लक्ष्मीपत सिंघानिया - भा0 प्र0 संस्थान, लखनऊ राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार - 2011 के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 30.11.2012
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मुझे आज लक्ष्मीपत सिंघानिया-भा0 प्र0 संस्थान, लखनऊ राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार-2011 प्रदान किए जाने के अवसर पर आप सबके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है। मैं इस अवसर पर जे के संगठन तथा भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ को व्यवसाय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा सामुदायिक सेवा एवं सामाजिक उत्थान जैसी तीन प्रमुख श्रेणियों में इन पुरस्कारों को स्थापित करने के लिए बधाई देना चाहूंगा।
मुझे बताया गया है कि वर्ष 2004 में इन पुरस्कार की स्थापना के बाद से इन श्रेणियों के तहत बहुत से प्रख्यात भारतीयों को, उनकी नेतृत्व की विशेषताओं तथा भारतीय समाज को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। आज के हर-एक पुरस्कार विजेता ने अपनी उत्कृष्टता तथा अपनी उपलब्धि से विशिष्टता प्राप्त की है और वे देश के लिए आदर्श हैं। मैं उनमें से हर-एक को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
पिछले 25 वर्षों के दौरान, भा0 प्र0 संस्थान लखनऊ न केवल प्रबंधन शिक्षा के क्षेत्र में वरन् अनुसंधान और परामर्श संबंधी गतिविधियों में भी अग्रणी संस्थान बनकर उभरा है। नेतृत्व विकास के अलावा, यह संस्थान कृषि, उद्यमिता, स्वास्थ्य प्रबंधन, शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सामाजिक रूप से प्रासंगिक कई अनुसंधान एवं परामर्श परियोजनाओं का भी संचालन कर रहा है।
स्वर्गीय श्री लक्ष्मीपत सिंघानिया, जिनके सम्मान में यह पुरस्कार स्थापित किया गया है, एक स्वप्नदृष्टा और विशिष्ट गुणों से संपन्न व्यवसायी नेता थे। उनकी उद्यमिता की भावना तथा भारतीय व्यवसाय और समग्र समाज को उनका योगदान सुप्रसिद्ध है तथा उसका कोई मुकाबला नहीं है। इसलिए, यह उपयुक्त है कि भा0 प्र0 संस्थान लखनऊ तथा जे के संगठन, इन दो संगठनों ने मिलकर स्वर्गीय लक्ष्मीपत सिंघानिया की स्मृति में राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कारों की स्थापना की है।
मुझे आज भी याद है जब ताप्ती नदी के तट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 51वें अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में नेताजी ने हमें स्मरण कराया था कि, ‘‘हमारी प्रमुख राष्ट्रीय समस्याएं गरीबी उन्मूलन, निरक्षरता तथा बीमारी हैं।’’
उस समय आजादी का अर्थ था राजनीतिक और आर्थिक आजादी। राजनीतिक आजादी महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में हमारी महान राजनीतिक शख्सियतों ने जीती थी जिन्होंने अंग्रेजी राज के खिलाफ निस्वार्थ और अटल विश्वास के साथ लड़ाई लड़ी। पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहेब अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडु जैसे कई अन्य नेताओं ने आजाद भारत की दिशा निर्धारित की। इसी प्रकार, लाला लक्ष्मीपत सिंघानिया, जे.आर.डी टाटा, जी. डी. बिरला ने आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में योगदान दिया।
भारत ने तब से बहुत तरक्की की है। अर्थिक सुधार सहित बहुत सी नीतियों और पहलों से जीवन स्तर तथा जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार आया है। पंरतु एक देश के रूप में, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं हम कई चुनौतियों का सामना करते हैं। अभी बहुत से ऐसे इलाके तथा क्षेत्र है जहां आर्थिक प्रगति पिछड़ रही है तथा सामाजिक स्तर शेष देश के मुकाबले काफी कम है।
भारत की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिरता के लिए यह जरूरी है कि हम सही मायने में ‘‘समावेशी’’ विकास अर्थात् देश के प्रत्येक नागरिक को और खासकर जो समाज के सीमांत तबके से हैं और सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के सबसे नीचे तल पर हैं, तक विकास और लाभ लेकर आएं। ये चुनौतियां विशाल तथा कई तरह की हैं और भारत को ऐसे जमीनी नेतृत्व की जरूरत है जो कि लोगों को और उनकी समस्याओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संवाद के केंद्र में रखे। हम गरीबी, कुपोषण, भूख और बीमारी से लड़ाई तभी लड़ सकते हैं जबकि हम मिल-जुलकर काम करे तथा हर एक भारतीय राष्ट्र निर्माण के काम में योगदान देने के लिए अपने को सशक्त महसूस करे।
भारत आज महानता के कगार पर है और जहां, हमारे समक्ष बहुत सी चुनौतियां हैं वहीं असीमित अवसर भी हैं। हम अभूतपूर्व जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं जिसके कारण काफी श्रम शक्ति बढ़ने की संभावना है। यह बढ़ोतरी अधिकांशत: 20-35 वर्ष के आयु समूह में होने की संभावना है जिसके कारण भारत विश्व का सबसे युवा देश बन जाएगा। वर्ष 2020 में औसत भारतीय की आयु केवल 29 वर्ष होगी, जिसकी तुलना में औसत चीनी और अमरीकी व्यक्ति की आयु 37 वर्ष पश्चिम यूरोप के व्यक्ति की 45 वर्ष तथा जापानी व्यक्ति की आयु 48 वर्ष होगी। यह स्पष्ट है कि भारत के युवा जो कि कल का नेतृत्व हैं उच्च जीवन स्तर, बेहतर सेवा सुपुर्दगी तथा बेहतर पारदर्शिता और जिम्मेदारी के लिए प्रयासरत् रहेंगे। परंतु उन्हें केवल इस परिवर्तन प्रक्रिया का लाभभोगी ही नहीं वरन् इसका संचालन भी होना होगा। ऐसा होने के लिए राज्य, निजी सेक्टर के साथ मिलकर शिक्षा, दक्षता-विकास तथा क्षमता विकास के लिए अवसर उपलब्ध कराएं। महिलाओं के सशक्तीकरण की भी जरूरत है जो कि परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेंगी। इसी तथ्य को स्वीकार करते हुए 11वीं पंचवर्षीय योजना में पिछले दशकों में अर्थव्यवस्था की बढ़ती शक्ति से संबल लेकर समावेशी विकास के लिए एक व्यापक कार्यनीति बनाकर इस चुनौती का समाधान ढूढंने का प्रयास किया गया है।
यह जरूरी है कि भारत अपनी जनता को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करे ताकि जन सांख्यिकीय बहुलता का पूरा फायदा उठाया जा सके। तदनुसार 12वीं योजना के दृष्टिपत्र में शिक्षण प्रशिक्षण तथा मूल्याकंन और जवाबदेही लागू करने के उपायों की जरूरत पर बल दिया गया है। इसमें माध्यमिक स्कूलों में क्षमता निर्माण पर भी जोर दिया गया है ताकि प्राथमिक स्कूलों से उत्तीर्ण होकर आने वाले विद्यार्थियों की बढ़ी हुई संख्या को खपाया जा सके। उच्च शिक्षा में सकल भर्ती अनुपात को बढ़ाने का लक्ष्य रखा जाना चाहिए और इस 18 प्रतिशत के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 2016-17 तक 25 प्रतिशत तक ले जाया जाना चाहिए।
इस वर्ष 14 अगस्त को भारत 66वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मैंने उल्लेख किया था कि आधुनिक भारत का गिलास आधा से अधिक भरा है। मैंने कहा था कि हम अपनी माता कि समक्ष समान बच्चे हैं और भारत हम सबसे अपेक्षा करता है, कि चाहे राष्ट्र निर्माण के इस जटिल कार्य में हम जो भी भूमिका निभा रहे हों, हम अपने कर्तव्य का ईमानदारी, समर्पण तथा हमारे संविधान में निहित मूल्यों के प्रति अविचल निष्ठा से पालन करें। मुझे विश्वास है कि भारत और अधिक सजीव, सक्रिय और सम्द्ध राष्ट्र बनेगा।
जिन पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को आज सम्मानित किया गया है उन्हें अपने कार्य के प्रति उनकी लगन, उनके द्वारा प्राप्त उत्कृष्टता तथा उनके द्वारा दिखाई गई उद्यमिता की भावना के लिए सम्मानित किया जा रहा है। यही गुण हैं जिन्होंने उन्हें महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन में योगदान के योग्य बनाया है तथा इन्हीं गुणों का हम सभी को अनुकरण करना चाहिए। मैं एक बार फिर से उन सभी को बधाई देता हूं और उन्हें भावी प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिंद