वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, वयोश्रेष्ठ सम्मान प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 01.10.2013
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 248.41 किलोबाइट)
1.मुझे वास्तव में अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस में भाग लेने के लिए आपके बीच उपस्थित होने पर प्रसन्नता हुई है। इस दिन हम भारत में वृद्धजनों के कल्याण के लिए उल्लेखनीय योगदान करने वाले विख्यात वरिष्ठ नागरिकों और संस्थाओं की प्रशंसा और सम्मान करते हैं।
2. इस वर्ष पहली बार वयोश्रेष्ठ सम्मान प्रदान किया जाना वास्तव में एक स्वागत योग्य पहल है। मैं इस पहल के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को बधाई देता हूं तथा सभी पुरस्कार विजेताओं को भी बधाई देता हूं। आप सचमुच कर्मयोगी हैं। वृद्धों की नि:स्वार्थ सेवा और समर्पण से आप हमारे बुजुर्गों के सम्मान और सेवा की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।
3. देवियो और सज्जनो, भारत एक ऐसा देश है जिसकी सभ्यता प्राचीन है और आदिकाल से ही हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि माता-पिता का आदर करना चाहिए। ये सामाजिक मूल्य हमारी सभ्यता में निहित हैं। यदि इस संबंध में कोई भटकाव होता है, तो हमें इसे ठीक करना होगा। वरिष्ठ नागरिकों सहित हमारे समाज के सभी कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा और हिफाजत का माहौल बनाना और उसे कायम रखना हम भारतीयों का सामूहिक दायित्व है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 41 में अन्य बातों के साथ-साथ यह प्रावधान है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास के अधीन वृद्धजनों के सहयोग की विशेष व्यवस्था करेगा। बहुत से उपाय किए जा रहे हैं और आने वाले समय के साथ बहुत से और उपाय किए जाने की संभावना है।
4. चिकित्सा देखभाल और स्वास्थ्य सेवाओं की उन्नति से जीवन प्रत्याशा में वृद्धि एक वैश्विक परिघटना बन गई है, जिससे विश्वभर के सभी समाज में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है। हमारा देश भी अपवाद नहीं है। वर्ष 2001 में, हमारे बुजुर्गों की आबादी 7.66 करोड़ से अधिक थी। इससे बढ़कर 2006 में 17.32 करोड़ तक होने की संभावना है।
5. तथापि यह विडंबना है कि आर्थिक विकास, आधुनिकीकरण और हमारे युवाओं के रोजगार के लिए शहरी इलाकों में प्रवास से ऐसे हालत पैदा हो गए हैं कि जहां बुजुर्ग अपेक्षित सम्मान, प्रेम और देखभाल से वंचित हो रहे हैं। वृद्धावस्था की सबसे बड़ी त्रासदी अनावश्यक और उपेक्षित तथा जीवन का कोई मकसद न होने की भावना है। हमारे बुजुर्ग लोगों को अत्यधिक भावनात्मक और शारीरिक राहत तथा सहयोग प्रदान करने वाली हमारी पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली का स्थान एकल परिवार ढांचा लेता जा रहा है।
6. इस प्रकार, हमारे देश के वृद्धजन निरंतर आधुनिकता और प्रगति तथा सामाजिक मूल्यों में रवैये के बदलने से जुड़ी अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। मैं जानता हूं कि भारत सरकार उनकी वित्तीय और खाद्य सुरक्षा, उनकी स्वास्थ्य देखभाल और उनके जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए अन्य प्रमुख जरूरतों के लिए ठोस नीतियां तैयार करके कार्यान्वित करना चाहती है। केन्द्रीय मंत्रालय और विभाग विशेष योजनाएं अमल में लाने तथा आयकर छूट, रेल और हवाई रियायत तथा बैंक जमा पर अधिक ब्याज दर आदि के रूप में छूट तथा सुविधा प्रदान करने के लिए समन्वय कर रहे हैं।
7. अभिभावक और वरिष्ठ नागरिकों का गुजारा और कल्याण अधिनियम, 2009 सही दिशा में एक बहुत ही सकारात्मक कदम था। मुझे बताया गया है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी आदर्श नियमों में वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए पुलिस के कर्तव्यों का विस्तार से निर्धारण किया गया है।
8. देवियो और सज्जनो, यह कहा जाता है कि विकसित और सभ्य समाज की असली परीक्षा समाज के निर्बल वर्गों की अहमियत और सुरक्षा के तरीके में है। मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि हमारे समाज को उन अंतर्निहित सुरक्षा व्यवस्थाओं में होने वाले हृस को रोकना होगा जो हमारे समाज ने अपने बुजुर्गों के लिए बनाए हैं। हम भारतीयों को अपने वरिष्ठ नागरिकों के प्रति अधिक संवेदनशील बनने को अपना कर्तव्य बना लेना चाहिए। हमें इसके लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए कि वे अपने जीवन का हर दिन पूरी तरह से स्वास्थ्य, सम्मानजनक तथा सार्थक ढंग से जिएं। उन्हें अपने समाज की आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक गतिविधियों में पूरे मन से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. सरकार को बुजुर्गों तथा बुढ़ापे से संबंधित मुद्दों को प्रमुखता देनी चाहिए। उनकी जरूरतों और अपेक्षाओं की अनदेखी नही की जानी चाहिए तथा सरकार और समाज को सक्रियता में किसी भी कारण से विलंब नहीं होना चाहिए। हमें अपने बुजुर्गों के आत्मविश्वास को मजबूत बनाना चाहिए। कुल मिलाकर उनकी पीढ़ी ने ही आधुनिक जीवंत भारत का निर्माण किया है जिनका हम आनंद उठा रहे हैं और अपने भविष्य की ओर पूरी आशा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हमारे बुजुर्गों को निश्चित रूप से यह अहसास होना चाहिए कि वे अपनी मेहनत और हमारी समृद्धि में अपने योगदान का आनंद उठा रहे हैं।
10. यह दिन नई पहल करने का भी अवसर होना चाहिए। बुजुर्गों को स्वयं को संगठित होकर उन क्षेत्रों का पता लगाना चाहिए जिनमें वे चाहते हैं कि सरकार और समाज प्रयास करके उनके जीवन में सुधार लाएं।
11. वरिष्ठ नागरिक हमारी प्रगति के दौरान जीवंत संसाधन हैं। उन्हें रोजगार अवसर और आय सुरक्षा प्रदान न करने के पीछे कोई कारण नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार, वृद्ध महिलाओं की भी भेदभाव, उपेक्षा और असमानता से सुरक्षा करनी होगी। अब चिकित्सीय प्रगति ने चिकित्सकों और संस्थाओं को बुजुर्गों की बेहतर देखभाल में कुशल बना दिया है। मैं चिकित्सा समुदाय से आग्रह करता हूं कि वे और अधिक प्रयास करें जिससे बुजुर्गों की मदद हो सके तथा चिकित्सकों और अस्पतालों में जाना उनके लिए दुस्वप्न नहीं बल्कि सुखद अनुभव होना चाहिए।
12. अपनी बात समाप्त करने से पूर्व मैं प्रसिद्ध अमरीकी जनरल डगलस मैकआर्थर के कथन का उल्लेख करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था ‘‘आप अपने विश्वास जितने युवा हैं, अपनी शंका जितने बूढ़े हैं; अपने आत्मविश्वास जितने युवा हैं, अपने भय जितने बूढ़े हैं; अपनी आशा जितने युवा हैं, अपनी निराशा जितने बूढे हैं।’’ मुझे उम्मीद है कि इस कथन से हमारे देश के सभी वरिष्ठ नागरिकों के विचार और अधिक सकारात्मक बनेंगे।
13. मैं आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं और आपकी कुशलता और खुशहाली के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं। खुद को अनावश्यक न समझें। आप उपयोगी हैं, आप अनुभवी हैं, आप बेशकीमती हैं, आपकी परिरपक्वता युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकती हैं। मैं सभी भारतीय नागरिकों से आग्रह करता हूं कि वे अपने बुजुर्गों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ बनाएं। उनके मार्गदर्शन को महत्वपूर्ण समझें और उनके बहुमूल्य साहचर्य का आनंद उठाएं।
14. मैं एक बार पुन: आपके कार्यक्रम में आए हुए वरिष्ठ प्रतिभागियों विशेषकर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को अपनी बधाई देता हूं। मैं कामना करता हूं कि आप युवा पीढ़ी को प्रेरक नेतृत्व प्रदान करने में सफलता प्राप्त करें।
धन्यवाद,
जय हिन्द।