राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन,नई दिल्ली : 11.05.2013 : 11.05.2013

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rvराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस 2013 के समारोह में भाग लेने के लिए आपके बीच आना मेरे लिए गौरव का विषय है। यह दिवस उस महत्त्व का प्रतीक है जो सरकार देश की प्रौद्योगिकीय क्षमताओं के विकास को प्रदान करती है।

एक बड़ी प्रौद्योगिकी शक्ति के रूप में उभरने की भारत की यात्रा चुनौतीपूर्ण रही है। मैं इस अवसर पर अपने वैज्ञानिकों, इंजीनियरों तथा प्रौद्योगिकीविदों को बधाई देता हूं और कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं, जिनके ईमानदार प्रयासों, अथक प्रतिबद्धता तथा समर्पित दृष्टि ने बहुत-सी कठिनाइयों के बावजूद, हमें उच्च प्रौद्योगिकीय क्षमताओं से संपन्न देश की हैसियत पाने में सहायता दी।

वैश्वीकरण ने व्यवसाय के नियमों को पुन: परिभाषित कर दिया है। प्रतिस्पर्धात्मक वैश्विक बाजार में केवल वही कंपनियां बनी रहने की अपेक्षा कर सकती हैं जो अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक और लचीली हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हममें प्रतिस्पर्धा करने, नवान्वेषण करने तथा समय पर सुपुर्दगी की क्षमता है। यदि हमारी प्रणालियां सुदृढ़ और मजबूत होंगी तो विश्व हमारा आदर करेगा और हमारे साथ कार्य करने के लिए तैयार रहेगा। इस संदर्भ में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस का इस वर्ष का विषय ‘नवान्वेषण—कुछ बदलाव के लिए’ समयानुकूल और उपयुक्त है।

नवान्वेषण को भविष्य की पूंजी के रूप में अधिकाधिक मान्यता मिल रही है। इससे व्यवसाय में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलता है तथा कारगर शासन का समाधान प्रस्तुत करता है। इसलिए यह कोई हैरत की बात नहीं है कि विश्व भर में सरकारें नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने के लिए सुव्यवस्थित प्रचार कर रही हैं। भारत में 2010-20 के दशक को नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। हमने इस वर्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति तैयार की है, जिसका लक्ष्य नवान्वेषण आधारित विकास है। इस नीति के तहत एक ऐसे पारितंत्र की जरूरत बताई गई है जिसके अंदर हमारे देश में नवान्वेषण गतिविधियों में वृद्धि हो। इसमें जमीनी स्तर के नवान्वेषकों सहित, ऐसे नवान्वेषकों को प्रोत्साहन तथा मान्यता देने की जरूरत बताई गई है जिन्होंने अपनी प्रतिभा से आम आदमी के फायदे के लिए प्रक्रियाओं में मूल्य संवर्धन किया है।

इस नीति में हमारे अनुसंधान एवं विकास प्रणाली के ढांचे को भी सही आकार का बनाने की जरूरत का भी ध्यान रखा गया है। भारत में नवान्वेषण बहुत उत्साहजनक नहीं है क्योंकि अमरीका तथा चीन जैसे प्रमुख देशों में प्रति वर्ष भारत के मुकाबले 12 गुणा के करीब, आवेदन पेटेंट के लिए प्रस्तुत होते हैं। भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.9 प्रतिशत अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है जो कि चीन, यू.के. और इजरायल के मुकाबले बहुत कम है। हमें बड़े पैमाने पर नवान्वेषण के लिए अनुसंधान पर खर्च को बढ़ाना चाहिए। निजी सेक्टर को भी, जो कि हमारे देश के अनुसंधान एवं विकास के खर्च में एक चौथाई योगदान करता है, जापान, अमरीका तथा दक्षिण कोरिया जैसे देशों के स्तर पर अपना हिस्सा ले जाने के लिए अपने खर्च में वृद्धि करनी चाहिए।

नवीन ज्ञान अर्थव्यवस्था में भारत की भावी समृद्धि, अधिक से अधिक नूतन विचारों, नवीन प्रक्रियाओं तथा समाधानों के सृजन पर निर्भर करेगी। नवान्वेषण की प्रक्रिया ज्ञान को सामाजिक कल्याण और आर्थिक समृद्धि में बदल देगी। वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में भारत को अपनी क्षमता, उत्पादकता, दक्षता और समावेशी विकास को प्रोत्साहन देने के लिए नवान्वेषण की अपनी क्षमता का उपयोग करना होगा। भारत तथा इसके लोगों की नवान्वेषण की क्षमता को भारत की प्रगति तथा विकास प्रक्रिया का अंग बनना होगा। और इसके लिए नवान्वेषण की भावना को विश्वविद्यालयों, व्यवसायों तथा सरकार तक, अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों तथा जनता में सभी स्तरों तक पहुंचना होगा।

भारत की आज कई खूबियां हैं। मजबूत अनुसंधान एवं विकास आधार तथा अकादमिक प्रतिभा के बल पर इसमें बायोटेक्नोलॉजी, फार्मास्यूटिकल, ऑटोमेटिक पुर्जों, सूचना प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर तथा सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं जैसे प्रमुख आर्थिक सेक्टरों में अग्रणी नवान्वेषणकर्ता होने की क्षमता मौजूद है। तथापि, भारत के 300 मिलियन के लगभग नागरिक गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। विकास पहलों की पहुंच के मामले में बड़ी असमानताएं मौजूद हैं और यही विरोधाभास भारत को बहुत से अवसरों का तथा बहुत सी समस्याओं का देश बना देता है। मेरा मानना है कि भारत, सतत् समावेशी विकास की चुनौती का सामना, नवान्वेषण तथा प्रौद्योगिकी को विकास के प्रमुख कारक तथा सहयोगी बनाकर कर सकता है।

देवियो और सज्जनो, हमारी लोकतांत्रिक राज व्यवस्था की जरूरतें और अपेक्षाएं अन्य देशों से अलग हैं, नवान्वेषण के बारे में हमारी प्राथमिकताएं हमारी सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। इसलिए भारतीय नवान्वेषण संबंधी कार्यनीति कुछ हटकर होनी चाहिए। इसमें ऐसे विचारों को सृजित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो समावेशी विकास को बढ़ावा दें और सामाजिक आर्थिक पायदान पर सबसे नीचे मौजूद लोगों को लाभ पहुंचाएं। सतत् विकास कार्यनीति बनाने के लिए हमें समावेशी नवान्वेषण पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

हमने एक नवान्वेषण पारितंत्र सृजित करने की दिशा में कदम उठाए हैं। नवान्वेषण कार्ययोजना बनाने तथा देश में नवान्वेषण अभियान को सहायता देने के लिए हमारे पास राष्ट्रीय नवाचार परिषद, राज्यों की नवाचार परिषदों तथा सेक्टरों की नवाचार परिषदों के साथ एक संस्थागत ढांचा मौजूद है। सार्वजनिक तथा निजी सेक्टर की सहभागिता के साथ 5000 करोड़ रुपए की समावेशी नवान्वेषण निधि की परिकल्पना की गई है। इससे ऐसे समाधानों को डिजायन करने के प्रयासों को प्रोत्साहन मिलगा जो गरीबों के लिए जीविकोपार्जन के अवसर पेश करेंगे और उनके कौशल का विकास करेंगे। नवान्वेषण एजेंडे को आगे ले जाने के लिए देश में बीस नवान्वेषण संकुल स्थापित किए जा रहे हैं। मुझे बताया गया है कि नवान्वेषणों के अभिरक्षक तथ विचारों के आदान-प्रदान के मंच के रूप में कार्य करने के लिए एक भारत नवान्वेषण पोर्टल भी तैयार किया जा रहा है।

नवान्वेषण गतिविधियों को सहयोग देने के लिए मजबूत पारितंत्र बनाने के लिए सभी भागीदारों का उत्साहपूर्ण सहयोग और समर्पित सहभागिता जरूरी होगी। इस तरह के प्रयासों में सार्वजनिक क्षेत्र, निजी सेक्टर, शिक्षा सेक्टर और हमारे सामान्य नागरिकों को स्वैच्छिक सहयोग करना चाहिए। इन प्रयासों के लिए कोई बड़ा मंच जरूरी नहीं है और इसे घर, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय अथवा कार्यस्थल से शुरू किया जा सकताहै। यह जरूरी है कि युवा मस्तिष्कों को नवान्वेषण की भावना से भरा जाए। हमें उन्हें, अपनी उत्सुकता तथा सर्जनात्मकता पर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हमें उनको कुछ नया सृजित करने के आकर्षण की खोज में सहायता करनी चाहिए।

इस वर्ष आयोजित, कुलपति सम्मेलन में, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और विद्यार्थियों तथा परिसर के आसपास रहने वाले जमीनी नवान्वेषकों के बीच विचार-विमर्श की सुविधा प्रदान करने के लिए नवान्वेषण क्लबों की स्थापना की सिफारिश की गई थी। कल, मुझे बाबा साहब अम्बेडकर विश्वविद्यालय में इस तरह के प्रथम क्लब का उद्घाटन करने का अवसर मिला। मुझे उन नवान्वेषणों से को देखकर खुशी हुई जो युवाओं द्वारा किए गए थे। मुझे विश्वास है कि बाबा साहब अंबेडकर विश्वविद्यालय द्वारा शुरू की गई पहल सभी 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों तक पहुंचेगी।

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर, मैं सभी नागरिकों से यह शपथ लेने का आग्रह करता हूं कि वे नवान्वेषण को जीवन शैली बनाएंगे।

अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि विचारों में नवान्वेषण, प्रयासों में नवान्वेषण तथा सर्वव्यापी नवान्वेषी भावना से ही, तेजी से बदलते ऐसे विश्व में हमारी स्थिति और हैसियत बनी रह सकती है, जिसमें रोज प्रौद्योगिकी पुरानी पड़ जाती है। मुझे विश्वास है कि हमारे देशवासी आगे बढ़कर इस चुनौती का सामना करेंगे और भारत को उच्च प्रौद्योगिकी से सम्पन्न देश बनाएंगे।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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