राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुचिरापल्ली के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण
तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु : 19.07.2014
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1. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुचिरापल्ली के स्वर्ण जयंती समरोहों के उद्घाटन के अवसर पर आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं इस शानदार अवसर पर तकनीकी शिक्षा के इस उत्कृष्ट केन्द्र से जुड़े हर एक व्यक्ति को बधाई देता हूं।
2. मुझे इंजीनियरी के कारनामों के लिए प्रसिद्ध इस ऐतिहासिक शहर तिरुचिरापल्ली की यात्रा करने के लिए इस अवसर का उपयोग करके भी प्रसन्नता हुई है। ईसा की दूसरी शताब्दी में चोल राजा करिकला चोल द्वारा कावेरी नदी पर निर्मित ग्रांड एनीकट अथवा कलानाई बांध विश्व में प्राचीनतम जल नियामक बांध माना जाता है। तंजावुर का मंदिर परिसर देश का एक विशालतम परिसर है, ग्रेनाइट की अकेली चट्टान से निर्मित इसका 90 टन वजन का बुर्ज इंजीनियरी का एक और कारनामा है। दो सौ वर्ष पूर्व विकसित स्वामीमलाई का पारंपरिक मूर्ति निर्माण, आजकल उन्नत गैस टरबाइन इंजनों के लिए अपनाई जा रही निवेश ढलाई प्रौद्योगिकी का आधार है। तिरुचिरापल्ली, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, आयुध निर्माणी, भारतीय रेल की यांत्रिकी कर्मशाला तथा अनेक सहायक उद्योगों जैसे महत्वपूर्ण इंजीनिरी प्रतिष्ठानों की मौजूदगी से आज एक व्यस्त औद्योगिक स्थल बन गया है।
देवियो और सज्जनो,
3. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुचिरापल्ली हमारे देश का एक सर्वोच्च तकनीकी विद्यालय तथा इंजीनियरों का एक सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। पहले क्षेत्रीय इंजीनियरी कॉलेज के नाम से पुकारे जाने वाले इस संस्थान की शुरुआत 1964 में की गई थी। इसके प्रथम प्रधानाचार्य, प्रो. पी.एस. मणिसुंदरम एक स्वप्नद्रष्टा थे जिन्होंने मामूली शुरूआत से इस कॉलेज को खड़ा किया। आपके जैसे पुराने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों का उद्गम खोजने पर, 1947 के बाद के आधुनिक औद्योगिक भारत की शुरुआत के साथ उसकी तुलना की जा सकती है, जब इस्पात संयंत्र, तेलशोधक संयंत्र, बांध तथा भारी इंजीनियरी उद्योगों की स्थापना की जा रही थी। ये अधिकांश राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान स्थानीय विकास को बढ़ावा देने के मकसद से ग्रामीण स्थलों अथवा हरित औद्योगिक स्थलों पर स्थापित किए गए थे। आपका संस्थान, जिसे भेल के निकट स्थापित किया गया उनमें से एक था। ऐसी संकल्पना ने उद्योग तथा तकनीकी संस्थान के ऐसे जीते-जागते पारितंत्र को तैयार किया, जिससे घनिष्ठ आदान-प्रदान को प्रोत्साहन मिला। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने इन बहुत से वर्षों के दौरान उल्लेखनीय प्रगति की है। अपने स्थापना काल से विदेशी संस्थानों की मदद के बिना उनकी तरक्की मुख्यत: स्वदेशी प्रयासों का परिणाम था, जो वास्तव में सराहनीय है।
4. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान प्रणाली का एक अन्य उल्लेखनीय पहलू इसके विद्यार्थियों का मिश्रण है जिसे जानबूझकर राष्ट्रीय स्वरूप दिया गया है, जिससे प्रत्येक परिसर एक सूक्ष्म भारत बन गया है। ये प्रतिभावान विद्यार्थी जो भावी इंजीनियर और वैज्ञानिक हैं हमारे राष्ट्र की पूंजी हैं। उनसे हमें बहुत सी आशाएं और अपेक्षाएं हैं। मुझे विश्वास है कि इस संस्थान के विद्यार्थियों सहित विद्यार्थी अपने दायित्वों को भली-भांति समझेंगे। वे सदैव एक दायित्व भावना के साथ अपने देशवासियों के कल्याण तथा राष्ट्र के विकास के प्रति अपना कर्तव्य निभाएंगे।
देवियो और सज्जनो,
5. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भारत की इंजीनियरी शिक्षा के अग्रणी संस्थान हैं। तथापि, विश्वविद्यालयों के विख्यात अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अनुसार, भारतीय संस्थान सर्वोच्च दो सौ संस्थानों में शामिल नहीं हैं। सितम्बर, 2012 से मैं उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ अपनी बातचीत के दौरान इस प्रदर्शन पर चिंता व्यक्त करता आ रहा हूं तथा रेटिंग प्रक्रिया को गंभीरता से लेने की आवश्यकता को दोहराता आ रहा हूं। इसलिए यह देखना उत्साहजनक है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने हमारे संस्थानों की गुणवत्ता को पहचानना आरंभ कर दिया है। हमारे कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान सिविल एवं इलैक्ट्रिकल इंजीनियरों के क्षेत्र में 50 सर्वोत्तम संस्थानों में शामिल हैं। पांच संस्थान ब्रिक्स देशों के 20 सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में शामिल हैं। सर्वोत्तम 100 एशियाई संस्थानों में भारतीय संस्थानों की संख्या जो 2013 में 3 थी इस वर्ष बढ़कर 10 हो गई है। मुझे विश्वास है कि हमारे संस्थान इन शुरुआती सफलताओं को समग्र रैंकिंग में दोहराएंगे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खासकर आपके संस्थान को सफल भारतीय संस्थानों से यह सीखना चाहिए कि वह रेटिंग प्रणाली का कैसे पालन करें। अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग मंा आने से कई लाभ होते हैं जिसमें जहां कुछ संकल्पनात्मक लाभ हैं जैसे विद्यार्थियों एवं संकाय का मनोबल बढ़ना, वहीं कुछ ठोस लाभ भी हैं जैसे कि विद्यार्थियों को बेहतर रोजगार उपलब्ध होना। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रैंकिंग प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी से संस्थानों का विकास सही दिशा में हो पाएगा।
6. भारत, हाल ही में वाशिंगटन संधि का स्थाई सदस्य बन गया है, जो कि पेशेवर इंजीनियरी की उपाधियों के लिए 17 देशों का अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन करार है। मैं भारत को इस विशिष्ट शैक्षिक समूह में शामिल करने में इस संस्थान सहित सभी के प्रयासों की सराहना करता हूं। भारत की प्रतिभागिता से हमारी उपाधियों को वैश्विक मान्यता मिलेगी तथा हमारे इंजीनियरों की गतिशीलता में वृद्धि होगी। इससे हमारे तकनीकी स्कूलों पर गुणवत्ता के वैश्विक मापदंडों को अपनाने की जिम्मेदारी आएगी। यही असली परीक्षा होगी।7. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के सम्मुख चुनौतियों की पहचान करने तथा कार्यनीतियां तैयार करने के लिए, गत वर्ष राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। मुझे उम्मीद है कि सम्मेलन में दिए गए सुझावों को समयबद्ध तरीके से अमल में लाया जा रहा है। शिक्षकों के अभाव को दूर करने के लिए शिक्षकों के रिक्त पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरा जाना चाहिए तथा अल्पकालिक आधार पर उद्योग, प्रयोगशालाओं तथा विदेशी विश्वविद्यालयों से विशेषज्ञों को नियुक्त करके बाहरी प्रतिभा का समावेश किया जाना चाहिए। शैक्षिक पाठ्यक्रम उद्योग केन्द्रित होना चाहिए। स्थानीय उद्योग तथा उद्योग संघों के साथ संपर्क के लिए उद्योग संयोजन सेल स्थापित किया जाना चाहिए।
8. परिसर से बाहर ज्ञान के आदान-प्रदान तथा बौद्धिक सहयोग के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्क का प्रयोग किया जाना चाहिए। विचारों का उपयुक्त आदान-प्रदान तथा ज्ञान सीमाओं के विस्तार के लिए शैक्षिक सहयोग आवश्यक है। यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुचिरापल्ली का सक्रिय सहयोग, जाने-माने वैश्विक विश्वविद्यालयों के साथ है जो कि विद्यार्थियों के भविष्य के लिए शुभ संकेत है।
9. बुनियादी ढांचे के तेजी से उन्नयन द्वारा विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। व्याख्यानों तथा ट्यूटोरियल के तीव्र विस्तार के लिए ई-कक्षाएं उपलब्ध करवानी होंगी। मुझे बताया गया है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुचिरापल्ली वर्चुअल परिसर की अवधारणा पर कार्य कर रहा है, जिसे कार्यान्वित किए जाने पर बेहतर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अधिक पहुंच हो पाएगी।
देवियो और सज्जनो,
10. ज्ञान और नवान्वेषण इक्कीसवीं सदी में प्रगति एवं समृद्धि के आधारस्तंभ हैं। वैश्वीकरण के इस दौर में हम केवल ऐसे परिवेश से प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त कर सकते हैं जो सीखने, अनुसंधान तथा नवान्वेषण में सहायक हो। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को अपने विद्यार्थियों में वैज्ञानिक अभिरुचि को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने चाहिए। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस संस्थान ने संक्षारण तथा सतह इंजीनियरी, सुरक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा तथा पर्यावरण जैसे नवीन क्षेत्रों में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं।
11. नवान्वेषण का प्रयोग सेतु के रूप में करते हुए, हमें एक उन्नत राष्ट्र के रूप में शामिल होने के लिए पर्याप्त प्रौद्योगिकी दक्षता हासिल करनी चाहिए। तथापि, हमारे देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के मद्देनजर अनुसंधान का जोर पिछड़ापन खत्म करने तथा अभावों का उन्मूलन करने पर होना चाहिए। नवान्वेषण से ऐसे वंचितों की स्थिति में सुधार आना चाहिए जो अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं। आपके जैसे संस्थानों को उन स्वदेशी विचारों को बढ़ावा देना चाहिए जो सामाजिक-आर्थिक पायदान पर प्रगति करने के लिए प्रयासरत लोगों को - जैसे कि किसान को बेहतर ढंग से खेती करने में, कारीगर को अपनी कला में महारत हासिल करने में तथा छोटे उद्यमी को अपने उद्यम की उत्पादकता में सुधार करने में बेहतरी का भरोसा दें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस संस्थान में ग्रामीण इलाकों में उपयोग हेतु आधुनिक तथा किफायती प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए ग्रामीण प्रौद्योगिकी केन्द्र है।
12. ऐसे विश्व स्तरीय, पेशेवर रूप से सुयोग्य इंजीनियरों को तैयार करने के लिए हमारी उम्मीदें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा अन्य तकनीकी संस्थानों पर टिकी हुई हैं जो न केवल भारत को प्रौद्योगिकी के नए शिखर पर ले जाएंगे बल्कि हमारे देशवासियों के जीवन स्तर में भी सुधार लाएंगे। इसलिए, हमें अपने उदीयमान इंजीनियरों में समाज के बारे में समझ पैदा करनी चाहिए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस संस्थान के विद्यार्थियों को, अनाथालयों तथा जरूरतमंदों को सेवा प्रदान करने वाली जॉय ऑफ गिविंग जैसी पहल के माध्यम से बाहरी दुनिया से परिचित करवाया जा रहा है। स्वामी विवेकानंद के ये शब्द सदैव याद रखिए, ‘जो शिक्षा जीवन के संघर्ष के लिए आम आदमी को तैयार करने में मदद नहीं करती, जो चारित्रिक बल, परोपकार की भावना तथा सिंह जैसा साहस पैदा नहीं करती... क्या वह किसी काम की है?’
13. मैं एक बार पुन: आप सभी को इस खुशी के अवसर पर बधाई देता हूं। मैं आपको भविष्य के लिए भी शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जयहिन्द !