रक्षा उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान के 7वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
पुणे, मुंबई : 31.05.2013
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1. मुझे आज रक्षा संबंधी इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी अध्ययन के इस प्रमुख संस्थान, रक्षा उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान के सातवें दीक्षांत समारोह में आकर वास्तव में खुशी हो रही है। मुझे 2006 में रक्षा मंत्री के रूप में इस संस्थान में आने की याद ताजा है। 1952 में स्थापित यह रक्षा उच्च प्रौद्योगिकी संस्थान 2000 में सम विश्वविद्यालय बनाया गया। आज, यह अनुसंधानोन्मुख शिक्षा तथा उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों में मौलिक तथा खोजी अनुसंधान के लिए एक प्रमुख अकादमिक संस्थान है।
2. दीक्षांत दिवस सभी संबंधितों के लिए प्रिय दिन होता है। यह किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक बहुत महत्त्वपूर्ण चरण होता है। मैं उन सभी विद्यार्थियों तथा अनुसंधानकर्ताओं को बधाई देता हूं जो आज अपनी उपाधियां प्राप्त कर रहे हैं। आज के युवाओं में बहुत क्षमता विद्यमान है। क्योंकि उन्हें आजाद देश में शिक्षा प्राप्त करने का लाभ मिला है। लोकतंत्र में अपने अधिकारों का उपभोग करते हुए उन्हें राष्ट्र के प्रति अपने महान जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखना है।
3. मित्रो, हमारी लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था तथा बहुलवादी समाज को मजबूत बनाने में हमारे सशस्त्र बलों का अनन्य योगदान है। हमारा देश स्थिर तथा नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था चाहता है। यह अत्यंत चिंता का विषय है कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश खराब होता जा रहा है। इसको देखते हुए जोखिम संबंधी परिवेश की लगातार समीक्षा करने की जरूरत है। ताकि हमारी रक्षा अवस्थापना किसी भी प्रभार के खतरे का तेजी से जवाब दे सके।
4. किसी भी आधुनिक सुरक्षा बल के लिए ज्ञान आधारित होना अनिवार्य है। रक्षा तैयारी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक प्रयोग आज की जरूरत है। डोमेन ज्ञान के साथ-साथ नवान्वेषण के माध्यम से क्षमताओं के विकास और प्रणालियों के सशक्तीकरण की जरूरत है। नीति निर्माण की प्रक्रिया को अधिक प्रतिसंवेदी होना चाहिए जिससे उसके द्वारा समस्याओं की पहचान की जा सके, रूझानों का पता लगाया जा सके, विभिन्न परिदृश्य विकसित किए जा सकें तथा नीति संबंधी विकल्प सुझाए जा सकें, जिससे किसी भी प्रकार के संकट को टाला जा सके। इसलिए हमारे पास ऐसे संस्थानों का पूल होना चाहिए जो हमारी रक्षा प्रणालियों की प्रौद्योगिकीय क्षमताओं में वृद्धि के लिए तथा रक्षा और सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में ज्ञान को बढ़ावा देने के प्रति समर्पित हों। एक विशेषज्ञ रक्षा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के रूप में, हमारी रक्षा अवस्थापना की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्नत ज्ञान के सृजन में रक्षा उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
5. मित्रो, हमने गरीबी खत्म करने तथा समतापूर्ण विकास सुनिश्चित करने के लिए उच्च आर्थिक विकास की कार्यनीति अपनाई है। हमारा भावी विकास अधिकाधिक ज्ञान अर्थव्यवस्था निर्भर करेगा। हमारे उच्च शिक्षा सेक्टर को इस चुनौती का सामना करने के लिए सुसज्जित होना चाहिए, इमारे देश में विश्वसनीय अवसंरचना के बावजूद छह सौ पचास से अधिक उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान तथा तैंतीस हजार से अधिक कॉलेज हम संख्या और गुणवत्ता दोनों में ही पिछड़ रहे हैं। इस बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए हमारे पास अच्छी गुणवत्ता वाले संस्थान नहीं है। एक सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के सर्वोत्तम दो सौ विश्वविद्यालयों में हमारा कोई भी शैक्षणिक संस्थान शामिल नहीं है। जब मैं इस परिदृश्य को देखता हूं तो मेरा ध्यान लगभग अठारह सौ वर्ष पूर्व के प्राचीन समय की ओर छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व जाता है। जब तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि जैसे भारतीय विश्वविद्यालयों का विश्व की शिक्षा प्रणाली पर प्रभुत्व था। 13वीं शताब्दी में अपने ह्यस की शुरूआत से पूर्व ये विश्वविद्यालय विख्यात भारतीय उच्च शिक्षा पद्धति के मन्दिर थे। आज हमारा कोई भी विश्वविद्यालय विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों की श्रेणी में नहीं है। इस स्थिति में सुधार होना चाहिए तथा मैं सभी शिक्षाविदों और सभी संबंधितों से आग्रह करूंगा कि वे इस बात की संभावना तलाशें कि हम कितनी तीव्र गति से इस लक्ष्य को पा सकते हैं।
6. हम उच्च शिक्षा में अपने नेतृत्व को पुन: पा सकते हैं। हमें अपने विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय संस्थानों के रूप में विकसित करने के लिए नवान्वेषी बदलाव लाने होंगे। अकादमिक प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में समुचित लचीलापन शुरू करके उत्कृष्टता की संस्कृति का शुभारंभ होना चाहिए। हमारे विश्वविद्यालयों को सुगम्यता, गुणवत्ता तथा संकाय की कमी की समस्या से निपटने के लिए ई-शिक्षा का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। ई क्लास रूमों के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर मौजूद विद्यार्थियों को महत्त्वपूर्ण व्याख्यान भेजा जाना संभव है। हमें हर एक क्षेत्र में विशेषज्ञों का समूह की जरूरत है जिनके प्रयासों को अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए एक दूसरे से जोड़ा जा सके। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिक के माध्यम से शिक्षा पर राष्ट्रीय मिशन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
7. हमें अपने स्नातकों में केवल अकादमिक दक्षता की नहीं बल्कि सर्वांगीण विकास की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए, आत्म चेतना, तदानुभूति, सर्जनात्मकता, चिंतनशीलता, समस्या-समाधान, प्रभावी संप्रेषण, अन्तर वैयक्तिक संबंध और तनाव तथा भावनात्मक प्रबंधन जैसे जीवनोपयोगी कौशलों में प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है। इन कौशलों को हमारे अकादमिक पाठ्यचर्या में समुचित स्थान मिलना चाहिए तथा हमारे संस्थानों में उनको प्रदान करने के लिए अपेक्षित दक्षता होनी चाहिए।
8. मित्रो, हमारे देश की प्रगति विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर कार्य करने की हमारी योग्यता पर निर्भर करेगी। एक मजबूत ज्ञान का आधार, हमारी आर्थिक ताकत, ऊर्जा सुरक्षा तथा रक्षा तैयारी का निर्धारण करेगा। इसके लिए नवान्वेषण की संस्कृति जरूरी है जिसका, दुर्भाग्य से हमारे देश में अभाव है। भारत में 2011 में केवल बयालींस हजार पेटेंट आवेदन भरे गए थे। इनकी संख्या चीन और अमरीका में बारह गुणा है। हमारे पास नवान्वेषण की क्षमता है परंतु वे प्रणालियां मौजूद नहीं है जो हमें इनके लिए प्रोत्साहित करें। प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान की दक्षता विकसित करने के लिए हमारे पास विदेशों में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों तथा प्रौद्योगिकीविदों को भारत में अल्पकालीन परियोजनाओं पर कार्य करने के लिए आमंत्रित करने की लचीली प्रणाली होनी चाहिए। हमें अन्तर-विधात्मक तथा अन्तर-विश्वविद्यालय अनुसंधान सहयोग, अनुसंधान अध्येतावृति तथा उद्योग प्रोत्साहन पार्कों की स्थापना जैसे उपायों को बढ़ाना होगा। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि संस्थान हमारे देश तथा विदेशों के बहुत से संस्थानों के साथ अकादमिक और अनुसंधान सहयोग कर रहा है।
9. वर्ष 2010-20 के दशक को नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। इसकी आम आदमी के लिए कोई सार्थकता होनी चाहिए। ऐसे बहुत से जमीनी नवान्वेषण हैं जिन्हें व्यवहार्य उत्पादों के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसके लिए हमारे विश्वविद्यालयें और अनुसंधान संस्थाओं को कॉरपोरेट सेक्टर के सहयोग से प्रौद्योगिकीय मार्गदर्शन देना चाहिए। इस वर्ष केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लबों की स्थापना का सुझाव दिया गया था जो कि शिक्षकों और विद्यार्थियों तथा जमीनी नवान्वेषकों के बीच संपर्क में सहयोग दें। हाल ही में मुझे उत्तर प्रदेश और असम में दो केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस तरह के क्लबों के उद्घाटन का अवसर मिला। इन विश्वविद्यालयों तथा नागालैंड विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित नवान्वेषण प्रदर्शनियों में मुझे अपने युवा नवान्वेषकों के कौशल को देखकर बहुत खुशी हुई। मैं सभी लोगों को हमारे देश में नवान्वेषकों के समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।
10. रक्षा उन्नत प्रौद्योगिक संस्थान ने मौलिक तथा अनुप्रयुक्त विज्ञानों के बीच स्वस्थ तालमेल के लिए एक सौहार्दपूर्ण नजरिया अपनाया है। इसने नई प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अनुसंधान में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रयासों में सहयोग दिया है। मैं रक्षा मंत्री को पूरे दिल से इस प्रयास को समर्थन देने के लिए बधाई देता हूं क्योंकि इससे देश को दीर्घकालीन लाभ होंगे। मुझे विश्वास है कि यह विश्वविद्यालय अपनी श्रेणी में पूरी दुनिया में उत्तम स्थान पर रहेगा तथा रक्षा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में हमारी आत्मनिर्भरता में बड़े पैमाने पर सहयोग देगा।
11. मैं एक बार फिर से उपाधि प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, ‘‘ऐसे जीयो जैसे आप कल नहीं रहोगे। ऐसे पढ़ो जैसे आप सदैव जीओगे।’’ कृपया यह याद रखें कि शिक्षा और ज्ञान अनंत है। आपको जीवन के हर चरण में सीखने का अवसर मिलेगा। इसके लिए आपका दिमाग खुला होना चाहिए। आपको ईमानदारी, धैर्य, समर्पण तथा कठोर परिश्रम के साथ इन चुनौतियों का सामना करना होगा। मैं आप सभी को अपने जीवन और आजीविका के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रबंधन एवं संकाय को उनके भावी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!