सिंबियोसिस अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के ग्यारहवें दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण
पुणे, महाराष्ट्र : 26.11.2014
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1.मुझे हमारे देश में उच्च अध्ययन के प्रमुख केन्द्र सिंबियोसिस अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के ग्यारहवें दीक्षांत समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हो रही है। सर्वप्रथम,मैं आप सभी को एक ऐसे अवसर का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद करता हूं जो खुशनुमा और श्रद्धायोग्य है। मैं उन सभी स्नातक बने विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्होंने अपने उद्यम और लगन के द्वारा अपने चुने हुए शैक्षिक विषयों में सफलता अर्जित की है। बड़े दायित्व युक्त एक लंबी यात्रा इन नए स्नातकों की प्रतीक्षा कर रही है,जिनके बारे में मेरा विश्वास है कि अपनी योग्यता, ज्ञान और दूरदृष्टि से वे इसमें सफल होंगे।
2.मुझे, स्वतंत्रता आंदोलन से नजदीकी से जुड़े ऐतिहासिक शहर पुणे की यात्रा करने का अवसर प्राप्त होने पर भी खुशी हो रही है। यह बाल गंगाधर तिलक,वीर सावरकर, गोपाल कृष्ण गोखले, महर्षि कर्वे और महात्मा ज्योतिबा फूले जैसे स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों की धरती है। पुणे ने वर्षों के दौरान औद्योगिक विकास और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिहाज से शानदार प्रगति की है। यहां ऑटोमोबाइल,सूचना प्रौद्योगिकी और इंजीनियरी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियां मौजूद हैं। पुणे ने स्वयं को एक शिक्षा केन्द्र के रूप में स्थापित कर लिया है। सामान्यत:‘पूरब का ऑक्सफोर्ड’ कहा जाने वाला यह शहर देश और विदेश के विभिन्न हिस्सों के विद्यार्थियों का एक लोकप्रिय गंतव्य बन चुका है।
3. ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के ध्यये वाक्य,जिसका अर्थ है‘विश्व एक परिवार है,’ के साथ 1971 में स्थापित सिंबियोसिस में काफी संख्या में विदेशी विद्यार्थी हैं। इसके44 संस्थानों में से 28संस्थान 2002 में स्थापित सिंबियोसिस अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के तहत आते हैं। यह विश्वविद्यालय14000 से ज्यादा विद्यार्थियों को प्रबंधन, कम्प्यूटर,स्वास्थ्य, मीडिया,मानविकी और इंजीनियरी जैसे विषयों में 107 कार्यक्रमों को संचालित कर रहा है। सिंबियोसिस ने हजारों विद्यार्थियों के भाग्य का कायापलट किया है। मैं सिंबियोसिस द्वारा वर्षों के दौरान की गई प्रगति के लिए इसके संस्थापक अध्यक्ष डॉ. एस.बी. मजूमदार और उनकी टीम की सराहना करता हूं और इसी ऊर्जा और संकल्पना के साथ आगे बढ़ते जाने का आग्रह करता हूं।
मित्रो,
4.हमारे जैसे विकासशील देश के लिए उच्च आर्थिक विकास अत्यावश्यक है क्योंकि यह निर्धनता,अभाव और पिछड़ेपन जैसी बुराइयों की अचूक औषधि है। विकास का सृजन ज्ञान आधारित सेक्टरों के माध्यम से निरंतर हो रहा है। यह मानते हुए कि ज्ञान भविष्य में प्रगति को तेज करेगा,हमारे लिए शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके कुशल और सक्षम जनशक्ति तैयार करना आवश्यक है। कोई भी देश अपने जोखिम पर ही शिक्षा की अनदेखी कर सकता है। युवाओं की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सख्त मानक युक्त शिक्षा प्रदान करने की चुनौती विशेषकर हमारे जैसे बड़े देश में बहुत भारी है। यह कहने के उपरांत,उच्च शिक्षा क्षेत्र को विकसित करने के प्रति हमारा संकल्प दृढ़ रहा है।
5.हमारे पास 723 विश्वविद्यालयों और 37000कॉलेजों सहित एक विश्वसनीय ढांचा मौजूद है। परंतु हमारे यहां गुणवत्तायुक्त संस्थानों का अभाव है। विख्यात सर्वेक्षणों के अनुसार कोई भी भारतीय संस्थान विश्व के सर्वोच्च200 विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं है, हालांकि मेरा मानना है कि हमारे कुछ अग्रणी संस्थान व्यवस्थित और सक्रिय दृष्टिकोण के जरिए बेहतर स्थन प्राप्त कर सकते हैं। अतीत में,नालंदा,तक्षशिला, विक्रमशिला,वल्लभी,सोमपुरा और ओदंतपुरी जैसी, हमारी उच्च शिक्षा पीठें छठी सदी ईस्वी पूर्व से आरंभ होकर अठारह सौ वर्षों तक विश्व भर में अग्रणी थीं। ये विश्वविद्यालय विश्वभर के विद्वानों को आकर्षित किया करते थे। परंतु आज,प्रतिवर्ष तकरीबन दो लाख प्रतिभावान भारतीय विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाते हैं। यह आत्मविश्लेषण का विषय है कि हम अपने उच्च शिक्षण केन्द्रों को किस प्रकार वापस विश्व के अग्रणी संस्थानों के समूह में शामिल करें।
6.हमारे शैक्षिक संस्थानों को उभरती हुई चुनौतियों का सामना करने में ऊर्जा से परिपूर्ण और तत्पर होना चाहिए। आज का विद्यार्थी शिक्षा के निष्क्रिय प्राप्तकर्ता से आगे बढ़ते हुए सक्रिय मांग का केन्द्र बन गए हैं,जो धीरे-धीरे ज्ञान आवश्यकता को पुन: परिभाषित कर रहे हैं। उच्च शिक्षा के संस्थानों को उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा तथा प्रमुख क्षमताओं को विकसित करना होगा। उन्हें और अधिक विद्यार्थियों को सेवा प्रदान के लिए क्षमता का विस्तार करना होगा तथा साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता को कायम रखना होगा। उन्हें विचारों तथा व्याख्यानों और ट्यूटोरियल जैसे बौद्धिक संसाधनों के आदान-प्रदान में सक्षम बनाने के लिए ई-कक्षा तथा ज्ञान नेटवर्क जैसे प्रौद्योगिकी साधन अपनाने होंगे।
मित्रो,
7.विद्यार्थी हमारे शैक्षिक संस्थानों की जड़ हैं। वे उनके बौद्धिक उद्यम के परिपक्व फल हैं। वर्तमान विद्यार्थी अपना पूरा जीवन ऐसे रोजगार में लगाएंगे,जो संभवत: अभी तक मौजूद नहीं है। उन्हें अत्यावश्यक कौशल और हस्तांतरणीय दक्षताएं सिखानी होंगी। उनमें रचनात्मक चिंतन और समस्या के समाधान की विशेषताएं पैदा करनी होंगी। उन्हें छिपे हुए की तलाश का प्रयास करने और अज्ञात की खोज की खुशी महसूस करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें सार्वभौमिक मानसिकता हासिल करने के लिए पहले से अधिक वैश्वीकृत दुनिया के परिवेश में कार्य करने के योग्य बनाने के लिए प्रशिक्षित करना होगा। हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने विद्यार्थियों को विदेशी संस्थानों का प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करना होगा। इस संबंध में, मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस विश्वविद्यालय में तीस से अधिक विदेशी संस्थानों के सहयोग से वैश्विक अवगाहन,सेमेस्टर आदान-प्रदान तथा दोहरी उपाधि जैसे नवान्वेषी कार्यक्रम मौजूद हैं।
8.संकाय विकास एक अन्य अहम क्षेत्र है जिसपर ध्यान देना होगा। सूचना विस्फोट से विधाओं के अनवरत नवीकरण के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए संकाय को विषय सामग्री और आधुनिक अध्यापन में प्रशिक्षित करना होगा। उन्हें सेमिनार और कार्यशालाओं में भाग लेने तथा शोधपत्र प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9.शोध और नवान्वेषण किसी भी शैक्षिक प्रयास की आधारशिला होती है। उनके व्यापक अप्रत्यक्ष परिणाम समाज के विभिन्न वर्गों के लिए लाभकारी हो सकते हैं। यह नवान्वेषण है जिसके कारण औद्योगिक उच्च विकास दर दर्शाते हैं तथा अपने प्रतियोगियों से आगे रहते हैं। 2014 के एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार,विश्व की सौ अत्यंत नवान्वेषी कंपनियों में पांच भारतीय फर्में शामिल हैं। हमें और अधिक मेहनत करनी होगी। हमारे शैक्षिक संस्थान और उद्योगों को आपस में जुड़कर संयुक्त अनुसंधान,पाठ्यचर्या निर्माण तथा पीठों,विकास केन्द्रों और अनुसंधान पार्कों की स्थापना में साझीदारी से परस्पर लाभान्वित होना चाहिए।
10.भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र के व्यापक उन्नयन के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रगाढ़ करने की आवश्यकता है। हार्वर्ड,येल और स्टेनफोर्ड जैसे अग्रणी वैश्विक विश्वविद्यालय निजी क्षेत्र की पहल से विकसित हुए हैं। भारत का निजी क्षेत्र स्वास्थ्य,परिवहन और वित्तीय सेवाओं जैसे अनेक प्रमुख क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। शिक्षा में भी निजी संस्थान अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि तृतीयक स्तर पर कुल प्रवेशों में उनका हिस्सा लगभग साठ प्रतिशत है। परंतु फिर भी निजी प्रणाली के तहत शैक्षिक स्तरों में असमानता व्याप्त है। इसलिए बेहतर सेवा सुपुर्दगी, मानदंड और उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के उपाय किए जाने जरूरी हैं। यह जानकर प्रसन्नता होती है कि‘ए’ ग्रेड प्रत्यायन के साथ इस विश्वविद्यालय ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योग्यता का प्रदर्शन किया है।
मित्रो,
11.उच्च स्तरीय शिक्षा संस्थानों को समाज में एक बड़ी भूमिका निभानी है। उन्हें सामाजिक मुद्दों के साथ अधिक गहन स्तर पर मुखातिब होना चाहिए। हाल ही में कुछ प्रमुख समावेशी विकासोन्मुख पहलें आरंभ की गई हैं। सांसद आदर्श ग्राम योजना में समग्र विकास के लिए गांवों को गोद लेने तथा व्यापक स्तर पर अनुकरण के लिए इन्हें मॉडल गांवों में तब्दील करने की परिकल्पना की गई है। मैंने केन्द्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों से गांवों की समस्याओं की पांच-पांच गांवों को गोद लेने का आह्वान किया है। मैं आपके संस्थान से भी इस कार्यक्रम में सक्रिय भाग लेने का आह्वान करता हूं।
12.अपनी बात समाप्त करने से पहले, मैं अपने युवा मित्रों से वह कहना चाहूंगा जो अरस्तू ने कहा था, ‘दिल को शिक्षित किए बिन मस्तिष्क को शिक्षित करना कोई शिक्षा नहीं है।’आपकी शिक्षा से आपको आत्मचिंतन करने की क्षमता तथा दुनिया के साथ जुड़ने में मदद मिलनी चाहिए। सफलता को धन से न तोलें। आपकी सफलता उन लोगों की संख्या में है जिनके आप काम में आएंगे;उन सकारात्मक बदलावों में हैं,जो आप समाज में लाएंगे। सच और प्रसन्नता की खोज मानव का स्वभाव है। ये आपके प्रयास के मापदंड होने चाहिए।
13.मैं एक बार पुन: मेरे प्रति आपके सौहार्द और प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए आप सभी का धन्यवाद करता हूं। मैं आप सभी को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद!
जयहिन्द!