तंत्रिका विज्ञान संस्थान के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
कोलकाता, पश्चिम बंगाल : 28.11.2014
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1. मेरे लिए आज की शाम तंत्रिका विज्ञान संस्थान, जिसमें तंत्रिका विज्ञान, तंत्रिका-शल्य चिकित्सा, तंत्रिका पुनर्वास और तंत्रिका मनोचिकित्सा की आधुनिक सुविधा है, के उद्घाटन के लिए यहां उपस्थित होना प्रसन्नता का अवसर है। सबसे पहले, मैं कोलकाता में तंत्रिका विज्ञान के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के निर्माण के कठिन कार्य को करने के लिए इस परियोजना के सहयोगकर्ताओं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग,पश्चिम बंगाल सरकार, कोलकाता नगर निगम,तथा तंत्रिका विज्ञान फाउंडेशन, बंगाल की सराहना करता हूं। मैं विशेष रूप से बंगाली मूल के अप्रवासी भारतीय डाक्टरों - डॉक्टर रॉबिन सेन गुप्ता,चंद्रनाथ सेन,अभिजीत गुहा और अन्य की सराहना करता हूं जिन्होंने तंत्रिका विज्ञान फाउंडेशन,बंगाल के तत्वाधान में अथक रूप से और संकल्पना के साथ कार्य किया है।
2. इस संस्थान ने 2009 में बहिरंग रोगी सेवाएं आरंभ की थी। एक साल बाद इसने50 बिस्तरों सहित अंतरंग रोगी सेवाएं शुरू की। आज यह स्नातकोत्तर शिक्षा और अनुसंधान की सुविधाओं के साथ150 बिस्तरों वाला अस्पताल बन चुका है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि इस संस्थान के तंत्रिका वैज्ञानिक पार्किन्सन रोग,मोटर न्यूरोन रोग,चाल विकार तथा डाइस्टोनिया का उपचार ढूंढ़ने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसांइसिज,न्यूकैसल विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंग्डम के सहयोग कर रहे हैं।
देवियो और सज्जनो,
3. तंत्रिका विज्ञान जैवीय और व्यवहार विज्ञान की महत्वपूर्ण विधाओं में से एक है। इसका दायरा स्नायुतंत्र के प्रायोगिक और सैद्धांतिक विश्लेषणों को शामिल करने से काफी बढ़ गया है। विगत कुछ दशकों में,सेलुलर और मोलेक्यूलर स्तरों पर मस्तिष्क कार्यप्रणाली को जानने के लिए काफी काम हुए हैं। मस्तिष्क की अत्यंत गहन जानकारी की आवश्यकता के बारे में बोलते हुए1986 के चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार विजेता स्वर्गीय रीटा लेवी-मोंटालसिनी ने कहा था, ‘अधिकांश स्थानों पर सूक्ष्म से लेकर व्यवहार्य स्तरों तक वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक अनुसंधान किए गए हैं परंतु इन्हें वास्तव में अंतर-विधात्मक तरीके से विकसित नहीं किया गया है। अनुसंधान को परस्पर संबंधित वैज्ञानिक क्षेत्रों के तालमेल पर आधारित होना चाहिए।’
4. तंत्रिका विज्ञान आज एक अलग चिकित्सीय विषय है जिसमें तंत्रिका शरीर रचना,तंत्रिका,शरीर-विज्ञान, तंत्रिका रसायन, तंत्रिका औषध-विज्ञान तथा तंत्रिका निदान जैसे मौलिक तंत्रिका विज्ञान विषय तथा तंत्रिका इमेजिंग,तंत्रिका अंत:स्राविका, तंत्रिका-ऑन्कोलॉजी और तंत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान जैसे विशेषज्ञता विषय शामिल हैं। तंत्रिका विज्ञान के प्रति यह समग्र दृष्टिकोण तेजी से बढ़ रहे तंत्रिका विकारों के विश्वव्यापी परिदृश्य में एक विश्वसनीय उपचार प्रणाली स्थापित करने के लिए आवश्यक है।
5. जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी और घटने प्रजनन के कारण युवावस्था से वृद्धावस्था की दिशा में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहे हैं। परिणामत: जनसंख्या की प्रौढ़ होती आबादी से डिमेंशिया और पार्किसन्स रोग,जो मुख्य तौर पर पहले वृद्धों में पाए जाते थे, जैसे स्नायु संबंधी विकारों में वृद्धि हुई है। विश्व भर में, लगभग एक बिलियन लोग स्नायु संबंधी विकारों से प्रभावित हैं और आने वाले वर्षों में यह संख्या और बढ़ने वाली है।
6. कुल वैश्विक बीमारियों में स्नायु संबंधी बीमारियों का प्रतिशत6.3है। रोगों के कारण भावी स्वस्थ जीवन में कमी दर्शाने वाले‘अशक्तता-समायोजित वर्ष’, इस संख्या को जानने का मापदंड है। स्नायु संबंधी विकारों की भार जो वर्ष2005 में 92मिलियन अशक्तता समायोजित वर्ष था और जिसका वर्ष2015 में 95 मिलियन का अनुमान लगाया गया था, 2030तक 103 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है। यदि समुचित गंभीरता के साथ व्यापक कार्रवाई शुरू नहीं की गई तो स्नायु संबंधी विकारों का भार बढ़ता रहेगा और भविष्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधकों के समक्ष और बड़ी चुनौती खड़ी कर देगा।
देवियो और सज्जनो,
7. स्नायु संबंधी विकारों से दीर्घकालिक अशक्तता पैदा होती है और भावनात्मक समस्या पैदा होती है। सामाजिक समझ में कमी होने के कारण कभी-कभी दुर्भाग्यवश ऐसी घटनाओं के साथ लांछन जुड़ जाता है। इससे रोगी उपचार नहीं करवाता है। रोगियों के सम्मान को बनाए रखने तथा सामाजिक एकीकरण के माध्यम से उनके अलगाव को रोकने के प्रयास करने होंगे। इसके लिए,सभी भागीदारों को शामिल करते हुए सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता अभियान आवश्यक है।
8. कुछ स्नायु संबंधी विकारों में, उनकी देखरेख परिवार सहयोग प्रणाली के ईर्द गिर्द घूमती है। उदाहरण के लिए भारत जहां60 वर्ष की आयु में डिमेशिया की व्याप्ति लगभग 1.9 प्रतिशत है, देखरेख करने वालों में 50 प्रतिशत पति/पत्नी हैं। इसी प्रकार, सामाजिक-आर्थिक बदलाव होने से पारिवारिक ढांचे संयुक्त से एकल प्रणाली में परिवर्तित हो रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप निजी चिकित्सा देखभाल पर और अधिक निर्भरता बढ़ गई हैं,और उससे व्यक्तिगत खर्च में बढ़ोतरी हो गई है। स्वास्थ्य बीमा प्रणाली में वृद्धों की विशेष जरूरतों का ध्यान रखने के लिए पुन: सुधार करना होगा।
9. प्रतिरक्षा कार्यक्रम को तंत्रिका संबंधी संक्रमणों की रोकथाम के लिए कारगर उपाय पाया गया है। परंतु इसकी वास्तविक कारगरता के लिए जन-जागरूकता के द्वारा लोगों को शामिल करके तथा जमीनी स्वास्थ्य कर्मियों के माध्यम से जानकारी दिया जाना जरूरी है। तंत्रिका संबंधी बीमारियों के फलस्वरूप कई बार अशक्तता हो जाती है। इसका समाधान शिक्षा,रोजगार तथा सामाजिक विकास जैसे बहुत से सेक्टरों में समुचित पुनर्वास नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से करना होगा।
देवियो और सज्जनो,
10. बहुत से तंत्रिका संबंधी विकार सस्ते परंतु कारगर उपचार से ठीक हो जाते हैं। ऐसे उपायों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के माध्यम से बड़े पैमाने पर अपनाया जाना चाहिए। एक रिपोर्ट के अनुसार70 प्रतिशत मिर्गी रोगी फेनोबारबिटल औषधि के उपयोग से दौरा मुक्त हो सकते हैं। तथापि,वास्तविकता में निर्बल आय वाले देशों के 80 प्रतिशत मिर्गी रोगियों का दवाओं और प्रशिक्षित कार्मियों के कमी के कारण उपचार नहीं हो पाता। अत: रोगों के निदान और जरूरी होने पर उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए विशेषज्ञों सहित द्वितीयक तथा तृतीयक स्वास्थ्यसेवा सेक्टरों से युक्त मजबूत प्राथमिक स्वस्थ सेवा जरूरी है।
11. यह अनुमान लगाया गया है कि हमारे देश में 1100 अर्हताप्राप्त नैदानिक तांत्रिका विज्ञानी हैं जिनमें से 36 प्रतिशत चार महानगरों में कार्यरत हैं और इसलिए कई इलाके केवल एक तंत्रिकाविज्ञानी पर निर्भर है। यह हमारे स्वास्थ्य सेक्टर का दायित्व है कि वह और अधिक विशेषज्ञ तैयार करने के लिए हमारे मेडिकल कॉलेजों में ऐसी समुचित क्षमता का सृजन करें,मौलिक अनुसंधान करें तथा हमारे अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा केन्द्रों में जांच और उपचार के लिए अवसंरचना का विस्तार करें।
12. संकाय ज्ञान का संरक्षक होता है। चिकित्सा विज्ञान में प्रगति विद्युत गति से हो रही है। यह जरूरी है कि हमारे चिकित्सा विद्यालय संकाय विज्ञान,पाठ्यचर्या के उच्चीकरण गतिविधियों के क्षितिज में बिस्तर पर कार्य करें।
देवियो और सज्जनो,
13. आज हमें जिस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए वह है कि हमें अपने देश में किस प्रकार की स्वास्थ्य प्रणाली अपनानी चाहिए। एक व्यावसायिक,लाभ आधारित प्रणाली या फिर हमारे समाज में मौजूद सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप प्रणाली। मैं समझता हूं कि आपके जैसे मेडिकल संस्थानों की स्वास्थ्य सेक्टर के मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका है। आप पर युवा चिकित्सकों और स्वास्थ्य पेशेवरों के मन में मानवीयतापूर्ण नजरिए का समावेश करने तथा चिकित्सा के क्षेत्र में मूल्य-आधारित आजीविका की ओर उन्मुख करने का दायित्व है। बहुत से ऐसे चिकित्सक हैं जो अधिक से अधिक अनुभव प्राप्त करने के लिए विदेशों के प्रमुख संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं। उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। परंतु इसी के साथ, उन्हें यह भी याद रखना होगा कि देश ने उनकी शिक्षा पर निवेश किया है। वे जहां भी जाएं उन्हें अपनी मातृभाषा के साथ पावन बंधन बनाए रखना है। उनमें देशभक्ति तथा सामाजिक उत्तरदायित्व का ज़ज्बा जगाने की जरूरत है।
14. मुझे उम्मीद है कि आपका संस्थान उदाहरण प्रस्तुत करते हुए शेष संस्थानों में समाज की नि:स्वार्थ सेवा तथा उच्च उद्देश्यों का समावेश करेगा। मैं पुन: इस महान कार्य से जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूं तथा उन्हें उनके भावी जीवन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं महात्मा गांधी के शब्दों से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा, ‘दृढ़निश्चय से भरे थोड़े से लोगों का ऐसा समूह जो अपने मिशन के प्रति अदम्य पिपासा रखता हो,इतिहास की दिशा बदल सकता है।’
धन्यवाद,
जयहिन्द !