पश्चिम भारत अधिवक्ता एसोसिएशन की 150वीं वर्षगांठ के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण

मुंबई : 08.02.2014

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Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at Inauguration of the 150th Anniversary of the Advocates Association of Western India1. मुझे, पश्चिम भारत अधिवक्ता एसोसिएशन की 150वीं वर्षगांठ समारोह में आप सभी के बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। मैं इस उल्लेखनीय उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए आपकी एसोसिएशन के हर एक सदस्य को बधाई देता हूं। देश की सबसे पुरानी बार एसोसिएशन के रूप में, आपका भारत की न्यायपालिका के इतिहास में एक अतिविशिष्ट स्थान है, इसलिए वर्षगांठ समारोह का बहुत महत्व है।

देवियो और सज्जनो,

2. पश्चिम भारत अधिवक्ता एसोसिएशन का गठन भारत के राजनीतिक इतिहास में उल्लेखनीय क्षण था। इसने स्वशासन आंदोलन में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए विधिक पेशे से जुड़े लोगों में जागरूकता की शुरुआत की। इसने इस पेशे में नेतृत्व की नई पीढ़ी तैयार की, जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित बड़ी संख्या में हमारे राष्ट्रीय नेता अधिवक्ता थे। अधिवक्ता के रूप में प्रशिक्षण तथा भारत और विदेश की विधिक प्रणालियों से उनके परिचय ने हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की दार्शनिक बुनियाद रखने में उनकी मदद की। परिणामस्वरूप, स्वतंत्रता संघर्ष ने देश में स्वतंत्रता, मूल अधिकारों तथा सच्चे लोकतांत्रिक प्रतीकों के प्रोत्साहन को उच्च प्राथमिकता दी।

4. हमारे स्वतंत्रता संघर्ष में अधिवक्ताओं की सक्रिय भागीदारी एक रणनीतिक संगठनात्मक कदम था। इसका लक्ष्य विधिक शासन की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करने के लिए न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ बनाना था।

5. हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व संभालने वाली भारतीय विधिक हस्तियों ने सुधारकों के एक जागरूक समूह का प्रतिनिधित्व किया। उनमें से अनेक तत्कालीन, बंबई कलकत्ता और मद्रास के तीन विश्वविद्यालयों तथा उच्च न्यायालयों तथा भारत में स्थापित विधान परिषदों द्वारा प्रशिक्षित किए गए थे। इन सुधारकों ने अपने देशवासियों के लिए सुदृढ़ संस्थान और प्रणालियों का सृजन करने का प्रयास किया। अपने नजरिए में नरमपंथी, वह ऐसे व्यक्ति थे जिनकी विधिक शासन के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता थी।

6. इसी जागरूक नेतृत्व ने 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सृजन में मदद की। इन नेताओं ने अपने घोषित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संवैधानिक तरीके अपनाने के महत्व पर बल देते हुए शांतिपूर्ण असहमति के लिए सहिष्णुता और सम्मान के सिद्धांतों पर जोर दिया। इस भावना ने स्वतंत्रता के बाद भी, हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण के दौरान, निरंतर हमारा मार्गदर्शन किया है।

देवियो और सज्जनो,

7. मैं, आपके संस्थापकों - धीरजलाल मथुरादास, शांताराम नारायण, नानाभाई हरिदास, विश्वनाथ नारायण, पांडुरंग बलिभद्र और गणपतराव भास्कर की संकल्पना और बुद्धिमता को नमन करता हूं, जो एक सौ पचास वर्ष पहले नव-स्थापित बंबई उच्च न्यायालय के वकील बार को एक औपचारिक एसोसिएशन के रूप में संगठित करने में अग्रणी रहे। उन्होंने अपने ऊर्जाशील नेतृत्व के माध्यम से उन भारतीय वकीलों को एकजुट होने और एक सामूहिक ताकत के रूप में उभरने के लिए प्रेरित किया जो विधिक पेशे में उपर्युक्त स्थान हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। मैं इस स्मृति ग्रंथ को प्रकाशित करने के लिए एसोसिएशन को बधाई देता हूं जो इन संस्थापक सदस्यों के शानदार योगदान को दर्शाता है। मैं अधिवक्ताओं की वर्तमान पीढ़ी से, इन उच्च शख्सियतों की प्रतिबद्धता और गुणवत्ता से प्रेरणा ग्रहण करने का आग्रह करता हूं।

8. 150वीं वर्षगांठ के इस दिन मैं, जगन्नाथ वासुदेव जी को, जो ऐसे प्रथम भारतीय थे, जिन्हें अधीनस्थ न्यायपालिका से बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था; और नानाभाई हरिदास, जिन्हें वकील बार से बंबई उच्च न्यायालय में प्रथम स्थायी न्यायाधीश बनने का सम्मान प्राप्त हुआ, के प्रति भी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। जस्टिस नानाभाई को, यूरोपीय लोगों के मुकदमे सुनने में भारतीयों की योग्यता और क्षमता के बारे में टिप्पणी करते हुए इलबर्ट बिल पर मुख्य न्यायाधीश से विरोध जताने पर प्रसिद्धि प्राप्त हुई। उन्होंने ही स्थायी आधार पर न्यायापीठ में भारतीयों को शामिल करने का मार्ग प्रशस्त किया।

9. काशीनाथ त्रिंबक तेलंग, महादेव गोविंद रानाडे और नारायण गणेश चंदावरकर जैसी विभूतियां भारतीय अधिवक्ताओं की उत्कृष्ट उदारवादी परंपरा के प्रतीक थे। वास्तव में हमारी सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं में उनका योगदान अथाह था।

देवियो और सज्जनो,

10. मैं भी विधिक पेशे की ओर आकर्षित हुआ था और मैंने इस विषय में स्नातक किया। यद्यपि मुझे बाद में वकालत करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ परंतु यह पेशा वास्तव में मेरे दिल के करीब था क्योंकि अधिवक्ता हमारे समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आपको गौरवान्वित होना चाहिए कि विधिक पेशा, विशेषकर उस लोकतंत्र में एक महान पेशा है जहां विधि का शासन होता है। परंतु आप पर भी भारी दायित्व है।

11. अधिवक्ताओं का यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करें कि कोई भी न्याय से वंचित न हो। जब आप किसी मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करते हैं तो, आप जितना करते हैं उससे ज्यादा की उम्मीद की जाती है। आपको ऐसा सैनिक भी कहा जा सकता है जिन्होंने शक्तियों की पृथकता के सिद्धांतों को तैयार किया है। आपने यह प्रतिष्ठा इसलिए अर्जित की है क्योंकि आप शक्ति के अनुचित प्रयोग से पैदा हुई स्थिति को सुधारने अथवा किसी व्यक्ति के द्वारा न्याय प्राप्ति की अभिलाषा की स्थिति में न्यायालय के सम्मुख विवाद करते हैं।

12. मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई है कि आपकी एसोसिएशन का ध्येय वाक्य ‘कानून का सम्मान करें और कानून आपकी हिफाजत करेगा’ है। यह लोकतंत्र की बुनियाद विधिक शासन की सर्वोच्चता में आपकी प्रतिबद्धता और विश्वास को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है। इसलिए अधिवक्ताओं को नागरिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले सामान्य जनता के सैनिकों के रूप में कार्य करना चाहिए। इसके अलावा, आपको संविधान की सर्वोच्चता को कायम रखने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। ऐसा तभी किया जा सकता है जब न्यायपालिका पारदर्शी, निष्पक्ष हो तथा तेजी से से न्याय प्रदान करे। परंतु न्यायपालिका, जो हमारे लोकतंत्र की संरक्षक है, की शक्ति और प्रभावशीलता न्याय सुपुदर्गी प्रणाली के दो स्तंभों - गुणवत्ता और तेजी पर टिकी है। एक प्रभावी न्यायिक ढांचे के इन दो स्तंभों में, हमारी प्रणाली तेजी से न्याय प्रदान करने में कमजोर है। हमारे न्यायालयों में लंबित मामले हैरान कर देने वाले हैं। भारतीय न्यायालयों में 3.1 करोड़ से ज्यादा मामले विचाराधीन हैं।

13. मैं बल देकर कहना चाहूंगा कि न्याय में देरी करना, न्याय से वंचित करना है। आपके सक्रिय सहयोग से ही इस स्थिति को ठीक किया जा सकता है। आपको, एसोसिएशन के माध्यम से सदस्यों को केवल बाध्यकारी कारणों के होने पर ही स्थगन लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि देरी से मुकदमों का खर्च बढ़ता है जिससे अधिकांश लोगों के लिए न्याय मृग-मरीचिका बन जाता है।

14. अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभाने के लिए, आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विधिक समाज ज्ञान संपन्न, सुप्रशिक्षित, सर्वोत्तम सुविधाओं और बुनियादी ढांचे से सुसज्जित हो तथा सबसे महत्वपूर्ण है कि वह सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध हो। अधिवक्ताओं को अपने पेशे में विश्वास प्रदर्शित करना चाहिए और अपने पेशे में सुरक्षित महसूस करना चाहिए। यह कारगर न्याय उपलब्धता प्रणाली की स्थापना की पहली शर्त है। इसी प्रकार विधिक पेशे में नए प्रवेशार्थियों को अपने पैर जमाने के लिए सहयोग की आवश्यकता होती है। 2001 के अधिवक्ता कल्याण कोष अधिनियम में देश भर के अधिवक्ताओं के हित के लिए एक कल्याण कोष की स्थापना का प्रावधान किया गया है। मुझे विश्वास है कि पेशे में आने वाले नए अधिवक्ताओं की मदद करने के लिए इसे सही ढंग से कार्यान्वित किया जा रहा है।

15. पश्चिम भारत अधिवक्ता एसोसिएशन विधिक पेशे को गरिमापूर्ण तरीके से अपना सहयोग प्रदान करती है। अपनी बार के कनिष्ठ सदस्यों कीसुरक्षा के लिए आपने बहुत प्रयास किए हैं तथा ऐसे बहुत से श्रेष्ठ कार्यों में आगे रहे हैं। यह प्रशंसनीय है और उस महान परंपरा का प्रतीक है जो वर्षों के नेतृत्व के सामूहिक अनुभव से उत्पन्न हुई है। आपकी एसोसिएशन ने प्रतिभाओं के प्रोत्साहन पर भी बल दिया है जिसके कारण आपकी एसोसिएशन में से बहुत से व्यक्तियों ने विधिशास्त्र में ख्याति प्राप्त की है।

देवियो और सज्जनो,

16. आपकी एसोसिएशन सुदूर इलाकों से आने वाले मुवक्किलों तथा उच्च न्यायालय के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। आप पर उनकी शिकायतों और चिंताओं को आवाज देने और व्यक्त करने तथा उनके लिए ठोस न्याय प्राप्त करने में न्यायालयों को मदद देने की भारी जिम्मेदारी है। आपको अपने वृहद् कौशल तथा अनुभव का उपयुक्त उपयोग करना होगा। आपको न्याय सुपुदर्गी प्रणाली में सुधार करने के व्यवस्थित बदलाव के लिए संवाद शुरू करना होगा। मुझे विश्वास है कि एसोसिएशन आने वाले समय में आपकी समृद्ध परंपरा को जीवित रखने में कामयाब होगी और हमारे लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण पूंजी बनी रहेगी।

17. मैं एसोसिएशन के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं, आपकी संस्था के 150वें वर्षगांठ समारोह में आमंत्रित किए जाने पर आपको धन्यवाद करता हूं। मैं महात्मा गांधी के शब्दों से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा, जिनसे सभी वकीलों को मार्गदर्शन मिलेगा: ‘न्याय के न्यायालयों से ऊंचा एक और न्यायालय है और यह है अंतरात्मा की अदालत। यह अन्य सभी न्यायालयों से ऊपर है’।

धन्यवाद, 
जयहिन्द !

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