकार के रूप में, प्रौद्योगिकी प्रेरित तीव्र परिवर्तनों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। आपको पेशेवर उन्नति के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग एक उपकरण, साथ-साथ सामाजिक न्याय के साधन के रूप में करना है।

प्रिय विद्यार्थियो,

भारत जैसे महान देश में इतिहास से राष्ट्रीय गौरव और आकांक्षा जगती है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा में अपने समापन भाषण में प्राचीन भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रथाओं पर प्रकाश डाला था।

किसी समाज के प्रचलित सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल का न्याय प्रणाली से पता चलता है। लगभग 2300 साल पहले, चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में मैसेडोनिया के राजदूत मेगस्थनीज ने भारतवासियों का उल्लेखनीय रूप से कानून का पालन करने वाले लोगों के रूप में वर्णित किया था। चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्री चाणक्य ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'अर्थ-शास्त्र' में बताया है कि प्रत्येक दस गांवों के लिए तीन मजिस्ट्रेटों की एक पीठ स्थापित की जानी चाहिए, तथा जिलों और प्रांतों में उच्च न्यायालय होने चाहिए। एक न्यायाधीश के स्थान पर न्यायाधीशों की एक पीठ बनाने के लिए ज़ोर दिया। अर्थ-शास्त्र में न्याय प्रशासन से जुड़े जिम्मेदार अधिकारियों के लिए उच्च मानक निर्धारित करने के लिए कहा गया है। इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि मामलों का निपटारा होने तक न्यायाधीशों और वादियों के बीच कोई भी निजी मुलाक़ात नहीं की जानी चाहिए। निष्पक्ष रूप से दिए जाने को अत्यधिक महत्व दिया गया।

प्राचीन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कानूनी साहित्य का एक समृद्ध भंडार विकसित किया गया था। सबसे महत्वपूर्ण कानूनी संदर्भों में से एक, आपस्तंब सूत्र के बारे में कहा जाता है कि उसकी रचना इसी दक्कन क्षेत्र में की गई थी।

प्रिय विद्यार्थियो,

मैंने देश की उच्च कानूनी परंपराओं की याद दिलाने के लिए ये ऐतिहासिक विवरण आप सब के साथ साझा किया है। अतीत में हमारी सिद्ध उत्कृष्टता आपको हमारी सामूहिक प्रतिभा को फिर से खोजने के लिए प्रेरित करेगी।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने व्यापक पैमाने पर न्याय के लिए संघर्ष करने के लिए अपना सफल कानूनी करियर छोड़ दिया था। फिर भी, उनके द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए पैरवी में एक वकील की तरह उनकी अभिव्यक्ति स्पष्ट दिखती थी। भारत में उनका पहला सत्याग्रह नील की खेती के बागान मालिकों द्वारा शोषित गरीब किसानों को न्याय दिलाने के लिए चंपारण में आरंभ किया गया था। सत्याग्रह के दौरान गांधीजी और उनके सहयोगियों जैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो एक वकील भी थे, ने ऐसे विस्तृत दस्तावेज़ तैयार किए जो प्रत्येक किसान से संबंधित थे। कई दिनों में तैयार हुए इस व्यवस्थित और विशाल दस्तावेज से सत्याग्रह को मजबूती मिली, जिससे सरकार को किसानों के पक्ष में निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस प्रकार, गांधीजी ने कानूनी कौशल का लाभ करुणा के साथ उठाया और विश्व के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के खिलाफ कई संघर्षों में विजय हासिल की। करुणा और कानूनी विशेषज्ञता का यह मिलन सफलता का सूत्र है जिसमें संवेदनशीलता और निष्पक्षता भी हो। सार्थक और सफल करियर और जीवन चाहने वाले एक कानूनी पेशेवर के लिए यह एक आदर्श होना चाहिए।

हमारे संविधान में हमारे स्वाधीनता संघर्ष के घटक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श शामिल हैं। संविधान की प्रस्तावना और मौलिक अधिकारों में निहित समानता का सिद्धांत, न्याय देने से संबंधित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में भी दिया गया है। निदेश में समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए कहा गया है। राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि "... आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए।" आपके संस्थान के विज़न स्टेटमेंट में हाशिए पर रहने वाले व्यक्तियों के लिए सामाजिक न्याय पर विशेष ध्यान देने के विशेष रूप से कहा गया है। दुर्भाग्य से, एक गरीब व्यक्ति को एक अमीर व्यक्ति के समान न्याय तक पहुंच नहीं मिलती है। इस अनुचित स्थिति को बेहतरी के लिए बदलना होगा। मैं उम्मीद करता हूं कि कानूनी पेशेवरों की आपकी पीढ़ी बदलाव का वाहक बनेगी।

प्रिय विद्यार्थियो,

न्यायालय का कार्य अधिवक्ताओं से चलता है। एक वकील के रूप में, आपका कर्तव्य है कि आप अपने मुवक्किलों के हितों को ध्यान में रखने के साथ-साथ न्याय प्रदान करने में अदालत का सहयोग करें। आप में से कई लोग कॉर्पोरेट संस्थाओं या कानूनी फर्मों में सलाहकार या एसोसिएट के रूप में कार्य करेंगे। उच्च नैतिक मानकों के हिसाब से अपनी सलाह देना आपका कर्तव्य है। एक कानूनी पेशेवर के रूप में आप जो भी क्षेत्र चुनें, हमेशा सत्यनिष्ठा और साहस के सिद्धांतों पर चलें। सत्ता के सामने सच बोलना आपको और अधिक शक्तिशाली बनाता है।

मैंने देखा है कि पदक विजेताओं के मामले में बेटियाँ, बेटों से आगे हैं। जबकि, आज डिग्री प्राप्त करने वाली कुल छात्राओं की संख्या छात्रों की तुलना में कुछ कम है। मैंने अनेक उच्च शिक्षा संस्थानों में यह पैटर्न देखा है। इससे पता चलता है कि आज भी व्यापक सीमाओं में बंधे होने के बावजूद, हमारी बेटियां उत्कृष्टता दिखाकर हमें गौरवान्वित कर रही हैं। मैं आज के दीक्षांत समारोह में उपस्थित छात्राओं की विशेष प्रशंसा करती हूं। मैं, यहाँ उपस्थित बेटियों से यह भी उम्मीद करती हूं कि वे वंचित अन्य महिलाओं और लड़कियों की मदद करें और उन्हें सशक्त बनाएं।

एनएएलएसएआर कई क्षेत्रों में अग्रणी है। आज के दीक्षांत समारोह में बार और बेंच के सदस्य यहां उपस्थित हैं। महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ावा देने में समाज का हर वर्ग भागीदार है। मैं एनएएलएसएआर और इसके पूर्व छात्रों से कहना चाहती हूँ कि आप सभी हितधारकों का सहयोग ले और महिला अधिवक्ताओं और कानून पढ़ने वाली महिला विद्यार्थियों का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क स्थापित करने में मदद करें और इस नेटवर्क का यह अधिदेश हो कि महिलाओं के प्रति अत्याचारों को कैसे रोकें और ऐसे अत्याचारों के मामलों से निपटने के लिए कौन से ठोस प्रयास किए जाएँ।।

प्रिय विद्यार्थियो,

मुझे विश्वास है कि आप एनएएलएसएआर से ग्रहण की गई शिक्षा का प्रयोग सामाजिक न्याय दिलाने और विकास के एक प्रभावी साधन के रूप में करेंगे। ऐसा करने से ही आपकी सफलता अर्थपूर्ण होगी। आपको देश के राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान देने का भी संतोष मिलेगा। मैं, आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद! 
जय भारत!

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