भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का मानवाधिकार दिवस के अवसर पर संबोधन

नई दिल्ली : 10.12.2024

डाउनलोड : भाषण भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का मानवाधिकार दिवस के अवसर पर संबोधन(हिन्दी, 1.08 मेगा बाइट)

ADDRESS BY THE HON’BLE PRESIDENT OF INDIA, SMT DROUPADI MURMU ON THE OCCASION OF HUMAN RIGHTS DAY

मानवाधिकार दिवस के अवसर पर आप सभी के बीच आकर मुझे खुशी हो रही है - यह मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस अवसर पर मैं समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व में विश्वास रखने वाले भारत के सभी नागरिकों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ, उनका यही विश्वास हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का आधार है। आज का दिन उन संस्थाओं को याद करने का दिन है, जो समाज के सबसे कमजोर तबकों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए संघर्षरत रहते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, विभिन्न अन्य आयोग, न्यायपालिका और अन्य प्रमुख संस्थाओं ने उन लोगों की आवाज बनने के लिए अथक प्रयास किए हैं, जिनकी अपनी कोई आवाज नहीं है। मैं सभी के लिए मानवाधिकार सुनिश्चित करने के प्रति इन संस्थाओं की दृढ़ प्रतिबद्धता और इनके अश्रांत कार्यों के लिए इनकी सराहना करती हूँ।

वर्ष 1948 में आज ही के दिन मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अंगीकार किया गया था। आज, हम उस घोषणा में निहित आदर्शों पर चिंतन करते हुए एक ऐसे वैश्विक समाज के निर्माण में योगदान देने के अपने सामूहिक संकल्प के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराते हैं, जो न्याय और मानवीय गरिमा पर आधारित हो। मानवाधिकार के क्षेत्र में भारत आज एक देदीप्यमान उदाहरण के रूप में खड़ा है। भारत सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में शानदार पहलें की जा रही हैं। वंचितों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराकर भुखमरी को समाप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं और युवाओं को अपने सपने साकार करने के लिए भेदभाव रहित अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। भारत की सभ्यतागत विरासत 5,000 वर्ष से अधिक पुरानी है। भारत में प्राचीन काल से ही सहानुभूति, करुणा और व्यक्तियों के बीच बंधुत्व के जीवन मूल्यों को कायम रखते हुए, विभिन्न समुदाय सौहार्दपूर्ण ढंग से निवास कर रहे हैं।

एनएचआरसी और एसएचआरसी जैसी संस्थाएं इन मूल्यों को आधार बनाकर सिविल सोसाइटी, मानवाधिकार प्रहरियों, विशेष प्रतिवेदकों और विशेष अनुवीक्षकों के साथ मिलकर सभी के मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रही हैं। मुझे तीन महत्वपूर्ण पुस्तकों/पुस्तिकाओं: ‘नई दिशाएँ, एनएचआरसी की अंग्रेजी पत्रिका, और एनएचआरसी की अड्वाइजरीज का संग्रह’ की प्रथम प्रतियाँ प्राप्त करने पर भी अत्यंत प्रसन्नता हुई है। ये पुस्तकें/पुस्तिकाएं मानवाधिकार विमर्श को आगे ले जाने और मानवाधिकारों के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के प्रति आयोग के समर्पण को दर्शाती हैं।

देवियों और सज्जनों,

भारत अपने सभी नागरिकों के लिए नागरिक और राजनीतिक अधिकार सुनिश्चित करने हेतु दृढ़ता से संकल्पबद्ध है। देश में होने वाले आम चुनाव, समाज के सभी वर्गों के लोगों द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने की इस प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब हैं।

सरकार सभी के लिए आवास, स्वच्छ पेयजल, बेहतर स्वच्छता, बिजली, रसोई गैस और वित्तीय सेवाओं से लेकर स्वास्थ्य-सेवा और शिक्षा तक कई सामाजिक- आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों की गारंटी भी देती है। यह उल्लेखनीय है कि मूलभूत आवश्यकताओं के प्रावधान को अधिकारों का मामला माना जाता है। इस नई सोच का एक बेहतरीन उदाहरण है ‘स्वच्छ भारत मिशन’, जो स्वच्छता को एक बुनियादी अधिकार के रूप में देखता है। इस वर्ष, 19 नवंबर को, विश्व शौचालय दिवस पर, भारत ने एक अभियान शुरू किया ‘हमारा शौचालय: हमारा सम्मान’। यह अभियान आज समाप्त हो रहा है। इस अभियान में स्वच्छता और मानवाधिकारों के बीच के संबंध पर ज़ोर दिया गया है। इस अभियान में इस बात पर बल दिया गया कि सुरक्षित शौचालयों तक पहुंच निजता, सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए, खासकर महिलाओं और लड़कियों के लिए, महत्वपूर्ण है।

इसके अलावा, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016; मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017; और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 जैसे प्रगतिशील कानून, कमज़ोर समुदायों को सशक्त बनाने और उन्हें सम्मान का जीवन जीने में सक्षम बनाने के हमारे दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। मैं LGBTQ समुदाय के सदस्यों, कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों, भिखारियों, यौनकर्मियों और हाथ से मैला ढोने वालों सहित छोटे और अधिक कमज़ोर समूहों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए एनएचआरसी द्वारा किए गए सक्रिय उपायों की भी सराहना करना चाहूंगी।

देवियों और सज्जनों,

जैसे-जैसे हम नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, वैसे-वैसे हमें नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। साइबर अपराध और जलवायु परिवर्तन मानवाधिकारों के लिए नया खतरा बनकर उभरे हैं। डिजिटल युग, एक परिवर्तनकारी युग है किन्तु यह अपने साथ साइबरबुलिंग, डीपफेक, निजता संबंधी चिंताओं और भ्रामक सूचनाओं का प्रचार-प्रसार जैसे जटिल मुद्दों को भी लेकर आया है। ये चुनौतियाँ प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों और गरिमा की रक्षा सुनिश्चित करने वाले सुरक्षित, संरक्षित और निष्पक्ष डिजिटल वातावरण को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करती हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी अधिनियम) 2000, आईटी नियमावली, 2021 और डिजिटल निजी डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 तकनीकी प्रगति तथा व्यक्ति के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करते हैं और डिजिटल युग में निजता संबंधी चुनौतियों से निपटने हेतु समाधान प्रस्तुत करते हैं। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है, यह कई समस्याओं का समाधान कर रहा है और कई नई समस्याएँ भी उत्पन्न कर रहा है। अब तक मानवाधिकारों का विमर्श ‘मानव क्रिया’ पर केंद्रित रहा है, अर्थात यह माना जाता है कि मानवाधिकारों का उल्लंघनकर्ता कोई इंसान ही होता है, जिसमें करुणा और अपराधबोध जैसी कई मानवीय भावनाएँ होती हैं। तथापि, एआई के मामले में अपराधी कोई गैर-मानव किन्तु बुद्धि सम्पन्न अभिकर्ता भी हो सकता है। मैं इस बिन्दु को आपके विचार-मंथन हेतु यहीं पर छोड़ रही हूँ।

जलवायु परिवर्तन संबंधी मामला भी हमें वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों से जुड़ी सोच की समीक्षा करने के लिए बाध्य कर रहा है। किसी एक भिन्न जगह और भिन्न युग के प्रदूषक दूसरी भिन्न जगह और भिन्न अवधि के लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में भारत जलवायु संरक्षण के क्षेत्र में स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरा है। ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022, ग्रीन क्रेडिट पहल, और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली या ‘लाइफ अभियान’ जैसी सरकारी पहलें, आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और हरित धरती के निर्माण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।

देवियों और सज्जनों,

वर्ष 2022 तक भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या लगभग 15 करोड़ थी और वर्ष 2050 तक इसके 35 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। वृद्ध लोगों की अमूल्य अंतर्दृष्टि और जीवन-अनुभव ऐसी संपत्ति हैं जो हमारे समुदायों को समृद्ध बनाती हैं। हमें उनके सामने आने वाले महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान निकालना चाहिए, जिसमें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा, वित्तीय सुरक्षा, सुरक्षा और सामाजिक समावेशन तक पहुंच शामिल है। यह ज़रूरी है कि हम ऐसी नीतियां बनाएं और कदम उठाएं जो उनकी गरिमा को बनाए रखे और उनका कल्याण सुनिश्चित करें, उन्हें हमारे समाज के मूल्यवान सदस्यों के रूप में पूर्ण जीवन जीने के लिए सशक्त बनाएं।

हाल के वर्षों में, मानसिक स्वास्थ्य, विशेषकर हमारे बच्चों और युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि NHRC ने इस मुद्दे की गंभीरता को पहचाना है। मैं सभी हितधारकों से अपील करती हूं कि वे हमारे बच्चों और युवाओं को प्रभावित करने वाले तनाव को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय शुरू करें। बढ़ती गिग इकॉनमी; गिग वर्कर्स के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले, इस बात को सुनिश्चित करने का आग्रह मैं उद्योग और व्यापार जगत के अग्रणी लोगों से करती हूं। जब भी हम नए आर्थिक मॉडल अपनाते हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी व्यक्तियों, खासकर असुरक्षित क्षेत्रों के लोगों का कल्याण, हमारी प्राथमिकता बनी रहे। हम सभी को मानसिक बीमारी से जुड़े किसी भी कलंक को दूर करने, जागरूकता पैदा करने और जरूरतमंद लोगों की सहायता करने की दिशा में काम करना चाहिए।

इस मानवाधिकार दिवस पर, दूसरों के कल्याण के लिए आपकी अटूट प्रतिबद्धता, समर्पण और सेवा के लिए मैं आप सभी को बधाई देती हूं। आइए हम न्याय, समानता और गरिमा के मूल्यों के प्रति अपनी सामूहिक प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करें जो हमारे राष्ट्र को परिभाषित करते हैं। अपने समय की चुनौतियों का सामना करते हुए, हमें प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को बनाए रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी पीछे न छूटे। हम सब मिलकर निरंतर प्रयास और एकजुटता के जरिए एक ऐसे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा, समान अवसर और उपलब्धिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्राप्त हो; चाहे उसकी उम्र, पृष्ठभूमि या परिस्थिति कुछ भी हो।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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