नागालैंड विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

लुमामी, नागालैंड : 15.05.2013

डाउनलोड : भाषण नागालैंड विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 243.21 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Third Convocation of Nagaland Universityमुझे आज पूर्वोत्तर क्षेत्र में उच्च शिक्षा के एक उत्कृष्ट केंद्र नागालैंड विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मेरा इस विश्वविद्यालय में उपस्थित होना सौभाग्य की बात है, जिसका शिलान्यास 1987 में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री, स्व. श्री राजीव गांधी द्वारा किया गया था।

अपनी स्थापना के बाद से ही, नागालैंड विश्वविद्यालय ने अध्ययन और अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत प्रगति की है। इस क्षेत्र के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करके इसने जन सशक्तीकरण केन्द्र के रूप में कार्य किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस विश्वविद्यालय में, विद्यार्थियों को गांधीवादी मूल्य प्रदान करने वाला एक गांधीवादी अध्ययन और अनुसंधान केन्द्र है। लुमामी में इस विश्वविद्यालय का परिसर अपने सुरम्य सौंदर्य और हरित वातावरण के लिए विख्यात है जो अध्यापन और अनुसंधान के लिए अनुकूलता प्रदान कर रहा है। डॉ. एस.सी. जमीर तथा श्री आई.के.सेमा जैसे नेताओं की दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप नागालैंड के इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय की संकल्पना की गई थी। मुझे आज डॉ. जमीर तथा एक अन्य विख्यात व्यक्तित्व, प्रोफेसर मृणाल मीरी को राज्य में शिक्षा के उत्थान में उल्लेखनीय योगदान के लिए मानद उपाधि प्रदान करके खुशी हुई है।

नागालैंड हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है। यह अनेकता में एकता का अत्यंत श्रेष्ठ उदाहरण है। इसने मानव विकास में ठोस प्रगति की है तथा इसका साक्षरता और शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। इसके स्वदेशी कला रूप, संस्कृति और परंपरा असीम गर्व का विषय हैं। इसके समृद्ध प्राकृतिक संसाधन तथा प्रतिभावान और मेहनती लोग राज्य और देश का खजाना है।

देवियो और सज्जनो, शिक्षा सामाजिक विचारशीलता और परिवर्तन का एक शक्तिशाली साधन है। महिलाओं और बच्चों पर पाशविक हमले की हाल की घटनाओं में वृद्धि ने हमारे राष्ट्र की सामूहिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है। ये दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हमारे लिए मूल्यों के ह्यस के बारे में आत्म विशलेषण तथा महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और हिफाजत के प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। हमें अपने देश के नैतिक पतन के कारणों का पता लगाना होगा। हमारे विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थाओं का दायित्व है कि वे नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए एक अभियान चलाएं और यह सुनिश्चित करें कि सभी के प्रति करुणा, बहुलवाद के प्रति सहनशीलता, महिलाओं के प्रति सम्मान, व्यक्तिगत जीवन में सच्चाई और ईमानदारी, आचरण में अनुशासन और आत्मसंयम तथा कार्य में दायित्व के सभ्यतागत मूल्य हमारे युवाओं के मन मं् समाविष्ट हो जाएं।

देवियो और सज्जनो, हमारे संविधान ने निर्धारित किया है कि हमें अपने समाज का निर्माण मानवीय भावना की स्वतंत्रता, सभी के लिए आर्थिक अवसर तथा सामाजिक न्याय के आधार पर करना है। हमारा आर्थिक विकास ज्ञान संपन्न अर्थव्यवस्था पर निर्भर होता जाएगा। इसलिए हमारे देश में एक ठोस उच्च शिक्षा प्रणाली अत्यंत आवश्यक है।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली गुणवत्ता, वहनीयता और सुगम्यता के तीन आधार स्तभों पर टिकी हुई है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के अंत तक 659 उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान और 33000 से अधिक कॉलेज थे। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान, 21 केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित 65 नए केंद्रीय संस्थान स्थापित किए गए थे। एक राज्य को छोड़कर, देश के प्रत्येक राज्य में कम से कम एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

इसके बावजूद, परिमाण और गुणवत्ता की समस्याएं जारी हैं। हमारे यहां उत्कृष्ट अकादमिक संस्थाओं की संख्या कम है। अमरीका और यूके सहित विदेश में 2 लाख से अधिक भारतीय विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। हमें अपने विद्यार्थियों को देश में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, विश्व के सर्वोच्च 200 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय नहीं है। एक समय था जब हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय थे जहां समूचे विश्व के विद्वान आया करते थे। हम अपनी खोई हुई शान को पुन: प्राप्त कर सकते हैं। हम में, कम से कम से अपनी कुछ अकादमिक संस्थाओं को विश्व की सर्वोच्च श्रेणी में शामिल करने की क्षमता है। परंतु इसके लिए, हमें अपने शिक्षा संस्थानों में प्रदान की जाने वाली शिक्षा के तरीकों में परिवर्तन करना होगा। हमारी विचार प्रक्रिया में उत्कृष्टता की एक संस्कृति समाविष्ट करनी होगी। प्रत्येक विश्वविद्यालय को एक विभाग की पहचान करनी चाहिए जिसे उत्कृष्ट केन्द्र में विकसित किया जा सके। मैं केन्द्रीय विश्वविद्यालयों से आग्रह करता हूं कि वे इस परिवर्तन में अग्रणी बनें।

उच्च शिक्षा क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिए नवान्वेषी परिवर्तन लाने हेतु, इस वर्ष फरवरी में राष्ट्रपति भवन में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। सम्मेलन में शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए आवश्यक उपायों पर निकले परिणामों पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा कार्य किया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि हम अल्प समय में पर्याप्त प्रगति कर लेंगे।

देवियो और सज्जनो, भारत की विश्व में दूसरी विशालतम् उच्च शिक्षा प्रणाली है, इसके बावजूद भारत में 18-24 वर्ष की आयु समूह की प्रवेश दर मात्र 7 प्रतिशत है। इसकी तुलना में, जर्मनी में यह 21 प्रतिशत और अमरीका में 34 प्रतिशत है। इससे बहुत से श्रेष्ठ विद्यार्थी, उच्च शिक्षा हासिल करने के अवसर से वंचित हो जाएंगे। हमें और अधिक समावेशन के माध्यम के तौर पर उच्च शिक्षा में सुगम्यता को बढ़ाना होगा।

हमारे विश्वविद्यालयों द्वारा प्रौद्योगिकी के प्रयोग को अपनाया जाना चाहिए। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन की अवसंरचना में सहयोगात्मक सूचना आदान-प्रदान सुगम बनाने की अपार क्षमता है। शहरी केन्द्रों से दूर स्थित संस्थाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों को महत्त्वपूर्ण व्याख्यानों का प्रसारण अब संभव हो गया है।

उच्च शिक्षा में समावेशन की सफलता वहनीयता पर भी निर्भर करती है। निर्धन सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आए मेधावी विद्यार्थियों की छात्रवृत्रियों, विद्यार्थियों ऋण तथा स्व-सहायता योजना जैसे उपायों द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त करने में मदद की जानी चाहिए।

संकाय की कमी ने शिक्षा का स्तर सुधारने के हमारे प्रयासों को बाधित किया है। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में, लगभग 38 प्रतिशत रिक्तियां है। रिक्तियों को भरने के लिए तात्कालिक कदम उठाने होंगे। इस संकट पर पार पाने के लिए, हमें ई-कक्षा जैसे प्रौद्योगिकी समाधान को अपनाना चाहिए।

हमारे शिक्षकों को नवीनतम सूचना और ज्ञान अर्जित करना चाहिए ताकि वे अपने विद्यार्थियों को सर्वोत्तम शिक्षा प्रदान कर सकें। समसामायिक शिक्षण को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए अकादमिक स्टाफ कॉलेज द्वारा आयोजित पुनश्चर्या कार्यक्रम की निरंतर समीक्षा करनी चाहिए।

सुकरात ने कहा था, ‘‘शिक्षा ज्योति जलाना है, किसी बर्तन को भरना नही हैं।’’ हमें ऐसे प्रेरक शिक्षकों की आवश्यकता है जो युवाओं के विचारों को संवार सकें। एक प्रेरक शिक्षक, आत्मविश्वास के साहस, विषय के गहरे ज्ञान तथा असाधारण संप्रेषण कौशल द्वारा न केवल एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से किसी विषय को समझने और उसका मूल्यांकन करने बल्कि अपने ज्ञान पर प्रश्नचिह्न लगाने के लिए भी विद्यार्थियों को प्रोत्साहित कर सकता है।

देवियो और सज्जनो, हमारी आर्थिक प्रगति नवान्वेषण की हमारी योग्यता पर निर्भर करेगी। भारत नवान्वेषण के मामले में कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से पिछड़ा हुआ है। यद्यपि विश्व जनसंख्या में भारतीयों का छठा हिस्सा है परंतु भारत में विश्व के 50 में से एक ही पेटेंट आवेदन किया जाता है। हमारे पास प्रचुर जनशक्ति है, जिसकी क्षमता को शिक्षा और प्रशिक्षण के सतत कार्यक्रम द्वारा विकसित किया जाना चाहिए। परंतु इससे महत्त्वपूर्ण है, हमें नवान्वेषण करने और प्रोत्साहित करने वाली प्रणालियों को सुधारना चाहिए।

हमारे अकादमिक वातावरण को अनुसंधान के प्रोत्साहन के अनुकूल होना चाहिए। अनुसंधान अध्येतावृत्तियों की संख्या में वृद्धि, अन्तरविधात्मक और अन्तर विश्वविद्यालय अनुसंधान साझीदारियों में सहयोग तथा उद्योग विकास पार्क की स्थापना इस दिशा में मददगार रहेगी। हमारी व्यवस्था को विदेश में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों और प्रौद्यीगिकीविदों की वापसी और अल्पकालिक सेवा पर कार्य करने के अनुकूल बनाना होगा।

यह दशक नवान्वेषण का दशक है। इनसे जनसाधारण को लाभ होना चाहिए। ऐसे जमीनी नवान्वेषक मौजूद हैं जिन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य उत्पादों में बदलने के लिए तकनीकी और वाणिज्यिक सहायता की जरूरत है। हमारे विश्वविद्यालयों और उद्योग को ऐसे प्रयासों में मार्गदर्शन देना चाहिए। इस वर्ष आयोजित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में, शिक्षक और विद्यार्थी समुदायों तथा जमीनी नवान्वेषकों के बीच संवाद को सुगम बनाने के लिए, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लब स्थापित करने के लिए एक सिफारिश की गई थी। हाल ही में मुझे बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ तथा असम विश्वविद्यालय, सिलचर में ऐसे ही क्लबों का उद्घाटन करने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे युवाओं द्वारा किए गए नवान्वेषणों को देखकर खुशी हुई। मुझे विश्वास है कि यह प्रयास शीघ्र ही अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों तक भी अवश्य पहुंचेंगे।

मैं, उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जो आज अपनी उपाधियां प्राप्त कर रहे हैं। याद रखें कि सीखना कभी समाप्त न होने वाली प्रक्रिया है। जीवन के प्रत्येक स्तर पर, सीखने के अवसर होंगे। मन को मुक्त रखिए और जीवन की चुनौतियों का सामना संतुलन, ईमानदारी तथा साहस के साथ करने के लिए तत्पर रहिए। एक सफल भावी जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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