राष्ट्रीय पुरस्कार, शिल्प गुरु पुरस्कार तथा संत कबीर पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान, भवन, नई दिल्ली : 09.11.2012
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आज, दक्ष शिल्पकारों तथा बुनकरों को राष्ट्रीय पुरस्कार, शिल्पगुरु पुरस्कार तथा संत कबीर पुरस्कार प्रदान करने के लिए, आप सबके बीच आना मेरे लिए प्रसन्नता का अवसर है।
मैं यहां उपस्थित सभी पुरस्कार विजेताओं को, हमारे देश की परंपरागत तथा सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने, उसको प्रोत्साहित करने तथा समृद्ध करने में उनके योगदान के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि आपकी कारीगरी को मिल रही इस मान्यता से दूसरे लोगों को कठोर परिश्रम करने तथा पूरे देश के दस्ताकारों तथा बुनकरों के लिए समृद्धि लाने के लिए आपके प्रयासों का अनुकरण करने की प्रेरणा मिलेगी।
हथकरघे हमारी राष्ट्रीय धरोहर के महत्त्वपूर्ण भाग हैं। यह समृद्ध विरासत हमारे उन पेशेवर कुशल बुनकर परिवारों द्वारा जीवित रखी गई है जो कि बुनाई की प्राचीन परंपरा से जुड़े हुए हैं। बुनकर कथाओं, विश्वासों, प्रतीकों तथा कल्पनाओं के कलापूर्ण मिश्रण से अपने कपड़े को सुरुचिपूर्ण चित्रात्मकता प्रदान करते हैं। हथकरघा की शक्ति उसके नवान्वेषी डिजायन में है जिनकी मशीन द्वारा नकल नहीं की जा सकती।
भारत के हर एक हिस्से, हर एक प्रांत, जिले तथा प्राय: हर एक गांव की अपनी एक प्रिय शिल्प परंपरा है। पत्थर तथा धातु से लेकर, मुलायम चंदन और पत्थर जैसी विभिन्न कच्ची सामग्रियों से हमारे कारीगर बहुत सुंदर वस्तुएं तैयार करते हैं। खास बात यह है कि ये सुंदर वस्तुएं हमारे लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। चाहे वे बांकुरा के महान मृत्तिकापात्र हों, या पश्चिम बंगाल की कशीदाकारी; मामल्लपुरम एलोरा या फिर कोणार्क की प्रस्तर मूर्तिकारी हो, दक्षिण की विश्व प्रसिद्ध कांस्य कला हो, हमारे पूर्वोत्तर में बनाए गए बेंत और बांस की वस्तुएं हों, ये सब हमारी सभ्यता के सामूहिक ताने-बाने का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सब उत्कृष्टता तथा उच्चतर सौंदर्यपरक अनुभूति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सदियों से हमारी कलात्मक गतिविधियों की विशेषता रही है।
आज के भारत में हस्तशिल्पों की प्रासंगिकता, हमारे इतिहास और सभ्यता में इसकी महान उपस्थिति तक ही सीमित नहीं है। यह तथ्य कि आज भी 6 मिलियन लोग कारीगरी से जुड़े हैं, इस बात का प्रतीक है कि हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इस सेक्टर का महत्त्व है। हमारी ग्रामीण जनता का बड़ा हिस्सा हस्तशिल्प तथा हथकरघा जैसी घर तथा कुटीर आधारित गतिविधियों से अपनी आजीविका प्राप्त करता है।
हमारे कृषि सेक्टर पर पहले ही बहुत अधिक दबाव पड़ रहा है इसलिए आय तथा रोजगार पैदा करने में हस्तशिल्प तथा हथकरघा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। हथकरघा सेक्टर की ताकत इसकी अनन्यता, उत्पादन में लचीलेपन, नवान्वेषण के लिए खुलेपन, आपूर्तिकर्ता की जरूरत के मुताबिक अनुकूलन की योग्यता तथा इसकी परंपराओं की बदौलत है। पावरलूम तथा मिल क्षेत्र से इसकी प्रतिस्पर्धा सस्ते आयातित वस्त्र की उपलब्धता, उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं तथा वैकल्पिक रोजगार के अवसरों ने हथकरघा क्षेत्र की जीवंतता को खतरा पैदा कर दिया है।
नई-नई चुनौतियों तथा बदलते वैश्विक परिवेश से प्राप्त अवसरों के बारे में जागरूकता की जरूरत है। इस स्थिति से जो अवसर और लाभ प्राप्त हो सकते हैं उनसे अधिकतम फायदा उठाने के लिए सघन प्रयास करने होंगे। हमें न केवल देश के अंदर बल्कि विश्व स्तर पर हो रहे बदलावों को अपनाना होगा। बुनाई की तकनीक का आधुनिकीकरण, आधुनिक उपकरणों, प्रौद्योगिकी तथा उपस्करों की प्राप्ति, अच्छी गुणवत्ता वाले धागों, रंगों तथा रसायनों जैसी सामग्री की समय पर प्राप्ति तथा एक मजबूत वाणिज्यिक ढांचा तैयार करने से न केवल अपेक्षित निवेश प्राप्त होगा बल्कि इससे बुनकरों तथा शिल्पकारों के उत्पाद अधिक प्रतिस्पर्धात्मक भी हो पाएंगे।
इसी के साथ, सरकार को भी ऐसी सहायक नीतियां बनानी होंगी जो कि हमारी अर्थव्यवस्था के इन दो सेक्टरों में टिकाऊ विकास को बढ़ावा दे सके।
भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में हाल ही की मंदी के कारण कठिन दौर से गुजर रही है। इस मंदी ने बहुत से सेक्टरों को प्रभावित किया है। हथकरघा तथा हस्तशिल्प सेक्टर मुख्यत: मानवीय निवेश से चलते हैं जिन्हें मशीन द्वारा आसानी से नहीं बदला जा सकता। यही, हमारे आकर्षक हथकरघा तथा हस्तशिल्प उत्पादों की बिक्री का विशिष्ट आकर्षण है। अपने कारीगरों तथा बुनकरों की अंतर्निहित क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिए हमें निरंतर यह प्रयास करना होगा कि भारत तथा विदेशों में स्थित बाजारों तक उनकी पहुंच बनाई जाए।
इसलिए, आज पुरस्कार प्रदान करना महज एक औपचारिकता नहीं है बल्कि यह अवसर सृजनात्मकता को बढ़ावा देने तथा भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भारत के बुनकरों तथा शिल्पकारों द्वारा दिए गए विशिष्ट योगदान को मान्यता प्रदान करने का भी अवसर है।
मुझे उम्मीद है कि जब आप अपने घरों को लौटेंगे, आप अपने साथ अपने कारीगर तथा बुनकर भाइयों के लिए एक उम्मीद की किरण भी लेकर जाएंगे। आप उनके लिए अपनी-अपनी कलाओं में उच्चतम शिखर तक पहुंचने में मार्गदर्शन देने के लिए पथप्रदर्शक का काम करेंगे जिससे एक दिन वे भी इसी तरह के पुरस्कारों को प्राप्त करने का गौरव प्राप्त कर सकें।
मैं एक बार फिर से उन सभी शिल्पकारों और बुनकरों को बधाई देता हूं जिन्होंने पुरस्कार जीते हैं तथा उनके सभी भावी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।
जय हिंद!