ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
दरभंगा, बिहार : 03.10.2012 : 03.10.2012
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Shri Mohammed Hamid Ansari, Vice President & Chairman, Rajya Sabha,
मुझे, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर वास्तव में बहुत गर्व हो रहा है। आप बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि आपको इस विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला, जो कि अपने समय के सुप्रसिद्ध शिक्षाविदों डॉ. अमरनाथ झा, डॉ. आर.सी. मजूमदार, डॉ. ए.एस. अल्तेकर तथा डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी की परिकल्पना तथा सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।
दरभंगा मिथिला का केंद्र है और प्राचीन दर्शन के अध्ययन केंद्र के रूप में सभी जगह प्रख्यात है। इसी क्षेत्र से निकलकर संतों और दार्शनिकों ने, कलाकारों और शिल्पकारों ने, पूरी दुनिया में घूम-घूमकर उसे अपनी विद्वत्ता, ज्ञान तथा करुणा से प्रेरित किया था। अत: यह स्वाभाविक ही है कि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों में इस ज्ञान का समावेश करेगा और उन्हें प्रदान करेगा।
मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि वर्ष 1972 में अपनी स्थापना से, इस विश्वविद्यालय ने बहुत तरक्की की है। इसमें अब तक 23 शैक्षणिक विभाग, 43 संघटक कॉलेज तथा 36 संबद्ध कालेज खुल चुके हैं और यह सुदूरवर्ती शिक्षा भी प्रदान कर रहा है। मुझे बताया गया है कि विश्वविद्यालय के पास लगभग एक लाख दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों का पुस्तकालय है।
मैं जब इस विश्वविद्यालय के ‘विजन 2011’ में निहित परिकल्पना का अवलोकन कर रहा था, तो मैं इसकी प्राथमिकताओं के व्यावहारिक चयन से बहुत प्रभावित हुआ। इसमें, जैव-प्रौद्योगिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी की शिक्षा प्रदान करने के लिए एक महिला प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना करना, मखाना के निर्यात को प्रोत्साहित करना, मिथिला कला और शिल्प—खासकर मिथिला पेंटिंग के शिक्षण को बढ़ावा देना, आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना, सुदूरवर्ती शिक्षा को उन्नत बनाना, ग्रामीण प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना तथा फोरेंसिक विज्ञान संस्थान की स्थापना शामिल हैं। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि यह विश्वविद्यालय क्षेत्रीय विशेषज्ञताओं का विकास करना चाहता है और विद्यार्थियों को ऐसा ज्ञान और शिक्षा प्रदान करना चाहता है जो कि उन्हें विभिन्न तरह के अवसर प्रदान करेंगे।
विशिष्ट अतिथिगण,
वर्ष 2025 तक 70 प्रतिशत से भी अधिक भारतीय कामकाजी आयु के होंगे। हमारा युवा लोकतंत्र बेशकीमती है तथा हमें इस जनसंख्या को, एक मजबूत नींव प्रदान करते हुए भविष्य के लिए तैयार करना होगा। इसके लिए, सुलभ तथा वहनीय उच्च शिक्षा की उपलब्धता बढ़ाना तथा व्यावसायिक हुनर में उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करना सबसे प्रमुख जरूरत होगी।
सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों तथा शैक्षणिक संस्थानों में उत्कृष्टता को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष अनुदान प्रदान किया जा रहा है। एक राष्ट्रीय दक्षता विकास परिषद का गठन करके उसे वर्ष 2022 तक 15 करोड़ कुशल कामगार तैयार करने का दायित्व सौंपा गया है। एक राष्ट्रीय नवान्वेषण परिषद का गठन किया गया है जो कि भारत में नवान्वेषण के लिए मार्ग तैयार करेगी। प्रत्येक राज्य में एक-एक नवान्वेषण परिषद तथा केंद्रीय मंत्रालयों से संबद्ध सेक्टर आधारित नवान्वेषण परिषदों के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। एक राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के द्वारा देश के 1500 उच्च अध्ययन तथा अनुसंधान संस्थानों को आप्टिकल फाइबर बैकबोन के द्वारा एक-दूसरे से जोड़ा जाएगा।
भारत सरकार, 12वीं पंचवर्षीय योजना के अपने दृष्टिकोण में उच्च शिक्षा के लिए प्रसार, साम्यता तथा उत्कृष्टता की अपने तीन सूत्री कार्ययोजना जारी रखेगी। इसने, इस योजना के महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में राज्यों के विश्वविद्यालयों तथा कालेजों के पुन: सशक्तीकरण के कार्य को चिह्नित किया है।
अकादमिक सुधार की प्राथमिकता तय की जाएगी तथा शिक्षा तथा अनुसंधान गतिविधियों के बीच आपसी संवर्धित आदान-प्रदान के संबध स्थापित करके विश्वविद्यालयों में अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ाने का कार्य शुरू किया जाएगा। प्रौद्योगिकी आधारित अध्ययन तथा सहयोग आधारित, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। शिक्षा तथा अध्ययन के स्तर में सुधार लाने के लिए सरकार, नवान्वेषण विश्वविद्यालयों की प्रायोगिक परियोजनाओं को प्रस्तावित कर रही है, जिसमें उन्हें काफी स्वायत्तता तथा स्वतंत्रता दी जाएगी और इसी के साथ मौजूदा विश्वविद्यालयों में उत्कृष्टता केंद्र भी सृजित किए जाएंगे। संसाधनों की कमी के चलते यह मुश्किल होगा कि केवल सरकारी क्षेत्र से उच्च शिक्षा के प्रसार की जरूरत पूरी हो पाए। उच्च शिक्षा में, सार्वजनिक-निजी सहभागिता सहित, निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाएगा।
विशिष्ट अतिथिगण, जहां ये सभी प्रयास यह दर्शाते हैं कि भारत में उच्च शिक्षा के लिए यह सुअवसर है, वहीं हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में यह जरूरी है कि हमारे विश्वविद्यालय यह सुनिश्चित करें कि उनका पाठ्यक्रम सावधानीपूर्वक तैयार किया गया हो। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह जो पाठ्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं, वे प्रासंगिक, आधुनिक तथा प्रगतिशील हों। भारत सरकार ने कार्यनिष्पादन, पाठ्यचर्या सुधार, बेहतर मानव संसाधन प्रबंधन, गुणवत्तायुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देने तथा अपने संकाय में सर्वोत्तम मेधावी लोगों को आकर्षित करने के लिए, अच्छे परिवेश के निर्माण पर ध्यान देकर गुणवत्ता में सुधार को बढ़ावा दिया है।
यह भी जरूरी है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त अनुसंधान को महत्त्व दें। विश्वविद्यालयों के लिए यह जरूरी है कि वे देश और विदेश में स्थित प्रमुख संस्थानों के साथ संबंध तथा सहयोग बढ़ाएं। उनके संचालन में भी लचीलापन तथा ऊर्जस्विता होनी चाहिए।
अंत में, विश्वविद्यालय द्वारा हमारे युवकों में ऐसी संतुलित प्रतिभा तथा व्यक्तित्व को किस तरह विकसित किया जाए जो कि समाज के साथ तादात्मय रखे? हमारी शिक्षण प्रणाली को, नि:संदेह, अंतर-विषयी पद्धति से उचित दिशा प्राप्त हो सकती है। वैज्ञानिक रुझान के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास भी जरूरी है।
मैं डॉ. राजेंद्र प्रसाद के उन शब्दों से प्र्रेरणा प्राप्त करता हूं जो उन्होंने वर्ष 1953 में पटना विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कहे थे—‘‘शिक्षा एक प्रकार से एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक नई पीढ़ी को पुरानी पीढ़ियों के संकलित अनुभवों और ज्ञान से परिचित और समृद्ध करके उनके चिंतन की क्षमता और शक्ति बढ़ाई जाती है।’’
मैं केवल इतना जोड़ना चाहूंगा कि आज इस बात की वाकई जरूरत है कि जो भी विद्यार्थी इस प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़कर निकले, उसे उपाधि ग्रहण करते हुए यह याद रखना होगा कि समाज को उससे तथा उसकी पीढ़ी से बहुत उम्मीदें हैं। आपमें से प्रत्येक का एक सुदृढ़ लक्ष्य तथा अपने राज्य और देश के निर्माण में व्यक्तिगत सहयोग देने का संकल्प होना चाहिए। आप जो भी उपलब्धियां प्राप्त करेंगे उसके साथ आपको यह भी सोचना होगा कि आप ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे कोई बदलाव लाया जा सके और आपके आसपास के लोगों के लिए आप क्या महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं। मैं आपमें से हर-एक से और सभी से आग्रह करता हूं कि आप इस कार्य को महान दायित्व समझें।
मैं एक बार फिर से उन सभी विद्वानों और विद्यार्थियों को बधाई देता हूं, जिन्हें पदक, योग्यता प्रमाणपत्र तथा विशेष स्थान प्राप्त हुए हैं और उम्मीद करता हूं कि इस प्रतिष्ठित संस्थान से प्राप्त प्रशिक्षण और शिक्षा से आपको स्पर्धात्मक विश्व की चुनौतियों का सामना करने में सहायता मिलेगी तथा आप राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि में अपने तरीके से योगदान देंगे।
ईश्वर की आप पर अनुकंपा बनी रहे।
जय हिंद!