भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रकाशनों के विमोचन के अवसर पर भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संबोधन

राष्ट्रपति भवन : 05.11.2024

डाउनलोड : भाषण भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रकाशनों के विमोचन के अवसर पर भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संबोधन(हिन्दी, 378.84 किलोबाइट)

ADDRESS BY THE HON’BLE PRESIDENT OF INDIA, SMT DROUPADI MURMU AT THE RELEASE OF THE PUBLICATIONS BY THE SUPREME COURT OF INDIA

मैं आज विमोचित किए गए इन प्रकाशनों को तैयार करने में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देने वाले सभी महानुभावों को बधाई देती हूँ।

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में विभिन्न सार्थक गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लोक-अदालतों और जिला स्तरीय न्यायिक अधिकारियों का सम्मेलन का आयोजन किया जाना हमारी न्याय प्रणाली की जमीनी वास्तविकता में सुधार करने हेतु किए जा रहे विभिन्न उपायों में से दो उदाहरण मात्र हैं। मैं इन पहलों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश की प्रशंसा करती हूँ।

देवियों और सज्जनों,

जिस प्रकार हम अपने न्यायिक इतिहास के पिछले 75 वर्षों का अवलोकन कर रहे हैं, उसी प्रकार संविधान सभा के सदस्यों ने भी बीते दशकों में हुई घटनाओं पर गहन चिंतन किया होगा। अंग्रेजों द्वारा इल्बर्ट बिल का कड़ा विरोध करने और रॉलेट एक्ट को पारित करने जैसे साम्राज्यवादी अहंकार से भरे निर्णयों के कटु अनुभवों ने उनकी संवेदनशीलता को अवश्य प्रभावित किया होगा। इसलिए, उन्होंने स्वतंत्र भारत की न्यायपालिका की परिकल्पना सामाजिक क्रान्ति के एक ऐसे सिद्धान्त के रूप में की, जो समानता के आदर्श को कायम रख सके। सबको निष्पक्ष न्याय प्रदान करना और वर्तमान में अप्रासंगिक हो चुकी औपनिवेशिक प्रथाओं से मुक्ति पाना हमारी न्यायपालिका के मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए। हमें, एक ओर जहाँ आज़ादी से पहले के न्यायशास्त्र के उपयोगी क़ानूनी पहलुओं को तो अपनाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर इस औपनिवेशिक बोझ को कम करने पर भी विचार करना चाहिए।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 75 वर्ष पूरे होने के उत्सव के इस अवसर पर, मैं स्वतंत्र भारत के अन्तःकरण के रक्षक के रूप में न्यायपालिका की भूमिका को स्वीकार करती हूँ। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसी न्याय प्रणाली विकसित की है, जिसकी जड़ें भारतीय लोकाचार और वास्तविकताओं में निहित है। मुझे बताया गया है कि आज विमोचित की गई ‘देश को न्याय’ नामक पुस्तक में सर्वोच्च न्यायालय की 75 वर्षों की यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों का उल्लेख है। इस पुस्तक में, आम लोगों के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रभाव की भी चर्चा की गई है।

हमारी न्याय प्रणाली का उद्देश्य न्यायपूर्ण और निष्पक्ष समाज के रूप में हमारी यात्रा को मजबूत करना होना चाहिए। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई कि आज जारी की गई ‘विधिक सहायता प्रकोष्ठ के कामकाज से संबंधित रिपोर्ट’, हमारे देश में विधि विद्यालयों में संचालित किए जा रहे विधिक सहायता क्लीनिकों को समर्पित है। मैं समझती हूँ कि इस प्रकार के विधिक सहायता क्लीनिक हमारे युवाओं को समग्र कानूनी शिक्षा प्रदान करने में योगदान देते हैं और उन्हें हमारे समाज के कमजोर वर्गों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।

विचाराधीन कैदियों की स्थिति मेरे लिए सदैव गंभीर चिंता का विषय रही है। मुझे प्रसन्नता है कि आज जारी की गई ‘जेल व्यवस्था संबंधी रिपोर्ट’ में विचाराधीन कैदियों की संख्या को कम करने में न्यायपालिका की भूमिका को समझने का प्रयास किया गया है।

मुझे विश्वास है कि आज विमोचित किए गए प्रकाशनों से आमजन को गणराज्य के रूप में भारत देश की यात्रा में सर्वोच्च न्यायालय की उल्लेखनीय भूमिका के बारे में जानकारी प्रदान करने के अलावा नि:शुल्क विधिक सहायता और जेल सुधार के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी। मैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय को अपने आप में एक महान संस्था के रूप में स्थापित करने के लिए वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों तथा अधिवक्ताओं बधाई देती हूँ। मैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ।

धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!

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