राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 03.05.2015
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मुझे62वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च सरकारी मान्यता के अनुरुप गहरे सम्मान का प्रतीक है। मैं 62वें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं के सभी विजेताओं का स्वागत करता हूं और बधाई देता हूं। आपने भारत को गौरवान्वित किया है और एक बार फिर सिनेमा को वैश्विक मंच पर स्थापित किया है। मैं निर्णायक मंडल के अध्यक्षों और सदस्यों की श्रेष्ठ कार्य के लिए सराहना करता हूं।
श्री शशि कपूर को मेरी विशेष बधाई जिन्हें इस वर्ष दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया है। सिनेमा में उनका योगदान बहुविध और असाधारण रहा है। वह एक सच्ची जीवंत विभूति हैं। श्री कपूर ने फिल्म आग और आवारा में बाल कलाकार के रूप में फिल्मी जीवन शुरू किया था और उसके बाद हमने उन्हें अनेक अत्यंत सफल फिल्मों में एक ऊर्जस्वी नायक के रूप में देखा। उन्होंने रंगमंच और सिनेमा दोनों क्षेत्रों में संतुलन बनाए रखते हुए उल्लेखनीय योगदान के द्वारा न केवल एक अभिनेता के रूप में बल्कि एक निर्माता के रूप में भी अपनी पहचान बनाई।
श्री शशि कपूर, श्री पृथ्वीराज कपूर और श्री राज कपूर के अलावा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार जीतने वाले अपने प्रख्यात परिवार के तीसरे व्यक्ति हैं। इस संपूर्ण परिवार को मेरी बधाई जिसने भारतीय सिनेमा को अत्यधिक योगदान दिया है। मैं, श्री शशि कपूर के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं।
मित्रो, देवियो और सज्जनो,
सिनेमा, दादा साहेब फाल्के की 1913 में भारत में निर्मित प्रथम फिल्म राजा हरिशचंद्र के समय से ही भारतीय संस्कृति और मनोरंजन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। भारतीय सिनेमा ने राष्ट्रीय सीमाओं को लांघा है और यह लाखों लोगों की चेतना को प्रभावित करने वाले विचारों और मूल्यों का सशक्त माध्यम है। हमारी फिल्में न केवल देश की बहु-सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करती हैं बल्कि ये इसकी भाषायी समृद्धि के प्रति सम्मान भी हैं। वे राष्ट्रीय निधि हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करने और सहजता से विश्व क्षितिज पर विस्तार पाने के लिए सच्चे अर्थों में हमारे देश की ‘सौम्य शक्ति’ हैं।
आज भारतीय फिल्म उद्योग निर्मित फिल्मों की संख्या के नजरिए से दुनिया का सबसे विशाल फिल्म उद्योग है। प्रत्येक वर्ष निर्मित लगभग 1600 फिल्मों के साथ, आज फिल्म उद्योग एक लाख दो हजार छह सौ करोड़ रु. अथवा 16.14 बिलियन अमरीकी डॉलर के विशाल व्यवसाय के साथ एक बड़ी ताकत माना जाता है। विश्व की सबसे अधिक युवा आबादी तथा बढ़ते स्मार्टफोन बाजार के साथ हमारे देश में शीघ्र ही एक पूर्ण डिजीटल वातावरण अपनाए जाने की संभावना है जिससे हमें भौगोलिक और सांस्कृतिक बाधाओं को पार करते हुए और बड़ी संख्या में लोगों के जुड़ने में मदद मिलेगी।
फिल्म स्क्रीनों के डिजीटाइजेशन से वितरक एक साथ अनेक स्क्रीनों पर फिल्म रिलीज करने लगे हैं जिससे थियेटर को एक सप्ताह के भीतर 60 से 80 प्रतिशत आय हासिल हो जाती है। यह एक ऐसी बात है जो पहले कभी नहीं सुनी गई। हमें अपने सिनेमा की समग्र प्रगति के लिए और अधिक स्क्रीनों का निर्माण सुनिश्चित करके इस प्रवृत्ति में तेजी लानी चाहिए। अब तक मुख्यधारा के हिंदी सिनेमा की पहचान अंतरराष्ट्रीय तौर पर हो चुकी है। हमें अपनी क्षेत्रीय फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष प्रयास भी करने चाहिए जिनकी संख्या और विषयवस्तु भी उतने ही रोचक और विश्व स्तर पर ध्यान दिए जाने के योग्य हैं।
देवियो और सज्जनो,
हम एक तेजी से बदलती दुनिया में रह रहे हैं जिसमें फिल्म उद्योग को समायोजित होना और ढलना होगा। प्रौद्योगिकी ने निर्माण की लागत को कम कर दिया है तथा प्रचार-प्रसार के तौर तरीकों का विस्तार किया है। वीडियो रिकॉर्ड करने वाले स्टिल कैमरा और सेलफोन द्वारा रिकॉर्ड वीडियो का संपादन अब घरेलू कंप्यूटर पर किया जा सकता है तथा नेट पर अपलोड किया जा सकता है। सोशल मीडिया पर हो रहे अत्यधिक विपणन के कारण फिल्मों की प्रोमोशन और विपणन ने एक नया अवतार ले लिया है - एक बढ़िया फिल्म की खबर जबान की बजाए ट्विटर पर जल्दी फैलती है। मैं यह भी समझता हूं कि 2014 में चार फिल्म एवं मनोरंजन केंद्रित निवेश निधि कोष शुरू किया गया जो इस क्षेत्र के बढ़ते कॉरपोरेटाइजेशन का स्वागत योग्य प्रमाण है।
देवियो और सज्जनो,
भारत में सिनेमा ने प्रांत, जाति, वर्ग और धर्म की सभी सीमाएं लांघी हैं। यह हमारे राष्ट्र की अपार विविधता को प्रदर्शित करता है जो विभिन्न संस्कृतियों,धर्मों और भाषाओं का घर है। यह आधुनिकता और परंपरा का तथा हमारे अतीत का और भविष्य के लिए करोड़ों उम्मीदों का संगम है। डिजीटाइजेशन तथा आधुनिक प्रौद्योगिकियों के आगमन का अर्थ यह नहीं है कि हम बुनियादों से दूर हो जाएं। हमारी विषय-वस्तु हमारी ताकत होनी चाहिए क्योंकि यह हमारे जीवंत सांस्कृतिक वातावरण में गहनता से रची-बसी हुई है।
आज के पुरस्कार इस सच्चाई के प्रमाण हैं कि भारतीय सिनेमा अभी भी अद्भुत प्रतिभा से भरपूर है। मुझे बताया गया है कि इस वर्ष भी एक बार फिर युवाओं ने अपनी छाप छोड़ी है। सर्वोत्तम फिल्म पुरस्कार के विजेता चैतन्य तम्हाने मात्र 27 वर्ष के हैं। उनकी फिल्म ‘कोर्ट’ अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पहले ही हलचल पैदा कर चुकी है। मुझे यह जानकर भी खुशी हुई है कि इस वर्ष की सर्वोत्तम महिला पार्श्व गायिका बालिका उतरा है जो केवल दस वर्ष की है। हमारे युवाओं में रचनात्मकता का पल्लवन भविष्य की शानदार उम्मीद है। यह हमें पुन: आश्वस्त करता है कि हम न केवल निर्मित फिल्मों की संख्या के मामले में बल्कि अपने सिनेमा की गुणवत्ता तथा अपने उद्योग में सर्वोच्च स्तर की प्रतिभा के मामले में भी दुनिया में अपनी बढ़त बनाए रखेंगे।
मित्रो,
भारतीय सिनेमा तथा फिल्म उद्योग की सशक्तता और प्रोत्साहन के लिए भारत सरकार अनेक कदम उठा रही है। सरकार नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एनिमेशन, गेमिंग और विजुअल इफेक्ट स्थापित करने की योजना बना रही है। देश में निर्मित फिल्मों के संरक्षण/परिरक्षण, पुनरुद्धार और डिजीटाइजेशन के लिए भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार द्वारा एक राष्ट्रीय फिल्म धरोहर मिशन आरंभ किया जाना है। सरकार का एक फिल्म सुविधा यूनिट भी स्थापित करने का प्रस्ताव है जो विदेशी फिल्म निर्माताओं और निर्माण घरानों को भारत आने और भारत में अपनी फिल्म बनाने में मदद के लिए एक सुविधा केन्द्र के रूप में कार्य करेगा। मुझे विश्वास है कि इन उपायों से हमारे फिल्म उद्योग की प्रगति में महत्वपूर्ण गति आएगी।
वर्षों से राष्ट्रीय पुरस्कार अनेक संबंधित वर्गों के सिनेमा के सभी पहलुओं में उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं जिसके अंतर्गत फीचर, गैर फीचर,क्षेत्रीय, तकनीकी, समानांतर और लोकप्रिय विधा में प्रतिभाओं को पहचान मिलती है। फिल्म निर्माण में सफलता के शिखर के लिए प्रयास कर रहे लोगों को इस देश में बहुत सम्मान दिया जाता है। हमें उन सभी की मेहनत और कठिन प्रयास की सराहना करनी चाहिए जो अपनी रचनात्मक परिकल्पना, तकनीकी कौशल तथा अपने क्षेत्र और पसंदीदा विषय के ज्ञान द्वारा श्रेष्ठ कलाकृति के सृजन का उद्देश्य हासिल करने में अथक प्रयास करते हैं।
अंत में, मैं फिल्म उद्योग से बाजार से परे देखने तथा अनेकता तथा समावेशिता को पोषित करने वाली हमारी समृद्ध सभ्यतागत विरासत से प्राप्त सार्वभौमिक मानव मूल्यों को प्रोत्साहित करने में मदद के लिए मिलजुलकर प्रयास करने का आग्रह करता हूं। हमें यहां महान फिल्म निर्माता ऋत्विक घटक के इस कथन को याद करना चाहिए, ‘सिनेमा मेरे लिए कोई कला नहीं है, यह अपने लोगों की सेवा करने का एक साधन मात्र है।’
मैं इस अवसर पर, एक बार फिर प्रत्येक पुरस्कार विजेता को बधाई देता हूं तथा उनमें प्रत्येक को तथा यहां उपस्थित फिल्म उद्योग के सभी लोगों को उत्कृष्टता के उनके प्रयासों में निरंतर सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मुझे विश्वास है कि आपकी सर्जनात्मकता आने वाले वर्षों में नई ऊंचाइयों को छुएगी और आप हमारे राष्ट्र तथा विश्व के लोगों को उत्कृष्ट तथा मूल्य आधारित मनोरंजन उपलब्ध करवाते रहेंगे।
धन्यवाद!
जयहिन्द।