राष्ट्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03.04.2013
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मुझे आज राष्ट्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम पुरस्कारों को प्रदान करने के मौके पर यहां आकर प्रसन्नता हो रही है, जो भारत में व्यवसायिक पुरस्कारों का एक महत्त्वपूर्ण अवसर है। 30 वर्ष पूर्व स्थापित ये पुरस्कार, खादी एवं ग्रामोद्योग सहित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम सेक्टर में विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त करने वालों तथा इस सेक्टर के विकास को बढ़ावा देने के लिए बैंकों को मान्यता देने के लिए उद्यमिता में उत्कृष्टता के प्रतीक हैं।
मैं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय की, इस महत्त्वपूर्ण औद्योगिक सेक्टर में अधिक उद्यमिता प्रयासों, नवान्वेषण की संस्कृति तथा उत्पाद की गुणवत्ता में निरंतर सुधार को प्रोत्साहन देने के लिए सराहना करता हूं। मैं इस वर्ष के राष्ट्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमिता पुरस्कारों के उन सभी विजेताओं को बधाई देता हूं जिन्होंने अन्य उद्यमियों के लिए उत्कृष्टता के मानदंड स्थापित किए है।
देवियो और सज्जनो, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, संभवत: भारत की आर्थिक प्रगति तथा सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। इस सेक्टर का, सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत तथा विनिर्माण उत्पादन में 45 प्रतिशत और कुल निर्यात में 40 प्रतिशत योगदान है। यह हमारे औद्योगिक विकास का प्रमुख कारक है क्योंकि इसके तहत लगभग 36 मिलियन उद्यम हैं जो कि 6000 से अधिक उत्पाद बनाते हैं तथा 80 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को रोजगार देते हैं।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम सेक्टर अपनी विभिन्नता के लिए जाना जाता है। यह, आकार में, प्रौद्योगिकी के स्तर में, स्थान तथा उत्पाद की किस्मों में, जो कि जमीनी स्तरीय ग्रामोद्ययोग से लेकर वाहन उपस्कर, माइक्रोप्रोसेसर, इलैक्ट्रोनिक उपस्कर तथा इलैक्ट्रो-मेडिकल उपकरण बनाने वाले अत्यंत परिष्कृत यूनिटों तक, विविधता लिए हुए है। क्योंकि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम दूर-दूर तक फैले होते हैं इसलिए उनका विकास समतापूर्ण तथा समावेशी विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जो हमारी अर्थव्यवस्था का परम लक्ष्य है।
देवियो और सज्जनो, भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम सेक्टर के सामने बहुत सी चुनौतियां है। इस सेक्टर में सामाजिक-आर्थिक बदलाव के कारक बनने की बहुत संभावनाएं है परंतु इसके लिए इस सेक्टर की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के प्रयास करने होंगे, जिसके लिए संस्थागत ऋण, नवान्वेषण और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन, पर्याप्त औद्योगिक अवसंरचना की उपलब्धता, कौशल विकास तथा क्षमता निर्माण की मांग को पूरा करना होगा तथा बाजार सहयोग को सशक्त करना होगा।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम यूनिटों के लिए अनुकूल अवसंरचना प्रदान करने के लिए बहुत से देशों में औद्योगिक संकुलों पर निर्भरता को उचित माना गया है। परीक्षण केंद्रों, सुविधाओं, सड़कों, सुरक्षा, उत्सर्जन शोधन, कामगारों के प्रशिक्षण तथा विपणन जैसे सुविधाओं की साझीदारी से ये संकुल इन यूनिटों को प्रौद्योगिकी उपयोग, दक्षता वर्धन तथा विकास जैसे लाभ प्रदान कर सकते हैं।
मुझे बताया गया है कि सरकार का संकुल विकास कार्यक्रम, क्षमता निर्माण, अवसंरचना उन्नयन तथा साझा सुविधा केंद्रों की स्थापना में सहायक रहा है। मुझे विश्वास है कि यह स्कीम इस सेक्टर में सतत् विकास लाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाएगी।
राष्ट्रीय विनिर्माण नीति, 2011 में समर्पित राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण जोनों की स्थापना की परिकल्पना की गई है, जिससे आधुनिक अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, कौशल विकास केंद्रों तथा उन्नत संयोजकता को विनिर्माण में विकास के आधार के रूप में एक जगह इकट्ठा किया जा सके। मैं यह अपेक्षा करता हूं कि विनिर्माण संबंधी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इस पहल का पूरा लाभ उठाएंगे।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम यूनिटों की विकास संभावनाओं में वित्तीय संसाधनों की कमी से बाधा नहीं आनी चाहिए। औद्योगिक संकुलों के नजदीक शाखाओं के नेटवर्क का विस्तार करके वित्तीय संस्थाओं की पहुंच तथा कवरेज में बढ़ोतरी करने की जरूरत है।
हमारा पूंजी बाजार हमारे व्यवसाय के लिए धन जुटाने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। राष्ट्रीय स्टाक एक्सचेंज तथा बीएसई द्वारा शुरू किए गए लघु एवं मध्यम उद्यम एक्सचेंज प्लेटफार्म से लघु एवं मध्यम उद्यम अपने लिए जरूरी संसाधनों को जुटाने के लिए पूंजी बाजार का सहारा ले सकेंगे। इससे निवेश आधार का विस्तार होने से इन उद्यमों में जोखिम भी बट जाएगा।
भारत में ज्ञान आधारित उद्यमों के लिए संभावनाएं बहुत अधिक हैं। इनके विकास को सहारा देने के लिए निजी इक्विटी, वेंचर कैपिटल तथा एन्जेल फंड जैसे पूंजी के वैकल्पिक संसाधन तक अधिक पहुंच बनानी होगी।
यह जानकर प्रसन्नता होती है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम सेक्टर को आसानी से ऋण प्रदान करने के हमारे प्रयास निरंतर जारी हैं। 2013-14 के केंद्रीय बजट में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक की पुनर्वित्त क्षमता को दोगुना करके 10000 करोड़ प्रति वर्ष करने की तथा फैक्टरिंग सेवाओं के उन्नयन में सहायता के लिए बैंक में 500 करोड़ रुपये की निधि की स्थापना की परिकल्पना की गई है। मुझे यह जानकर भी खुशी हो रही है कि भारत माइक्रो फाइनान्स इक्विटी फंड, जिसे माइक्रो फाइनान्स संस्थाओं को इक्विटी की व्यवस्था करके उनको सहायता देने के लिए 2011-12 में 100 करोड़ रुपये की बजटीय सहायता से शुरू किया गया था, को अब 100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि आबंटित की जा रही है।
देवियो और सज्जनो, हमारी प्रगति मुख्यत: प्रौद्योगिकी के स्तर पर निर्भर करेगी जो कि हमारी अर्थव्यवस्था का संचालन करेगी। नवान्वेषण तथा प्रौद्योगिकी ऐसी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान करते हैं जिससे कुल मिलाकर हमारे औद्योगिक सेक्टर को तथा विशेषकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम सेक्टर को वंचित नहीं रखा जाना चाहिए।
हमें विनिर्माण प्रक्रियाओं के पुननिर्धारण, लागत को कम करने, शुरूआत से उत्पादन तक लगने वाले समय में कमी लाने, तथा उत्पाद गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए उपयोगी प्रौद्योगिकियों का विकास करना होगा। इसके लिए उद्योग, अकादमिक सदस्यों तथा अनुसंधान संस्थानों को मौजूदा प्रौद्योगिकीय खामियों का पता लगाकर उनका समाधान ढूंढ़ने के लिए सहयोग करना होगा।
टूल रूम तथा प्रौद्योगिकी विकास केंद्रों को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम यूनिटों को प्रौद्योगिकी तथा डिजायन सहायता प्रदान करने में उपयोगी पाया गया है। इन प्रयासों का अनुकरण करने की जरूरत है। अत: मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना अवधि में 2200 करोड़ रुपये की लागत से ऐसे 15 केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
यह दशक नवान्वेषण का दशक है। नवान्वेषण के प्रति हमारी कोशिश से सामाजिक आर्थिक संरचना के निचले पायदान के लोग लाभान्वित होने चाहिए। ऐसे बहुत से मौलिक नवान्वेषण हैं जो प्रौद्योगिकीय और वाणिज्यिक सहयोग के अभाव में विपणन योग्य उत्पादों के रूप में विकसित होने से वंचित रह जाते हैं।
जमीनी स्तर के नवान्वेषकों के संस्थागत मार्गदर्शन से प्रौद्योगिकी के लाभों को लोगों तक पहुंचने में काफी सहायता मिलेगी। मुझे उम्मीद है कि प्रस्तावित ‘भारत समावेशी नवान्वेषण कोष’ से निर्धनों की जरूरत और समस्याओं के मद्देनजर एक आर्थिक मॉडल निर्मित करके उद्यमियों की नई श्रेणी तैयार होगी।
देवियो और सज्जनो, भविष्य में हमारे राष्ट्र के जनसांख्यिकीय स्वरूप के बदलने की संभावना है। 2025 तक, दो-तिहाई भारतीय कामकाजी वर्ग में होंगे। यह चुनौती और अवसर दोनों हैं। हमें अपनी कामकाजी जनसंख्या को यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोगी रोजगार प्रदान करना होगा कि राष्ट्रीय प्रगति में उनका योगदान अधिकतम सीमा तक प्राप्त किया जा सके।
रोजगार को बढ़ावा देने के लिए, उपयुक्त औद्योगिक सम्बन्ध और क्षमता निर्माण तंत्र आवश्यक है। अपनी कार्यनीतियों में हमें गुणवत्ता और मात्रा के मामले में हमारे तकनीकी संस्थानों के उच्चीकरण, बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए और अधिक तकनीकी संस्थाओं की स्थापना तथा सम्बन्धित विशेषज्ञता और जानकारी से सुसज्जित करने के लिए हमारी जनशक्ति के कौशल विकास पर ध्यान देना होगा।
हमारे देश के कर्मियों के विधिक हकदारी का लक्ष्य और अधिक रोजगार बढ़ाने का होना चाहिए। हमारे श्रम कानूनों को समसामयिक कारोबार मॉडल पर ध्यान देना चाहिए तथा उनमें नियोजक और कर्मचारी के व्यावहारिक अधिकारों और दायित्वों का समावेश होना चाहिए।
हमारी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इकाइयां तभी फलफूल सकती हैं जब हमारे उत्पादों के बाजार को विस्तृत करने का एकजुट होकर प्रयास किया जाए। इनके व्यवसाय के पैमाने के कारण, अधिकांश इकाइयों में विपणन, ब्रांड निर्माण और उन्नयन के लिए अकेले पहल करने की क्षमता नहीं है।
सूक्ष्म और लघु उद्यम के लिए जन प्रापण नीति 2012, जिसमें केन्द्र सरकार के मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को अपनी वार्षिक खरीद कम से कम 20 प्रतिशत सूक्ष्म और लघु उद्यमों से प्राप्त करने का निदेश दिया गया है, से इस क्षेत्र की विपणन चिंताओं का काफी हद तक समाधान किया जा सकेगा। परंतु बाजार विकास सहायता-व्यापार मेले, पैकेजिंग प्रौद्योगिकी, बार कोडिंग और मानकीकरण को सरकार और उद्योग संघों के संयुक्त प्रयासों के माध्यम से सुदृढ़ करना, इससे अधिक जरूरी है।
देवियो और सज्जनो, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम में करीब 95 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यम हैं जिनमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लगभग 65 प्रतिशत कार्मिकों को रोजगार प्राप्त है। अधिकांश लघु उद्यम असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और उन्हें अपने विकास के लिए काफी सहयोग की जरूरत है।
संयंत्र और मशीनरी या उपकरणों के अंतर्गत विनिर्माण क्षेत्र के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों में क्रमश: ` 10 करोड़, ` 5 करोड़ और ` 25 लाख तथा सेवा क्षेत्र में इकाइयों की इन्हीं श्रेणियों के लिए ` 5 करोड़, ` 2 करोड़ और ` 10 लाख की उच्चतम सीमा के निवेश के एकल मानदंड के आधार पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इकाइयों का वर्गीकरण, प्रोत्साहन की आवश्यक पहल के लिए जरूरी है। परंतु हमें सतर्क रहना होगा कि कहीं इससे फर्में अपने दायरे से आगे बढ़ने में हतोत्साहित न हों।
फर्मों का विकास तभी सर्वोत्तम ढंग से किया जा सकता है जब उन्हें निर्बाध रूप से आगे बढ़ने दिया जाए। संभवत: दीर्घकाल के लिए हमारे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इकाइयों के विकास के लिए एक संतुलित नजरिया बुद्धिमत्तापूर्ण हो सकता है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र की विकास प्रक्रिया में तेजी लाने में निजी क्षेत्र को सक्रिय भागीदार बनना चाहिए। विशेषकर कौशल विकास, उत्पाद उन्नयन और प्रौद्योगिकी विकास द्वारा एक अनुकूल व्यावसायिक वातावरण पैदा करने में उसकी भागीदारी से हमारे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इकाइयां विश्व की सर्वोत्तम इकाइयों के साथ सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
मैं, इस अवसर पर एक बार फिर, सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि उनकी सफलता देश के कोने-कोने में परिश्रमपूर्वक कार्यकर रहे लाखों लघु उद्यमियों को प्रेरित करेगी। अंत में, मैं अब्राहम लिंकन की एक प्रसिद्ध उक्ति का उल्लेख करना चाहूंगा, ‘‘हमेशा ध्यान रखें कि सफल होने का आपका अपना संकल्प किसी भी चीज से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।’’
धन्यवाद।