स्वर्गीय श्री पी.वी. नरसिम्हा राव स्मृति व्याख्यान के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

Hyderabad, Andhra Pradesh : 31.12.2012

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मुझे आज भारत के महान सपूत स्वर्गीय श्री पी.वी. नरसिम्हा राव के प्रथम स्मृति व्याख्यान के लिए यहां आकर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। वह हमारे प्रधानमंत्री थे, और व्यावहारिक राजनीति के माहिर प्रयोगकर्ता, महान बुद्धिजीवी, प्रकांड विद्वान, विचारक, लेखक और भाषाविद् थे तथा एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें देश को उनके ऐतिहासिक योगदान के लिए याद किया जाएगा।

आंध्रप्रदेश के एक सुदूर गांव में पैदा होकर उन्होंने देश के कल्याण के लिए अत्यधिक परिश्रम किया और प्रगति करते हुए इसके प्रधानमंत्री बने। वे जीवन की शुरुआत से ही महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से प्रभावित थे और समाज के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की उनकी इच्छा का अनुमान केवल इसी बात से हो जाता है कि उन्होंने 16 वर्ष की आयु में देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया था।

श्री राव एक ऐसे नेता थे जिन्होंने बहुत से लोगों को प्रेरणा दी। मैं भी उनमें से एक हूं। मुझे कई वर्षों तक श्री राव के साथ काम करने का मौका मिला और उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता, जटिल मुद्दों को समझने की उनकी क्षमता तथा उनमें से जटिलतम मुद्दों का हल ढूंढने के उनके दृढ़ संकल्प से मैं प्रभावित हुआ था।

स्वर्गीय श्री नरसिंहा राव, जिन्हें बहुत से लोग प्यार से पीवी कहते थे को देश के लिए उनके बहुत से योगदानों के लिए जाना जाएगा जिनमें सबसे बड़ा योगदान, मेरी राय में उनकी वह शानदार सफलता थी जब उन्होंने 1991 में देश के सुधारों के अगले चरण में पहुंचाया। इन आर्थिक सुधारों ने देश को अपनी आर्थिक क्षमता के उपयोग की दिशा में बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया।

उन्होंने देश के प्रधानमंत्री पद की बागडोर उस समय संभाली थी जिस समय देश भयंकर आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। यह वह समय था जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 1 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया था जो कि मुश्किल से दो सप्ताह के आयात के लिए ही पर्याप्त था।

इस वित्तीय संकट के सामने, उन्होंने एक भूतपूर्व और साहसपूर्ण कदम उठाते हुए उन्होंने किसी वरिष्ठ राजनीतिक व्यक्ति को वित्तमंत्री नियुक्त करने की सामान्य नीति को छोड़ दिया। इसके बजाय उन्होंने हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री, डॉ मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री नियुक्त किया। वह एक आर्थिक प्रशासक हैं और खुद एक सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। आर्थिक कार्य सचिव तथा भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर के रूप में उन्होंने नीति निर्माण का अच्छा अनुभव प्राप्त किया था। उन्हें अर्थव्यवस्था को संभालने और उसे मजबूत बनाने का दायित्व एक चिकित्सक के रूप में सौंपा गया। श्री राव ने इस चुनाव में बहुत दूरदृष्टि का परिचय दिया जिसका साक्षी वर्तमान समय है और यह एक ऐसा सही निर्णय था जिसके लिए कोई और उपयुक्त समय नहीं हो सकता था।

श्री राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को इस संकट से निकलने की तथा दूरगामी आर्थिक सुधारों को शुरू करने की पूरी आज़ादी दी। उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह को पूरा सहयोग दिया और उन दोनों ने मिलकर देश को एक ऐसे रास्ते की ओर मोड़ दिया जिसने भारत को एक आर्थिक शक्ति बना दिया, और जिसका पूरा विश्व आज प्रशंसा करता है।

इस प्रकार व्यावहारिक राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री वित्तमंत्री की इस जोड़ी ने देश को आर्थिक संकट से निकाल कर शानदार ढंग से आर्थिक उदारीकरण की मौलिक नीति की शुरुआत की। वास्तव में श्री राव में प्रधानमंत्री के रूप में उद्योग मंत्री का अतिरिक्त प्रभार संभालते हुए लाइसेंस प्रणाली को समाप्त करने के प्रयास की स्वयं अगुआई की।

आज अगर बहुत से बड़े भारतीय कारपोरेट घराने विकास के ऊर्जाग्रह बनकर पूरी दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं तो यह अंशत: श्री राव की परिकल्पना के ही कारण हो पाया है। उनके प्रधानमंत्री रहने की अवधि के दौरान जो आर्थिक सुधार शुरु हुए थे उन्होंने ही तभी से हमारे आर्थिक इतिहास का मार्ग निर्धारित किया है।

इन आर्थिक सुधारों ने, अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों में भारतीय मस्तिष्क की उद्यमिता कौशल को दिखाने का मौका दिया। वित्तीय सेक्टर में हमारे बैंकों में पूंजीगत पर्याप्तता तथा परिसंपत्ति के वर्गीकरण में विवेकपूर्ण मानदंड स्थापित करने, नए निजी बैंकों को लाइसेंस प्रदान करने तथा विदेशी विनियम को धीरे-धीरे विनियंत्रण करने, और मुद्दा की परिवर्तनीयता जैसे उपायों को कार्यान्वित किया गया था।

बाजार उन्मुखीकरण की सुविधा उपलब्ध कराने तथा हमारे सार्वजनिक सेक्टर के उपक्रमों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए निजी सेक्टर की सहभागिता को निजीकरण तथा विनिवेशीकरण के द्वारा प्रोत्साहित किया गया था। विदेशी निवेश के उदारीकरण, विदेश व्यापार तथा कर सुधार जैसे सेक्टर आधारित सुधारों से अर्थव्यवस्था के प्रोत्साहन ढाँचे में बहुत जरूरी बदलावों का बीजारोपण हुआ। इन बदलावों से हमारे व्यवसायों में सुप्त पड़ी हुई उर्वरक तथा प्रतिस्पर्धात्मक भावना को उभार मिला। इन सुधारों से ‘राज्य’ की भूमिका को वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रदाता के बजाय सुविधा प्रदाता के रूप में बदलने का सूत्रपात हुआ।

ये आर्थिक सुधार कुछ लोगों को क्रांतिकारी लगे वहीं बहुत से लोगों ने इसका विरोध किया। परंतु इससे श्री राव के उत्साह में कोई कमी नहीं आई जिन्होंने इन सुधारों को जारी रखने के लिए भारी राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया और इसके लिए जो दृढ़ साहस और विश्वास चाहिए था, स्वर्गीय श्री नरसिम्हा राव ने उसका भरपूर प्रदर्शन किया।

लेकिन उदारीकरण की नीति अपनाना कोई सामाजिक विकास के महत्त्वपूर्ण कार्य को पूरा करने में राज्य की भूमिका समाप्त होने का संकेत नहीं है। यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें श्री राव की व्यावहारिकता स्पष्ट दिखाई देती है। जहां उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के विकास में निजी सेक्टर की अधिक भूमिका की जरूरत स्वीकार की थी वहीं उन्होंने मानव पूंजी के विकास में राज्य के हस्तक्षेप के महत्व पर भी जोर दिया था और उसे आठवीं पंचवर्षीय योजना में प्रमुखता प्रदान की गई थी।

इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए रोजगार के सृजन, साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल तथा समुचित भोजन की व्यवस्था और मूलभूत अवसंरचना पर जोर दिया गया था। सरकार ऐसे बुनियादी तत्व प्रदान करने के लिए तरह जिम्मेदारी लेने को तैयार थी जिससे मानव संसाधन के विकास में सहायता मिले। इन नीतियों के परिणामस्वरूप अधिक रोजगार के अवसर, निर्धनता में कमी तथा कृषि में आत्म निर्भरता तथा 6.5 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि प्राप्त करने में सहायता मिली जो कि तब तक की किसी भी पंचवर्षीय योजना अवधि के लिए सबसे ऊंची थी।

दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय 1995 में विश्व व्यापार संगठन में भारत का शामिल होना था और इसमें श्री राव की भूमिका प्रमुख थी। बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं का उरुग्वे राउॅड तथा जीएटीटी का समावेश करके विश्व व्यापार संगठन का गठन करने सहित विभिन्न करार रुके पड़े थे और इनको कार्यान्वित करने में वी.पी. सिंह की सरकार के अधीन भारत की स्थिति संकोच और दुविधा की थी। सर्वसमावेशी बहुपक्षीय व्यापार संधि में शामिल होने के भारत के निर्णय के प्रभावों पर देश में कड़ा विरोध हो रहा था। मैंने उस समय वाणिज्य मंत्री के रूप में अप्रैल, 1994 में माराकेश में बहुपक्षीय विश्व व्यापार संगठन के व्यापार करार पर अन्य देशों के साथ हस्ताक्षर किए थे।

उनकी उपलब्धियां केवल आर्थिक सेक्टर तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने महान राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए बहुत सी समस्याओं का हल ढूंढ़ने में सफलता पाई। उनके प्रधानमंत्रित्व के दौरान ही पंजाब में उग्रवादी गतिविधियां समाप्त हुई। चुनाव के बाद बेअंत सिंह के अधीन एक लोकप्रिय सरकार काम करने में सफल हो पाई। जम्मू-कश्मीर में हजरतबल पर कब्जा किए हुए आतंकवादियों से बिना इस पवित्र दरगाह को क्षति पहुंचाए भी खाली कराया गया।

देवियो और सज्जनो, स्वर्गीय नरसिम्हा राव की काम करने की एक अलग ही शैली थी। वे धैर्य की विशेषता समझते थे और स्थिति की जरूरत के मुताबिक वे तब तक इंतजार करते थे जब तक कि सर्वसम्मति न बन जाए। जब वे कोई कार्रवाई न करने का निर्णय लेते थे तो वह किसी खास उद्देश्य से ऐसा करते थे। उनके अनुसार ‘‘जब में कोई निर्णय नहीं लेता तो इसलिए नहीं कि मैं उस विषय में नही सोचता। मैं इसके बारे में सोचता हूं और तब निर्णय न लेने का निर्णय लेता हूं।’’ परंतु जब प्रशासन और शासन का मामला हो तब उनके निर्णय लेने की क्षमता, उनको कार्यान्वित करने में उनकी गति में तथा उनके निर्णायक अंदाज में नजर आती थी।

उनकी खास शैली तथा राजनीतिक कौशल के कारण ही वे 1991 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस की अल्पमत सरकार का नेतृत्व करने में सफल रहे जिसमें 10वीं लोकसभा में कांग्रेस के 232 संसद सदस्य थे। फिर भी उनकी सरकार पूरे पांच साल तक चली और उन्होंने सर्वसम्मति पर आधारित राजनीति की आधारशिला रखने का करिश्मा कर दिखाया।

श्री राव को विदेश नीति में असाधारण उपलब्धि का श्रेय भी जाता है। वह लगभग सात वर्षों तक विदेश मंत्री रहे जिसके दौरान उन्होंने राष्ट्र को कुछ नई विदेश नीति आयाम प्रदान किए। उन्होंने शीतयुद्ध के बाद पूरे विश्व के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करते हुए, राष्ट्र को आगे बढ़ाया और राष्ट्र के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को और गति प्रदान की।

दूरद्रष्टा होने के कारण स्वर्गीय नरसिंहा राव ने ‘लुक ईस्ट’ नीति आरंभ की और आसियन के साथ भारत के सम्बन्ध को एक भिन्न अर्थ दिया। भारत 1992 में आसियन का सेक्टोरल संवाद साझीदार बना और 1996 में पूर्ण संवाद साझीदार बन गया। सम्बन्धों के विभिन्न आयामों की परिणति व्यापार, आर्थिक, संस्कृति और राजनीति में आसियन के साथ शिखर सम्मेलन स्तर की साझीदारी में हुई और इसके बाद इसमें मजबूती आई है जिससे हमारे देश को बहुत से फायदे हुए हैं और इसका सीधा श्रेय श्री राव की संकल्पना को जाता है।

मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में, उन्होंने नवोदय विद्यालयों की स्थापना करके निर्धनों और वंचितों को उत्तम शिक्षा प्रदान करने के स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के स्वप्न को साकार किया। ये अब स्कूलों की एक श्रृंखला में विकसित हो चुके हैं और समाज के वंचित वर्गों के लगभग 1.60 लाख विद्याथियों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। यह जानकर प्रसन्नता होती है कि इन विद्यालयों के तकरीबन 77 प्रतिशत विद्यार्थी ग्रामीण इलाकों के हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन विद्यालयों का कक्षा 10 और 12 का पास प्रतिशत सभी वर्गों के विद्यालयों में सबसे अधिक होता है।

श्री राव के योगदान से उनके गृह राज्य आन्ध्रप्रदेश को भी बहुत लाभ हुआ। पहले एक मंत्री के रूप में और इसके बाद मुख्यमंत्री के रूप में, उन्हें अनेक दूरगामी सुधारों का श्रेय दिया जाता है। आन्ध्रप्रदेश के शिक्षा मंत्री के तौर पर उन्होंने अनेक पहल कीं जिनसे शैक्षिक संस्थान विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के प्रति अधिक जागरूक बने। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षा के उन्नयन पर विशेष बल दिया।

1971 से 1973 तक आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, वह राज्य में भूमि हदबंदी अधिनियम को लागू करने की अपनी प्रतिबद्ता के प्रति दृढ़ थे। यह अधिनियम देश का एक सबसे प्रभावी भूमि हदबंदीन अधिनियम बना। उन्होंने जोरदार विरोध के बीच, गरीब और भूमिहीन लोगों को लाभ प्रदान करके समता पैदा करने के एकमात्र लक्ष्य के साथ ये सुधार शुरू किए थे। इससे वह राज्य और अपने समय के सबसे प्रगतिशील मुख्यमंत्री बन गए।

देवियो और सज्जनो, स्वर्गीय श्री नरसिंहा राव की सुपरिचित राजनीतिक शख्सियत के पीछे, एक लेखक, असाधारण विद्वान और भाषाविज्ञानी था जिसके 16 भाषाओं पर अधिकार से भारतीय और विदेशी दोनों विस्मित थे। उन्होंने हिंदी, मराठी और तेलुगु में कथा-साहित्य लिखा तथा साहित्यिक कृतियों का अनुवाद किया। भारतीय राजनीति में निचले स्तर से उठकर ऊपर तक पहुंचने वाले व्यक्ति का चित्रण करने वाले उनके उपन्यास ‘द इन्साइडर’ में भारत की समसामयिक राजनीति के चित्रण से उन्होंने सराहना अर्जित की।

स्वर्गीय श्री पी वी नरसिंहा राव को हमारे देश के एक महान नेता के रूप में और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद रखा जाएगा जिन्होंने विकटतम कठिनाइयों के सम्मुख राष्ट्र को सुधारों के सही मार्ग पर ले जाने का साहस दिखाया। श्री नरसिंहा राव उन कुछ नेताओं में से थे जिन्होंने विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों से प्रशंसा प्राप्त की।

राष्ट्र उन्हें कृतज्ञता के साथ याद रखेगा और मुझे इस बात की विशेष खुशी है कि मुझे उनकी स्मृति में प्रथम व्याख्यान देने का अवसर दिया गया है।

जयहिंद।

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