भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आईआईटी बंबई द्वारा आयोजित, कैंसर के लिए भारत की पहली घरेलू जीन चिकित्सा-पद्धति के शुभारंभ के अवसर पर संबोधन।

मुंबई : 04.04.2024

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नमस्कार !

आज आपके बीच आकर मुझे वास्तव में प्रसन्नता हो रही है, क्योंकि आज वास्तव में एक ऐतिहासिक अवसर है। भारत की पहली जीन चिकित्सा-पद्धति की शुरूआत होने से कैंसर के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक बड़ी सफलता मिली है। उपचार की यह पद्धति, जिसका नाम "सीएआर-टी सेल थेरेपी" है, सबके लिए सुलभ और सस्ती है, यह संपूर्ण मानव जाति के लिए एक नई आशा है। मुझे विश्वास है कि इस चिकित्सा-पद्धति से अनगिनत मरीजों को नई जिंदगी मिलेगी। इस मानवतावादी पहल से जुड़े सभी लोग बधाई के पात्र हैं। सीएआर-टी सेल थेरेपी या काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी- सेल थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और जीन थेरेपी का एक रूप है। रोगी की प्रतिरक्षा कोशिकाओं, विशेष रूप से टी कोशिकाओं में परिवर्तन करने और रोगी कैंसर से लड़ सके, इसके लिए जटिल आनुवंशिक इंजीनियरिंग की जरूरत पड़ती है।

सीएआर-टी सेल थेरेपी को चिकित्सा विज्ञान की सबसे अभूतपूर्व प्रगति में से एक माना जाता है। कुछ समय से यह विकसित देशों में उपलब्ध है, लेकिन यह बेहद महंगी थेरेपी है और दुनिया के अधिकांश रोगियों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। मैं समझती हूं की आज लॉन्च की जा रही थेरेपी की लागत अन्य जगहों की तुलना में 90 प्रतिशत कम है। मुझे बताया गया है कि यह दुनिया की सबसे सस्ती सीएआर-टी सेल थेरेपी है। इसके अलावा, यह 'मेक इन इंडिया' पहल का भी एक उदाहरण है; और 'आत्मनिर्भर भारत' का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। पिछले एक दशक में भारत में इस थेरेपी का विकास और अक्तूबर 2023 में इसे दी गई मंजूरी से भारतीय वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के कौशल का पता चलता है।

भारत की पहली सीएआर-टी सेल थेरेपी उद्योग भागीदार इम्यूनोएसीटी के सहयोग से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बंबई और टाटा मेमोरियल अस्पताल के सहयोग से विकसित की गई है। भारत के पास अपने-अपने क्षेत्रों में दो अग्रणी अनुसंधान संस्थान हैं, जो मानवीय उद्देश्य के लिए उद्योग के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। यह कार्य शिक्षा-उद्योग साझेदारी का एक सराहनीय उदाहरण है, जिससे इसी तरह के कई अन्य प्रयासों को प्रेरणा मिलेगी। मुझे बताया गया है कि इम्यूनोएसीटी दो विद्यार्थियों अलका द्विवेदी और अथर्व कारुलकर और आईआईटी बंबई के प्रोफेसर राहुल पुरवार का एक स्टार्ट-अप है। उनका विजन और उसे पूरा करने के लिए उन्होंने जो कड़ी मेहनत की है, वह सराहनीय है।

देवियो और सज्जनो,

सभ्यता काल के बाद से, हमने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अविश्वसनीय प्रगति की है। हाल की शताब्दियों में, हमनें विज्ञान से अनेक प्रकार की बीमारियों का इलाज किया है। पहले कई जानलेवा बीमारियाँ हुआ करती थीं जिनका अब सफाया किया जा चुका है और वे अब नहीं हैं। हालाँकि, कैंसर की बीमारी से हम पार नहीं पा सके हैं।

कैंसर ने दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोगों की जान ली है। भारत में 2022 में 14.6 लाख लोग इसकी चपेट में आए और 2025 तक यह संख्या बढ़कर 15.7 लाख होने की संभावना है। हम इतने सारे रोगियों और उनके परिवारों के दर्द और पीड़ा की कल्पना कर सकते हैं। फिर भी हमें निराश नहीं होना है। निराश हो भी कैसे सकते हैं, जब हम अनेक बीमारियों का सफल इलाज कर चुके हैं? कई सफलताओं के इतिहास से प्रेरणा लेकर वैज्ञानिक निरंतर संघर्षरत हैं। शीघ्र और समय से निदान हो जाने से अधिक से बहुत लोग ठीक किए गए हैं। उनकी इस सफलता से दूसरों को सकारात्मक मानसिकता रखने की प्रेरणा मिलती है। धीमे किन्तु बढ़ते कदमों से ही हम कैंसर पर विजय पा लेंगे।

आज लॉन्च की जा रही थेरेपी निस्संदेह एक बड़ा कदम है - वास्तव में, भारत में स्वास्थ्य सेवा नवाचार का एक नया मील का पत्थर है। इससे हम उन्नत चिकित्सा देखभाल के वैश्विक पटल के साथ-साथ उन देशों की विशिष्ट सूची में शामिल हो गए हैं, जिनके पास ऐसी सबसे नवीन प्रौद्योगिकी है। मुझे पता चला है कि इस थेरेपी की विदेशों के विशेषज्ञों बहुत प्रशंसा की है।

हमारे पास जो उपलब्ध है वह अकादमिक शोध को उपयोगी और व्यवहार्य बनाने के लिए एक प्रेरक उदाहरण है। मुझे बताया गया है कि यह थेरेपी पूरे देश के प्रमुख कैंसर अस्पतालों में उपलब्ध रहेगी, जिससे रोगियों और उनके परिवारों को नई आशा मिलेगी। इसके अलावा, यह किफायती उपचार पूरी दुनिया के रोगियों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह हमारे "वसुधैव कुटुंबकम" के दृष्टिकोण के अनुरूप होगा।

देवियो और सज्जनो,

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मिलकर आधुनिक भारत की यात्रा के गौरवशाली अध्याय हैं। विशेष रूप से आईआईटी बंबई, हमारी शिक्षा के साथ-साथ प्रौद्योगिकी क्षेत्रों का गौरव रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क 2023 में इस संस्थान को समग्र रूप से चौथा और इंजीनियरिंग में तीसरा स्थान दिया गया। इसके संकाय सदस्यों की प्रतिष्ठा और इसके विद्यार्थियों की क्षमता उत्कृष्ट है। इसे सरकार द्वारा 'उत्कृष्ट संस्थान' का दर्जा दिया गया है।

मुझे जब आज लॉन्च होने वाली नई थेरेपी के बारे में पता चला, तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ, क्योंकि आईआईटी बंबई की न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में प्रौद्योगिकी शिक्षा के मॉडल के रूप में प्रसिद्ध है। इस थेरेपी के विकास से प्रौद्योगिकी को न केवल मानवता की सेवा में लगाया जा रहा है, बल्कि उद्योग के साथ-साथ एक अन्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थान के साथ भी साझेदारी की गई है। यह आईआईटी, बंबई द्वारा पिछले तीन दशकों में अनुसंधान और विकास पर पूरा ध्यान देने से संभव हुआ है। आईआईटी बंबई कई उत्कृष्टता केंद्र और प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटर स्थापित कर रहा है। एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में सरकार से प्राप्त धनराशि का निवेश करके, इस संस्थान ने अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास सुविधाएं स्थापित की हैं। परिणामस्वरूप, आईआईटी बंबई ने बड़ी संख्या में बौद्धिक संपदा अधिकार भी अर्जित किए हैं। 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियाँ इसके प्रमुख अनुसंधान क्षेत्रो हैं। इनसे ही हमारे कल का निर्माण हो रहा है। परिवर्तन तेज़ गति से हो रहा है, और ऐसे में समाज के सामने आने वाली चुनौतियाँ अक्सर कठिन होती हैं। लेकिन, मुझे विश्वास है की आईआईटी बंबई और अन्य समान संस्थानों के संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों के ज्ञान आधार और कौशल से भारत को समग्र रूप से, चल रही तकनीकी क्रांति से बहुत लाभ मिलेगा।

देवियो और सज्जनो,

मैं, एक बार फिर आज लॉंच की जा रही नई थेरेपी के लिए, इससे सीधे जुड़े व्यक्तियों, साथ ही उनसे जुड़े संस्थानों और लोगों को बधाई देते हुए अपनी बात समाप्त करती हूं। आप सबके दूरदर्शी कार्य से कीमती जिंदगियाँ बचेंगी और अनेक परिवारों के चेहरों पर फिर से मुस्कुराहट आएगी। आपकी पहल से दूसरों को प्रेरणा मिलेगी और हमारी शाश्वत प्रार्थना में व्यक्त भाव को पूरा करने में बहुत मदद मिलेगी:

सर्वे भवन्तु सुखिनः ।  
सर्वे सन्तु निरामयाः ।  
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।  
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ 

धन्यवाद। 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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