नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए वर्ष 2012 के राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 06.02.2013

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मुझे, नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए वर्ष 2012 के

राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने के लिए आयेजित समारोह में भाग लेकर प्रसन्नता हो रही है। आज, हम उन अलग तरह से योग्य व्यक्तियों को सम्मानित कर रहे हैं जिन्होंने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और असाधारण साहस की ताकत से कई उपलब्धियां अर्जित की हैं। कुछ पुरस्कार उन संस्थाओं को भी प्रदान किए गए हैं जिन्होंने नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण में विशेष योगदान दिया है। उनका कार्य अनुकरणीय है तथा यह साथी मानवों की जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता दर्शाता है।

यह अवसर नि:शक्तजनों की गरिमा और उनके अधिकारों को मान्यता देने और उनके सशक्तीकरण के लिए खुद को पुन: समर्पित करने का अवसर है। नि:शक्तजन प्राय: समाज के सभी पहलुओं में भाग लेने में बाधाओं का सामना करते हैं। ये बाधाएं भौतिक परिवेश या सूचना प्राप्ति से संबंधित अथवा कानून या नीति से या फिर सामाजिक नजरिए अथवा भेदभाव से संबंधित, किसी भी तरह की हो सकती हैं। परिणाम यह होता है कि नि:शक्तजनों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, परिवहन, राजनीतिक सहभागिता अथवा कभी कभी न्याय की प्राप्ति जैसी सामाजिक सेवाओं की समान प्राप्ति नहीं हो पाती।

अनुभव यह दिखाते हैं कि जब उनकी समावेशिता के रास्ते से इन बाधाओं को हटा दिया जाता है तो नि:शक्तजन सामाजिक जीवन में पूरी तरह भागीदारी करते हैं और इससे पूरा समुदाय लाभान्वित होता है। अत: नि:शक्तजनों के सामने खड़ी बाधाएं कुल मिलाकर समाज के लिए हानिकारक हैं तथा सभी को प्रगति और विकास प्राप्त करने के लिए समुचित अवसर देना जरूरी है।

एक देश के रूप में हम, नि:शक्तजनों के पूर्ण सशक्तीकरण के प्रति प्रतिबद्ध हैं। नि:शक्तजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, जो मई 2008 में लागू हुआ था, पर भारत द्वारा हस्ताक्षर तथा उसकी अभिपुष्टि, हमारे देश के अलग तरह से सक्षम नागरिकों को उनके पूर्ण विकास तथा राष्ट्रीय जीवन में बराबर की सहभागिता का माहौल प्रदान करने के अपने कार्यक्रम पर आगे बढ़ने के हमारे संकल्प का प्रतीक है।

नि:शक्तजन (समान अवसर, अधिकारों की रक्षा तथा पूर्ण सहभागिता) अधिनियम 1995, निशक्तजनों से संबंधित हमारा मुख्य कानून है। सरकार इसको अधिक व्यापक नए कानून से बदलने की प्रक्रिया में हैं जो कि नि:शक्तजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुरूप होगा। मैं समझता हूं कि यह एक सर्वांगीण कानून है जो न केवल केंद्र सरकार पर बल्कि राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और निजी सेवा प्रदाताओं पर भी बड़ी जिम्मेदारियां डालेगा। अत: मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि वह शीघ्रता से शेष विचार-विमर्श पूरा करे और यथाशीघ्र इस विधेयक को संसद में प्रस्तुत करे।

जैसे-ही नीतिगत ढांचा मजबूत होता है, हमें स्कीमों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए बेहतर सुपुर्दगी व्यवस्था अपनाने की दिशा में अपने प्रयासों को बढ़ाना होगा और इसके लिए निजी सेक्टर और सिविल सोसाइटी की कारगर सहभागिता प्राप्त करनी होगी। केवल कारगर सुपुर्दगी से ही हम नि:शक्तजनों के चेहरों पर मुस्कान देख सकते हैं।

मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि सरकार ने पिछले वर्ष नि:शक्तता मामलों का एक अलग विभाग बनाया है। मैं, नए विभाग की सफलता की कामना करता हूं। मैं सभी राज्य सरकारों से आग्रह करता हूं कि वे नि:शक्तजनों द्वारा जिन मुद्दों का सामना किया जा रहा है, उन पर और अधिक ध्यान देने के लिए ऐसी ही व्यवस्था करें। मैं, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता, महिला और बाल विकास, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, श्रम और रोजगार आदि सम्बन्धित केन्द्रीय मंत्रालयों का आह्वान करता हूं कि वे अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर कार्य करें।

नि:शक्तजनों को सार्थक रोजगार के पर्याप्त अवसर तथा उनको समाज में उचित दर्जा प्रदान करने के लिए शिक्षा के जरिए सक्षम बनाया जाना चाहिए। हालांकि सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत, समावेशी और सर्वशिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य किया जा रहा है परंतु यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को अध्यापन और सीखने का सही प्रकार का वातावरण देकर, उनको सुगम रूप में सामग्री प्रदान करके तथा रुकावट-रहित शैक्षिक संस्थानों द्वारा शिक्षा दी जा सके। इसलिए, नि:शक्त बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षकों को प्रशिक्षित किए जाने की तुरंत आवश्यकता है।

हमें उन भौतिक रुकावटों को दूर करने की जरूरत है जिनके कारण नि:शक्तजन विभिन्न सुविधाओं और सेवाओं को हासिल नहीं कर पाते। नि:शक्तजनों को आत्मनिर्भर होकर जीवन जीने के लिए सक्षम बनाने वाले विभिन्न सहायक उपकरणों की जरूरत होती है। सुनने के यंत्र, कृत्रिम अंग, व्हीलचेयर और ब्रेल लिपि लेखन उपकरण जैसे साधारण सहायक यंत्रों से उनकी सक्रियता और संप्रेषण में मदद मिलती है और काम करने की क्षमता काफी बढ़ जाती है। सभी नि:शक्तजनों को जायज कीमत पर सहायक साधन और कम्प्यूटर साफ्टवेयर और सहायक उपकरण उपलब्ध करवाना जरूरी है ताकि वे अपनी अन्तर्निहित क्षमता को बढ़ाने और कार्यान्वित करने के समान अवसर प्राप्त कर सकें। जीवन के अनेक पहलुओं में इंटरनेट के व्यापक और बढ़ते प्रयोग को देखते हुए, कम से कम सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की वेबसाइटों को सभी को सुलभ करवाना अत्यंत आवश्यक है।

नि:शक्तजनों के आर्थिक सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। सरकार पर नि:शक्तजनों को रोजगार में आरक्षण देने की जिम्मेदारी है। सभी केन्द्र सरकार के मंत्रालयों और उनके अधीन संगठनों को यह सुनिश्चित करने के तत्काल और व्यापक कदम उठाने चाहिए कि इस श्रेणी के आरक्षण का वास्तविकता में प्रभावी कार्यान्वयन किया जाए। सरकारी क्षेत्र के सभी प्रतिष्ठानों में पिछली रिक्तियों को यथाशीघ्र भरा जाना चाहिए। मैं निजी क्षेत्र से भी अनुरोध करता हूँ कि वह अपने प्रतिष्ठानों और उद्योगों में अधिक से अधिक नि:शक्तजनों को रोजगार दें। मुझे खुशी है कि हम आज नि:शक्तजनों के नियोजकों का पुरस्कृत कर रहें हैं। इससे पता चलता है कि निजी क्षेत्र भी उनकी विशिष्ट क्षमताओं की पहचान में सराहनीय भूमिका निभा सकता है।

नि:शक्तजनों को प्रशिक्षण देन की जरूरत है ताकि वे उपयुक्त कौशल प्राप्त कर सकें। सरकार, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को नि:शक्तजनों के कौशल का स्तर बढ़ाने के लिए मिल-जुलकर कार्य करना चाहिए ताकि उनकी रोजगारपरक योग्यता को बढ़ाया जा सके।

मुझे बताया गया है कि अधिसंख्य राज्यों ने नि:शक्तजनों के लिए पूर्णकालिक, स्वतंत्र राज्य आयुक्तों को अभी तक नियुक्त नहीं किया है जबकि यह ओम्बड्समैन संस्था मौजूदा नि:शक्तजन अधिनियम का अभिन्न अंग है और यही परिकल्पना नि:शक्तजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन में भी की गई है। मैं राज्य सरकारों से आग्रह करता हूं कि वे यथाशीघ्र नि:शक्तजनों के लिए पूर्णकालिक, स्वतंत्र राज्य आयुक्तों को नियुक्त करें और नि:शक्तजनों की शिकायत निवारण के लिए प्रभावी रूप से कार्य करने हेतु उन्हें साधन प्रदान करें।

बहुत से बच्चे अपंगता के कारण सामान्य बचपन की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाते। नि:शक्त महिलाएं अपनी लैंगिकता और नि:शक्तता के कारण दोहरे नुकसान में रहती हैं। नि:शक्त वृद्धजनों को अपने जीवन की संध्या में उपेक्षा और शोषण की आशंका रहती है। उनका विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।

नि:शक्तजनों की आवश्यकताओं पर ध्यान देते हुए, रोकथाम संबंधी उपायों पर भी ध्यान देना जरूरी है। 0 से 6 वर्ष की आयु समूह वाले बच्चों की नि:शक्त करने वाली परिस्थितियों की संभावना को सही आयु में प्रतिरक्षण टीकों, रोग और संक्रमण के नियंत्रण, स्वच्छता सुधार, बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं तक बेहतर पहुंच जैसे एहतियाती उपायों द्वारा कम किया जा सकता है। सरकारी आंगनवाड़ी कर्मियों को नि:शक्त बच्चों की पहचान के लिए जागरूक और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि यथाशीघ्र हस्तक्षेप किया जा सके।

अंत में, मैं पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। पुरस्कार प्राप्त करने वाले नि:शक्तजनों को मेरी विशेष शुभकामनाएं—आपके पुरस्कारों से हम सभी गौरवान्वित महसूस करते हैं क्योंकि आप किसी भी समाज की प्रगति के लिए आवश्यक, उम्मीद का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुझे उम्मीद है कि आप बहुत से दूसरे लोगों को आगे आकर नि:शक्तता के लिए अथक कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे। पुरस्कार विजेता संस्थाओं ने भी निष्ठा व समर्पण दर्शाया है और उनका उदाहरण निश्चित रूप से दूसरों को आगे आकर हमारे समाज को और अधिक नि:शक्त-अनुकूल बनाने के प्रयासों की दिशा में अथक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। आइए, इस अवसर पर हम सब मिलकर, नि:शक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए सर्वोत्तम प्रयास करने का संकल्प लें।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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