महावीर जयंती के अवसर पर ‘महावीर दर्शन के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों का समाधान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन : 22.04.2013
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मुझे महावीर जयंती के कुछ दिन पूर्व ‘महावीर दर्शन के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों का समाधान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के अवसर पर आप के बीच आकर प्रसन्नता हो रही है। मैं इस अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं।
मौजूदा समय के लिए अत्यंत प्रासंगिक विषय पर संगोष्ठी के आयोजन के लिए, मैं अहिंसा विश्व भारती को बधाई देता हूं। ऐसे समय में जब विश्व के समक्ष बहुत सी चुनौतियां मौजूद हैं और हम उनके समाधान के उपाय ढूंढ़ रहे हैं, भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित दर्शन एवं उपदेश बहुत महत्त्व रखते हैं। समय आ गया है कि हम उनके संदेशों और उपदेशों को आज की समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने के अपने प्रयासों में सबसे आगे रखें।
देवियो और सज्जनो, भगवान महावीर का जन्म एक शाही परिवार में राजा सिद्धार्थ तथा महारानी त्रिषला के घर में 599 ई.पू. बिहार में हुआ था और उनका नाम वर्द्धमान रखा गया था। अपने पास उपलब्ध भोग-विलास के साधनों के बावजूद वह सादा जीवन पसंद करते थे। तीस वर्ष की आयु में सांसारिक सुखों का त्याग करते हुए तथा सभी भौतिक सुखों को छोड़ते हुए वे संन्यासी बन गए।
उन्होंने सभी इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए बारह वर्ष तक तपस्या की और इसके बाद उन्हें आत्मानुभूति और आध्यात्मिक ज्ञान अथवा केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने अगले तीस वर्ष पूरे देश में भ्रमण करते तथा कठोर शारीरिक कष्टों पर विजय पाते हुए शाश्वत सत्य का उपदेश दिया। उनकी सरलता तथा उच्च नैतिकता के आचरण के कारण उनके बहुत से अनुगामी हो गए। उनके उपदेश मोक्ष अथवा मुक्ति की प्राप्ति के लिए आत्मानुभूति की संकल्पना पर आधारित थे।
भगवान महावीर 24वें और अंतिम तीर्थंकर हैं। जैन परम्परानुसार तीर्थंकर ऐसा ज्ञानी जीवात्मा होता है जो कि मानव के चोले में जन्म लेकर ध्यान तथा आत्मानुभूति के द्वारा ज्ञान प्राप्त करता है। तीर्थंकरों को अरिहंत भी कहा जाता है अर्थात् जिन्होंने क्रोध, लालच अथवा अहम् जैसे आंतरिक शत्रुओं को हरा दिया।
भगवान महावीर ने मानव शरीर में एक जाग्रत जीवात्मा के रूप में देवत्व प्राप्त किया। भगवान महावीर ने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक दर्शन का प्रतिपादन किया। उन्होंने दृढ़ता से कर्म के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए कहा कि कर्म, अर्थात् हमारे कार्यों से ही हमारे भाग्य का निश्चय होता है। उनके उपदेशों में यह बताया गया है कि व्यक्ति जन्म, जीवन, पीड़ा, कष्ट तथा मृत्यु से मुक्ति पाते हुए कैसे मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करे।
उन्होंने उचित विश्वास अर्थात सम्यक् दर्शन, उचित ज्ञान अथवा सम्यक् ज्ञान, और उचित आचरण अथवा सम्यक् चरित्र को, निर्वाण प्राप्ति के लिए महत्त्वपूर्ण बताया। उचित आचरण के लिए उन्होंने पांच अनिवार्य सिद्धांतों अर्थात् हिंसा का त्याग अथवा अहिंसा, सच्चाई अथवा सत्य और अनुचित सम्पत्ति से बचना अथवा अस्तेय, पवित्रता अथवा ब्रह्मचर्य तथा व्यक्ति, स्थान और सांसारिक वस्तुओं से पूर्ण अनासक्ति अथवा अपरिग्रह, का प्रतिपादन किया था।
भगवान महावीर ने धर्म को जटिल कर्मकाण्ड से मुक्त करके सरल बनाया। उन्होंने सिखाया कि मानव जीवन सर्वोच्च है और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए प्रेम के सार्वभौमिक सिद्धांत का उपदेश दिया कि सभी मनुष्य विभिन्न परिमाण, आकार और रूप के होते हुए भी समान हैं तथा वे समान रूप से प्रेम आर सम्मान के पात्र हैं।
उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति और समाज सुधार के लिए सम्यक् आस्था, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् आचरण के सिद्धांतों का प्रयोग किया। उन्होंने स्त्री दासता, महिलाओं के समान दर्जे और सामाजिक समता जैसे विषयों पर सामाजिक प्रगति की शुरुआत की।
भगवान महावीर के दर्शन और उपेदश का सार्वभौमिक सत्य आधुनिक विश्व के लिए भी उपयोगी हो गया है। उनकी शिक्षाओं में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का हृस, युद्ध और आतंकवाद के जरिए हिंसा, धार्मिक असहिष्णुता तथा गरीबों के आर्थिक शोषण जैसी समसामयिक समस्याओं के समाधान पाए जा सकते हैं।
देवियो और सज्जनो, वातावरण के हृस और प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण ने वर्तमान विश्व का ध्यान आकर्षित किया है। महावीर के षट्जीवनिकाय और अहिंसा के सिद्धांत इस बढ़ते हुए संकट के समाधान के लिए सार्थक दृष्टिकोण हैं। षट्जीवनिकाय का तात्पर्य 2 से 5 इंद्रियों वाले चर जीवों सहित छह प्रकार के जीवों से है, जिनमें से एकल इन्द्रिय वाले जीव हैं जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और वनस्पति। अहिंसा मात्र मनुष्य के प्रति ही नहीं बल्कि सभी जीवों के प्रति अपनानी चाहिए।
इन संकल्पनाओं में मनुष्य को प्राकृतिक संसाधनों के उपभोग में पूरी सावधानी रखने और वातावरण को प्रदूषित न करने की प्रेरणा दी गई है। भगवान महावीर ने समझदारीपूर्वक संसाधनों के प्रयोग, आत्मसंयम तथा स्थायी और अस्थायी सम्पत्तियों के स्वामित्व में सीमा के लिए संयम अपनाने की शिक्षा दी। भगवान महावीर ने हमें संयमित उपभोग का पथ भी दिखाया।
देवियो और सज्जनो, भगवान महावीर की शिक्षाएं आर्थिक असमानता को कम करने की आवश्यकता के अनुरूप हैं। उन्होंने बताया कि अभाव और अत्यधिक उपलब्धता दोनों ही हानिकारक हैं। आज के समय में धन पर कुछ ही लोगों का अधिकार बढ़ती हुई असहिष्णुता का एक कारण है।
भगवान महावीर ने स्वामित्ववादी भावना की समाप्ति और इसके स्थान पर धन के रक्षक की अवधारणा का प्रचार किया। उन्होंने स्वयं के उदाहरण द्वारा इस आदर्श की खूबियों का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का परित्याग कर दिया और सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एकांत जीवन व्यतीत किया।
भगवान महावीर ने अनुभव किया कि व्यक्तिगत क्षमताओं और आवश्यकताओं में अन्तर होता है। इसलिए, उन्होंने अपने अनुयाइयों को अपने उत्थान पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए तथा दूसरों को भी यही लाभ प्राप्त करने देने के लिए उनमें करुणा, धैर्य, प्रेम और सहिष्णुता युक्त सामाजिक अहिंसा का प्रचार किया।
भगवान महावीर के उपदेश आज भी अत्यंत समीचीन और प्रासंगिक हैं। उन्होंने उपदेश दिया कि कोई भी जन्म से निर्धन अथवा धनी नहीं होता। उन्होंने कहा था कि व्यक्ति को अपने जन्म से नहीं बल्कि कार्यों द्वारा जाना जाना चाहिए। ऐसे सिद्धांत पर अमल करने से आधुनिक समाज के निर्माताओं द्वारा संकल्पित न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के आदर्श को बढ़ावा मिलेगा।
दुर्भाग्य से वर्तमान विश्व जाति, धर्म और राष्ट्रीयता में बंटा हुआ है। ऐसे भेदभाव से पैदा होने वाले अनेक द्वन्द्वों से यह स्थिति और बिगड़ गई है। भगवान महावीर ने अनेकांतवाद अथवा अनेक विचारों का सिद्धांत दिया और कहा कि सफेद और काले या धनी और निर्धन की भांति विपरीतता विद्यमान है। उन्होंने संवाद और सामाजिक अहिंसा के अनुपालन द्वारा मतभेदों और भिन्नताओं का समाधान करने की शिक्षा दी। वर्तमान संदर्भ में, इससे अधिक प्रासंगिक कुछ भी नहीं हो सकता।
देवियो और सज्जनो, भगवान महावीर के सिद्धांतों में बहुआयामी विकास का उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा था, ‘‘प्रसन्नता सभी जीवों का स्वभाव है। प्रत्येक जीव पीड़ा को मिटाना चाहता है ताकि वह सदैव प्रसन्न रह सके।’’ वृहत स्तर पर, एक देश या समुदाय की खुशहाली सतत् विकास, सांस्कृतिक मूल्यों के परिरक्षण और संवर्धन, प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण तथा सुशासन की स्थापना के स्तंभों पर आधारित होती है। आज किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ये अनिवार्य लक्ष्य हैं और भगवान महावीर की शिक्षाओं का पालन करके इन्हें कार्यान्वित किए जाने की अत्यधिक क्षमताएं हैं।
भगवान महावीर के दर्शन के तीन सिद्धांत अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह बहुत सी आधुनिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आचार्य डॉ. लोकेश मुनि के मार्गदर्शन में, अहिंसा विश्व भारती द्वारा हिंसा, आतंकवाद, शोषण, निर्धनता, सांप्रदायिकता, जातिगत भेदभाव तथा अन्य सामाजिक कुप्रथाओं से मुक्त समाज के निर्माण के लिए कार्य किया जा रहा है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आचार्य जी के अथक प्रयासों के लिए, भारत सरकार ने उन्हें 2010 में राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार प्रदान किया है।
मुझे विश्वास है कि अहिंसा विश्व भारती देश की सामाजिक प्रगति की दिशा में कार्य करती रहेगी। मैं, इस संगठन की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं एक बार पुन: इस पावन अवसर पर अपने जैन भाइयों और बहनों को शुभकामनाएं देता हूं। भगवान महावीर का आशीर्वाद हम पर बना रहे।
धन्यवाद,
जय हिंद!