भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आईसीएआर-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में द्वितीय भारतीय चावल कांग्रेस में संबोधन

कटक, ओडिशा : 11.02.2023

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आईसीएआर-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में द्वितीय भारतीय चावल कांग्रेस में संबोधन(हिन्दी, 143.14 किलोबाइट)

भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आईसीएआर-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में द्वितीय भारतीय चावल कांग्रेस में संबोधन

मुझे आज आप सबके बीच आकर प्रसन्नता हुई है। मुझे यहाँ युवा वैज्ञानिकों, विशेषकर महिला वैज्ञानिकों को देखकर और प्रसन्नता हो रही है। आज आप यहां दूसरी भारतीय चावल कांग्रेस में भाग लेने के लिए एकत्र हुए हैं, जिसमें इन चार दिनों में इस जरूरी अनाज से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाएगी। यह प्रसन्नता की बात है कि चावल अनुसंधान और भारत की खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए अपना समय और ऊर्जा लगाने वाले प्रतिभाशाली वैज्ञानिक यहाँ इकट्ठे हुए हैं।

आप सबके सामने चावल के महत्व को बताना बेमानी होगा। आप अच्छी तरह जानते हैं कि चावल भारत में खाद्य सुरक्षा का आधार है और हमारी अर्थव्यवस्था का भी एक प्रमुख हिस्सा भी है। हमारी विरासत और संस्कृति में भी चावल का प्रमुख स्थान है। वेदों से ही, संस्कृत और अन्य भाषाओं के हमारे प्राचीन साहित्य में चावल और इसकी अनेक किस्मों का बार-बार जिक्र किया गया है। विभिन्न धार्मिक परंपराओं के कई अनुष्ठान और समारोह, समृद्धि और जीवन की पूर्णता के प्रतीक 'अक्षत' अखंड चावल के बिना पूरे नहीं माने जाते हैं। आज भी, भारत के कई क्षेत्रों में, बच्चे को दिया जाने वाला पहला ठोस भोजन आमतौर पर चावल से बना होता है। चावल का जिक्र प्रसिद्ध किंवदंतियों और मिथकों में भी होता है। मुझे विश्वास है कि आपको सुदामा के चावल जैसी कई कहानियाँ यादहोंगी, जो पुराने दोस्तों के बीच प्यार के बंधन को दर्शाती हैं।

चावल को ठीक ही 'जीविका का खाद्यान्न' कहा जाता है। विशेष रूप से एशिया में यकीनन, यह किसी भी अन्य खाद्यान्न की तुलना में अधिक लोगों का पेट भरता है। निःसन्देह, भारत अनाज का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है। भारत ने दुनिया के अन्य हिस्सों में लोगों को बुनियादी खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में मदद की है - और उन्हें चावल की विभिन्न किस्मों के स्वाद दिए हैं।   
हालांकि, भारत आज चावल का प्रमुख उपभोक्ता और निर्यातक है, लेकिन जब देश आजाद हुआ तब स्थिति अलग थी। ग्रेट बंगाल अकाल के तुरंत बाद और हमारे स्वतंत्रता प्राप्त करने से ठीक पहले वर्ष 1946 में राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान की स्थापना कि गई थी। उन दिनों, हम अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर थे, और अक्सर राष्ट्र ‘शिप-टू-माउथ’ की स्थिति में रहा।

यदि राष्ट्र दूसरों पर निर्भरता को दूर कर सका है और सबसे बड़ा निर्यातक बना है, तो इसका बहुत श्रेय राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान को जाता है। इस संस्थान ने भारत की खाद्य सुरक्षा और किसानों के जीवन को बेहतर बनाने में भी बहुत योगदान दिया है। आज 75 से भी अधिक वर्षों से एनआरआरआई विभिन्न भागीदारों को प्रशिक्षण प्रदान करते हुए धान से संबंधित बुनियादी, अनुप्रयुक्त और adaptive research के क्षेत्रों में कार्य कर रहा है।

देवियो और सज्जनो,

भारत को अपनी समृद्ध जैव विविधता पर गर्व है और इस विविधता में चावल की किस्में भी शामिल हैं। इस देशके प्रत्येक क्षेत्र में एक विशिष्ट स्वाद वाले अलग-अलग स्वाद के चावल होते हैं। पिछली शताब्दी में जैसे-जैसे सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हुआ है, चावल नए स्थानों पर उगाए जाने लगे और उपभोक्ता बढ़ने लगे। कुछ क्षेत्रों में ऐसा बदलाव पानी के लिए हमेशा अच्छा नही होता है। धान की फसल के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन दुनिया के कई हिस्से जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। सूखा, बाढ़ और चक्रवात अब अधिक आते हैं, जिससे चावल की खेती को नुकसान पहुंचता है।

भले ही चावल कई जगह उगाऐ जा रहे हों, फिर भी ऐसे स्थान हैं जहाँ पारंपरिक किस्मों को उगाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि ओडिशा के आदिवासी समुदायों के पारंपरिक चावल उत्पादक, सदियों से चावल के विशेष जेनेटिक संसाधनों का संरक्षण करते आ रहे हैं। मैं यहां कोरापुट की श्रीमती कमला पुजारी के अनुकरणीय कार्य के बारे में बताना चाहूंगी जो चावल सहित फसल की सैकड़ों दुर्लभ और लुप्तप्राय किस्मों का संग्रह और संरक्षण कर रही हैं, उनकी इस पहल के लिए उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया   
गया है।

आज हमें एक ओर पारंपरिक किस्मों के बचाव और संरक्षण करने और दूसरी ओर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए बीच का रास्ता तलाशने की आवश्यकता है। इसलिए, मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि एनआरआरआई के वैज्ञानिक, खेती की चुनौतियों को झेल सक्ने वाले अद्वितीय चावल जर्मप्लाज़्म को एकत्र करके, उसकी पहचान करके और उसका लक्षण वर्णन करके सक्रिय रूप से समाधान की तलाश कर रहे हैं। मुझे बताया गया है कि इस राइस कांग्रेस ने उन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भी सत्र रखे गए हैं।   
एक अन्य चुनौती मिट्टी को रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से बचाना है, जो आधुनिक चावल की खेती के लिए आवश्यक माने जाते हैं। हमें अपनी मिट्टी को बचाए रखने के लिए ऐसे उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता है। मुझे विश्वास है कि हमारे वैज्ञानिक पर्यावरण के अनुकूल चावल उत्पादन प्रणाली विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

चूंकि चावल हमारी खाद्य सुरक्षा का आधार है, इसलिए हमें इसके पोषण संबंधी पहलुओं का भी ध्यान रखना चाहिए। कम आय वाले समूहों का एक बड़ा वर्ग चावल पर निर्भर है, और यह अक्सर उनके दैनिक पोषण का एकमात्र स्रोत होता है। इसलिए, चावल के माध्यम से प्रोटीन, विटामिन और आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करके कुपोषण से निपटने में मदद मिल सकती है। मुझे बताया गया है कि आईसीएआर-एनआरआरआई ने सीआर धान 310 के नाम से भारत का पहला उच्च प्रोटीनयुक्त चावल विकसित किया है, जिससे देश की सम्पूर्ण पोषण प्रोफ़ाइल में सुधार होगा। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि एनआरआरआई ने सीआर धान 315 नामक उच्च जिंक चावल की किस्म भी तैयार की है।

विज्ञान द्वारा इस तरह की बायो-फोर्टिफाइड किस्मों का विकास करना, विज्ञान से समाज सेवा का एक आदर्श उदाहरण है। बदलती जलवायु और बढ़ती जनसंख्या के लिए इस तरह के अधिक से अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी । मुझे विश्वास है कि भारत का वैज्ञानिक समुदाय सफलतापूर्वक इस चुनौती का सामना करेगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का लाभ उन लोगों, विशेषकर समाज के वंचित वर्ग तक पहुंचना चाहिए जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग सामाजिक पृथकता और असमानता को दूर करने में किया जाना चाहिए। मुझे आशा है कि अधिक से अधिक युवा महिलाओं द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी को करियर के रूप में अपनाने से तेजी से यह कार्य हो पाएगा।

देवियो और सज्जनो,

मैं, दूसरी भारतीय चावल कांग्रेस के आयोजन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, चावल अनुसंधान कर्मचारियों के संघ और अन्य सह-आयोजकों को बधाई देती हूं। मुझे विश्वास है कि भारत और दूसरे देशों से आए चावल शोधकर्ताओं के बीच चार दिनों के व्यापक विचार-विमर्श के बाद, आयोजक प्रमुख सुझाव तैयार करेंगे जिन पर भविष्य में कार्य किया जाना है। विचार-विमर्श के बाद तैयार किया जाने वाला सार- गर्भित दस्तावेज इस देश के नीति-निर्माताओं के लिए सहायक होगा। मैं दूसरी भारतीय चावल कांग्रेस की शानदार सफलता की कामना करती हूं।


धन्यवाद।   
जय हिन्द!

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