राजीव गांधी विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण का अंश

दोईमुख, अरुणाचल प्रदेश : 30.11.2013

डाउनलोड : भाषण राजीव गांधी विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण का अंश(हिन्दी, 238.97 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Twelfth Convocation of the Rajiv Gandhi University 1. मुझे, अरुणाचल प्रदेश में उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थान, राजीव गांधी विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर बहुत प्रसन्नता हो रही है।

2. देश के सबसे पूर्व में स्थित इस सुंदर राज्य की यात्रा के अवसर का सदुपयोग करके भी मुझे खुशी हो रही है। इस राज्य को ‘प्रकृति का खजाना’ कहा गया है। प्रकृति द्वारा न्यौछावर प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही यहां के लोगों के गीत, नृत्य तथा शिल्पकारी भी शानदार है। अरुणाचल एक ऐतिहासिक भूमि है। इसके नाम का उल्लेख कालिकापुराण तथा महाभारत में मिलता है। इस भूमि पर तवांग बौद्ध मठ तथा परशुरामकुंड जैसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। अरुणाचल प्रदेश भारी बदलावों के मुहाने पर है। आर्थिक सेक्टर, खासकर जलविद्युत सेक्टर तथा पर्यटन में इस राज्य के विकास को गति प्रदान करने की क्षमता है। शिक्षा को इस बदलाव में सहायक बनना होगा।

3. 1984 में स्थापित, राजीव गांधी विश्वविद्यालय ने देश के इस भाग के कई हजार युवाओं को शिक्षा प्रदान की है। इसने गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा के लिए जरूरी अवसंरचनात्मक तथा बौद्धिक संसाधन सृजित किए हैं। इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों तथा प्रसार कार्यक्रमों ने इस क्षेत्र की सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक, जातीय तथा भौगोलिक जरूरतों को पूरा किया है। अपने संबद्ध कॉलेजों और परास्नातक विभागों के द्वारा इस विश्वविद्यालय ने शिक्षण-अभिगम नवान्वेषण तथा गुणवत्तायुक्त अनुसंधान पर स्पष्ट प्रभाव डाला है। मैं कुलपति तथा विश्वविद्यालय की पूरी शिक्षण एवं प्रशासनिक टीम को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देता हूं।

प्रिय विद्यार्थियो,

4. मैं, आप सभी को बधाई देता हूं जिनको विश्वविद्यालय ने आज उपाधियां प्रदान की हैं। दीक्षांत समारोह किसी भी विश्वविद्यालय के अकादमिक कैलेंडर का एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता है। यह स्नातक की उपाधि पा रहे विद्यार्थियों में पहचान की भावना पैदा करता है। यह श्रम तथा समर्पण के द्वारा प्राप्त आपकी सफलता को मान्यता प्रदान करने का दिन है। यह आपके उन परिजनों और मित्रों के लिए भी स्मरणीय दिन है जिन्होंने हर उतार-चढ़ाव में आपका साथ दिया है। दीक्षांत दिवस पर प्रत्येक पीढ़ी अपने उस ज्ञान, संस्कृति, प्रतिभा को नई पीढ़ी को प्रदान करने के प्रति पुन: शपथ लेती है जो उन्होंने विश्वविद्यालय के इस गरिमामय परिसर में प्राप्त किया है। यह उस उत्तरदायित्व की याद दिलाता है जो स्नातक तथा विद्वानों के रूप में आपका इंतजार कर रहा है। डॉ. एस. राधाकृष्णन् ने कहा था, ‘‘शिक्षा का उद्देश्य सूचना प्राप्त करना, हालांकि यह महत्त्वपूर्ण है, अथवा तकनीकी कौशल प्राप्त करना, यद्यपि आधुनिक समाज में यह जरूरी है, नहीं है वरन् मस्तिष्क में ऐसी अभिरुचि, ऐसा चिंतन, लोकतंत्र का ऐसा जज्बा पैदा करना है, जो हमें जिम्मेदार नागरिक बनाता है।’’ ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें इस देश में कॉलेजों अथवा विश्वविद्यालयों के दरवाजों के अंदर जाने का भी मौका नहीं मिला। जिस समाज ने आपकी शिक्षा पर निवेश किया है, उसे आपसे लाभांश प्राप्त करने का हक है। आप इसे अपने कम भाग्यशाली भाइयों की सहायता करके लौटा सकते हैं। आप अपने साहस, पहल तथा कौशल से अपने देश का भविष्य संवार सकते हैं।

5. शिक्षा किसी भी जागरूक समाज का आधारस्तंभ होती है। यह एक ऐसी आधारशिला होती है, जिस पर एक प्रगतिशील, लोकतांत्रिक समाज खड़ा होता है—जहां कानून का शासन होता है, जहां दूसरों के अधिकारों के लिए सम्मान होता है। अच्छी शिक्षा अलग नजरियों के प्रति सहनशीलता पैदा करती है। हमारे देश ने आर्थिक विकास के लिहाज से अच्छी प्रगति की है। परंतु हम एक वास्तविक विकसित समाज के रूप में विकसित होने का दावा नहीं कर सकते। विकास केवल, फैक्ट्रियों, बांधों तथा सड़कों के बारे में नहीं है। मेरे विचार से, विकास लोगों के, उनके मूल्यों के तथा हमारे देश के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनकी समर्पण के बारे में है। ऐसे समय में जब हमें वर्तमान नैतिक चुनौतियों पर विजय पाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ रहे हैं; केवल सर्वांगीण शिक्षा हमारे मूल्यों को स्वरूप देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हमारे शिक्षण संस्थानों को हमारे युवाओं में मातृभूमि से प्रेम; दायित्व का निर्वाह; सभी के लिए करुणा; बहुलवाद के प्रति सहनशीलता; महिलाओं का सम्मान, जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मसंयम; कार्यों में जिम्मेदारी तथा अनुशासन के बुनियादी सभ्यतागत मूल्यों का समावेश करने में प्रमुख भूमिका निभानी है।

मित्रो,

6. भारतीय सभ्यता की अत्यंत प्राचीन ज्ञान परंपरा है। हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय—तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी, सोमापुरा तथा ओदांतपुरी, ज्ञान के प्रख्यात केंद्र थे तथा यहां बाहर से विद्यार्थी आते थे। आज हमारे विश्वविद्यालय विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों से पीछे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, भारत का कोई भ्ी विश्वविद्यालय अथवा संस्थान सर्वोच्च दो सौ स्थानों पर नहीं है। हम ऐसी शिक्षा प्रणाली बनाए रखने का जोखिम नहीं उठा सकते जो अंतरराष्ट्रीय मानकों से थोड़ा भी नीचे हो। भारत विश्व शक्ति बनने के कगार पर है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में हमारा नेतृत्व हमारे वैज्ञानिकों, शिक्षकों, इंजीनियरों, तथा चिकित्सकों के कौशल पर निर्भर है। इसलिए हमें अपने देश की उच्च शिक्षा के स्तर में गिरावट को उच्च प्राथमिकता देकर सुधारना होगा।

7. शिक्षकों की कमी को प्राथमिकता से पूरा करना होगा। उच्च प्रतिभाशाली शिक्षक भर्ती किए जाने चाहिए। शिक्षण के पेशे को मेधावी विद्या्रर्थयों के लिए आकर्षक बनाया जाना चाहिए। प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक प्रयोग करके नवान्वेषी शिक्षण पद्धतियां अपनाई जानी चाहिए। उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हर एक विश्वविद्यालय को ऐसे एक या दो विभागों को चिह्नांकित करना चाहिए जिसमें उनकी खास कुशलता है तथा उन्हें उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित करना चाहिए।

मित्रो,

8. समाज के ज्ञान की सीमाओं के विस्तार में अनुसंधान की अहम भूमिका है। यह नवचिंतन को प्रोत्साहित करता है। इसके परिणामस्वरूप समाज के समक्ष खड़ी विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए नवीन और संभवत: बेहतर दिशा मिलती है। भारतीय विश्वविद्यालयों में अनुसंधान की गुणवत्ता में बहुत सुधार की जरूरत है। बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए अनुसंधान की सुविधाओं को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उच्चीकृत करना होगा। विद्यार्थियों में अनुसंधान अभिरुचि का विकास करना होगा। युवा प्रतिभाओं में नवान्वेषण का जज्बा पैदा करना होगा। विश्वविद्यालयों को अनुसंधानकर्ता के लिए अपनी जिज्ञासा तथा सृजनात्मकता को संतुष्ट करने के लिए महत्त्वपूर्ण मंच बनना चाहिए।

9. विश्वविद्यालय को किसी एक ऐसे अनुसंधान क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा जिसमें यह अनुसंधान करना चाहता है। प्राकृतिक संसाधनों तथा जैव विविधता से समृद्ध, पूर्वोत्तर भारत में नवान्वेषी अनुसंधान के काफी अवसर मौजूद हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अति दोहन से पर्यावरण को क्षति पहुंचती है तथा इससे दीर्घकालीन अस्थिरता फैलती है। आप पर ऐसे वैकल्पिक विकास मॉडल तैयार करने का दायित्व है जो सतत् हों। आपको प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर अंतर-विधात्मक अनुसंधन करने चाहिए। आपको पर्वतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों, परंपरागत एवं आधुनिक संस्थाओं के बीच संघर्ष, सीमा व्यापार संभावनाओं तथा देश और दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के साथ पूर्वोत्तार की अर्थव्यवस्था के एकीकरण पर अनुसंधान करने चाहिए। यह जानकर खुशी होती है कि राजीव गांधी विश्वविद्यालय के कुछ विभागों को अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है। मैं अपेक्षा करता हूं कि यह विश्वविद्यालय इस क्षेत्र के तथा देश के फायदे के लिए प्रासंगिक अनुसंधान संचालित करेगा।

प्रिय विद्यार्थियो,

10. उपाधि प्राप्त करना, जिसके लिए आप सुपात्र हैं, केवल शुरुआत है। विश्वविद्यालय की शिक्षा पूर्ण करने के बाद, आपको और महत्त्वपूर्ण दायित्व पूरा करना है और वह है राष्ट्र के निर्माण का, और जब तक इस कार्य में आप में से हर एक का सहयोग प्राप्त नहीं होगा, यह पूर्ण नहीं हो पाएगा। इस ज्ञान के साथ बाहर जाएं कि आपके पास इसे भविष्य की दिशा में ले जाने के लिए राष्ट्र निर्माण के साधन हैं। याद रखें, जैसे ही आप अपनी मातृसंस्था से बाहर निकलेंगे, जीवन आपको सीखने के भरपूर अवसर देगा। जहां से भी मिले ज्ञान प्राप्त करें। विनम्र रहें। निर्भय रहें। उदार बनें। आप जिस भी क्षेत्र में कार्य करें, सदैव अपने विश्वविद्यालय और देश का सम्मान बढ़ाने का प्रयास करें। यदि आपमें कौशल शक्ति और इच्छा शक्ति है, आप इसे कर सकते हैं। मैं आपके जीवन में सफलता की कामना करता हूं। मैं इस विश्वविद्यालय के प्रबंधन और संकाय को भी शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.