भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के दीक्षांत समारोह में संबोधन

कटक : 26.07.2023
ADDRESS BY THE HON’BLE PRESIDENT OF INDIA  SMT. DROUPADI MURMU  AT THE CONVOCATION OF THE NATIONAL LAW  UNIVERSITY ODISHA

मैं, इस दीक्षांत समारोह में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के प्रतिभावान और ऊर्जावान छात्रों के बीच आकर बहुत खुश हूं।

मैं, उन सभी छात्रों को बधाई देती हूं जिन्हें आज डिग्री प्रदान की गई है। मैं, उन विद्यार्थियो की विशेष सराहना व्यक्त करती हूं जिन्होंने पदक प्राप्त किए हैं। यह दीक्षांत समारोह एनएलयूओ की पूरी टीम और विद्यार्थियो के परिवारों के लिए भी खुशी का अवसर है। मैं, छात्रों की उपलब्धियों में उनके योगदान की सराहना करती हूं।

प्रिय विद्यार्थियो,

यह दीक्षांत समारोह आपके जीवन में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करने का जश्न मनाने का एक अवसर है। आपकी डिग्री आपके लिए नए मार्ग खोलती है। यह आपके लिए एक अच्छा करियर बनाने और अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नए संकल्प लेने का भी अवसर है। मैं, इस तथ्य पर जोर देना चाहती हूं कि आप सभी में समान प्रतिभा और क्षमता है। आपमें से जिन लोगों को पदक नहीं मिले हैं, उन्हें बिल्कुल भी उदास होने की जरूरत नहीं है। आप में से प्रत्येक व्यक्ति कई अवसर उत्पन्न कर सकता है और भविष्य में अपनी क्षमता साबित कर सकता है। जिनकी उत्कृष्टता को आज मान्यता मिली है, मैं, उनसे अपेक्षा करती हूं कि वे निरंतर प्रतिबद्धता और उद्देश्य की भावना के साथ अच्छा काम जारी रखेंगे।

देवियो और सज्जनो,

मुझे बताया गया है कि एनएलयूओ ने आस-पास के कुछ गांवों को बच्चों के अनुकूल गांव बनाने के लिए गोद लिया है। ग्रामीण समुदायों के साथ छात्रों की भागीदारी उन्हें गांवों में रहने वाले लाखों भारतीयों द्वारा सामना की जाने वाली जमीनी हकीकत के प्रति संवेदनशील बनाएगी। छात्रों में सामाजिक जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करना उनकी समग्र शिक्षा का हिस्सा है।

प्रिय विद्यार्थियो,

आपके विश्वविद्यालय के आदर्श वाक्य से कर्तव्य के प्रति सचेत कानूनी पेशेवरों के रूप में आपके द्वारा अपनाए जाने वाले आदर्शों का स्पष्ट पता चलता है। आदर्श वाक्य “सत्ये स्थितो धर्मः” का अर्थ है कि धर्म पूरी तरह से सत्य या सच्चाई में निहित है। मैंने देखा कि भारत के उच्चतम न्यायालय का आदर्श वाक्य है 'यतो धर्मस्ततो जय:' जिसका अर्थ है 'धर्म की हमेशा जीत होती है'। एक विधि विश्वविद्यालय और उच्चतम न्यायालय के आदर्श वाक्य में सीधा संबंध है क्योंकि कानून और कानूनी अध्ययन न्याय के साधन हैं। भारतीय परंपरा में धर्म शब्द का अर्थ किसी विशिष्ट धर्म या संप्रदाय से नहीं है। इसका अर्थ वह सर्वोच्च कानून या सार्वभौमिक कानून है जो व्यक्ति, समाज और प्रकृति सहित सभी चीजों का पोषण और रखवाली करे। प्राचीन भारत में न्यायालयों का वर्णन करने के लिए अक्सर दो शब्दों का उपयोग किया जाता था, 'धर्म-सभा' और 'धर्माधिकरण'। आज के आधुनिक भारत के लिए, हमारा धर्म भारत के संविधान में निहित है, जो हमारे देश का सर्वोच्च कानून है। आज उत्तीर्ण होने वाले युवा छात्रों सहित संपूर्ण कानूनी जानकारों  को संविधान को अपनी पवित्र पुस्तक के रूप में मानना ​​चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

संविधान का उल्लेख होते ही मुझे भारत के महानतम सपूतों में से एक की याद आ जाती है जो हमारे संविधान के मुख्य शिल्पकारों में से एक थे। बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर कानून सहित कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा के लिए जाने जाते थे। हमारे संविधान के निर्माण में उनकी केंद्रीय भूमिका सर्वविदित है। विश्व स्तरीय उत्कृष्टता हासिल करने के लिए, एक व्यक्ति के रूप में उन्होंने अकल्पनीय कठिनाइयों को पार किया। उन्होंने सेवा के वंचित वर्ग के सामूहिक उद्देश्य को बढ़ावा देने के लिए अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा का उपयोग किया। मैं आपको भारत के राष्ट्रपति के रूप में इसीलिए संबोधित कर रही हूं क्योंकि डॉ. अंबेडकर ने मेरे जैसे व्यक्ति के लिए वहां तक ​​पहुंचना संभव बनाया जहां मैं आज हूं।

प्रिय विद्यार्थियो,

जैसा कि आप सभी जानते हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व योग्य वकीलों द्वारा किया गया था। इससे पता चलता है कि उस पीढ़ी के बड़ी संख्या में वकील देश के लिए बलिदान देने की भावना से भरे हुए थे। ओडिशा में उत्कल गौरव मधुसूदन दास को याद करना स्वाभाविक है। वह एक वकील थे और उन्हें मधु बैरिस्टर के नाम से जाना जाता था। 28 अप्रैल को उनकी जयंती को ओडिशा में 'वकील दिवस' के रूप में मनाया जाता है। ओडिशा के लोगों के लिए, 'महात्मा गांधी' और 'मधु-बैरिस्टर' हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दो सबसे सम्मानित व्यक्ति हैं। उनके जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों और वकीलों ने भी एक प्रगतिशील और एकजुट समाज के निर्माण के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों का समर्थन किया। इन आदर्शों को हमारे संविधान में विधिवत शामिल किया गया है।

आप सबको संवैधानिक आदर्शों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए। आप सबको राष्ट्र की प्राथमिकताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और आपको उन राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में योगदान देने के लिए सचेत प्रयास भी करने चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

नागरिकों की मदद करने की स्थिति वाले प्रत्येक भारतीय की यह सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए की महिलाओं सहित हमारी आबादी के कमजोर वर्गों को समान अवसर और सम्मान मिले। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आज के दीक्षांत समारोह में एलएलएम और पीएच.डी की उपाधि प्राप्त करने में लड़कियों की संख्या लड़कों से ज्यादा रही है। उन्हें लगभग बराबर संख्या में स्वर्ण पदक प्राप्त हुए हैं। मुझे बताया गया है कि एलएलबी पाठ्यक्रम में भी लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में आगे बढ़ रही है। महिला वकीलों, न्यायाधीशों और न्यायविदों की यात्रा चुनौतीपूर्ण रही है किन्तु प्रेरणादायक भी रही है। हमारे वंचित और कमजोर नागरिकों की एक बहुत बड़ी संख्या को अपने अधिकारों और हकों के बारे में भी पता नहीं है, न ही उनके पास राहत या न्याय पाने के लिए अदालतों में जाने के साधन हैं।

प्रिय विद्यार्थियो,

यह आपका कर्तव्य है कि आप अपनी व्यावसायिक गतिविधियों का कुछ समय बेसहारा और कमजोरों की मदद करने के लिए लगाएँ। बहुत से वकील नि:शुल्क कार्य, सामुदायिक सेवा और हाशिए पर मौजूद लोगों की वकालत कर रहे हैं। उनमें से कई बहुत सफल रहे हैं और उनमें से कुछ अपने शानदार कानूनी करियर की परिणति के रूप में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बने हैं। महात्मा गांधी ने कहा था, और मैं उसे उद्धृत करती हूं, “A true lawyer is one who places truth and service in the first place  and the emoluments of the profession in the next place only”। यहां मैं एक आम गलत धारणा कि महात्मा गांधी बहुत सफल वकील नहीं थे, को मिटाना चाहूंगी। वास्तव में, दक्षिण अफ्रीका में उनकी अच्छी कानूनी प्रैक्टिस थी तथा क्लर्कों और जूनियरों की एक बहुत ही सक्षम टीम थी। उन्होंने आत्म-सम्मान और राष्ट्रीय सम्मान के लिए लड़ने के लिए धन का बलिदान दे दिया। मैं यह सुझाव नहीं दे रही हूं कि आप अपने करियर के वित्तीय लाभ का त्याग करें। मेरी यही अपील है कि अपनी व्यावसायिक गतिविधियों का कम से कम कुछ समय सच्चे करुणा भाव से गरीबों और कमजोरों की मदद करने के लिए समर्पित करें। यह ठीक ही कहा गया है कि कानून सिर्फ एक कैरियर नहीं है, यह एक व्यवसाय है, पुकार है।

भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की दृष्टि से चल रहे अमृत-काल में आगे बढ़ रहा है। कानूनी जानकारों के रूप में, आप सभी को देश की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में भागीदार बनकर अपनी भूमिका निभानी है। मुझे यकीन है कि वर्ष 2047 के विकसित भारत में इस विश्वविद्यालय के अनेक विद्यार्थी कानूनी विद्वान और राष्ट्रीय स्तर के नेता होंगे। इसी आशा के साथ, मैं सभी युवा विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!  
जय भारत!  
बंदे उत्कल जननी!

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