महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
कालूझंडा, सोलन, हिमाचल प्रदेश : 25.05.2013
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1. मुझे महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय के उद्घाटन के लिए आज यहां उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है, जो महाराजा अग्रसेन तकनीकी शिक्षा सोसाइटी की संकल्पना, समर्पण और प्रयास का प्रतिफल है।
2. शिक्षा में निवेश भविष्य में निवेश है। मैं, राज्य में इस उच्च शिक्षा संस्थान की स्थापना में सहयोगपूर्ण दूरदृष्टि के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार की सराहना करता हूं। मुझे उम्मीद है कि यह विश्वविद्यालय इस इलाके में उच्च शिक्षा की कमी को पूरा करेगा।
3. देवियो और सज्जनो, शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन है। महिलाओं और बच्चों पर पाशविक हमलों की घटनाओं की हाल की वृद्धि ने हमारे राष्ट्र की सामूहिक चेतना को झकझोर दिया है। इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण उनकी सुरक्षा और हिफाजत के प्रभावी उपायों की आवश्यकता महसूस हुई है। इससे हमारे लिए आत्म-विश्लेषण करने तथा समाज में मूल्यों के पतन को रोकने के समाधान खोजने की तात्कालिकता भी रेखांकित होती है। स्कूली स्तर से ही शिक्षण संस्थाओं को हमारे समय की नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए आगे आना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्य के निर्वहन; सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं और बुजुर्गों के प्रति सम्मान; जीवन में सत्य और ईमानदारी; आचरण में अनुशासन और संयम और कार्यों में उत्तरदायित्व जैसे हमारे सभ्यतागत मूल्य युवाओं के मन में समाविष्ट हों।
4. हमारे देश के उभरते हुए जनसांख्यिकीय स्वरूप में 2025 तक कामकाजी आयु समूह की आबादी दो तिहाई होने की उम्मीद है, जिससे अधिक विकास के अवसर सामने आ रहे हैं। यह जनसांख्यिकीय बढ़त हमारे लिए फायदेमंद हो सकती है परंतु इसके लिए हमारे युवाओं को राष्ट्रीय प्रगति में सहभागिता के लिए योग्य और प्रशिक्षित करना होगा।
5. हमने गरीबी कम करने और सभी नागरिकों के जीवन को प्रभावित करने वाला विकास सुनिश्चित करने के लिए उच्च आर्थिक विकास की कार्यनीति अपनाई है। हमारी आर्थिक प्रगति धीरे-धीरे ज्ञान-सम्पन्न अर्थव्यवस्था पर निर्भर होती जाएगी। यह महत्त्वपूर्ण है कि सूचना प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, प्रबंधन, लेखांकन और विधि जैसे ज्ञान आधारित क्षेत्र, सक्षम कर्मियों से युक्त हों। मुझे उम्मीद है कि यह विश्वविद्यालय व्यावसायिक शिक्षा में नए प्रतिमान स्थापित करेगा।
6. देवियो और सज्जनो, हमने उच्च शिक्षा क्षेत्र का उल्लेखनीय विस्तार किया है। ग्याहरवीं योजना अवधि के अंत तक इस क्षेत्र में प्रवेश प्राप्त विद्यार्थियों की कुल संख्या 2.6 करोड़ थी। इस संख्या के बारहवीं योजना अवधि के अन्त तक 3.6 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है। हमारे यहां छह सौ पचास से अधिक उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान और तैंतीस हजार से अधिक कॉलेज हैं। परंतु हमारे यहां बेहतर गुणवत्ता वाले अकादमिक संस्थानों का अभाव है जिसके कारण बहुत से प्रतिभावान विद्यार्थी उच्च अध्ययन के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं।
7. एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, विश्व के सर्वोच्च दो सौ विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय शामिल नहीं है। इतिहास के लगभग अट्ठारह सौ वर्षों तक, भारतीय विश्वविद्यालयों का विश्व शिक्षा प्रणाली पर प्रभुत्व रहा है। ईसापूर्व छठी शताब्दी में स्थापित तक्षशिला, वैश्विक विश्वविद्यालय था। यह भारतीय, फारसी, यूनानी और चीनी चार सभ्यताओं का संगम स्थल था। चन्द्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, पाणिनी, सेंट थॉमस, फाह्यान, चरक और डेमोक्रेटिस जैसी विख्यात शख्सियतों को इस विश्वविद्यालय में आने का मौका मिला। नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमापुर और उदांतपुरी जैसे अन्य विख्यात विश्वविद्यालय भी थे जो उल्लेखनीय भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में शामिल थे। 13वीं शताब्दी में पतन की शुरुआत से पूर्व ये विश्वविद्यालय एक प्रणाली के रूप में कुशलतापुर्वक कार्य कर रहे थे।
8. एल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ‘‘हम भारत के बहुत ऋणी हैं, जिसने हमें गणना करना सिखाया जिसके बिना कोई भी महत्त्चपूर्ण वैज्ञानिक खोज नहीं हो पाती।’’ हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली की खोई हुई शान को दोबारा प्राप्त करना और कम से कम हमारे कुछ विश्वविद्यालयों को विश्व के सर्वोच्च शिक्षा समूह में शामिल करना संभव है। परंतु इसके लिए, हमें अपने उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रशासन और उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षा के तरीकों में नवान्वेषी बदलाव करना होगा। हमें अकादमिक प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में पर्याप्त लचीलापन लाना होगा। हमें, उनमें उत्कृष्टता की संस्कृति पैदा करने की आवश्यकता है। प्रत्येक विश्वविद्यालय को कम से कम एक विभाग की पहचान करनी चाहिए जिसे एक उत्कृष्टता केंद्र बनाया जा सके।
9. बहुत से मेधावी विद्यार्थियों को, भौगोलिक अवस्थिति या आर्थिक कठिनाई के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समस्या का सामना करना पड़ता है। विश्व में दूसरी विशालतम उच्च शिक्षा प्रणाली होने के बावजूद भारत में 18-24 वर्ष की आयु समूह की प्रवेश संख्या मात्र 7 प्रतिशत है। यह जर्मनी के 21 प्रतिशत और अमरीका के 34 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है। सुगम्यता बढ़ाने की तात्कालिक आवश्यकता है। इससे उच्च शिक्षा में न केवल प्रवेश की दर सुधरेगी बल्कि इस प्रणाली द्वारा तैयार स्नातकों की गुणवत्ता में भी वृद्धि होगी।
10. हमें लोगों तक उत्तम शिक्षा पहुंचाने के लिए, ई-शिक्षा जैसी प्रौद्योगिकियां उपयोग में लानी होंगी। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन, सूचना और ज्ञान के आदान-प्रदान को सुगम बनाने वाली एक महत्त्वपूर्ण पहल है। सुदूर स्थानों पर अध्ययनरत विद्यार्थियों तक ई-कक्षा के माध्यम से महत्त्वपूर्ण व्याख्यानों को पहुंचाना संभव है।
11. आज हमारे स्नातकों का केवल शैक्षिक रूप से कुशल होना ही काफी नहीं है। एक अत्यधिक स्पर्द्धात्मक विश्व के लिए व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की आवश्यकता है। इसलिए विद्यार्थियों में आत्म चेतना, तदानुभूति, सर्जनात्मकता, चिंतनशीलता, समस्या-समाधान, कारगर सम्प्रेषण, अन्तर व्यैक्तिक संबंध और तनाव तथा भावनात्मक प्रबंधन जैसे जीवनोपयोगी कौशल विद्यार्थियों में समाविष्ट किए जाने चाहिए। हमारे शैक्षिक संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम में ऐसे कौशलों का प्रशिक्षण शामिल करना चाहिए तथा उन्हें प्रदान करने की विशेषज्ञता विकसित करनी चाहिए।
12. देवियो और सज्जनो, निजी क्षेत्र को हमारे देश में उच्च शिक्षा का विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय अनुभव ने दर्शाया है कि हार्वर्ड, येल और स्टेनफोर्ड जैसे सर्वोच्च विश्वविद्यालयों की सफलता के पीछे निजी क्षेत्र और पूर्व स्नातकों की भागीदारी है। हमारे देश की कुल प्रवेश संख्या का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा आज भी निजी क्षेत्र के संस्थानों का है परंतु सेवा उपलब्धता में सुधार, न्यूनतम मानदंड सुनिश्चित करने तथा उत्कृष्टता के लिए बेहतर प्रबंधन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
13. श्रेष्ठ संकाय की कमी, गुणवत्ता सुधार के हमारे प्रयासों को बाधित कर सकती है। हमें भारी संख्या में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। हमें इस संकट को दूर करने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों का भी प्रयोग करना चाहिए।
14. महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘व्यक्ति का निर्माण उसके विचारों से होता है। वह जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है।’’ हमारे अकादमिक संस्थानों में ऐसे शिक्षक हैं जो युवाओं के विचारों को दिशा दे सकते हैं। वे किसी विषय का व्यापक परिप्रेक्ष्य से आकलन करने के लिए अपने विद्यार्थियों को तैयार कर सकते हैं और अपने ही ज्ञान को चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। अपने आचरण और जीवन से जुड़े उदाहरणों के द्वारा, वे अपने विद्यार्थियों को सही मूल्य अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। ऐसे प्रेरित शिक्षकों की पहचान की जानी चाहिए, उनको मान्यता दी जानी चाहिए तथा विशाल संख्या में विद्यार्थियों के साथ अपने ज्ञान, विवेक और दर्शन के आदान-प्रदान के लिए उन्हें प्रोत्साहन करना चाहिए।
15. देवियो और सज्जनो, नवान्वेषण भावी प्रगति की कुंजी है। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, विश्व की 100 सबसे नवान्वेषी कम्पनियों में मात्र 3 भारतीय कंपनियां हैं। हमारे यहां अकादमिक कार्यक्रम के तहत अनुसंधान का हिस्सा, हमारी उच्च शिक्षा में विद्यार्थी जनसंख्या के 0.4 प्रतिशत से भी कम है। हमारे देश में नवान्वेषण के प्रति उत्साह कम है क्योंकि हमारे यहां ऐसी प्रणाली का अभाव है जो नवान्वेषण को प्रोत्साहित करे और उसका सृजन कर सके। अनुसंधान अध्येतावृत्ति, अन्तर विधात्मक और अन्तर विश्वविद्यालय सहयोग तथा उद्योग विकास पार्क की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना होगा। हमें अल्पकालिक परियोजनाओं के लिए विदेश में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को भारत आने का निमंत्रण देना चाहिए।
16. यह दशक नवान्वेषण का दशक है। नवान्वेषण तभी लाभकारी हो सकता है जब इसके फायदे सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर मौजूद लोगों तक पहुंचें। ऐसे बहुत से जमीनी नवान्वेषण हैं जिन्हें व्यवहार्य उत्पादों में बदलने के लिए प्रौद्योगिकीय और वाणिज्यिक सहायता प्रदान करने की जरूरत है। उच्च शिक्षा और उद्योग क्षेत्र को ऐसे प्रयासों में परामर्श प्रदान करना चाहिए। हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली में आवश्यक बदलावों पर विचार-विमर्श के लिए, इस वर्ष केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें शिक्षक और विद्यार्थी समुदायों तथा जमीनी स्तर के नवान्वेषकों के बीच संवाद को सुगम बनाने के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषक क्लब स्थापित करने की सिफारिश की गई थी। हाल ही में मुझे उत्तर प्रदेश और असम के दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ऐसे क्लबों का शुभारंभ करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने इन विश्वविद्यालयों और नागालैंड विश्वविद्यालय में आयोजित नवान्वेषण प्रदर्शनियों को देखा और हमारे युवाओं के नवान्वेषण देखकर मुझे खुशी हुई। मैं इस विश्वविद्यालय से आग्रह करता हूं कि वह एक सुदृढ़ नवान्वेषण संस्कृति निर्मित करने के लिए अपने शुरुआती वर्षों के दौरान ऐसी पहल करें।
17. मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय ने प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, प्रबंधन और विधि के क्षेत्र में अकादमिक विभाग आरंभ किए हैं। इसका, स्वास्थ्य विज्ञान, भारतविद्या, जनसंचार और पत्रकारिता जैसे सामाजिक रूप से प्रासंगिक पाठ्यक्रमों को शामिल करने के लिए अपने कार्यक्रमों का विस्तार करने का प्रस्ताव है। मुझे विश्वास है कि यह विश्वविद्यालय हमारे देश में व्यावसायिक शिक्षा के विकास को मजबूत गति प्रदान करेगा। मैं, इस विश्वविद्यालय को अपने युवाओं और राष्ट्र को समर्पित करता हूं। मैं, एक बार पुन: इस विश्वविद्यालयों की स्थापना और इसके अकादमिक कार्यक्रमों को रूप देने में शामिल सभी लोगों को बधाई देता हूं। मैं आपके भावी प्रयासों की सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!