सुवर्ण सौध के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

बेलगाम : 11.10.2012

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देवियो और सज्जनो,

मुझे, कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य स्थापना की स्वर्ण जयंती समारोह की स्मृति में बेलगाम में निर्मित ‘सुवर्ण सौध’ का उद्घाटन करके प्रसन्नता हो रही है। मैं विधान मंडल की इस दूसरी पीठ को कर्नाटक की जनता को समर्पित करता हूं और आशा करता हूं कि यह सुशासन का प्रतीक सिद्ध होगी और जन सामान्य, जिसका हित राजनीतिक प्रणाली में सर्वोच्च होना चाहिए, के कल्याण और समृद्धि के लिए कार्य करेगी।

यह सुन्दर भवन उस पावन भूमि पर स्थित है जिस पर औपनिवेशिक ताकतों को चुनौती देने वाली महारानी कित्तूर चेन्नम्मा ने शासन किया था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1916 में, बेलगाम से होम रूल लीग की शुरुआत की थी। महात्मा गांधी जी ने 1924 में, बेलगाम में ऐतिहासिक कांग्रेस सत्र की अध्यक्षता की थी। यही एकमात्र ऐसा अवसर था जब महात्मा जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किसी सत्र की अध्यक्षता की थी। कांग्रेस सत्र से प्रेरित होकर बेलगाम के लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था।

मैं समझता हूं कि बेलगाम को पहले वेणु ग्राम (बांसुरी गांव) के रूप में जाना जाता था। आज यह क्षेत्र राज्य का चीनी का भंडार है। इसने कर्नाटक के इतिहास, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में अपार योगदान दिया है।

अपने नाम के ही अनुरूप, बेलगाम संगीत, विशेषकर हिन्दुस्तानी संगीत, के लिए विख्यात है। कुमार गंधर्व, मल्लिकार्जुन मंसूर, गंगूबाई हंगल और भीमसेन जोशी जैसी हस्तियां इसी क्षेत्र से आईं और उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाई प्रदान की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बेलगाम सत्र में गंगूबाई हंगल ने एक कन्नड़ गीत गाया था।

12वीं शताब्दी के विचारक, समाज सुधारक, संत और आध्यात्मिक गुरु बसवेश्वर राज्य के इसी भाग में रहते थे और उन्होंने कर्नाटक व आसपास के क्षेत्रों में भारी सामाजिक परिवर्तन का सूत्रपात किया।

यह सुवर्ण सौध एक गौरवपूर्ण और महान परंपरा की उत्तराधिकारी है। देश के शेष हिस्सों से बहुत पहले ही, पूर्व मैसूर में लोकतांत्रिक प्रणाली आरम्भ हो गई थी। महाराज चमाराज वाडियार ने बहुत पहले 1881 में मैसूर प्रतिनिधि सभा की स्थापना की और उनके पुत्र महाराज कृष्णराज वाडियर ने 1907 में विधान परिषद की स्थापना की थी। पूर्व मैसूर भारत के उन शुरुआती रियासतों में से था जिसने प्रशासन प्रक्रिया में जन प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्माण करना आरंभ किया था।

इस प्रतिनिधि सभा में अनेक परिवर्तन आए और यह एक ऐसी परिपक्व विधान मंडल के रूप में विकसित हुई जिसे आज हम कर्नाटक विधानसभा और कर्नाटक विधान परिषद जैसे दो सदनों के रूप में देख रहे हैं।

मुझे उम्मीद है कि राज्य के उत्तरी जिले, अब शासन व्यवस्था के और अधिक निकट हो पाएंगे और इससे सामाजिक, आर्थिक आर शैक्षिक असंतुलन दूर करके, राज्य का संतुलित विकास और प्रगति सुनिश्चित होगी। विशेष विकास योजना द्वारा सभी राजनीतिक दलों के सहयोग से तथा क्षेत्रीय असंतुलन निवारण पर बनी डॉ. डी.एन. नंजुदप्पा उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों से, जिसे पूरे राज्य में कार्यान्वित किया जा रहा है, कर्नाटक की चहुंमुखी प्रगति में मदद मिलेगी।

मुझे उम्मीद है कि विधान मंडल की यह दूसरी पीठ इस क्षेत्र के लोगों की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं को समुचित रूप से पूर्ण करेगी।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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