राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों के सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 07.11.2013
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मैं, पहली बार राष्ट्रपति भवन में आयोजित किए जा रहे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों के इस सम्मेलन में आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं।
आज हम, पूर्णत: स्वदेशी प्रयास मंगलायन मिशन के प्रक्षेपण के द्वारा अंतरिक्ष की खोज के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त करने के दो ही दिन बाद यहां एकत्रित हो रहे हैं। हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने यह बार-बार दिखा दिया है कि अपने दृढ़ निश्चय, नेतृत्व कठोर परिश्रम तथा संसाधनों के द्वारा भारत उन्नत प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैश्विक उत्कृष्टता प्राप्त करने में पूरी तरह सक्षम है। मुझे विश्वास है कि इसरो द्वारा प्रस्तुत उदाहरण का हमारे देश के अन्य बहुत से सेक्टरों में अनुकरण किया जा सकता है।
इंजीनियर जीवन के हर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मौलिक विज्ञानों के ज्ञान को उत्पादों में रूपांतरित करते हैं। वे ऐसे उर्वर-मस्तिष्क हैं जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा समाज के बीच सेतु का निर्माण करते हैं। वे देश की प्रौद्योगिकीय तथा औद्योगिक प्रगति में योगदान देते हैं। हमारे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान ऐसे विश्व स्तरीय इंजीनियरों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो न केवल अपने पेशे में कुशल हैं वरन् प्रौद्योगिकी के उन्नत क्षेत्रों में दक्षता प्राप्त करने, अपने देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार करने तथा हमारे देश की उपलब्धियों की नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति के मामले में भारत विश्व की तीसरी सबसे विशाल अर्थव्यवस्था है। विगत कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश द्वारा प्राप्त उच्च विकास दर विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की अन्य बहुत सी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले अधिक सहनशील रही है। यदि हमें बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में प्रस्ताव के मुताबिक प्रतिवर्ष 9 प्रतिशत की विकास दर हासिल करनी है तो हमें अनुकूल कारकों को जुटाना होगा, जिनमें उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सबसे प्रमुख है। विगत वर्षों के दौरान, हमने शिक्षा संस्थानों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया है। आज, भारत में उपाधि प्रदान करने वाले 659 संस्थान हैं और 33,023 कॉलेज हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या 2006-07 के 7 से बढ़कर 2011-12 में 15 हो गई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या 2006-07 के 20 से बढ़कर 2011-12 में 30 हो गई है। यह भी उल्लेखनीय है कि दस नए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से छह उत्तर-पूर्वी भारत में स्थित हैं।
देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश संख्या 2006-07 की 1.39 करोड़ से बढ़कर 2011-12 में 2.18 करोड़ हो गई है। 2006-07 की कुल प्रवेश संख्या में से इंजीनियरी का हिस्सा 13 प्रतिशत था। यह संख्या तबसे लगभग 25 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान इंजीनियरी की 25 प्रतिशत की वार्षिक दर किसी भी अकेले अध्ययन के क्षेत्र में सबसे अधिक रही है।
विशिष्ट निदेशको, देवियो और सज्जनो,
इस सम्मेलन की प्रेरणा कुलाध्यक्ष के तौर पर इस वर्ष के प्रारंभ में मेरे द्वारा आयोजित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन के सफल निष्कर्षों से प्राप्त हुई है। केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों के सम्मेलन के परिणमस्वरूप अनेक सिफारिशें प्राप्त हुई। इन्हें स्वयं कुलपतियों और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तेजी से अमल में लाया जा रहा है, जिससे मुझे विश्वास है कि फरवरी, 2014 में कुलपतियों के अगले सम्मेलन में हमारे मिलने तक बदलाव दिखाई देने लगेंगे।
मैं माननीय प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह की, जो स्वयं एक विख्यात शिक्षाविद हैं, आज यहां उपस्थिति के लिए धन्यवाद करता हूं। पिछले नौ वर्षों से उनके नेतृत्व में सरकार ने उच्च शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की है तथा अधिकाधिक संसाधनों को प्रदान कर सहयोग प्रदान किया है। मैं, मानव संसाधन विकास मंत्री, डॉ. एम.एम. पल्लम राजू द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में प्रदान किए गए उनके प्रेरक नेतृत्व की भी सराहना करता हूं।
भारत के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को देशभर में गुणवत्तापूर्ण इंजीनियरी शिक्षा के अभियान के नेतृत्व में एक प्रमुख भूमिका निभानी है। उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, हमारे यहां विश्व स्तर के कुछ ही संस्थान हैं। यदि हम अपने अतीत को देखें तो हम पाएंगे कि भारत की प्राचीन विश्वविद्यालय प्रणाली का ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर नालंदा के पतन तक 11वीं शताब्दी तक लगभग अठारह वर्षों तक विश्व पर प्रभुत्व रहा। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी जैसी प्रसिद्ध उच्च शिक्षा पीठ विश्वभर के विद्वानों के लिए आकर्षण का केंद्र थीं। हमें उसी स्थान को दोबारा प्राप्त करना है।
विशिष्ट निदेशको, देवियो और सज्जनो,
विश्व के सर्वोत्तम संस्थानों के समक्ष हमारे संस्थानों की स्थिति को सहजता से देखा जा सकता है। विश्वविद्यालयों की दो प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय वरीयताओं—द क्यू एस रैंकिंग और टाइम्स हायर एजूकेशन रैंकिंग में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय या संस्थान को सर्वोच्च 200 संस्थानों में स्थान हासिल नहीं हुआ है। पश्चिम के अग्रणी विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त, चीन, हांगकांग, ताइवान, ब्राजील, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और मलेशिया जैसे देशों के विश्वविद्यालयों का दर्जा भारतीय संस्थानों से ऊंचा रहा है। क्यू एस रैंकिंग में भारत में सबसे ऊंचा दर्जा प्राप्त भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली का 222वां संस्थान है। सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सहित केवल ग्यारह भारतीय संस्थानों ने क्यू एस की सूची में 700 संस्थानों की सूची में स्थान अर्जित किया है। एक भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इन संस्थानों में शामिल नहीं है। वरीयता प्रक्रिया को केवल वरीयता के लिहाज से ही गंभीरता से नहीं लेना चाहिए बल्कि इस सच्चाई के तौर पर लेना चाहिए कि उच्च वरीयता से हमें विश्व भर के सर्वोत्तम शिक्षकों को आकर्षित करने में मदद मिलती है, स्नातक विद्यार्थियों के बेहतर रोजगार की संभावना काफी बढ़ जाती है तथा निरंतर गुणवत्ता वृद्धि का एक मानदंड प्राप्त होता है।
बेल्जियम और तुर्की की मेरी हाल ही की यात्रा के दौरान, मेरे साथ केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष का एक शिष्टमंडल भी गया था। मैंने इस यात्रा का उपयोग इन विश्वविद्यालयों के अंतरराष्ट्रीय सहयोग के प्रयासों को गति प्रदान करने के लिए किया। कुलपतियों ने अपने समकक्षों के साथ विचार-विमर्श किया और उनमें से कई देशों के अग्रणी विश्वविद्यालयों के साथ भावी सहयोग पर समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने में कामयाब हुए। मैं भविष्य में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ भी ऐसी ही प्रक्रिया अपनाने की उम्मीद रखता हूं।
पाठ्यक्रम के नियमित संशोधन और उन्नयन, विकल्प आधारित अंक प्रणाली की शुरुआत, परीक्षा सुधार तथा उत्कृष्टता की संस्कृति प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। प्रत्येक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में कम से कम एक या दो विभागों को उत्कृष्टता केंद्रों के रूप में बदल जाना चाहिए। उद्योगों के साथ औपचारिक संयोजन किए जाने चाहिए ताकि पाठ्यक्रम और अनुसंधान पर उद्योग विशेषज्ञों के विचार नियमित रूप से मिलते रहें। उद्योगों के रुझानों के आधार पर इंजीनियरी कार्यक्रमों का भी आवधिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
सभी संस्थानों में शिक्षकों की कमी एक गंभीर समस्या है। प्राथमिकता के आधार पर मौजूदा रिक्तियों को भरा जाना चाहिए। शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात सही रखा जाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों पर अपेक्षित ध्यान दिया जा सके। शिक्षण की गुणवत्ता सुधारी जानी चाहिए तथा अध्यापन को प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए आकर्षक जीविकोपार्जन के विकल्प के रूप में तैयार किया जाना चाहिए। शिक्षकों को अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों, पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों और परियोजना कार्य में भाग लेने के लिए प्रोत्साहन और सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे व्यापक परिप्रेक्ष्यों और ज्ञान के आदान-प्रदान से लाभान्वित हो सकें।
विशिष्ट देवियो और सज्जनो,
प्रौद्योगिकी का उपयोग शिक्षा को प्रभावी रूप से उपलब्ध करवाने के लिए किया जाना चाहिए। प्रमुख क्षेत्रों में विशेषज्ञता का लाभ नेटवर्क विकसित करके उठाया जाना चाहिए। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन का उपयोग ऐसे प्रयासों को गति प्रदान करने के लिए किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों का सृजन करने वाले संस्थानों के रूप में, आपस में तथा अन्य तकनीकी और अनुसंधान संस्थानों के साथ संपर्क बनाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क में पन्द्रह सौ संस्थानों के बीच ऑप्टिकल फाइबर संयोजन की परिकल्पना की गई है। मैं समझता हूं कि 30 में से 28 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अब इस नेटवर्क में शामिल हैं तथा दो शामिल होने की प्रक्रिया में हैं। बाकी दो को भी अविलंब जोड़ दिया जाना चाहिए। मुझे बताया गया है कि राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के साथ कुछ संयोजन सम्बन्धी समस्याएं हैं। इसलिए भारत संचार निगम लिमिटेड को भी इस सम्मेलन में एक प्रतिनिधि भेजने के लिए कहा गया है। हमारे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को भारत और विदेश के अपने समकक्षों के साथ नियमित संवाद और सहयोग सुनिश्चित करना चाहिए। इसी प्रकार, उद्योग के साथ सहयोगपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए।
हमारे सभी संस्थानों में ऐसे श्रेष्ठ शिक्षक हैं जो युवाओं के विचारों को दिशा प्रदान कर सकते हैं। ऐसे शिक्षकों को वचन, कर्म और कार्यों से विद्यार्थियों को प्रेरित करना चाहिए और उन्हें निष्पादन और विचारशीलता के उच्च स्तर पर ले जाना चाहिए। वे अपने विद्यार्थियों में सही मूल्य पैदा करते हैं। ऐसे प्रेरक शिक्षकों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्हें विशाल अकादमिक समुदाय के साथ जानकारी और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में अनुसंधान और नवान्वेषण पर बल दिए जाने की जरूरत है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के 71000 की कुल विद्यार्थी संख्या में से मात्र 4000 पीएचडी के विद्यार्थी हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में 60000 विद्यार्थियों में से 3000 पीएचडी के विद्यार्थी हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रकाशन के मामले में सर्वोच्च 20 देशों में भारत का स्थान 12वां है। चीन के 715 और अमरीका के 460 की तुलना में हमारे यहां प्रति दस लाख लोगों पर 119 अनुसंधानकर्ता हैं। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन देने के लिए स्पष्ट कार्यनीति बनानी चाहिए जिससे नवान्वेषण और पेटेंट किए जा सकें।
संसाधन की कमियों से जूझ रहे विश्व में विकास धीरे-धीरे प्रौद्योगिकी उन्नयन पर आधारित होता जाएगा। विश्वभर की सरकारें नवान्वेषण के प्रोत्साहन के लिए ठोस प्रयास कर रही हैं। भारत ने भी 2010-20 को नवान्वेषण दशक घोषित किया है। नवान्वेषण आधारित विकास के लिए एक विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति का निर्माण किया गया है। इस नीति के लिए ऐसा पारितंत्र तैयार करने की आवश्यकता है जिसमें नवान्वेषण कार्यकलाप फल-फूल सकें।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे इंजीनियरी संस्थानों को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति की सफलता के लिए कार्य करने चाहिए। जमीनी स्तर के नवान्वेषकों को विचारों को उपयोगी उत्पाद में बदलने के लिए उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए ताकि जनसाधारण लाभान्वित हो सके। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में ऐसे नवान्वेषण क्लबों की स्थापना की सिफारिश की गई जो अपने आसपास के जमीनी नवान्वेषकों के साथ संपर्क के लिए शिक्षकों व विद्यार्थियों हेतु एक मंच के रूप में कार्य करे। अधिकांश केंद्रीय विश्वविद्यालयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने पहले ही ऐसे क्लब खोल दिए हैं। मुझे उम्मीद है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भी इसका अनुकरण करेंगे।
सरकार ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के व्यापक सुधारों पर सिफारिश के लिए डॉ. काकोदकर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है। डॉ. काकोदकर सम्मेलन में एक मार्गदर्शक खाका प्रस्तुत करेंगे जिसे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को उत्कृष्टता केंद्र में बदलने के लिए अपनाया जा सके। मानव संसाधन विकास मंत्री ने जानकारी दी है कि सरकार ने समिति की प्रमुख सिफारिशों को मान लिया है। मुझे उम्मीद है कि इन दो दिनों में विचार-विमर्श के दौरान इंजीनियरी शिक्षा और ज्ञान विकास के सभी मापदण्डों में गुणवत्ता सुधार के लिए आवश्यक कार्यनीतियों पर ध्यान दिया जाएगा।
मुझे उम्मीद है कि दो दिवसीय विचार विमर्श के बाद, हम ठोस निष्कर्षों पर पहुंचेंगे जिन पर आगे कार्य किया जा सके। कार्यान्वयन के लिए एक समयबद्ध कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए। इसके कार्यान्वयन पर प्रगति की समीक्षा अगली बैठक में की जाएगी।
अंत में, मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि आने वाले वर्षों के दौरान भारत की सबसे बड़ी ताकत इसकी जनसंख्या संबंधी बढ़त होगी। हमारी 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है तथा शीघ्र ही विश्व की कामकाजी जनसंख्या का पांचवां हिस्सा हमारे देश में होगा। तथापि हम इस बढ़त पर ऐसे ही निर्भर नहीं कर सकते। हमें अपने युवाओं को आवश्यक कौशल और नौकरियां प्रदान करनी होंगी। सरकार उच्च शिक्षा में बड़ी मात्रा में संसाधनों का निवेश कर रही है। मात्रा में अत्यधिक वृद्धि के प्रयासों के बराबर ही गुणवत्ता में वृद्धि के प्रयास होने चाहिए। हमें अपने संस्थानों को विश्व के इसी तरह के सर्वोत्तम संस्थानों की श्रेणी में पहुंचाना होगा।
मैं, भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी, आप सभी से तात्कालिकता के साथ इस कार्य पर पूरे मन से ध्यान देने का आग्रह करता हूं। मैं इस संबंध में आपको सरकार के पूरे सहयोग का आश्वासन देता हूं।
धन्यवाद, जय हिंद!