लक्ष्मीपत सिंघानिया—आईआईएम, लखनऊ राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण
नई दिल्ली : 27.06.2017
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मुझे लक्ष्मीपत सिंघानिया—आईआईएम, लखनऊ राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार 2017 प्रदान करने के लिए इस अपराह्न आपके बीच उपस्थित होने पर प्रसन्नता हो रही है। मैं इस अवसर पर, तीन प्रमुख वर्गों व्यवसाय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा सामुदायिक सेवा और सामाजिक उत्थान में राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार आरंभ करने के लिए जेके संगठन तथा भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ को बधाई देता हूं।
2014 में इन पुरस्कारों के आरंभ होने के बाद से, प्रख्यात भारतीयों को उनके नेतृत्व गुणों तथा अपने-अपने वर्ग में भारतीय समाज में योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। मुझे पूर्व में इन पुरस्कारों को प्रदान करके प्रसन्नता हुई है और मुझे विजेताओं के चयन में किए गए समुचित परिश्रम के बारे में भली भांति ज्ञात है। आज के प्रत्येक पुरस्कार विजेता श्री उदय कोटक, श्री सिद्धार्थ लाल, प्रो. जयंत नर्लीकर, डॉ. प्रकाश आम्टे, डॉ. संघमित्रा बंद्योपाध्याय और सुश्री जयादेवी ने अपनी उत्कृष्टता और उपलब्धियों से विशिष्टता अर्जित की है। वे सभी भारतीयों, विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए, जो उनके पदचिह्नों पर चलने पर उत्साहित होने के लिए, आदर्श हैं। मैं इन सभी को अपनी बधाई देता हूं।
लाला लक्ष्मीपत सिंघानिया, जिनके सम्मान में यह पुरस्कार आरंभ किया गया है, एक दूरद्रष्टा और असाधारण गुणों वाले कारोबारी प्रमुख थे। लालाजी और जेके की उद्यमशील भावना और भारतीय कारोबार और समाज में उनका योगदान सुविख्यात है। यह वास्तव में उपयुक्त है कि आईआईएम—लखनऊ और जेके संगठन नामक दो प्रतिष्ठित संस्थानों ने लाला लक्ष्मीपत सिंघानिया की स्मृति में राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार आरंभ करने के लिए हाथ मिलाया है।
परिवर्तन सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में आया है—हम एक पिछड़े हुए देश से निकलकर क्रय शक्ति के मामले में विश्व की तीसरी विशाल अर्थव्यवस्था और विश्व की सबसे तीव्रता से विकास कर रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गए हैं।
यद्यपि, आज भी हमारे नीति निर्माता और राष्ट्रीय नेता सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आर्थिक विकास के लाभ समान रूप से बंटे जिससे आप असमानता में कमी आए। विकास को सार्थक बनने के लिए सचमुच समावेशी बनाना होगा। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि योजनाबद्ध आर्थिक विकास के सात दशकों के बाद भी असमानता क्षेत्रों, राज्यों और सामाजिक समूहों में व्यापक रूप से विद्यमान है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी नीतियों, विकासात्मक उदाहरणों और परिणाम तंत्रों को और अधिक व्यापक और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
शिक्षा राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इस बारे में कोई दो मत नहीं हो सकते। यह एक सबसे शक्तिशाली साधन है जिससे सामाजिक परिवर्तन आरंभ किए जा सकते हैं और देश के आर्थिक भविष्य का कायाकल्प किया जा सकता है। जैसा कि बेंजामिन फ्रेंकलीन ने एक बार कहा था, ‘‘ज्ञान में निवेश से सर्वोत्तम ब्याज प्राप्त होता है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में प्रमुख सुधार कई प्रकार से पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गए हैं। हम एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर हैं जहां विश्व के किसी भी देश की तुलना में हमारे यहां सबसे अधिक युवा जनसंख्या है। वर्ष 2020 तक एक भारतीय की औसत आयु अमरीका के 40 वर्ष, जापान के 46 वर्ष और यूरोप के 47 वर्ष की तुलना में 29 वर्ष होगी। दो-तिहाई से अधिक भारतीय 2025 तक कार्यरत आयु में शामिल होंगे। यह जनसांख्यिकीय बढ़त हमारी भावी आर्थिक संभावनाओं के लिए एक वरदान हो सकती है। इसी प्रकार, यदि हम उन्हें पर्याप्त कौशल व प्रशिक्षण प्रदान करके लाभकारी रोजगार नहीं दे पाए तो सामाजिक परिणाम भयानक होंगे और जनसांख्यिकीय बढ़त के स्थान पर हमें जनसांख्यिकीय भार का सामना करना पड़ सकता है। इसी संदर्भ में, हमें सरकार की तीन प्रमुख प्राथमिकताओं शिक्षा, उद्यमशीलता और कौशल पर बल देना होगा। संख्या के अतिरिक्त, प्राय: हम वैश्विक मानदण्डों को पूरा करने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में भी पीछे हैं। मैं यह ध्यान दिलाने के लिए विवश हूं कि हमारी मात्र मुट्ठीभर उच्च शिक्षा संस्थाएं विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल हैं। हम एक ‘उदीयमान आर्थिक महाशक्ति’ के रूप में, अपने शिक्षा स्तर को सर्वोच्च दस को तो छोड़िए, सर्वोच्च पचास या सौ में भी शामिल कर पाए हैं।
हमें एक ऐसा समाज चाहिए जो नेतृत्व विकास को प्रोत्साहित करे। यह कार्य हम सभी का दायित्व है। आईआईएम, लखनऊ जैसी संस्थानों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है और जेके संगठन जैसी कम्पनियों ने इस प्रकार की पुरस्कार स्थापना के द्वारा उनकी पहलों में सहयोग दिया है। मैं उन दोनों को बधाई देता हूं। मैं चाहता हूं कि नेतृत्व गुणों की पहचान और सहयोग के लिए और संगठन सामने आएं। विशेषकर निजी क्षेत्र को हमारी शिक्षा प्रणाली में और बड़ी भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। विश्व के कुछ सर्वोच्च विश्वविद्यालयों का निर्माण निजी क्षेत्र की पहल से होता रहा है।
भारत में विगत 70 वर्षों में प्रभावशाली परिवर्तन आया है। आइए आशा करें कि भविष्य में हम और अधिक प्रगति करेंगे ताकि हमारी शिक्षा प्रणाली विश्व में एक महानतम शिक्षा प्रणाली बनेगी।
धन्यवाद,
जय हिंद!