राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 15.06.2013

डाउनलोड : भाषण राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 249.66 किलोबाइट)

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1. मुझे राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रथम दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए यहां आकर बहुत प्रसन्नता हो रही है।

2. मैं समझता हूं कि इस विश्वविद्यालय का स्वप्न है एक ऐसे वैश्विक संस्थान के रूप में स्थापित होना जो भारत तथा विश्व के सर्वोत्तम संस्थानों से प्रतिस्पर्धा कर सके तथा अधिवक्ताओं को ऐसी आजीविका प्रदान करे जो उन्हें विधि व्यवसाय में विभिन्न तरह के अवसर दे। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का उद्देश्य ऐसे अधिवक्ताओं को तैयार करने का है जो व्यावसायिक रूप से कुशल हों, तकनीकी रूप से गहन ज्ञान रखते हों तथा सामाजिक रूप से प्रासंगिक हों। वे न केवल अधिवक्ता और न्यायाधीश बनेंगे बल्कि नई सहस्राब्दि की अपेक्षाओं को पूरा करने तथा भारत के संविधान की रक्षा करने के लिए तैयार होंगे।

3. राजधानी में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली के स्थित होने से विद्यार्थियों को देश की कानूनी तथा राजनीतिक प्रक्रिया को देखने और उसमें भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। पिछले दो दशकों में कानूनी शिक्षा में भारी बदलाव आया है। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली को सैद्धांतिक संकल्पनाओं और व्यावहारिक अनुप्रयोग के बीच अंतर को पाटना होगा। इसको जिज्ञासा पैदा करनी होगी तथा उत्सुकता को प्रोत्साहन देना होगा।

4. मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि विद्यार्थी तथा संकाय विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए अवसरों का सदुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने विधि सहायता परियोजनाएं शुरू की हैं, नीति निर्माण के लिए अकादमिक जानकारी प्रदान कर रहे हैं तथा जनहित याचिकाओं में सहायता कर रहे हैं।

5. देवियो और सज्जनो, अधिवक्ता जनता को न्याय प्राप्त करने में सक्षम बनाने तथा यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं कि हमारा संविधान एक जीती-जागती सच्चाई बने। विधि व्यवसाय को हर उस समाज में महान व्यवसाय माना जाता है जहां कानून का शासन चलता है। भारत में, महात्मा गांधी तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू सहित हमारे बहुत से राष्ट्रीय नेता अधिवक्ता थे। वास्तव में, यह तर्क दिया जा सकता है कि हमारे नेताओं द्वारा अधिवक्ता के रूप में प्रशिक्षण तथा भारत और विदेशों में प्राप्त अनुभव ने हमारे विशिष्ट राष्ट्रीय आंदोलन के उद्विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हमारे स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज उपनिवेशवादी मालिकों से तर्क, दलील तथा नैतिक साहस, जो एक अच्छे अधिवक्ता के महत्त्वपूर्ण हथियार हैं, का प्रयोग करते हुए, शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीके से स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार तथा लोकतंत्र की प्राप्ति का प्रयास किया गया था।

6. मैं राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली के छात्र समुदाय से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे यह तथ्य सदैव याद रखें कि जो शानदार शिक्षा आपने ग्रहण की है उसमें राज्य तथा समुदाय का योगदान है। जिस भूमि पर आपका विश्वविद्यालय खड़ा है, उसे भी समुदाय द्वारा प्रदान किया गया है। इसी प्रकार ये इमारतें, आपके पुस्तकालय में भरी हुई पुस्तकें तथा ऑनलाइन डाटाबेस आदि सभी उस धनराशि से आए हैं जिसे राज्य ने आपके ऊपर निवेश किया है। देश अपने विश्वविद्यालयों में इसलिए निवेश करता है क्योंकि विद्यार्थी हमारा भविष्य हैं। बदले में विद्यार्थियों की न केवल अपने और अपने परिवार के प्रति बल्कि अपने देश, विधि प्रणाली तथा उसकी जनता के प्रति भी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है।

7. इस प्रख्यात विश्वविद्यालय के स्नातकों को निरंतर उन उपायों के बारे में चिंतन करना चाहिए जिनके द्वारा वे अपने देश का ऋण चुका सकते हैं। आपको निर्बलों का प्रतिनिधित्व करने, तथा न्याय की प्राप्ति में उनकी सहायता करने के लिए हर समय तत्पर और इच्छुक रहना चाहिए। हमें गूंगों की आवाज बनने तथा अपने समाज में ठोस बदलाव लाने के लिए सक्रिय, समर्पित तथा आदर्शवादी लोगों की सेना की जरूरत है। मुझे उम्मीद है कि यहां उपस्थित आप सभी लोग निर्धनों को कानूनी सहायता प्रदान करने के कार्य को जीवन भर के लिए एक दायित्व के रूप में अपनाएंगे और निर्बलों की समस्याओं की और ध्यान आकर्षित करने का हर संभव प्रयास करेंगे। तथापि, इसके लिए आप न तो कृतज्ञता की मांग करें और न ही उम्मीद करें। इसे अपना कर्तव्य समझकर—अधिक समतापूर्ण विश्व के लिए तथा उस मातृभूमि के लिए, उस भारत के लिए, योगदान के रूप में करें जिसने आपको वह बनाया है जो आप आज हैं।

8. हममें से बहुत से लोग दूसरों से ऐसी अपेक्षा करते हैं जैसी हम खुद करने के लिए अनिच्छुक होते हैं। भ्रष्टाचार से नाराज लोग खुद अपने कार्य को जल्दी करवाने के लिए रिश्वत देने के लिए तैयार रहते हैं। सार्वजनिक रूप से यौन हिंसा तथा लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध सख्त कानूनों की मांग करने वाले कई लोग इसी लैंगिक भेदभाव में लिप्त पाए जाते हैं। लोग वरिष्ठों द्वारा अपने मातहतों से सख्ती से पेश आने पर क्रोधित होते हैं परंतु कभी-कभी वे खुद उन लोगों के प्रति बेपरवाही बरतते हैं जो उनके अधीन कार्यरत होते हैं। ‘आप खुद वह परिवर्तन बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं,’ हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था और मैं आप सबसे आग्रह करता हूं कि आप अपने दैनिक जीवन में इस सिद्धांत को आत्मसात् करें।

9. मुझे अपने विद्यालय जाने के लिए तीन मील पैदल चलना पड़ता था और एक दरिया पार करना पड़ता था। हमारे देश में बहुत से लोगों को अभी भी ऐसा करना पड़ता है। वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में, उनका संघर्ष आपका संघर्ष होना चाहिए। उनका कल्याण तथा उनकी खुशहाली हमारे लोकतंत्र तथा हमारे समुदाय को मजबूती प्रदान करती है। इसलिए ऐसा व्यक्ति बनें जो बदलाव लाने का प्रयास करता है न कि ऐसा जो शिकायत करता रहता है ओर दूसरों द्वारा कार्यवाही का इंतजार करता है। बदलाव कभी भी आसान नहीं होता। इसके लिए धैर्य, विश्वास तथा कठोर परिश्रम की जरूरत होती है। परंतु जरूरी यह है कि हार न मानी जाए। भारत में पिछले छह दशकों में उससे कहीं अधिक बदलाव आए हैं जितने पिछली छह सदियों में आए थे। मुझे विश्वास है कि यह इसमें अगले दस वर्षों में, पिछले साठ वर्षों से अधिक बदलाव आएंगे। यह भारत की शास्वत शक्ति है जो इसे संचालित कर रही है।

10. भारत का संविधान विश्व के सर्वश्रेष्ठ संविधानों में से एक है। इसका प्रमुख सिद्धांत था राज्य और नागरिक के बीच एक समझौता, न्याय, आजादी तथा समानता से समृद्ध एक शक्तिशाली सार्वजनिक-निजी भागीदारी। संविधान दूसरी आजादी का प्रतीक था—और इस बार, लिंग, जाति, समुदाय में परंपरागत असमानता के बंधन से तथा उन बेड़ियों से आजादी, जिन्होंने हमें बहुत दिनों से जकड़ा हुआ था।

11. संविधान का अच्छी तरह अध्ययन करें। हमारी राजनीतिक प्रणाली को, इसकी संस्थाओं को तथा प्रक्रियाओं को अच्छी तरह समझें। उन विकल्पों का विश्लेषण करें जिनको आज के हमारे इस देश के निर्माण के लिए उपयोग किया गया था। यह बात समझें कि इस देश को अपनी अधिकतम क्षमता प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए समझदारीपूर्ण विकल्प अपनाने होंगे। इन विकल्पों के चयन में सहभागिता करें।

12. आप इस देश के सबसे मेधावी युवाओं में से हैं। नीति निर्माताओं को सही नीतियां बनाने के कार्य में सहायता दें। राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों से बचकर न निकलें। राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में पढ़ने, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करने तथा उन पर अपनी राय बनाने के लिए तैयार रहें। कोई भी लोकतंत्र सुविज्ञ सहभागिता के बिना स्वस्थ नहीं हो सकता। खुद को तथा अन्य लोगों को सूचनाओं से अवगत रखें। इस देश के शासन को अपनी रुचि का विषय बनाएं। हमारे सुंदर, जटिल तथा प्राय: कठिन और कभी-कभी शोर भरे लोकतंत्र में सक्रिय रूप से भाग लें—हमारी विधिक तथा राजनीतिक संस्थाओं को मजबूत करने तथा उनको परिष्कृत करने में सहायता दें। आपने जो कुछ यहां सीखा है, उसे दूसरों को सिखाएं, तथा उन्हें अपने अधिकारों और उत्तरदायित्वों को समझने में सहायता दें। देश को ऐसे बेहतर नागरिक तैयार करने में सहायता दें जो उन सभी अवसरों का लाभ उठा सकें जो हमारे देश द्वारा प्रदान की जा रही है।

13. अधिवक्ताओं को इस देश में विशेष दर्जा हासिल है क्योंकि समाज उनके द्वारा किए जाने वाले विशेष कार्यों को मान्यता प्रदान करता है। अधिवक्ताओं का कर्तव्य अन्याय से लड़ना है, चाहे वह कहीं भी हो। अधिवक्ताओं को आपराधिक, निर्धनता घरेलू हिंसा, जाति-भेद और शोषण के विभिन्न स्वरूपों के विरुद्ध बदलाव का नेतृत्व करना चाहिए। इस तरह के शोषण के शिकार व्यक्तियों में प्राय: इससे खुद ही लड़ने की शक्ति अथवा कौशल नहीं होता।

14. यदि आपको रिश्वत देने के लिए कहा जाए तो आपमें मना करने का साहस होना चाहिए। यदि आपको हिंसा, भ्रष्टाचार अथवा अत्याचार का समर्थन करने के लिए कहा जाए तो ना कहने की हिम्मत दिखाएं। यदि आपको प्रतिशोध से डर लगता है तो याद रखें कि किसी भी अन्यायपूर्ण व्वस्था को तोड़ना कठिन विकल्पों को अपनाना है। पर्याप्त व्यक्तियों द्वारा कठिन विकल्पों को अपनाया जाना जरूरी है और यह कार्य आपसे शुरू होना चाहिए। एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लें। अधिवक्ता के रूप में आपको लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाने का प्रास करना चाहिए और एक समूह के रूप में आपको समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए प्रयास करना चाहिए। जब आप आपके मुवक्किलों के वैयक्तिक मामलों में उनका प्रतिनिधित्व कर रहे हों तब भी आपको सदैव विधि के शासन को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे नागरिकों के मौलिक अधिकारों के अभिरक्षक बनें।

15. हाल ही में दिल्ली में बर्बर हमले तथा बच्चे से बलात्कार की घटनाओं ने हमारे समाज की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर दिया है। इनसे हमें मूल्यों के हृस पर तथा महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित करने में हमारी बार-बार असफलता पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत महसूस हुई। भारत में हमें अपनी नैतिकता की दिशा का पुनर्निर्धारण करने की जरूरत है। हमें सामूहिक रूप से हर वक्त महिलाओं की गरिमा तथा उनके सम्मान को सुनिश्चित करना होगा। विधिक समुदाय, खासकर विधि के विद्यार्थियों को महिलाओं की सुरक्षा, उनके अधिकारों तथा कल्याण की लड़ाई में अग्रणी होना चाहिए। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली जैसे विश्वविद्यालयों को समसामयिक नैतिक चुनौतियों का सामना करने तथा यह सुनिश्चित करने में अग्रणी रहना चाहिए कि युवाओं में मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्यों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; विविधता के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं का सम्मान; जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मनियंत्रण; कार्यों में जिम्मेदारी तथा अनुशासन इन नौ सभ्यतागत मूल्यों का पूरी तरह समावेश हो।

16. राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली के इस प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर मैं उपाधि प्राप्त करने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को बधाई देता हूं तथा आप सभी का आह्वान करता हूं कि आप हमारे महान देश में सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण में अग्रणी बनें। आइए, हम मिलकर अपने देश के प्रत्येक नागरिक के लिए ‘सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय’ को जीती-जागती सच्चाई बनाएं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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