मलयाला मनोरमा की 125वीं वर्षगांठ समारोहों के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

कोट्टायम : 16.03.2013

डाउनलोड : भाषण मलयाला मनोरमा की 125वीं वर्षगांठ समारोहों के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 234.15 किलोबाइट)

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मुझे भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण समाचार-पत्रों में से एक, मलयाला मनोरमा की 125वीं वर्षगांठ के समारोहों के उद्घाटन के लिए कोट्टायम आकर बहुत प्रसन्नता हा रही है। मैं इस पत्र की यात्रा में एक बड़े पड़ाव तक पहुंचने पर श्री मामेन मैथ्यू तथा मलयाला मनोरमा समूह के सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई देता हूं।

पिछले 125 वर्षों के दौरान, मनोरमा ने उपनिवेशवाद द्वारा आजादी के लिए जगह छोड़ने, भूख और गरीबी के स्थान पर आत्मनिर्भरता, राजनीतिक आजादी का धीरे-धीरे एक मजबूत, परिपक्व लोकतंत्र के रूप में विकास तथा भारत के विश्व में एक प्रमुख राजनीतिक तथा आर्थिक ताकत के रूप में उदय जैसे विषयों पर समाचार प्रकाशित किए हैं। इन वर्षों के दौरान मनोरमा ने न केवल भारत की अनोखी यात्रा को आलेखबद्ध किया है, बल्कि यह देश में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने की प्रक्रिया में एक सक्रिय सहभागी भी रही है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि मलयाला मनोरमा, जो कभी एक हजार से भी कम प्रतियों के साथ शुरू हुई थी, अब दो विदेशी केंद्रों सहित, अठ्ठारह केंद्रों से प्रकाशित हो रही है तथा इसकी 21.29 लाख प्रतियों को लगभग 97.52 लाख पाठक पढ़ते हैं।

इस छोटे से शहर कोट्टायम में 1888 में, शुरू होकर मलयाला मनोरमा, इस समय अंतरराष्ट्रीय मीडिया ब्रांड बन गया है तथा इसने साइबर विश्व तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी अपनी अच्छी पैठ बनाई है। मनोरमा इस समय पूरी दुनिया के मलयाली पाठकों तक पहुंचती है तथा मनोरमा के प्रकाशन विभिन्न भाषाओं में निकलते हैं जिसमें से एक वार्षिकी भी है जिसका बंगाली संस्करण भी प्रकाशित होता है।

देवियो और सज्जनो,

केरल कई क्षेत्रों में अग्रणी तथा मार्गदर्शक रहा है। इसने लगभग शत-प्रतिशत साक्षरता तथा स्कूली भर्ती का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। इसके लोगों की प्रजनन क्षमता दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे पहुंच गई है। समग्र लैंगिक अनुपात में महिलाओं की संख्या अधिक है तथा महिलाओं की आयु पुरुषों के मुकाबले लम्बी है। यहां नवजात तथा मातृ मृत्यु दर कम है।

ये सभी बातें ‘केरल मॉडल’ कहलाती है तथा मलयाला मनोरमा ने न केवल इस स्थिति की उपस्थिति का समाचार दिया है, बल्कि इसने साक्षरता का प्रचार करके, पठन-पाठन में रुचि पैदा करके तथा अपने तत्वावधान में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों को शुरू करके मानव विकास के क्षेत्र में इस राज्य की असाधारण सफलता में प्रत्यक्ष योगदान दिया है।

वास्तव में मलयाला मनोरमा की सामाजिक प्रतिबद्धता तथा उसकी संकल्पना इस तथ्य से सिद्ध होती है कि इसका पहला संपादकीय ‘पुलयाज’ की शिक्षा के लिए मांग पर था जो कि अछूत समुदाय से थे और उन्हें उन दिनों सार्वजनिक सड़कों पर चलने की अनुमति नहीं थी। मनोरमा लोगों के हितों के लिए तथा अन्याय के विरुद्ध तथा स्वतंत्रता और समानता के लिए लड़ाई में सदैव लोगों के साथ खड़ी रही है।

यह प्रशंसनीय है कि मनोरमा के पाठकों ने केवल 45 दिनों में ही भूकंप के बाद लातूर के बानेगांव में पुनर्निर्माण के लिए 2.39 करोड़ रुपयों का योगदान दिया। मेरा मानना है कि यह भारत में किसी भी समाचार पत्र द्वारा शुरू किए गए राहत कार्य में सबसे बड़ी राशि है। इससे पता चलता है कि समाज के प्रति मनोरमा की चिंता केवल केरल तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारत तक फैली है।

मलयालम भाषा के प्रचार का श्रेय काफी हद तक मलयाला मनोरमा को जाता है। अन्य समाचार-पत्रों के साथ, मनोरमा ने इस भाषा के मुद्रण तथा प्रचार के लिए एक सामान्य लिपि तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाई। यह समाचार-पत्र तथा इसके प्रसिद्ध सहयोगी प्रकाशन भाषापोषिणी ने केरल के महान चिंतकों तथा कवियों के लिए शिक्षा संस्था का काम किया है। मुझे यह जानकर भी खुशी हो रही है कि मलयाला मनोरमा ने ही मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती डॉ. के.आर. नारायणन की कविताएं, उनके छात्र जीवन के दौरान, प्रकाशित की थी।

मनोरमा ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें तत्कालीन शासकों के हाथों कष्ट उठाने पड़े। यह समाचार-पत्र नौ वर्षों तक बंद रहा परंतु इसके प्रबंधन और कर्मचारियों ने झुकने अथवा अपने आदर्शों को छोड़ने से इन्कार कर दिया। अपने मौन बलिदान से, यह समाचार पत्र स्वतंत्रता तथा बुनियादी आजदी के लिए हमारे देश के संघर्ष का प्रतीक बन गया।

हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संविधान में गारंटी दी गई है तथा हमारे मीडिया के प्रभाव, विश्वसनीयता तथा गुणवत्ता के सभी कायल हैं। तथापि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की केवल कानूनी अधिकारों और कानूनों से गारंटी नहीं दी जा सकती। इसके लिए एक अनुकूल वातावरण बनाया जाना चाहिए और यह तभी संभव है जब हम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के इन शब्दों को याद रखें कि ‘‘जहां ज्ञान हो मुक्त’’ तथा ‘‘जहां शब्द सच्चाई की गहराई निकलते हों’’।

मीडिया को सार्वजनिक जीवन की स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। परंतु इस भूमिका का निर्वाह करने के लिए मीडिया का अपना जीवन भी संदेह से ऊपर होना चाहिए। यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि न केवल साधन बल्कि साध्य भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। सदैव उच्चतम नैतिक मानदंडों का पालन होना चाहिए। सनसनी को तटस्थ मूल्यांकन तथा सत्यतापूर्ण रिपोर्टिंग का विकल्प नहीं बनाया जाना चाहिए। गल्पों तथा अटकलों को सुदृढ़ तथ्यों का स्थान नहीं लेना चाहिए। इस बात को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक प्रयास होना चाहिए कि राजनीतिक तथा वाणिज्यिक हितों को प्रामाणिक तथा स्वतंत्र विचार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए।

ईमानदारी तथा स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और ये दोनों ही मीडिया तथा हम में से हर एक के लिए भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। यह माना जाना चाहिए कि मीडिया अपने आम पाठकों तथा दर्शकों के प्रति तथा इनके माध्यम से पूरे देश के प्रति जवाबदेह है।

मलयाला मनोरमा जैसे समाचार-पत्र, जिन्हें कंडाथिल वर्गीज मापिल्लई, के.सी. मामेन मापिल्लई, के.एम. चेरियन तथा के.एम. मैथ्यू जैसी महान महान हस्तियों की कई पीढ़ियों का नेतृत्व मिला है, पत्रकारिता तथा हमारे समाज में मूल्यों की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। अपने सेक्रेड ट्रस्ट में श्री मामेन मापिल्लई ने अपने बेटों तथा संपूर्ण मलयाला परिवार से कहा था :

‘‘मलयाला एक पवित्र जन ट्रस्ट है तथा एक ऐसी संस्था है जो ईश्वर ने बिना भय और पक्षपात के उपयोग करने के लिए हमें प्रदान की है। आपको सदैव यह बात मन में रखकर काम करना होगा। ईश्वर ने हमारे हाथों में एक शक्तिशाली अस्त्र दिया है। अपने निजी, प्रतिशोधात्मक तथा कटुतापूर्ण उद्देश्यों के लिए इसका प्रयोग एक ऐसा अक्षम्य तथा अनैतिक कार्य होगा जो कि लोगों की बड़ी संख्या में हम पर जताए गए विश्वास के लिए घातक होगा। ईश्वर यह नहीं चाहता। इसलिए हमारी शाश्वत शपथ निष्पक्षता, न्याय तथा नैतिकता की सफलता की दिशा में अथक प्रयास के लिए होनी चाहिए।’’

यदि ये शब्द तब सत्य थे तो ये आज भी सत्य हैं तथा भविष्य में भी सत्य रहेंगे। किसी भी समाचार संगठन के लिए इससे बेहतर उद्देश्य कोई नहीं हो सकता जो कि श्री मापिल्लई ने एक सौ से भी अधिक वर्ष पहले कहा था, ‘‘आज मलयाला मनोरमा गुणवत्ता तथा सिद्धांतयुक्त पत्रकारिता का एक आदर्श उदाहरण बनकर खड़ी है। मुझे विश्वास है कि मौजूदा नेतृत्व तथा मलयाला मनोरमा का पूरा परिवार अपने पवित्र ट्रस्ट को शब्द और आत्मा के साथ पूरा करना जारी रखेगा।’’

जहां मनोरमा तथा केरल की जनता को गर्व करने के लिए बहुत कुछ है, वहीं प्रमाद के लिए कोई जगह नहीं है। केरल में समाज के सामने कई चुनौतियां मौजूद हैं। औद्योगिकीकरण तथा तेजी से रोजगार सृजन करने की जरूरत है। केरल में अवसंरचना में भी बहुत सुधार जरूरी है। केरल के अनिवासियों द्वारा भेजे जा रहे धन को दीर्घकालिक विकास कार्यों में लगाने की जरूरत है। लोगों को जीवन शैली संबंधी बीमारियों, जैसे मधुमेह, मानसिक बीमारी, अवसाद आदि से बचने के लिए जानकारी देने की जरूरत है। बुजुर्गों की देखभाल के लिए उपयुक्त प्रावधान करने की जरूरत है जिनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। शहरीकरण से संबंधित मुद्दे, जैसे कि अपशिष्ट प्रबंधन तथा उसके निपटान का बहुत तात्कालिकता से समाधान जरूरी है। महिलाओं के प्रति अत्याचार पर सख्ती से कार्रवाई करने की जरूरत है।

केरल के सामने मौजूद इन नई चुनौतियों से निपटने के लिए नवान्वेषी समाधान तथा सामूहिक कल्याण की दिशा में समाज को सक्रिय करने के लिए नए उपायों को तलाशने की जरूरत है। मुझे विश्वास है कि मनोरमा समूह इस दिशा में अपनी भूमिका का निर्वाह करेगा।

मैं मलयाला मनोरमा को पुन: 125 वर्ष को इसकी सेवाओं के लिए बधाई देता हूं तथा इस संगठन की भविष्य में सफलता की कामना करता हूं। मेरी कामना है कि आप इसी शक्ति, ऊर्जा तथा समर्पण के साथ भारतवासियों की सेवा करते रहें। आपके कॉलम, आवाजरहितों की तथा असंगठित सेक्टर की आवाज बनें। आप हमारे लोकतांत्रिक प्रणाली को सहारा देने वाले एक सशक्त स्तंभ की तरह खड़े हों और समाज तथा नेतृत्व के लिए मार्गदर्शक बने रहें।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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