सुरी विद्यासागर कॉलेज में स्वागत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

सुरी, बीरभूम, पश्चिम बंगाल : : 19.12.2012

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speechमैं आज अपने कॉलेज में आकर खुशी और पुरानी यादों से उद्वेलित अनुभव कर रहा हूं जहां मैंने अपनी युवावस्था के बेहतरीन चार साल बिताए थे। ऐसा लगता है मानो यह कल ही की बात है जब वर्ष 1952 में मुझे आईएससी में दाखिला मिला था। मेरी पंजीकरण संख्या थी 5057। उस समय पंजीकरण शुल्क 2/- रुपए था। वर्ष 1953-56 के दौरान मैंने बी.ए. की पढ़ाई की और मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने अपनी स्नातक की अंक तालिका इसी कॉलेज से 13 अगस्त, 1956 को ली थी। मैं नीलाक्षी के उत्तर में स्थित ‘छात्रावास’ में रहता था। उस समय कॉलेज में आठ बालक छात्रावास थे। मेरे बैच में गोपाल सरकार, श्री शष्ठी किंकरदास, प्रो. अमल मुखोपाध्याय, प्रो. द्वीपेंदु बनर्जी, श्री बलराम डे, श्री गंगाचरण मिश्रा, श्री रजत कुमार मिश्रा, श्री अंग्षु भूषण भट्टाचार्य, श्री शम्भु गोपाल दास, श्री जटाधारी मालाकर और श्री बिमलेंदु नस्कर थे। मुझे आज भी उनकी और उनके परिवारों की अच्छी तरह याद है। उनमें से कुछ को यहां देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं, प्रधानाचार्य, प्रोफेसर अरुण सेन का बहुत सम्मान और आदर के साथ स्मरण करता हूं।

यह मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात थी कि आधी शताब्दी से अधिक समय पहले मुझे एक गंभीर छात्र के रूप में अपनी पढ़ाई में अपने सम्माननीय गुरुजनों का मार्गदर्शन मिला। सूरी विद्यासागर कॉलेज के लक्ष्यों और कॉलेज चिह्न में उकेरे हुए उसके ध्येय वाक्य ‘ज्ञान’, ‘त्याग’ और ‘सेवा’ ने मेरे विचारों और कार्यों को प्रेरणा दी। इन वर्षों के दौरान ये मेरे दिल में बने रहे। मेरे लिए यह यात्रा बहुत घटना प्रधान यात्रा रही, जिसमें बहुत-सी चुनौतियां थीं परंतु मैं सौभाग्यशाली रहा क्योंकि मुझे बहुत से पुरस्कार भी प्राप्त होते रहे।

देवियो और सज्जनो, आज का दौर हमारे देश में उच्च शिक्षा में महत्त्वपूर्ण रूपांतरण का समय है। हमारे पास आशावादी होने का कारण है। वर्ष 2011-12 को समाप्त होने वाली वित्तीय वर्ष के अंत में हमारे पास उपाधि प्रदान करने वाले कुल 659 संस्थान तथा 33023 कालेज हैं। इससे पता चलता है कि देश में उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों की संख्या बढ़ी है और यह वर्ष 2006-07 में 1.39 करोड़ से बढ़कर 2011-12 में 2.18 करोड़ तक पहुंच गई है।

तथापि, इन संस्थानों में दी जा रही शिक्षा के स्तर को बनाए रखने और उसे उन्नत करने की चुनौती बनी हुई है। दूसरी चुनौती उनके शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और प्रेरित करने की है। विश्वविद्यालयों को अपने विद्यार्थियों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति विकसित करने की तथा ऐसे पाठ्यक्रम विकसित करने की जरूरत है जिसे अनुसंधान और नवान्वेषण की प्रगति को प्रोत्साहन मिलेगा। अधिक से अधिक विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ कराने के लिए उनको दी जा रही वित्तीय सहायता में अधिक छात्रवृत्तियां, शैक्षिक ऋण तथा ‘पढ़ते हुए कमाओ’ स्कीमों जैसी स्व-सहायता योजनाएं जोड़ी जानी चाहिए। देश में शिक्षा की पहुंच में वृद्धि की दिशा में ‘मुक्त’ तथा ‘दूरवर्ती’ शिक्षा जैसी पहलें बहुत दूरगामी हैं और उनको प्रोत्साहन और सहयोग दिया जाना चाहिए। मुझे बताया गया है कि इस तरह की पहलों का बहुत लाभ हुआ है और वर्ष 2006-2007 में जहां इनमें पंजीकरण 27 लाख थे वहीं 2011-12 में 42 लाख तक पहुंच गया। यह एक सकारात्मक स्थिति है। हालांकि दूरवर्ती शिक्षा कार्यक्रम में सूचना प्रौद्योगिकी का कारगर उपयोग हो रहा है परंतु प्रौद्योगिकी का और अधिक नवान्वेषी प्रयोग होना चाहिए जिससे यह न केवल अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे वरन् इसमें प्रयोक्ता अनुकूल मॉडयूल भी विकसित किए जा सकें।

जिन स्थानों पर संभावनाएं हैं, वहां अनुसंधान एक प्रमुख जरूरत है तथा इस दिशा में सुव्यवस्थित प्रयास जरूरी हैं। पिछले वर्ष जहां उपाधि तथा उससे ऊंची शिक्षा प्राप्त करने वाले 260 लाख विद्यार्थी थे, वहीं पीएच.डी. विद्यार्थियों की संख्या केवल एक लाख थी। इसमें बढ़ोतरी की जरूरत है। अनुसंधान करने वाले छात्र के लिए जो प्रोत्साहन कार्यक्रम है, उसका अध्ययन करने से यह पता चल जाएगा कि उसे अनुसंधान की दिशा में प्रेरित करने के लिए क्या प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए।

हमें भारत के अच्छे जनसंख्या अनुपात से पूरा लाभ उठाना चाहिए क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था का सतत् आर्थिक विकास पर्याप्त मानवीय पूंजी के सृजन से हो पाएगा और यही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत सरकार की 12वीं योजना संबंधी कार्ययोजना में कई प्रोत्साहन शामिल किए गए हैं। इनमें और अधिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना, तकनीकी शिक्षा और दूरवर्ती शिक्षा पर ज्यादा जोर, अकादमिक सुधार, शैक्षिक ऋण पर ब्याज में आर्थिक सहायता, नवान्वेषण विश्वविद्यालयों की स्थापना, वर्तमान संस्थाओं का विस्तार तथा अनुसंधान, अवसंरचना, संकाय और पाठ्यचर्या में बेहतर गुणवत्ता जैसी बातें शामिल हैं। इस कार्य योजना में समाज के सभी वर्गों तक और अधिक पहुंच तथा और अधिक अवसर प्रदान करने पर जोर दिया गया है। शासन संबंधी सुधार तथा पुनर्संरचना भी समयानुकूल उपाय होंगे। ये सभी प्रयास स्वागत योग्य तथा परिणामोन्मुखी हैं। हमें सरकार के प्रयासों में जितना संभव हो और जहां भी संभव और व्यवहार्य हो, निजी साझीदारी के माध्यम से सहयोग देना चाहिए। यहां उपस्थित विद्यार्थियों से मैं यह कहना चाहूंगा कि वह समय निकट है जबकि वे इन सभी प्रयासों का पूरा लाभ उठा पाएंगे और इसके साथ ही यह भी कि सरकार आपकी पीढ़ी में पूरी रुचि ले रही है।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं आप सभी का स्वागत करता हूं और आपको शुभकामनाएं एवं बधाई देता हूं।
धन्यवाद।

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