मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर के आठवें दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
जयपुर, राजस्थान : 10.07.2013
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 245.92 किलोबाइट)
मुझे, मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर के आठवें दीक्षांत समारोह के लिए आप सबके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है, जिसे इसके स्वर्ण जयंती वर्ष में आयोजित किया जा रहा है। मैं इस संस्थान द्वारा राष्ट्र की समर्पित सेवा में पचास वर्ष पूर्ण करने पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर के संचालक मंडल के अध्यक्ष, प्रो. के.के. अग्रवाल, संस्थान के निदेशक तथा संपूर्ण संकाय को बधाई देता हूं।
2. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर ने अत्यंत मेधावी पेशेवर तैयार किए हैं। अपनी शुरुआत में 12 विद्यार्थियों से शुरू होकर आज यहां 4800 विद्यार्थी हैं। केवल दो संकायों से शुरू होकर यहां आज इंजीनियरी, विज्ञान, मानविकी तथा प्रबंधन में नौ पूर्व स्नातक तथा अठारह स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। इसके पी-एच.डी. पाठ्यक्रम अत्याधुनिक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी को समर्पित हैं। पाठ्यचर्या तथा तकनीकी संसाधनों मंा अद्यतन रुझानों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के अपने प्रयासों के क्रम में इसने ऊर्जा एवं पर्यावरण, डिजायन तथा सामग्री अनुसंधान के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं। इस संस्थान की सफलता इसके पूर्व तथा वर्तमान संकाय सदस्यों की परिकल्पना, समर्पण तथा श्रम का ही परिणाम है। मैं इस अवसर पर इस इंजीनियरी संस्थान के प्रथम दो प्रधानाचार्यों प्रो. विनायक गोविंद गार्डे तथा आर.एम. अडवाणी को श्रद्धांजलि देता हूं।
3. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर का नाम आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नेता पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया है। एक स्वप्नद्रष्टा, राजनेता, विद्वान, शिक्षाविद् तथा समाजसुधारक, मालवीय जी ने हमारे देश में शिक्षा का एक सर्वांगीण ढांचा तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे चाहते थे कि हमारे शिक्षा संस्थान पौर्वात्य विद्या तथा पाश्चात्य वैज्ञानिक ज्ञान दोनों में से सर्वोत्तम को अपनाएं। उनका मानना था कि उच्च शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक ज्ञान तथा समाज की जरूरत के बीच सेतु उपलब्ध कराना है। वे चाहते थे कि विद्यार्थियों में मानवीय मूल्यों तथा सामाजिक प्रतिबद्धता की भावना का समावेश किया जाए। यह तथ्य कि हमारा समाज आज भी नैतिक अशांति से उद्वेलित है, हमें अपने समक्ष उपस्थित कार्य की याद दिलाता है। शायद अब समय आ गया है कि हम अपनी नैतिकता की दिशा का फिर से निर्धारण करें। हमें समाज में मूल्यों का हृस रोकना होगा और उसके लिए हमें अपने युवाओं में मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्यों का निर्वहन, सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं का सम्मान; जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मसंयम; कार्यों में जिम्मेदारी तथा अनुशासन के अनिवार्य सभ्यतागत मूल्यों का समावेश करना होगा। हमारे अकादमिक संस्थानों को युवा मस्तिष्कों को इस दिशा में मार्गदर्शन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘यह आवश्यक है कि विश्वविद्यालयों में परंपरागत मूल्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए... आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके जो मूल्य हैं, उन्हें विद्यार्थियों द्वारा आत्मसात् किया जाए, उनके द्वारा स्वीकार किया जाए तथा उन्हें अपने अस्तित्व का अंग बनाया जाए।’’ मैं राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर के सभी सदस्यों का आह्वान करता हूं कि वे इसका आस्था के सिद्धांत के रूप में पालन करें।
4. विद्यार्थियों के मस्तिष्क में इसकी स्पष्ट छवि होनी चाहिए कि उनके लिए शिक्षा के क्या मायने हैं; सफलता का अर्थ क्या है; क्या अच्छे वेतन के साथ अच्छी आजीविका ही जीवन में सब कुछ है। आपको यह समझना होगा कि आपकी शिक्षा पर काफी संसाधन, प्रयास तथा त्याग लगा है। समाज ने आप पर निवेश किया है तथा यह नयायसंगत है कि समाज आपसे लाभांश की मांग करे। आप दुर्बल, जरूरतमंद तथा वंचितों की सहायता करके यह लाभांश चुका सकते हैं। हमारे देश का भविष्य आपकी इच्छा शक्ति, पहल तथा आपकी पटुता से निर्धारित होगा। प्राय: प्रगति से पूर्व परिवर्तन घटित होता है। यदि आप सोचते हैं कि कोई चीज हमारी प्रगति, हमारे विकास में बाधा पहुंचा रही है तो उसे बदल डालें। उन लोगों में शामिल न हों जो केवल बदलाव का शोर मचाते हैं बल्कि उनके साथ शामिल हों जो बदलाव करने में विश्वास रखते हैं।
5. देवियो और सज्जनो, विज्ञान एवं इंजीनियरी ने मानव को अत्यधिक लाभ पहुंचाया है। जब हम आजाद हुए थे, हमारे उपनिवेशवादी शासकों ने हमारे लिए गरीबी, भूख, निरक्षरता तथा पिछड़ापन छोड़ा था। 1900 से 1950 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था में 1.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। हमारे नेताओं ने एक वृहत विकास कार्यक्रम शुरू किया और अगले 30 वर्षों में हमारी वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत रही। 1980 के दशक में यह बढ़कर 5.5 प्रतिशत हो गई और 1990 के दशक में 6 प्रतिशत हो गई। वैश्विक मंदी तथा कई वर्षों की खराब स्थिति के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था पिछले दस वर्षों के दौरान 7.5 प्रतिशत बढ़ी। यह सब विकास इसलिए संभव हो पाया क्योंकि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर जोर दिया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार कहा था, ‘‘केवल विज्ञान ही भूख और गरीबी, स्वच्छता और निरक्षरता, अंधविश्वास और निर्जीव परंपराओं और रीतियों, बर्बाद हो रहे विशाल संसाधनों, एक समृद्ध देश में निवास करने वाली भुखमरी से ग्रस्त जनता... की समस्या का समाधान कर सकता है। ...कौन है जो आज विज्ञान को नजरअंदाज करने का जोखिम उठा सकता है? हमें हर मोड़ पर इसकी सहायता लेनी होगी... भविष्य विज्ञान तथा उन लोगों का है जो विज्ञान से मैत्री करेंगे।’’ वैश्विक शक्ति बनने के हमारे प्रयासों में ये शब्द आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं।
6. विज्ञान का प्रयोग करके, नई प्रौद्योगिकियों, नए उत्पादों तथा प्रक्रियाओं का विकास करके बड़े-बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। इसी के कारण बहुत से अपेक्षाकृत कमजोर राष्ट्र बहुत कम समय में ही मजबूत अर्थव्यवस्थाएं बन चुके हैं। नवान्वेषण ने व्यापार को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान की है तथा कारगर शासन के लिए समाधान प्रदान किए हैं। मोबाइल टेलीफोनी, इंटरनेट, लाभों का ई-अन्तरण, ई-मेडिसिन तथा ई-शिक्षा जैसे प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोगों से आम आदमी का जीवन काफी आरामदेह हुआ है। दुनिया भर में सरकारें नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने का सुव्यवस्थित प्रयास कर रही हैं।
7. भारत में, हमने नवान्वेषणों को प्रमुखता देने का दृढ़ निश्चय किया है। हमने वर्ष 2010-20 के दशक को नवान्वेषण को समर्पित किया है। हमने विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति निर्धारित की है, जिससे नवान्वेषण विकास को बढ़ावा मिले। इस नीति में एक ऐसे परिवेश की जरूरत बताई गई है जहां नवान्वेषण खुलकर सामने आ सकें। इसमें हमारे अनुसंधान तथा विकास प्रणाली को सही आकार देने की भी जरूरत बताई गई है। भारत सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 प्रतिशत अनुसंधान एवं विकास पर व्यय करता है जो कि चीन, यू.के. तथा इजरायल के मुकाबले बहुत कम है। हमें बड़े पैमाने पर नवान्वेषण को आगे लाने के लिए अनुसंधान पर व्यय बढ़ाना होगा। निजी क्षेत्र को, जो कि अनुसंधान और विकास पर देश के खर्च का एक चौथाई हिस्सा लगाता है, जापान, अमरीका तथा दक्षिण कोरिया जैसे देशों में प्रचलित स्तर तक इस खर्च को लाने के लिए अपना हिस्सा बढ़ाना होगा।
8. हमारे विश्वविद्यालय, तकनीकी संस्थान तथा अनुसंधान केंद्र नवान्वेषण के लिए उर्वर भूमि मानी जाती है। इनमें शैक्षणिक तथा अनुसंधान के पद, प्रतिभाओं की कमी से जूझ रहे हैं। हमारी व्यवस्था प्रतिभा को रोकने के लिए उचित नहीं है तथा बहुत से प्रतिभावान व्यक्तियों को देश तथा विदेश में स्थित संगठनों द्वारा अपने यहां बुला लिया जाता है। हमें इस बौद्धिक पूंजी के बहिरगमन को हतोत्साहित करने की व्यवस्था बनानी होगी। इसी के साथ हमें विदेशों में महत्त्वपूर्ण अनुसंधान एवं शैक्षणिक पदों पर कार्यरत भारतीय विद्वानों को भी देश लौटकर अल्पकालिक सेवा देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस तरह की नीति से हमारे देश को विचारों के संप्रेषण तथा शिक्षण और अनुसंधान की नई पद्धतियों आदि का लाभ प्राप्त होगा।
9. देवियो और सज्जनो, नवान्वेषण के लिए हमारी प्राथमिकताएं हमारी सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं से संचालित होनी चाहिए। भारतीय नवान्वेषण कार्य योजना को ऐसे विचारों के सृजन पर केंद्रित होना चाहिए जो समावेशी विकास को बढ़ावा दें तथा सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर स्थित लोगों को लाभ पहुंचाएं। हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों को समावेशी नवान्वेषण में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए। उन्हें जमीनी स्तर के नवान्वेषकों का मार्गदर्शन करना चाहिए जिससे वे अपने विचारों को उपयोगी उत्पादों में विकसित कर सकें। राष्ट्रपति भवन में इस वर्ष आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों के सम्मेलन में यह सिफारिश की गई थी कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लब स्थापित किए जाएं। वे शिक्षकों, विद्यार्थियों तथा जमीनी नवान्वेषकों के लिए विचारों के आदान-प्रदान का मंच बनेंगे। मुझे उम्मीद है कि इस पहल का अन्य संस्थानों में भी अनुसरण किया जाएगा। मैं राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर का आह्वान करता हूं कि वे इस क्षेत्र में नवान्वेषण को प्रोत्साहित करें।
10. मित्रो, ज्ञान अविभाज्य है। आप किसी एक विधा के विद्यार्थी हो सकते हैं। लेकिन याद रखें कि सत्य की सर्वोच्च खोज में विभिन्न विधाओं को एक दूसरे के अनुपूरक के रूप में काम करना होगा। संपूर्ण सत्य को जानने के लिए आपको कड़ी मेहनत के साथ सर्वांगीण ज्ञान को प्राप्त करना होगा। ज्ञान किसी भी रूप में आपको दिया जाए, उसे ग्रहण करने के लिए तत्पर रहें। आज जब आप अपनी मातृ संस्था को छोड़कर जाएंगे तथा भविष्य के लिए तैयारी करेंगे तो आपको उस शिक्षा पर भरोसा रहना चाहिए जो आपने यहां प्राप्त की है। जीवन का प्रत्येक दिन आपके लिए सीखने का अवसर होगा। सीखने की पिपासा आपके पास जीवन भर रहनी चाहिए। अपने ज्ञान का प्रयोग लोगों के अधिक से अधिक लाभ के लिए करें। सफलता प्राप्त करें और खासकर इस दिशा में कि कितने व्यक्तियों का आपने हित किया है। मैं आप सभी की अपने जीवन और आजीविका में सफलता की कामना करता हूं। मैं इस संस्थान के प्रबंधन तथा संकाय की भी सफलता की कामना करता हूं। मैं हृदय से कामना करता हूं कि यह संस्थान भविष्य में महान बौद्धिक ऊंचाइयां प्राप्त करे।
धन्यवाद,
जय हिंद!