निशक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 03.12.2014

डाउनलोड : भाषण निशक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 295.27 किलोबाइट)

sp 1. निशक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में मेरे लिए प्रसन्नता की बात है। आज इस अर्थ में यह महत्वपूर्ण दिन है कि इस दिन संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने1992 में एक प्रस्ताव के द्वारा इस दिन को अंतरराष्ट्रीय निशक्तजन दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस पहल का मुख्य उद्देश्य निशक्तता से जुड़े मुद्दों की विश्वव्यापी जानकारी बढ़ाना तथा निशक्त व्यक्तियों के सम्मान,अधिकारों और बेहतरी के लिए सहयोग जुटाना है। यह महसूस किया गया था कि ऐसी विश्वव्यापी सक्रियता से निशक्तजनों को राजनीतिक,सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के प्रत्येक पहलू में शामिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सक्रिय प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा। यह पूरी तरह उपयुक्त है कि भारत के लोग अंतरराष्ट्रीय निशक्तजन दिवस को हमारे बीच मौजूद ऐसे व्यक्तियों और हमारे देश के ऐसे परोपकारी संगठनों को सम्मानित करके मना रहे हैं जो हमारे समाज के निशक्तजनों के सशक्तीकरण के लिए खुले दिल से कार्य करते रहे हैं। आज हम उन्हें उनके योगदान तथा भिन्न तरह से योग्य व्यक्तियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए उनके द्वारा अर्पित किए गए समय, संसाधनों तथा ऊर्जा के लिए सम्मानित कर रहे हैं। उनकी मानवीयता की हार्दिक सराहना करता हूं।

देवियो और सज्जनो,

2. राष्ट्रपति ने कहा कि यह स्वीकार करना जरूरी है कि यद्यपि,एक राष्ट्र के रूप में, हमें अपने धर्म तथा मूल्यों से भिन्न तरह से सक्षम लोगों की जरूरतों के प्रति विशेष रूप से सतर्क और संवेदनशील रहने के संस्कार मिले हैं और यद्यपि हमारी सरकार ने उनके समक्ष मौजूद चुनौतियों के व्यवस्थित समाधान के लिए कई उपाय किए हैं परंतु हमें उनके दैनिक जीवन में सुविधा प्रदान करने के लिए अभी बहुत कुछ करना है।

3. हमारा संविधान नि:संदेह निशक्तजनों सहित सभी लोगों की समानता,स्वतंत्रता,न्याय और सम्मान की गारंटी देता है। हमारा प्रमुख कानून, 1995का निशक्तजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी)अधिनियम,में निशक्तजनों को कुछ विशिष्ट हक प्रदान करता है। भारत सरकार ने संसद में निशक्तजनों के अधिकारों के लिए एक विधेयक पेश किया है। तथापि अपने नीति-ढांचे में सुधार के साथ ही हमारे लिए एक बेहतर सुपुर्दगी नेटवर्क भी स्थापित करना जरूरी है।

4. इस संदर्भ में, शिक्षा एक प्रमुख उपाय है। निशक्त बच्चों की पहुंच अपने शुरुआती स्कूली जीवन से यथासंभावित सर्वोत्तम शैक्षिक अवसरों तक होनी चाहिए जिससे वे अपनी निशक्तता का मुकाबला कर सकें तथा आत्मविश्वास में कमी को दूर कर सकें। सरकार ने विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां प्रदान करके, प्रभावी अध्ययन शिक्षण माहौल पैदा करके, उपयुक्त प्रारुप में सामग्री मुहैया करवाकर तथा नवीनतम और उपयुक्त शैक्षिक प्रौद्योगिकी और उपस्करों तक निशक्तों की पहुंच को सुगम बनाकर आवश्यक कदम उठाए हैं। मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि निशक्त बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार ढालने में मदद करने तथा उनका प्रभावी मार्गदर्शन करने के लिए शिक्षकों का विशेष प्रशिक्षण करना आवश्यक है।

5. सरकार भी सार्वजनिक सुविधाओं और सेवाओं को निशक्त अनुकूल बनाने के लिए उनके निर्माण पर समुचित ध्यान भी दे रही है। मुझे प्रसन्नता है कि भारत सरकार ने हाल ही में निशक्तजनों को सहायक सामग्री और उपकरणों की खरीद और उन्हें लगाने के लिए े सहायता संबंधी अपनी योजना में हाल ही में संशोधन किया है। नई योजना में ऐसे और उपकरण शामिल हैं जिन्हें निशक्त विद्यार्थियों और निशक्तजन के अन्य वर्गों को उपलब्ध करवाया जा सकता है।

6. मैं भिन्न रूप से सक्षम व्यक्तियों के आर्थिक सशक्तीकरण के महत्व को भी रेखांकित करना चाहूंगा। सरकार ने उनके लिए पदों को आरक्षित किया है तथा निजी क्षेत्र ने ऐसी ही पहलें शुरू की हैं। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों को निशक्तजनों के कौशल में सुधार करने और उनकी रोजगार योग्यता बढ़ाने में साझीदार बनना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

7. बहुत से भिन्न रूप से सक्षम बच्चे उन खेलों और गतिविधियों में भाग लेने से वंचित हैं जिन्हें अन्य बच्चे अपने बचपन का एक अभिन्न और आनंददायक हिस्सा समझते हैं। निशक्त महिलाएं विशेष रूप से उपेक्षित अनुभव करती हैं। निशक्त वृद्धजन अपने जीवनकाल की संध्या में और अधिक असुरक्षित होते हैं। हमें ऐसे लोगों को और अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल करना होगा जहां वे अपनी‘भिन्न’ योग्यताओं के अनुसार भाग ले सकें।

8. समय रहते रोग की पहचान और प्रभावी उपचार का अत्यधिक महत्व है। अनेक साधारण से ऐहतियाती उपायों से रोगों और गंभीर स्थितियों से बचा जा सकता है जो विशेषकर नाजुक आयु वर्गों वाले बच्चों में निशक्तता पैदा करते हैं। प्रतिरक्षा,रोग प्रतिरोध, बेहतर स्वच्छता, साफ-सफाई और पोषण तथा स्वास्थ्य देखभाल और व्यापक मातृत्व तथा नवप्रसूता संबंधी देखभाल तक पहुंच,ऐसे क्षेत्र हैं जहां हमें पूरी ताकत से कार्य करना चाहिए।

9. मैं उस उपयोगी भूमिका का भी उल्लेख करूंगा जिसे मीडिया,निशक्तों के सम्मुख चुनौतियों और मुद्दों पर ध्यान देने तथा उनके प्रति लोगों के कर्तव्य याद दिलाने के लिए निभा सकता है।

10. देवियो और सज्जनो, हममें से अधिकांश लोग सोच रहे होंगे कि वे क्या बदलाव ला सकते हैं उनके लिए,मैं स्वामी विवेकानंद के शब्दों का उल्लेख करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था, ‘‘उठो,जागो अब और मत सोओ, आपमें से हर एक में सभी अभावों और सभी कष्टों को दूर करने की शक्ति है। इस पर विश्वास करें,और यह शक्ति प्रकट हो जाएगी।’’ मैं आपमें से प्रत्येक को यह बात याद दिलाना चाहूंगा कि हर एक भिन्न रूप से सक्षम पुरुष,महिला और बच्चों में अत्यधिक संभावनाएं हैं। एक प्रगतिशील समाज के तौर पर इसे पूरी तरह साकार करने के लिए उन्हें सशक्त बनाना हमारा कर्तव्य है।

11. इस विचार को आपके समक्ष रखते हुए, मैं एक बार पुन: सभी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं तथा उनके प्रयासों के सफल होने के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मुझे विश्वास है कि वे भिन्न रूप से सक्षम व्यक्तियों के बेहतर जीवन और भविष्य के लिए कार्य करने में अग्रणी बने रहेंगे तथा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए हमें प्रेरित करते रहेंगे।

धन्यवाद,

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