पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय के ग्यारहवें दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
देहरादून, उत्तराखंड : 26.08.2013
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1. मुझे आज, हमारे देश में व्यावसायिक शिक्षा के एक उत्कृष्ट संस्थान पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय के ग्यारहवें दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मैं इस सुंदर अवसर का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करने पर विश्वविद्यालय प्रबंधन का धन्यवाद करता हूं। मैं विश्वविद्यालय परिसर के हरे-भरे वातावरण से अभिभूत हूं। दस वर्ष पूर्व स्थापित पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय भारत का प्रथम ऊर्जा विश्वविद्यालय है जो तेल और गैस, विद्युत, अवसंरचना, इलैक्ट्रानिकी, संभारिकी तंत्र, सूचना प्रौद्योगिकी और अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय के क्षेत्रों में बावन विशिष्ट कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है। मैं राष्ट्रीय विकास के लिए उच्च प्रशिक्षित और योग्य जनशक्ति तैयार करने के प्रयासों के लिए इस विशिष्ट उच्च शिक्षण के केंद्र की सराहना करता हूं।
2. हाल ही में उत्तराखण्ड ने भीषण बाढ़ और भू-स्खलन का सामना किया है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में बहुमूल्य मानव जीवन की क्षति हुई। बहुत से लोगों की संपत्ति का भारी नुकसान हुआ। मैं लोगों के जीवन और उम्मीदों के पुनर्निर्माण के लिए सभी यथासंभव संसाधनों को जुटाने का आग्रह करता हूं। हमें, विपदाओं के दौरान जीवन की और पुनर्निर्माण की अदम्य मानवीय भावना का त्याग नहीं करना चाहिए।
3. मित्रो, दीक्षांत समारोह अकादमिक कैलेंडर का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण दिन होता है। यह दिन किसी भी व्यक्ति के विकासात्मक दौर की ऊंचाई का प्रतीक है। यह एक अन्य दौर के शुरुआत—भविष्य में बड़े कार्य के लिए एक लम्बी यात्रा—का भी संकेत है। मैं स्नातक बन रहे उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्होंने कठिन शिक्षा की विभिन्न शाखाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत की है।
4. भारत एक उदीयमान राष्ट्र है। हमारे देश के युवाओं को इसकी प्रगति में अग्रणी बनना चाहिए। मानसिक जागरूकता आवश्यक है। याद रखें कि आप भारत के सबसे प्रतिभावान युवाओं में से हैं। हमारे देश का शासन और राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों के प्रति आपकी रुचि होनी चाहिए। उनका अध्ययन करें, विश्लेषण करें और उन पर विचार करें। जागरूक भागीदारी ही एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है। अपने अधिकारों और दायित्वों को समझने वाले बेहतर नागरिकों के निर्माण में राष्ट्र की सहायता करें।
5. मित्रो, भारत एक बड़े जनसांख्यिकीय संक्रमण के मध्य में है। हर वर्ष 12 मिलियन लोग हमारी कामकाजी जनसंख्या में जुड़ जाते हैं। अगले एक दशक के अंदर, हम विश्व का विशालतम कार्यबल होने का गौरव प्राप्त कर सकते हैं जो हमारी जनसंख्या का दो-तिहाई हिस्सा होगा। हमें इस जनसांख्यिकीय बहुलता का फायदा उठाना चाहिए। हमें अपने युवाओं को क्षमता और विशेषज्ञता से युक्त बनाना होगा। एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल 7 प्रतिशत कामकाजी आयु के भारतीय व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल कर पाते हैं। बहुत से लोग केवल गैर औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। एक सक्षम कार्यबल तैयार करने के लिए विशाल पैमाने पर औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण आवश्यक है।
6. हमारे जैसे विकासशील देशों के लिए उच्च आर्थिक विकास की प्रमुखता पर जोर देना आवश्यक है। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान हमारा औसत प्रतिवर्ष आर्थिक विकास दर 8.00 प्रतिशत थी। हमारा बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान भी इसी स्तर पर विकास करने का प्रस्ताव है। यद्यपि अल्पावधि के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था के समक्ष वैश्विक कारणों की चुनौती है परंतु हमें विश्वास होना चाहिए कि हम इन बाधाओं को पार कर लेंगे। मुझे देश के युवाओं पर भरोसा है कि वे सभी समस्याओं पर विजय पाएंगे। हमारा आर्थिक विकास इस पर निर्भर करेगा कि हम ऊर्जा क्षेत्र जैसी महत्त्वपूर्ण विकास कारकों को कैसे नियंत्रित कर पाएंगे।
7. अमरीका, चीन तथा रूस के बाद भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोग करने वाला देश है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा की ऊंचे स्तर की खपत को बनाए रखने के लिए हमारे ऊर्जा संसाधन अपर्याप्त हैं। ऊर्जा घनत्व, किसी भी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा दक्षता की माप उसकी ऊर्जा गहनता होती है और इससे पता चलता है कि भारत में एक यूनिट सकल घरेलू उत्पाद के उत्पादन पर यू.के., जर्मनी, जापान, अमरीका जैसे देशों से कहीं ज्यादा ऊर्जा व्यय होती है। जनता की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ उच्च विकास दर प्राप्त करना हमारे सामने एक चुनौती है। इसके लिए उच्च ऊर्जा उत्पादन की और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए उपायों को ढूंढ़ने की जरूरत है। हमें वैकल्पिक ऊर्जा मॉडलों की खोज करनी होगी जिससे परंपरागत संसाधनों पर हमारी निर्भरता कम हो।
8. ऊर्जा सेक्टर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अधिक गहनता आज की जरूरत है। नवान्वेषण के द्वारा, क्षमता विकास और प्रणालियों को मजबूत करने के लिए डोमेन ज्ञान की जरूरत है। नीति निर्माण के दौरान समस्याओं की पहचान करने, प्रवृत्तियों का उल्लेख करने, परिदृश्यों का निर्माण करने और नीति विकल्पों की अनुशंसा करने के लिए सक्रिय रहना चाहिए ताकि किसी भी संकट को टाला जा सके। यदि ऊर्जा से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों के लिए एक अकादमिक ढांचा उपलबध करवाया जा सके तो इससे हमारे नीति निर्माताओं की जानकारी काफी बढ़ेगी। हमारे देश में संस्थानों का ऐसा समूह होना चाहिए जो हमारी ऊर्जा प्रणालियों की प्रौद्योगिक क्षमताओं को बढ़ाने तथा ऊर्जा और ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दों पर ज्ञान सीमाओं के विस्तार के प्रति समर्पित हो। ऊर्जा सेक्टर की जरूरतों को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक ज्ञान का सृजन करने में पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय की, विशेषज्ञ ऊर्जा विश्वविद्यालय के तौर पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
9. मित्रो, डॉ. एस. राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘ज्ञान और विज्ञान के आधार पर ही एक आनंदमय और प्रसन्न जीवन संभव है।’’ ज्ञान दूरगामी प्रगति में तेजी ला सकता है। हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र को आर्थिक शक्तियों का पूरक बनने के लिए सुसज्जित किया जाना चाहिए। हमारे देश में शिक्षा का एक विश्वसनीय ढांचा, जिसमें छह सौ पचास से ज्यादा उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान तथा तैंतीस हजार से ज्यादा कॉलेज हैं, मौजूद रहने के बावजूद हमारे युवाओं की बढ़ती हुई आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले संस्थानों का अभाव है। यह चिंता का विषय है कि दो सौ सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों की अंतरराष्ट्रीय वरीयता में एक भी भारतीय संस्थान शामिल नहीं है। इससे हमारी आँख खुल जानी चाहिए क्योंकि तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी जैसे हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयों का ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लगभग अठारह सौ वर्षों तक विश्व की उच्च शिक्षा प्रणाली पर प्रभुत्व था। परंतु आज, भारत के बहुत से प्रतिभावान युवा बेहतर उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं।
10. हम अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए सक्षम हैं। हम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने के लिए अकादमिक संस्थान विकसित कर सकते हैं। हम अपने संस्थानों के संचालन और वहां शिक्षा प्रदान करने के तरीकों को श्रेष्ठ बना सकते हैं। नई चुनौतियों का सतर्कतापूर्वक सामना करने वाले एक स्थान पर स्थित अकादमिक संस्थानों का समय जा चुका है। अकादमिक संस्थान, सेवा प्रदाता हैं और सेवा सुपुर्दगी में गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण है। विद्यार्थी शिक्षा के सक्रिय प्राप्तकर्ता हैं। वे मांग के केन्द्र हैं और निरंतर ज्ञान की आवश्यकताओं को पुन: परिभाषित कर रहे हैं। संस्थानों को सक्रिय, गतिशील और अंतक्रिर्यात्मक होना चाहिए। प्रौद्योगिकी के फायदों का प्रयोग शिक्षण पद्धतियों को श्रेष्ठ बनाने के लिए किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए ई-कक्षाएं, सूचनाएं और ज्ञान के आभासी प्रसार द्वारा भौगोलिक दूरी को समाप्त कर सकती हैं।
11. हमें अपने विद्यार्थियों में आत्मबोध, प्रभावी संप्रेषण, रचनात्मक विचारशीलता, समस्या समाधान, अंत:वैयक्तिक सम्बन्ध और तनाव व आवेग प्रबंधन जैसे जीवन कौशल पैदा करने होंगे। एक व्यक्ति के स्वस्थ विकास के लिए ये कौशल आवश्यक हैं और इन्हें पाठ्यक्रम में समुचित स्थान दिया जाना चाहिए। हमारे अकादमिक संस्थानों का कर्तव्य परिस्थितियों की नैतिक चुनौतियों पर ध्यान देने का भी है। उन्हें मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए और युवाओं के मन में मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्य निर्वहन; सभी के प्रति सहृदयता; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं के प्रति सम्मान; जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मसंयम; कार्य में दायित्व तथा अनुशासन जैसे आवश्यक सभ्यतागत मूल्यों का संचार करना चाहिए।
12. मित्रो, प्रौद्योगिक अनुप्रयोगों ने पूरे विश्व के जनसाधारण के जीवन में सुधार कर दिया है। समाज में लाभकारी बदलाव लाने के लिए, हमें नवान्वेषण के अभियान को सुदृढ़ बनाना होगा। यह हमें अपने प्रतियोगियों की तुलना में बढ़त भी देगा। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, 3 भारतीय कंपनियां, विश्व की 100 सबसे नवान्वेषी कंपनियों में शामिल हैं। हमें इस रिकॉर्ड को सुधारना होगा। हमें अनुसंधान और विकास को पुन: सशक्त करना चाहिए। दुर्भाग्यवश अनुसंधान कोई पसंदीदा विकल्प नहीं है, और इसका हिस्सा हमारी उच्च शिक्षा विद्यार्थी आबादी के 0.4 प्रतिशत से भी कम है। हमें अध्येतावृत्तियों की संख्या बढ़ानी चाहिए, अंतर्विधात्मक और अंतर्विश्वविद्यालय सहयोग को सहयोग देना चाहिए तथा उद्योग विकास पार्क स्थापित करने चाहिए।
13. 2010-20 के दशक को भारत में नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। इस वर्ष आरंभ की गई विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति का लक्ष्य नवान्वेषण नीति विकास है। यह नीति हमारी अनुसंधान और विकास प्रणाली को उपयुक्त बनाने की आवश्यकता को चित्रित करती है। यह आम आदमी को लाभ पहुंचाने वाले नए विचारों को प्रोत्साहित करने की कार्यनीति को रेखांकित करती है। हमारे उच्च अकादमिक संस्थानों को जमीनी स्तर के नवान्वेषणों को परामर्श देने में अग्रणी बनना चाहिए ताकि उन्हें व्यावहारिक उत्पादों के रूप में विकसित किया जा सके। आज, पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय में किए गए रोमांचकारी नवान्वेषणों को देखकर मुझे खुशी हुई है। मुझे बताया गया है कि मल्टी फ्यूल कुक स्टोव पर इसे पेटेंट प्रदान किया जा चुका है। मैं, इस विश्वविद्यालय का आह्वान करता हूं कि वह बड़े स्तर पर अपना अनुसंधान और नवान्वेषण जारी रखें।
14. प्यारे विद्यार्थियो, आज इस संस्थान से विदा होते समय, यह याद रखें कि आप चरित्र की दृढ़ता और ज्ञान की गहराई द्वारा जीवन की चुनौतियों को पराजित करें। ज्ञान के अथाह समुद्र में आपको तट पर पहुंचने वाली प्रत्येक लहर से सीख लेने के लिए उत्सुक रहना चाहिए। आपमें ज्ञान की पिपासा होनी चाहिए और आपकी यह पिपासा जीवन भर बनी रहनी चाहिए। सफलता आजीवन सीखने वालों को मिलती है। आप जहां भी हों, जो भी करें, सीखने से कभी संकोच न करें। मुझे विश्वास है कि जीवन में विजेता बनने के लिए आप परिश्रम, ईमानदारी और संकल्प के पथ पर चलेंगे। मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं। मैं, पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय के प्रबंधन और शिक्षकों के सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!