स्टार्ट अप, इन्क्यूबेशन और वित्तीय नवान्वेष के बारे में परामर्श और नीति संवाद पर नेताओं के साथ राष्ट्रपति के सम्मुख गोलमेज चर्चा से उत्पन्न प्रमुख सिफारिशों के प्रस्तुतिकरण पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन कल्चर सेंटर : 10.03.2017
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मैं यहां आपके बीच एक सप्ताह लंबे ‘नवोन्वेष उत्सव’ के समापन पर उपस्थित होकर खुश हूं। इस उत्सव में अलग-अलग स्टेक होल्डरों के बीच भावनात्मक आदान-प्रदान और सहयोग सम्पन्न हुए हैं। मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से, सबसे प्रसन्नता की बात यह है कि हम राष्ट्रपति भवन में हमारी अर्थव्यवस्था और समाज में नवान्वेषण संस्कृति गहन करने की दिशा में एक पारितंत्र के संवाद और सृजन की सुविधा जुटा सके हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, भारत और हमारे जनसांख्यिकीय लाभ के संबंध में लगातार बातें चल रही हैं। इसी समय, हमें परेशान कर रही दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है, अनुकूल रोजगार सृजन रहित विकास। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि हम पारंपरिक प्रतिमानों से आगे बढ़ें और उद्यमिता और नवोन्वेष की ऐसी प्रणाली का सृजन करें जिसमें हमारे युवा रोजगार ढूंढ़ने के स्थान पर रोजगार देने के कार्य में लग जाएं।
इस संदर्भ में, मैं यह देखकर प्रसन्न हूं कि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, में युवा स्टार्ट-अप्स के नीति समर्थन में एक सराहनीय लहर आयी है। असंख्य ई-कामर्स अथवा कृषि आधारित प्लेटफार्म्स ने पिछले कुछ वर्षों में उद्यम पूंजी समर्थन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। उनमें से कुछ सफल हुए हैं जबकि अनेक असफल रहे, जो स्वयं में आश्चर्यजनक नहीं हैं। नीति नियोजकों की वास्तविक चिंता इस बात की है कि आवश्यक वित्त का अधिकांश उद्यम जीवन चक्र में बड़े विलंब से आता है जिसके कारण अनेक विचार परिणामी अथवा सेवाएं बनने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं। इसलिए हमें, स्वयं से यह प्रश्न पूछना होगा कि क्या नवान्वेषण आधारित स्टार्ट-अप्स के वित्त पोषण के लिए हमारी नीति और संस्थागत प्रबंधन में परिवर्तन की आवश्यकता है, और मेरे विचार से उत्तर स्पष्ट रूप से ‘हां’ होगा।
ऐसे देश में जहां प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख प्रौद्योगिकी छात्र उत्तीर्ण होते हैं, जब तक हम 10-20 हजार विचार वार्षिक रूप से निवेश न कर लें, हमें प्रमुख सफलता नहीं मिल सकती। प्रति वर्ष नवान्वेषण आधारित स्टार्ट-अप्स के वित्त-पोषण का मौजूदा स्तर लगभग कई हजार प्रौद्योगिकी आधारित स्टार्ट-अप्स के बारे में है। इसलिए हम किस प्रकार निजी और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों में नवान्वेष की भूख को बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही हम प्रौद्योगिकी छात्रों को उद्यमिता का जोखिम भरा पथ चुनने के लिए कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं। हमें तत्काल देश में वित्तीय प्रणालियों के डिजाइन और अवसंरचना के बारे में विचार करने की आवश्यकता है ताकि हमारे जमीनी नवोन्वेष अभियान को प्रोत्साहन मिल सके।
इसलिए, यह जानना मार्मिक है कि राष्ट्रीय नवोन्वेषण फाउंडेशन (एनआईएफ), अटल नवान्वेषण मिशन (एआईएम) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने समावेशी नवान्वेषण पारितंत्र को समृद्ध करने के लिए नाबार्ड और सिडबी के साथ टीम बनाई है। ये दोनों संस्थाएं नाबार्ड और सिडबी लघु उद्यमियों को कीमती समर्थन और सहायता पहुंचा रहे हैं। मैं समझता हूं कि जमीनी नवान्मेष संवर्धन नेटवर्क (ज्ञान), जिसे 1997 में हनी बी नेटवर्क, आईआईएमए और सृष्टि द्वारा गठित किया गया था, भारत में नवान्वेष गठन का पहला इनक्यूबेटर था। ज्ञान द्वारा विकसित स्व स्थाने मॉडल का सिडबी की सहायता से, एम वी आई एफ के माध्यम से राष्ट्रीय नवान्वेष फाउंडेशन द्वारा उन्नयन किया गया है। डीएसटी के लिए आवश्यक है कि वह राष्ट्रीय नवान्वेष अकादमी की छत के नीचे विभिन्न क्षेत्रों के अभिसरण पर विचार करे ताकि प्रौद्योगिकी, शिक्षा, संस्कृति और संस्थान के प्रारंभिक चरण उद्यम को नई विंडो सपोर्ट मिल सके। यह उन सप्लाई चेन नवान्वेषकों को भी सहायता पहुंचाएगा जो सामाजिक और आर्थिक उद्यमों के फ्रूगल लाजिस्टिकल मॉडल को डिजाइन करें। इसके पीछे की विचार प्रक्रिया यह होनी चाहिए कि विकास के भिन्न-भिन्न स्तरों और स्टार्ट-अप्स के विविधिकरण पर, भिन्न-भिन्न स्तर का संरक्षण और वित्तीय सामग्रियां उपलब्ध करायी जाए।
मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि राष्ट्रीय विकास और नवान्वेषों की उपयोगिता (निधि) शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से उच्चतर शिक्षा संस्थानों में नवान्वेषण इन्क्यूबेशन सुविधाओं को मजबूत कर रही है। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता है कि इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम ने दूसरे चरण में डीएसटी, टाटा ट्रस्ट और लॉक हीड मार्टिन को एकजुट किया है। यहां पर रामरतन टाटा इस संबंध में सरकार को अपना समर्थन देने के लिए उपस्थित हैं। मेरी तीव्र अभिलाषा है कि नवान्वेषण का वित्त पोषण, और प्रारंभिक चरण उपक्रम आने वाले समय में कहीं कम जटिल हो। इसके साथ आवश्यक रूप से व्यवहारिक परिवर्तन भी होना चाहिए—हमें असफलताओं का जश्न मनाना और उनसे सीखना उसी प्रकार आना चाहिए जैसे हम सफलता का जश्न मनाते हैं।
मैं बेहद प्रसन्न हूं कि अटल नवान्वेष मिशन ने 500 से अधिक स्कूलों में टिंकरिंग लैब तैयार किए हैं। हमें समुदाय, जिला और क्षेत्रीय स्तरों पर समान समर्थन सहित उभरते हुए पारितंत्र की पूर्ति करनी है। मैंने पहले सुझाव दिया था कि हमें सूक्ष्म-वित्त से सूक्ष्म उद्यम वित्त तक ज्ञान और एनआईएफ द्वारा विकसित मॉडल पर सूक्ष्म उद्यम के एक यंत्र के रूप में परिवर्तन लाना है। अब हमारा लक्ष्य प्रत्येक नवोदय विद्यालय में इन्क्यूबेशन सेंटर, जो बच्चों को छोटी उम्र में जोखिम उठाने लायक बना सके, और प्रत्येक जिले में एक सामुदायिक नवान्वेष लैब बनाने का होना चाहिए। सरकारी स्कूलों में नवान्वेष प्रदर्शन और पहल में सुधार के लिए नीति पहलों को स्थान मिलना चाहिए। जबकि हमारी इच्छाओं को फलित होने में समय लग सकता है। याद रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमने एक अच्छी शुरुआत की है—अब हमें इस पर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
इन्हीं शब्दों के साथ
धन्यवाद,
जय हिंद!