भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित मानव अधिकार दिवस समारोह के अवसर पर संबोधन

नई दिल्ली : 10.12.2022

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भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित मानव अधिकार दिवस समारोह के अवसर पर संबोधन

मुझे, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित मानव अधिकार दिवस समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हो रही है। यह दिन संपूर्ण मानव जाति के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि वर्ष 1948 में इसी दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अंगीकार किया था, जिसे यूडीएचआर के नाम से भी जाना जाता है।

यूडीएचआर को अपनाना विश्व इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी। आज, मानवाधिकारों के बारे में काफी जागरूकता फैल चुकी है और इसे मजबूती प्रदान करने वाले समानता के सिद्धांत को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। लेकिन, करीब 75 साल पहले दुनिया थोड़ी अलग थी। बड़ी संख्या में मनुष्यों को समान नहीं समझा जाता था। ऐसा लगता था जैसे आधुनिकता के आगमन ने अंधकार युग के बादलों को छिन्न-भिन्न कर दिया है, लेकिन प्रगति का सूर्य अभी सर्वत्र चमकना बाकी था। उस समय, विश्व नेतृत्व ने एक साथ मिलकर इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ का मसौदा तैयार किया, और घोषणा की कि मनुष्य होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति मूल अधिकारों का हकदार है।

आज, हम यह समझ नहीं पाते हैं कि किसी व्यक्ति को केवल उसकी जाति, धर्म, लिंग या भाषा के आधार पर, या वे कहाँ और किस समूह में पैदा हुए हैं, के आधार पर बुनियादी सम्मान से वंचित क्यों किया जाता है।

यूडीएचआर का उल्लेख होते हीहमें एक भारतीय द्वारा इसके प्रारूपण में किए गए अतुलनीय योगदान का स्मरण हो आता है। हंसाबेन मेहता, जैसा कि आप जानते हैं, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत की प्रतिनिधि थीं। जब पहली पंक्ति "सभी पुरुष स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं" तैयार की गई थी, तो वह हंसाबेन थीं जिन्होंने इसे बदलकर "समस्त मानवजाति स्वतंत्र और समान पैदा होती है" करने का सुझाव दिया था। सुधार छोटा सा था, किन्तु प्रभाव बड़ा था। वह गांधीजी की अनुयायी थीं और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में व्यापक रूप से भाग लिया,जो, मुझे लगता है कि उनकी परिष्कृत संवेदनशीलता को दर्शाता है।

फिर भी, कई जगहों पर समानता की दिशा में धीमी प्रगति रही है। कहा जाता है कि यूडीएचआर के पाठ का 500 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जो इसे इतिहास में सबसे अधिक अनुदित दस्तावेज़ बनाता है। अभी भी, जब हम दुनिया के कई हिस्सों में हो रहे दुखद घटनाक्रमों पर विचार करते हैं, तो हमें आश्चर्य होता है कि क्या उसघोषणा को उन भाषाओं में पढ़ा गया है।

देवियो और सज्जनों,

यह तथ्य है कि मानव अधिकार एक ऐसा मुद्दा है जिस पर दुनिया भर में काम होना बाकी है। हालाँकि, संतोष की बात है कि भारत में, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग इनके बारे में जागरूकता फैलाने के सर्वोत्तम संभव प्रयास कर रहा है। अब अपने 30वें वर्ष में, एनएचआरसी ने मानव अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ उन्हें बढ़ावा देने का सराहनीय कार्य किया है। आयोग मानव अधिकारों के लिए विभिन्न वैश्विक मंचों में भी भाग लेता है। भारत को इस बात का गर्व है कि इसके कार्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। इसे GANHRI नामक राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के वैश्विक नेटवर्क में 'ए स्टेटस' प्राप्त है।

मैं,इसका जरूर उल्लेखनीय करना चाहूंगी कि एनएचआरसी बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी से लेकर स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य, विकलांगता और बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों, एलजीबीटी और अन्य कई मुद्दों का निवारण करने में सक्रिय रहा है। मुझे बताया गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान, एनएचआरसी की एक टीम ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक अस्पताल का दौरा किया था कि कोई भी प्रवेश और उपचार से वंचित नहीं रह जाए। इसने महामारी के प्रति प्राधिकारियों की कार्रवाई में सभी मानव अधिकारों का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए परामर्श-पत्र (एडवाइजरी) तैयार किया और जारी किया।

इसके अलावा, आयोग मानव अधिकार मामलों और अन्य मामलों पर शोध को भी बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, इसने, criminal justice system पर अनुसंधान को सहयोग दिया है। पिछले महीने मुझे undertrial कैदियों की दशा पर अपने विचार साझा करने का अवसर मिला। उस मामले में, और कई अन्य मामलों में भी, मेरा मानना ​​है कि हमारे इरादे हमेशा नेक होते हैं, फिर भी सकारात्मक परिणाम देने के लिए उनका सख्ती से पालन करने की आवश्यकता होती है।

इसीलिए मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए संवेदनशीलता और सहानुभूति विकसित करना महत्वपूर्ण है। यह वास्तव में कल्पना शक्ति के अभ्यास पर काम करता है। यदि हम उन लोगों के स्थान पर स्वयं की कल्पना करें, जिन्हें मनुष्य से कम समझा जाता है, तो हमारी आंखें खुली रह जाएंगी और हम अवश्य ही कुछ करने को बाध्य होंगे। आपने तथाकथित 'गोल्डन रूल' के बारे में सुना होगा, जो कहता है: दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप अपने साथ चाहते हैं। यह मानव अधिकार को खूबसूरती से अभिव्यक्त करता है।

देवियो और सज्जनों,

आज से यूडीएचआर के 75 साल पूरे होने पर, साल भर चलने वाले विश्वव्यापी समारोह की शुरुआत हो गई है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 की थीम के रूप में 'डिग्निटी, फ्रीडम एंड जस्टिस फॉर ऑल' को चुना है। यह हमारे संविधान की प्रस्तावना में व्यक्त आदर्शों जैसाहै। 'न्याय' से हमारा क्या तात्पर्य है? प्रस्तावना यह व्याख्या करती है कि यहन्याय "न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक" है। मैंने पहले भी कहा है कि हमें न्याय की धारणा का विस्तार करने का प्रयास करना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में, दुनिया असामान्य मौसम पैटर्न के कारण बड़ी संख्या में प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित हुई है। जलवायु परिवर्तन दस्तक दे रहा है। गरीब देशों के लोग पर्यावरण क्षरण की भारी कीमत चुकाने जा रहे हैं। हमें अब न्याय के पर्यावरणीय आयाम पर विचार करना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती इतनी बड़ी है कि यह हमें 'अधिकारों' को फिर से परिभाषित करने के लिए मजबूर करती है। पांच साल पहले, जैसा कि आप जानते हैं, उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने कहा था कि गंगा और यमुना नदियों के पास मनुष्य के समान कानूनी अधिकार हैं। लेकिन केवल दो नदियों तकही क्यों सीमित रहें? भारत अनगिनत पवित्र जलाशयों, नदियों और पहाड़ों वाली पवित्र भौगोलिक भूमि है। इन भूदृश्यों में वनस्पति और जीव-जंतुओं से समृद्ध जैव विविधता बनती है। पुराने समय में हमारे ऋषियों और संतों ने उन सभी को हमारे साथ-साथ एक सार्वभौम के हिस्से के रूप में देखा था। इसलिए, जिस तरह मानव अधिकारों की अवधारणा हमें हर इंसान को अपने जैसा मानने के लिए प्रेरित करती है, उसी तरह हमें पूरी दुनिया और उसके निवासियों का सम्मान करना चाहिए।

मैं सोचती हूँ कि यदि हमारे आस-पास के जानवर और पेड़ बोल सकते हों तो वो हमें क्या बताएंगे, हमारी नदियां मानव इतिहास के बारे में क्या कहेंगी और हमारे मवेशी मानव मानव अधिकार विषय पर क्या कहेंगे। उन्होंने कहा कि हमने लंबे समय तक उनके अधिकारों का हनन किया है और अब परिणाम हमारे सामने हैं। हमें याद रखना चाहिए - बल्कि बार-बार याद रखना चाहिए – की प्रकृति के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करें। यह न केवल हमारा नैतिक कर्तव्य है; बल्कि यह हमारे अपने अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है।

मैं, मानवअधिकार दिवस पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और राज्य आयोगों, उनसे जुड़े सभी सदस्यों और अधिकारियों के साथ-साथ दुनिया भर में मानवाधिकार कार्यकर्ता बंधुओं को बधाई देती हूं। मैं एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा को धन्यवाद देती हूं जिन्होंने मुझे आप सभी के साथ अपने विचार साझा करने का अवसर दिया। मैं आपको शुभकामनाएं देती हूँ।

धन्यवाद!  
जय हिन्द! 

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