‘‘परिवर्तन दूत के रूप में महिलाएं’’ विषय पर 20वें न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे स्मृति व्याख्यान के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 12.11.2014
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 307.28 किलोबाइट)
मुझे इस संध्या 20वें न्यायमूर्ति सुनंदा भण्डारे स्मृति व्याख्यान देने के लिए यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। स्वर्गीय न्यायमूर्ति भण्डारे महिला अधिकारों की संरक्षक थीं। उन्होंने अपने पेशे और पिछड़ों के प्रति चिंता के संबंध में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किया। 52 वर्ष की आयु में उनकी असमय मृत्यु से एक महान और समृद्ध जीवनवृत्त का दुखद अंत हो गया।
मुझे ज्ञात है कि यह स्मृति व्याख्यान,प्रत्येक वर्ष उनकी स्मृति में तथा उनके अत्यधिक प्रिय लक्ष्य महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए भी आयोजित किया जाता है। मैं न्यायमूर्ति सुनन्दा भंडारे प्रतिष्ठान के सूत्रवाक्य प्रत्येक महिला के‘चुनने की स्वतंत्रता, उत्कृष्ट बनने का अधिकार’की सराहना करता हूं। न्यायमूर्ति भंडारे का मानना था कि महिलाओं को अपने भविष्य की निर्मात्री बनने के लिए सशक्त होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि प्रतिष्ठान के सदस्य उन आदर्शों को साकार करने की दिशा में कार्य करते रहेंगे जिसके लिए उन्हें जाना जाता था।
20वीं शताब्दी में,दो विश्व युद्धों में ऐसे मानव अधिकार अभियान का उद्भव हुआ जिसमें सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान गरिमा के साथ जीएं। समानता,सम्मान और सुरक्षा के तीन स्तंभों के आधार पर,महिलाओं के सशक्तीकरण पर विश्व का ध्यान बढ़ता जा रहा है। तथापि,महिलाएं, रूढ़िवाद और संकीर्णता से लड़ती रही हैं। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा था, ‘‘बिना बदलाव प्रगति असंभव है और जो अपनी मानसिकता नहीं बदल सकते, वे कुछ नहीं बदल सकते। हमें महिलाओं के विरुद्ध सहस्राब्दियों से व्याप्त उन दबावों,संकीर्णताओं और असमान व्यवस्थाओं को कम करना है।’’
हम आज ऐसे ज्ञान सम्पन्न समाज में रह रहे हैं जहां महिलाओं ने पुरुषों के साथ यह दर्शाने के लिए स्पर्द्धा की हैं कि वे समान रूप से प्रतिभाशाली है। महिलाओं ने चाहे चिकित्सा हो,प्रशासन हो, अध्यापन हो या बैंकिंग अनेक व्यवसायों में उत्कृष्टता अर्जित की है। हमने देखा है कि किस प्रकार एक ज्ञान प्रेरित समाज श्रेष्ठ बनने,शक्तिशाली पदों तक पहुंचने तथा समाज में आदर्श बनने में आने वाली बाधाओं को पार करने के लिए महिलाओं के लिए अवसर पैदा कर रहा है।
हमें उन रुकावटों को कम करना है जो महिलाओं को परिवर्तन दूत बनने से रोकती हैं। यदि हमारी अर्थव्यवस्था के सफल प्रयासों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त होगा तो इससे वे अपने परिवारों की बेहतरी में योगदान नहीं कर पाएंगी,उनकी सामाजिक प्रगति भी बाधित होगी और देश की समग्र आर्थिक प्रगति में भी व्यवधान पैदा होगा।
हमारे संविधान का उद्देश्य प्रावधानों के माध्यम से समानता की गारंटी देते हुए एक समतामूलक समाज का निर्माण करना है। यह राष्ट्र को इस दिशा में सकारात्मक कार्य करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। नीतियों,कार्यक्रमों और विधानों के जरिए हमने महिलाओं के समग्र विकास करने पर बल दिया है। महिलाओं के अधिकारों और विधिक हकदारी की रक्षा के लिए1990 के संसद के एक अधिनियम के द्वारा1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग स्थापित किया गया था।
महिला केन्द्रित विधानों ने महिलाओं को अपने भविष्य पर अपना अधिकार होने का विश्वास प्रदान किया है। हमारे संविधान के तिहतरवें और चौहतरवें संशोधन के द्वारा स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं जिनसे वे स्थानीय स्तर पर राजनीतिक निर्णयन में भागीदारी कर सकें। 2001 में एक राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति अपनाई गई थी।
हमारे देश ने महिलाओं के समान अधिकारों की रक्षा के दायित्व स्वीकार करते हुए,अनेक अन्तरराष्ट्रीय समझौतों का समर्थन किया है। इस लक्ष्य के लिए,हमने 1993 में महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति समझौते का समर्थन किया।
देवियो और सज्जनो,
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा भ्रूण हत्या और शिशु हत्या,छेड़छाड़ और बलात्कार, यौन उत्पीड़न,एसिड हमला और यहां तक कि हत्या जैसे विकृत रूप में बदल गई है। यह खतरा घर,कार्यस्थल, शिक्षा संस्थाओं,सड़कों, पार्कों और सार्वजनिक परिवहन में पाया जाता है। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को नियंत्रण में करने के लिए सभी भागीदारों—राज्य,पुलिस और अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों,गैर सरकारी एजेंसियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और समुदायों का सहयोग पूर्णत: आवश्यक है। जो समाज महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकता,उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता।
भारतीय न्यायपालिका लैंगिक न्याय के प्रोत्साहन द्वारा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में सक्रिय रही है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का मुकाबला करने के लिए विशाखा दिशानिर्देश,मां को अपने बच्चों के प्राकृतिक संरक्षक के रूप में मानने के अधिकार,बच्चों को गोद लेने के अल्पसंख्यक महिलाओं के अधिकार तथा एसिड की बिक्री पर नियंत्रण इसके उदाहरण हैं।
देवियो और सज्जनो,
इस निर्णयकरण ढांचे में और महिलाओं की आवश्यकता है। पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए33 प्रतिशत आरक्षण को कुछ सफलता प्राप्त हुई है परंतु सरकार के दूसरे स्तरों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व खेदजनक रूप से पिछड़ा हुआ है। वर्तमान लोक सभा में मात्र11.3 प्रतिशत सांसद महिलाएं हैं। यह विश्व औसत21.8 प्रतिशत से काफी कम है और 18.4 प्रतिशत के एशियाई औसत से भी कम है।
लोकतांत्रिक सुधार संघ की रिपोर्ट के अनुसार, 2014के आम चुनावों में महिला उम्मीदवारों को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा वितरित नामांकनों का औसतन8 प्रतिशत प्राप्त हुआ।
महिलाएं मंत्री, राज्यपाल,राजदूत और न्यायाधीश बनी हैं परंतु प्रभावी तरीके से परिवर्तन दूत की भूमिका निभाने के लिए उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है।2014 की विश्व आर्थिक फोरम की विश्व लैंगिक अंतर सूची में,भारत का स्थान ब्राजील, रूस और चीन से और यहां तक कि क्यूबा,बांग्लादेश और श्रीलंका से भी नीचे 114वां है। इस स्थान को बदलना होगा।
हमारे देश में लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए,हमें शिक्षा, आर्थिक सशक्तीकरण और शासन जैसे क्षेत्रों में सकारात्मक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें ऐसी प्रणालियों और प्रक्रियाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है जिनसे महिलाओं का अपने जीवन पर अधिकार और स्वामित्व है। सशक्तीकरण को सार्थकता प्रदान करने के लिए,हमें चुनने की उनकी स्वतंत्रता का विस्तार करना होगा।
निर्धन महिलाएं आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी के मामले में प्राय: पिछड़ी हुई होती हैं। इसलिए विकासशील देशों में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से भागीदारीपूर्ण संस्था निर्माण को एक प्रभावी साधन पाया गया है।31 मार्च, 2013तक, भारत में59 लाख से अधिक सम्पूर्ण महिला स्वयं सहायता समूह थे और उनकी कुल बचत6515 करोड़ रुपए से भी अधिक थी।
परस्पर अथवा स्वयं-सहायता तरीके पर आधारित सूक्ष्म-वित्त पहलों के द्वारा महिला सशक्तीकरण में काफी हद तक मदद मिली है। समूह स्वामित्व,नियंत्रण और प्रबंधन तथा सामूहिक निर्णय पर बल देकर महिलाएं स्थानीय शासन ढांचों में भाग लेने के लिए बेहतर रूप से तैयार हो रही हैं। भारत ने इस दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। हमें सूक्ष्म स्तर पर वित्तीय सहयोग को गति प्रदान करनी होगी।
देवियो और सज्जनो,
विशेषत: महिला, शिक्षा समाज को संवारने में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। यह कहा जाता है, ‘एक पुरुष को शिक्षित करने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है,एक महिला को शिक्षित करने से एक पीढ़ी शिक्षित होती है।’आज शहरों और गांवों में, बालिकाएं सीखने और पढ़ने के लिए उत्सुक हैं। हमारे कार्यक्रमों में बालिका शिक्षा को अतिरिक्त बल देना होगा।
हमने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने के लिए अगले पांच वर्षों के भीतर एक स्वच्छ भारत बनाने के लक्ष्य से एक कार्यक्रम आरंभ किया है। गांधी जी का ऐसे भारत का सपना था जिसमें आदर्श गांव वह होगा जहां एक स्वच्छ वातावरण होगा। स्वच्छता को प्रत्येक परिवार में एक अभिन्न अंग बनाना चाहिए क्योंकि इससे लोगों को,विशेषकर महिलाओं को स्वास्थ्य, निजता बनाए रखने और गरिमापूर्ण जीवन जीने में मदद मिलती है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘जब तक महिलाओं की दशा में सुधार नहीं होगा,विश्व कल्याण के विषय में सोचना असंभव है। पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना असंभव है।’’ महिलाएं अपने घर के भीतर और बाहर दोनों में शक्ति प्राप्त करने की हकदार हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने महिला सशक्तीकरण को उसकी आत्ममहत्त्व की भावना;जीने और पसंद को तय करने के अधिकार;अवसरों संसाधनों तक पहुंच होने के अधिकार;नियंत्रण शक्ति प्राप्त होने के अधिकार के रूप में परिभाषित किया है। इन उपयुक्त उद्देश्यों को साकार करने के लिए,हमें स्व. न्यायमूर्ति भण्डारे जैसे परिवर्तनकारी प्रतीकों की आवश्यकता है। हमें एक न्यायपूर्ण सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की रचना के लिए सामाजिक परिवर्तन की दिशा को प्रभावित करने की महिलाओं की असाधारण योग्यता को पहचानने की जरूरत है। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं आपके साथ अपनी भावनाएं साझा करने का अवसर प्रदान करने के लिए आयोजकों को धन्यवाद देते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!