तुलसी स्मृति ग्रंथ के लोकार्पण समारोह और प्रथम प्रति प्राप्त करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन ऑडिटोरियम, नई दिल्ली : 26.10.2014

डाउनलोड : भाषण तुलसी स्मृति ग्रंथ के लोकार्पण समारोह और प्रथम प्रति प्राप्त करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण(हिन्दी, 422.96 किलोबाइट)

sp1. मुझे आचार्य तुलसी के जन्म जयंती समारोह की पूर्व संध्या पर प्रकाशित तुलसी स्मृति ग्रंथ के इस लोकार्पण समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। आरंभ में,मैं इस ग्रंथ की प्रथम प्रति प्राप्त करने का अवसर प्रदान करने के लिए आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह समिति को धन्यवाद देता हूं। मैं इस अवसर पर,उन सभी लोगों को बधाई देता हूं जिन्होंने महान संत आचार्य तुलसी पर स्मृति ग्रंथ में योगदान किया अथवा उससे संबद्ध रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

2. भारत एक महान सभ्यता है जिसके पास समृद्ध संस्कृति, दर्शन और अध्यात्म है। युगों-युगों से ऋषियों, संन्यासियों और आध्यात्मिक गुरुओं ने भारत की आध्यात्मिक आस्थाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने जनहित के लिए बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया है।

3. हमारे देश की आत्मज्ञान की महान परंपरा में भगवान महावीर का एक प्रमुख स्थान है। उनका लक्ष्य अहिंसा,अनेकांत और अपरिग्रह के आध्यात्मिक उपदेशों के माध्यम से लोगों का आध्यात्मिक उत्थान करना था। तत्कालीन सामाजिक मुद्दों के साथ गहराई से जुड़कर,भगवान महावीर ने ऐसे समाधान प्रदान किए जिनसे जन समस्याओं को कम करने में मदद मिली।

4. भगवान महावीर की आध्यात्मिक शिक्षा के अनुसरण में, जैन आचार्यों की एक शृंखला शताब्दियों के दौरान समय-समय पर अवतरित हुई। उन्होंने मौलिक और स्थाई मूल्यों के द्वारा भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने में सहायता दी। आचार्य भिक्षु उन विख्यात आचार्यों में से एक थे। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों और सिद्धांतों की गलत व्याख्या का विरोध किया। उन्होंने आध्यात्मिकता की युगों पुरानी और मौलिक परंपरा को सच्चा अर्थ प्रदान किया। तेरापंथ संप्रदाय का उदय इस पवित्र संकल्प के द्वारा हुआ। आचार्य भिक्षु के नौवें उत्तराधिकारी आचार्य तुलसी थे।

देवियो और सज्जनो,

5. आचार्य तुलसी का जन्म 1914में उस दौरान हुआ जब भारत ने परंपरागत से आगे बढ़ते हुए आधुनिक राष्ट्र बनने की शुरुआत की थी। ग्यारह वर्ष की अल्पायु में,उन्होंने विश्व की समस्याओं पर विचार करना तथा समाधान खोजना शुरू किया और एक जैन संन्यासी बन गए।

6. आचार्य कालूघानी के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में, उन्होंने ग्यारह वर्ष की संक्षिप्त अवधि में दर्शन के आगम और अन्य ग्रंथों तथा न्याय का गहन अध्ययन किया। इससे वह अनेक विषयों के विद्वान बन गए। अपनी असाधारण प्रतिभा और संकल्पना के द्वारा वह22 वर्ष की आयु में उत्तराधिकारी आचार्य बन गए। उसके बाद से उन्होंने मानव विकास के नए मार्गों की खोज आरंभ की।

7. आचार्य जी एक मानवतावादी,शांति कार्यकर्ता और हमारे देश में नैतिक चेतना के पथ-प्रदर्शक थे। उन्होंने साठ से अधिक वर्षों तक सेवा की और इस दौरान उन्होंने व्यक्ति परिवर्तन द्वारा राष्ट्र परिवर्तन के लिए अथक परिश्रम किया। उन्होंने देश के नैतिक जागरण मिशन की स्थापना की तथा सम्पूर्ण देश की नंगे पैर पदयात्रा आरंभ की। उन्होंने समाज के सांभ्रांत तथा पिछड़े दोनों वर्गों तथा देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र तक पहुंचने के लिए एक लाख किलोमीटर से ज्यादा यात्रा की।

8. अणुव्रत आंदोलन के ध्वज तले,जिसे1936में आरंभ करके 1994 में अपने निधन तक अपनी अगुवाई में,उन्होंने आचार्य तुलसी लेखकों, राजनीतिज्ञों,दार्शनिकों,कवियों और आधुनिक नेताओं से भेंट की। उन्होंने राष्ट्रीय अखंडता के लिए अपनी चिंता को उनके साथ बांटा। उन्होंने महिला उत्पीड़न,दहेज प्रथा, विधवाओं को यातना, अस्पृश्यता और महिला-पर्दा जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने नशा-मुक्ति के लिए एक सामाजिक अभियान आरंभ किया। आचार्य जी की प्रेरणा से,हजारों लोगों ने इसमें पंजीकरण करवाया और सफलतापूर्वक नशे से मुक्ति पाई।

देवियो और सज्जनो,

9. आचार्य तुलसी एक प्रखर वक्ता थे। अपने विचारोत्तेजक और प्रेरणादायी प्रवचनों के माध्यम से,उन्होंने लोगों को जाग्रत किया। उनके विचार और दर्शन विभिन्न भाषाओं और अनेक शैलियों में लिखित सौ से अधिक पुस्तकों में निहित है। अपने लेखन में उन्होंने तर्कशीलता,व्यावहारिकता,समाधानपरकता, प्रासंगिकता और समरसता जैसे गुणों की वकालत की है। वह विश्व शांति के एक प्रबल समर्थक थे।

10. 1945 में जब परमाणु बम्ब का प्रयोग किया गया तो आचार्य तुलसी ने‘अशांत विश्व को शांति का संदेश’ शीर्षक से एक लेख लिखा। विश्व शांति कायम रखने के लिए आचार्य जी द्वारा सुझाए गए तरीकों को पढ़कर,महात्मा गांधी ने कहा था, ‘यदि दुनिया इस महापुरुष के विचारों के अनुसार चलती तो कितना अच्छा होता।’

11. व्यक्तिगत परिवर्तन, सामाजिक सुधार,धार्मिक सौहार्द और राष्ट्रीय अखंडता लाने के आचार्य तुलसी के उल्लेखनीय प्रयासों के सम्मान स्वरूप,उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, भारत ज्योति, वाक्पति सम्मान तथा हकीम सुर खान पुरस्कार जैसे अनेक सम्मान प्रदान किए गए। अपना जीवन मानवता और आध्यात्मिकता की सेवा में पूर्णत: समर्पित करने के लिए उन्होंने स्वेच्छा से आचार्यत्व का परित्याग कर दिया और आचार्य महाप्रज्ञ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

12. उन्होंने अपने महान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठनों का एक जाल स्थापित किया। जैन विश्व भारती संस्थान,अखिल भारतीय तेरापंथ महिला संघ,जिसके आज करीब60000 सदस्य हैं, तथा अखिल भारतीय तेरापंथ युवा संघ जिसकी 300 से अधिक शाखाएं और40000 से अधिक सदस्य हैं, ध्यान,जीवन विज्ञान और अहिंसा समवाय के क्षेत्र में अणुव्रत के लिए कार्य कर रहे हैं।800से ज्यादा सदस्यों सहित संन्यासी समूह, अणुव्रत मानवतावादी कार्यों को संरक्षण देने वाला एक सशक्त संघ है। उनके द्वारा किया गया एक महत्त्वपूर्ण कार्य जैन आगमों का संपादन है,जो एक मौलिक उपलब्धि है और मैं इसके लिए संघ को बधाई देता हूं।

13. आज तुलसी स्मृति ग्रंथ के लोकार्पण के अवसर पर, समारोह में अनुयायियों सहित शामिल अनेक प्रमुख आध्यात्मिक विभूतियां के दर्शन करके प्रसन्नता हो रही है। पुस्तक में अंकित प्रत्येक शब्द आस्था का बिंदु है जिसे अनुयायियों को जीवनपर्यंत अपने हृदय में धारण करना चाहिए। इस आधुनिक समय में लोगों का जीवन अवसर और चुनौती,स्थायित्व और अस्थिरता दोनों का विषय है। उन्होंने कहा कि आचार्य की शिक्षाएं और ज्ञानपूर्ण उद्गार व्यक्तियों के नैतिक उत्थान तथा राष्ट्रों में बलिदानों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। मैं आशा व्यक्त करता हूं कि ग्रंथ में निहित संदेशों का व्यापक प्रचार-प्रसार होगा तथा लोग इन्हें आत्मसात् करेंगे।

14. मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि आचार्य महाश्रमण, जो ‘तेरापंथ’के ग्यारहवें सर्वोच्च अध्यक्ष हैं,इस वर्ष नवम्बर में दिल्ली से एक अहिंसा यात्रा आरंभ कर रहे हैं। मैं इस यात्रा की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। इस पदयात्रा से देश की जनता और लोग लाभान्वित हों।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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