भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 5वें राष्ट्रीय जल पुरस्कार समारोह में संबोधन
नई दिल्ली : 22.10.2024
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 131.73 किलोबाइट)
आप सभी के बीच आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। विभिन्न वर्गों में आज राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी विजेताओं को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। विभिन्न श्रेणियों में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी हितधारकों को मैं विशेष बधाई देती हूं। मैं आशा करती हूं कि इस समारोह के माध्यम से विजेताओं की “Best Practices” अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचेगी। इससे जल संसाधनों के उचित प्रबंधन तथा सक्षम उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
हमारे संविधान में दिए गए कार्य-विभाजन के आधार पर जल, राज्य-सूची का विषय है। इसलिए जल संसाधनों के संवर्धन, संरक्षण और कुशल प्रबंधन में राज्य सरकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर बार की तरह इस बार भी कई राज्यों को पुरस्कृत किया गया है। जल संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए इन राज्यों द्वारा किए गए कार्य अन्य सभी राज्यों के लिए उदाहरण हो सकते हैं। जल संसाधनों के प्रति सम्यक दृष्टिकोण और कार्यों को बढ़ावा देने की दिशा में, राष्ट्रीय जल पुरस्कारों का आयोजन एक सराहनीय कदम है। आज दिखायी गई लघु-फिल्म ने जल की महत्ता एवं बढ़ती मांग पर प्रकाश डाला है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि जल शक्ति मंत्रालय, जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए हो रहे प्रयासों को पहचान और सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत है।
इस समारोह के सफल आयोजन, तथा जल संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु जल संसाधन मंत्रालय द्वारा किए जा रहे कार्यों के लिए, मैं श्री सी. आर. पाटिल जी एवं उनकी पूरी टीम को बधाई देती हूं।
देवियो और सज्जनो,
पृथ्वी के इतिहास में Ice Age की समाप्ति के बाद जैसे-जैसे बर्फ पिघली, मिट्टी समृद्ध हुई। जंगलों का विकास हुआ। हमारे पूर्वज hunter-gatherers थे। वे जल-स्रोत को खोजते हुए जीवन-यापन करते थे। Agricultural Revolution के बाद से मानव ने एक स्थान पर स्थिरता को अपनाना शुरू किया। यह तब संभव हुआ जब मानव ने फसल उगाना और उसे नदियों के जल से सींचना शुरू किया। इसलिए लगभग सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के इर्द-गिर्द हुआ है।
इस विकास के साथ, विश्व की जनसंख्या बढ़ी। साथ ही जल के उपयोग के तरीकों में बदलाव और विकास हुआ। यह कहा जा सकता है कि पानी और मनुष्य के बीच के संबंधों ने मानव इतिहास को दिशा दी है।
लेकिन ऐसा भी लगता है कि जल के महत्व को, हम जान-बूझ कर भूल जाते हैं। जिन विशेषज्ञों ने प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को न समझ पाने और कृत्रिम रसायनों के खतरों से हमें परिचित कराया है, उनमें से Rachel Carson का नाम महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक Silent Spring में लिखा है and I Quote “In an age when man has forgotten his origins and is blind even to his most essential needs for survival, water along with other resources has become the victim of his indifference.” Unquote.
यह सर्व-विदित होने के बाद भी कि पृथ्वी पर मीठे-पानी के संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है, हम जल संरक्षण और प्रबंधन की उपेक्षा कर देते हैं। मानव निर्मित कारणों से ये संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं और समाप्त भी हो रहे हैं। भूमिगत जल न केवल प्रदूषित हुआ है उसका पुनर्भरण भी नहीं हो पा रहा है। यह अत्यंत चिंताजनक है।
देवियो और सज्जनो,
प्रत्येक व्यक्ति के लिए पानी एक मूलभूत आवश्यकता होने के साथ उसका बुनियादी मानवाधिकार भी है। स्वच्छ जल की उपलब्धता सुरक्षित किए बिना एक स्वच्छ और समृद्ध समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता है। अन्य लोगों की अपेक्षा, वंचित वर्ग के स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और जीविकोपार्जन पर पानी की अनुपलब्धता और अस्वच्छता का ज्यादा गंभीर असर पड़ता है।
जल संरक्षण और जल संचयन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कई सराहनीय कदम उठाए हैं। सतत भूजल प्रबंधन के लिए अटल भूजल योजना लागू की जा रही है। जल शक्ति अभियान क्रियान्वित किया जा रहा है जिसके अंतर्गत Rain water harvesting को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - Per Drop More Crop के माध्यम से सिंचाई में जल उपयोग दक्षता को बढ़ाया जा रहा है।
अमृत 2.0 योजना के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक घर में नल से जल की आपूर्ति करने पर कार्य किया गया है। वर्ष 2019 में सरकार द्वारा ‘जल जीवन मिशन’ का शुभारंभ किया गया था। इस मिशन की शुरुआत के समय केवल 17 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास Tap Water की सुविधा थी। आज 78 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास नल से जल पहुंचा दिया गया है। कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का मानना है कि जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन में उल्लेखनीय सुधार आया है।
देवियो और सज्जनो,
हमारी परंपरा में वायु और जल को बहुत सम्मान से देखा जाता है। यह बात इस तथ्य से भी स्पष्ट होती है कि हम Climate के लिए जलवायु शब्द का प्रयोग करते रहे हैं। हमें जल और वायु दोनों को प्रदूषण से बचाना है। भारत के ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले वेदों में कहा है- मा आपो हिंसी। अर्थात्, हम जल को नष्ट न करें, उसका संरक्षण करें। हमारे पूर्वज गांव के पास तालाब बनवाते थे। मंदिरों में या उनके पास जलाशय बनवाते थे, जिससे पानी की कमी की स्थिति में संचित पानी का उपयोग किया जा सके।
दुर्भाग्य से, हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को भूलते जा रहे हैं। कुछ लोगों ने निजी स्वार्थ के लिए जलाशयों पर अतिक्रमण कर लिया है। इससे न केवल सूखे के दौरान पानी की उपलब्धता प्रभावित होती है बल्कि अधिक वर्षा होने पर बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
हमें यह याद रखना चाहिए कि जल संसाधनों का संरक्षण एवं संवर्धन हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। हमारी सक्रिय सहभागिता के बिना Water-Secure India का निर्माण संभव नहीं है। जन-शक्ति के बल पर ही जल-शक्ति का संचयन एवं संरक्षण किया जा सकता है। छोटे-छोटे प्रयासों के माध्यम से हम बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं। जैसे हमें अपने घरों के नलों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। Overhead Water Tank भरते समय यह ध्यान रखें कि पानी व्यर्थ न बहे। अपने घरों में water harvesting की व्यवस्था करें। आप अन्य नागरिकों के साथ मिलकर पारंपरिक जलाशयों का जीर्णोद्धार कर सकते हैं।
देवियो और सज्जनो,
मुझे विश्वास है कि आज का यह पुरस्कार समारोह जल संसाधनों के संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों को नई ऊर्जा प्रदान करेगा तथा सभी को और अधिक लगन से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। मुझे आशा है कि इन कार्यों से अन्य लोग भी सीख लेंगे और जल संरक्षण में अपना योगदान देंगे। मैं सभी देशवासियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!