नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए वर्ष 2013 के राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03.12.2013

डाउनलोड : भाषण नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए वर्ष 2013 के राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 225.75 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Presentation of the National Awards for the Year 2013 for the Empowerment of Persons With Disabilities1. मुझे अंतरराष्ट्रीय नि:शक्तजन दिवस पर राष्ट्रीय नि:शक्तजन पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर इस शाम आपके बीच उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। आज हमने उन भिन्न रूप से उन सक्षम सफल व्यक्तियों को सम्मानित किया है जिन्होंने अपने उल्लेखनीय साहस और अदम्य उत्साह से भीषण कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की है। उन संस्थाओं को भी पुरस्कार दिए गए हैं जिन्होंने नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण में असाधारण योगदान दिया है। उनका कार्य महान और अनुकरणीय है क्योंकि यह भिन्न रूप से सक्षम व्यक्तियों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए है।

2. यह महत्त्वपूर्ण दिवस हमें एक ऐसे समावेशी समाज के निर्माण के हमारे सामूहिक प्रयासों पर चिंतन करने का अवसर देता है जिसमें भिन्न रूप से सक्षम लोगों सहित सभी सदस्य समान अवसर का लाभ उठाएं और विकास की पूर्ण क्षमता प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त कर सकें।

3. नि:शक्तजनों को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, परिवहन और कभी-कभी न्याय सहित समाज की अनेक सेवाएं समाज रूप से प्राप्त नहीं हो पातीं। तथापि, यह देखा गया है कि जब नि:शक्तजनों को सामाजिक जीवन में पूरी भागीदारी के लिए समानता के आधार पर सबल बनाया जाता है तो राष्ट्र और कुल मिलाकर समाज लाभान्वित होगा। इसलिए नि:शक्तजनों के सम्मुख सामाजिक विकास में हानिकारक बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए। सकारात्मक और मानवीयतापूर्ण रवैऐ से समाज, गैर सरकारी संगठनों तथा व्यक्तियों को, भिन्न रूप से सक्षम लोगों तथा उनके परिजनों को समाज की मुख्य धारा में उनके सामाजिक-मनोवैज्ञानिक और भावात्मक समावेशन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सहयोग और मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए। शिक्षा और जागरूकता द्वारा नकारात्मक धारणाओं को दूर किया जाना चाहिए। सभी की प्रगति और विकास के लिए नि:शक्तजनों को उचित अवसर मुहैया करवाने चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

4. भारतीय संविधान में राज्य को सभी व्यक्तियों की समानता, स्वतंत्रता, न्याय और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए गए हैं जिसका अर्थ नि:शक्तजनों सहित सभी के लिए एक समावेशी समाज है। हम नि:शक्तजनों के पूर्ण सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र नि:शक्तीकरण जन अधिकार समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसका अनुसमर्थन किया। हमें नि:शक्तजनों के पूर्ण विकास के लिए उन्हें अनुकूल माहौल प्रदान करने के लिए इस कार्यसूची को आगे बढ़ाना होगा और राष्ट्र के विकास में उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

5. भारत नि:शक्तों के लिए समान अवसर प्राप्त करने के वैश्विक प्रयासों में भी शामिल है। हाल ही में सितंबर, 2013 में, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने विकास और नि:शक्तता के बीच सम्बन्ध पर बल देने के लिए राष्ट्रों की एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी। चूंकि यह महसूस किया गया कि किसी राष्ट्र का विकास तब तक संभव नहीं है जब तक नि:शक्तजनों की आवश्यकताएं और क्षमताओं को पहचान नहीं की जाएगी, इसलिए सभी राष्ट्रों ने अपनी विकासात्मक गतिविधियों में नि:शक्तता चिंताओं पर गंभीरता से विचार करने का संकल्प लिया। यह नि:शक्तजनों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से उठाया गया एक उल्लेखनीय कदम है। भारत ने इस रुख का पूर्ण समर्थन किया है।

6. 1995 के नि:शक्तजन अधिनियम (समान अधिकार, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) में नि:शक्तजनों के कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकार और हकदारी निहित है। सरकार संयुक्त राष्ट्र समझौते के प्रावधानों के अनुरूप एक नया और व्यापक कानून लाने की अंतिम अवस्था है। मैं समझता हूं कि यह एक सर्वांगीण कानून है जिसमें केंद्रीय सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और निजी सेवा प्रदाताओं पर भी प्रमुख दायित्व सौंपा गया है।

7. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि केन्द्र सरकार ने गत वर्ष नए नि:शक्तता कार्य विभाग की स्थापना के बाद, नि:शक्तजनों की आवश्यकताओं के प्रति विभिन्न भागीदारों को जागरूक बनाने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण, महिला और बाल कल्याण विकास, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण तथा श्रम और रोजगार जैसे अनेक केंद्र और राज्य मंत्रालयों और विभागों के कार्यकलापों को आपस में तालमेल करना होगा।

देवियो और सज्जनो,

8. एक बहुआयामी दृष्टिकोण तथा एक बहुसहयोगी प्रयास नि:शक्तजनों को उनकी पूर्ण क्षमता को साकार करने तथा उन्हें विकास प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाने में मदद कर सकता है। समाज के अधिकांश क्षेत्रों और कार्यकलापों में भागीदारी और सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें मुख्य धारा में लाना आवश्यक है। एक सुदृढ़ नीतिगत ढांचे के अलावा, हमारे यहां एक कुशल और प्रभावी सुपुर्दगी तंत्र होना चाहिए जिससे नि:शक्तजनों तक अपेक्षित लाभ पहुंच सके। एक समावेशी समाज के निर्माण के प्रयास में केंद्र और राज्य सरकारों को निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के साथ प्रभावी साझीदारी करनी चाहिए।

9. खासतौर से, नि:शक्त बच्चों, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के सशक्तीकरण के लिए विशेष योजनाओं, कार्यक्रमों और सुविधाओं का निर्माण किया जाना चाहिए क्योंकि उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यह उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने और उनके जीवन के स्तर को सुधारने के लिए जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा से, भिन्न रूप से सक्षम लोगों को दुनिया का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार किया जा सकता है। नि:शक्त बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर दिए जाने चाहिए, जिससे वे एक गरिमापूर्ण और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए भविष्य में लाभकारी रोजगार हासिल कर सकें। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा तक दूसरों के बराबर पहुंच हो। हमें अध्ययन-अभिगम का सही प्रकार का वातावरण, सुगम्य रूप में सामग्री तथा बाधा रहित शैक्षिक संस्थान मुहैया करवाए जाने चाहिए। भिन्न रूप से सक्षम लोगों तक सूचना पहुंचाने के लिए सुगम्य फॉर्मेट में वेबसाइट बनाना अत्यावश्यक है। उन्होंने कहा कि सुगम्य सूचनाओं और नि:शक्त सहायक प्रौद्योगिकी की उपलब्धता से नि:शक्तजनों की प्रगति के अवसरों में वृद्धि होगी। शिक्षकों को पर्याप्त संख्या में विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे नि:शक्त बच्चों की आवश्यकताएं समझ सकें और उसके बाद इन्हें सही प्रकार से शिक्षा और मार्गदर्शन प्रदान कर सकें।

10. नि:शक्तजनों की कामकाजी क्षमता बढ़ाने और एक स्वतंत्र जीवन जीने के लिए अनेक उपयुक्त और वहनीय सहायक उपकरणों की आवश्यकता होती है। सभी नि:शक्तजनों को मुनासिब और वहनीय लागत पर नवान्वेषी प्रयोक्ता अनुकूल उपकरण, सहायक उपकरण और कम्प्यूटर साफ्टवेयर तथा जरूरी उपकरण उपलब्ध करवाने के प्रयास किए जाने चाहिए ताकि वे अपनी जन्मजात क्षमता में वृद्धि और उसके कार्यान्वयन के समान अवसर प्राप्त कर सकें।

देवियो और सज्जनो,

11. नि:शक्तजनों का आर्थिक सशक्तीकरण उनकी बेहतरी के लिए जरूरी है तथा इससे वे गरिमापूर्ण जीवन जी सकते हैं। सरकारी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में नि:शक्तजनों के लिए रोजगार आरक्षण के प्रावधान हैं तथापि आरक्षित रिक्तियों को भरने के लिए एकजुट प्रयास करने आवश्यक हैं। सरकार तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों को उनकी रोजगार प्राप्त करने की क्षमता वृद्धि के मद्देनजर नि:शक्तजनों के कौशल स्तर को बढ़ाने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए। निजी क्षेत्र एक बड़ा नियोजक है और यह भिन्न रूप से सक्षम लोगों को क्षमता साकार करने के लिए यह अवसर प्रदान करने में सराहनीय भूमिका निभा सकता है। निजी क्षेत्र को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करने के लिए आगे आना चाहिए तथा उसे अपने प्रतिष्ठानों और उद्योगों में नि:शक्तजनों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।

12. अधिकांश मामलों में नि:शक्तता रोकी जा सकती है। इस बारे में अधिक से अधिक जागरूकता और एक सक्रिय नजरिया आवश्यक है। नि:शक्तता विशेषकर 0 से 6 वर्ष के आयु समूह के बच्चों में इसको कम करने के लिए पहले ही पहचान और समय पर प्रयास जैसे प्रतिरोधी उपाय जरूरी हैं। सही उम्र में टीकाकरण, रोग प्रतिरक्षण, स्वच्छता में सुधार, बेहतर पोषण, स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच, मातृत्व और नवजात देखभाल जैसे उपाय गंभीरता से किए जाने चाहिए। आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और अन्य फील्ड स्तर के कर्मियों को, नि:शक्त बच्चों की शीघ्र पहचान करने के लिए विशेष तौर से जागरूक और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

13. मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मुझे उम्मीद है कि वे हमारे समाज को और अधिक नि:शक्त सहायक और समावेशी बनाने के लिए निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य करने के लिए दूसरों को प्रेरित करेंगे। आइए, इस अवसर पर, समाज के सभी लोगों के सशक्तीकरण और समावेशन के लिए कार्य करने का संकल्प लें।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.