कुलपति सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा प्रारंभिक उद्बोधन
राष्ट्रपति भवन : 04.02.2015
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 379.08 किलोबाइट)
श्रीमती स्मृति ज़ुबिन ईरानी, मानव संसाधन विकास मंत्री,
श्री सत्यनारायण मोहंती, सचिव, उच्च शिक्षा विभाग,
प्रो. वेद प्रकाश, अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,
केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण,
वरिष्ठ अधिकारीगण,
देवियो और सज्जनो,
नमस्कार,
मैं इस सम्मेलन में आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं। हम तीसरी बार राष्ट्रपति भवन में मिल रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि हमारा विचार-विमर्श पूर्व दो अवसरों की भांति सघन और सार्थक रहेगा।
1. मैं समझता हूं कि मानव संसाधन विकास मंत्री, श्रीमती स्मृति ज़ुबिन ईरानी ने सितम्बर, 2014 में चंडीगढ़ में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से बैठक की थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी गत वर्ष के सम्मेलन की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की समीक्षा की है तथा इन दोनों घटनाक्रमों ने आज के सम्मेलन की भूमिका तैयार की है।
मित्रो,
कुलपतियों के विगत सम्मेलन में, हमने अनेक निर्णय लिए। मुझे जहां आज उत्तरार्द्ध में की गई कार्रवाई संबंधी विस्तृत ब्योरे की प्रतीक्षा है, इन कार्य बिन्दुओं पर की गई प्रगति पर एक नज़र डालने से एक निराशाजनक तस्वीर उभरती है। रिक्त पदों का प्रतिशत चिंताजनक रूप से ऊंचा है, ये रिक्तियां 31 मार्च, 2013 की स्थिति के अनुसार 37.3 प्रतिशत से बढ़कर 1 दिसंबर, 2014 को 38.4 प्रतिशत हो गई है। नवान्वेषण क्लब और प्रेरित अध्यापक नेटवर्क की स्थापना के सम्बंध में प्रदर्शन आंशिक रूप से बेहतर है। तथापि, केवल चार विश्वविद्यालयों ने उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं जबकि अन्य पांच इस दिशा में प्रयासरत हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों को उद्योगों और पूर्व छात्रों के साथ संपर्क की दिशा में प्रयासों पर मौजूदा से और अधिक ध्यान दिए जाने तथा दिशा प्रदान किए जाने की जरूरत है।
3. मैं चाहता हूं कि इस सम्मेलन के दौरान, आप विगत वर्ष की सिफारिशों के कार्यान्वयन में सफलताओं, विफलताओं और कठिनाइयों पर पर्याप्त विचार और प्रयास करें। सम्मेलन के संशोधित प्रारूप से आप सामूहिक रूप से कठिनाइयों की पहचान कर सकेंगे तथा इन्हें दूर करने की सहयोगात्मक कार्यनीतियां तैयार कर सकेंगे।
मित्रो,
4. पिछले दो वर्षों के दौरान,मैं इन सम्मेलनों में लिए गए निर्णयों की दृढ़तापूर्वक अनुवर्ती कार्रवाई पर जोर देता रहा हूं। विगत वर्ष मैंने जो वायदे किए थे, उन्हें पूरा करने के गंभीर प्रयास किए गए हैं। संकाय की चयन समिति में कुलाधिपति के नामिती की अनुपलब्धता के मुद्दे का समाधान कर दिया गया है। मेरे अनुमोदन के बाद प्रत्येक केंद्रीय विश्वविद्यालय के पास अब पांच नामितों का पैनल होगा जिन्हें वर्तमान अनुदेशों के अनुसार बुलाया जा सकता है।
5. संकाय की कमी को दूर करने के एक अल्पकालिक उपाय के तौर पर पिछले सम्मेलन में देश और विदेश के प्रख्यात विद्वानों और अनुसंधानकर्ताओं की नियुक्ति का सुझाव दिया गया था। नॉर्वे और फिनलैंड की मेरी यात्रा के दौरान, जिसमें केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों का एक शैक्षिक शिष्टमंडल मेरे साथ था, मैंने शिक्षाविदों तथा विशेषज्ञों से भारत आकर पढ़ाने का आह्वान किया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ग्लोबल इनिशियेटिव ऑफ ऐकेडेमिक नेटवर्क्स (ज्ञान) के तहत,केंद्रीय विश्वविद्यालयों से ऐसे प्रख्यात विद्वानों और अनुसंधानकर्ताओं की सूची देने के लिए कहा है जिन्हें अतिथि वक्ताओं अथवा विद्वानों के रूप में बुलाया जा सके। देश के बाहर तथा अंदर के विद्वानों को अपना ब्योरा लॉग-इन करने की सुविधा देने के लिए एक ई-प्लेटफार्म विकसित करने की जरूरत है। यह,यथासमय, भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के लिए वैश्विक विशेषज्ञों का एक समृद्ध डाटाबेस तैयार करने में सहायक होगा। हाल ही में शुरू किया गया ‘पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल मिशन ऑन टीचर्स एवं टीचिंग’ मानक स्थापित करेगा तथा नवान्वेषी शिक्षण के लिए विश्व स्तरीय सुविधाओं का सृजन करेगा।
6. मैंने विगत वर्ष के सम्मेलन के दौरान सर्वोत्तम विश्वविद्यालय, नवान्वेषण और अनुसंधान के कुलाध्यक्ष पुरस्कार आरंभ करने की घोषणा की थी। यह निर्णय लागू कर दिया गया है और मुझे आज की शाम ये पुरस्कार प्रदान करने पर प्रसन्नता होगी। वे निकट भविष्य में हमारे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और नवान्वेषण प्रोत्साहन में प्रेरक शक्ति बनेंगे।
मित्रो,
7. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्कों का कारगर उपयोग करने की तत्काल जरूरत है। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के माध्यम से मैंने आपके विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए तीन बार संवाद किया। 19 जनवरी, 2015 को जब मैंने नव-वर्ष का संदेश दिया तो 120 उच्चतर शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क तथा अन्य 900 स्थलों को वेबकास्ट के माध्यम से जोड़ा गया। मैं मंत्रालय तथा अनुसंधान और शिक्षा संस्थानों के सभी प्रमुखों से हमारे देश में उच्च शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता के सुधार के लिए राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की सुविधा का प्रयोग करने का आग्रह करता हूं।
8. भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली से उत्तीर्ण होकर निकले हुए विद्यार्थियों को विश्व के सर्वोत्तम विद्यार्थियों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी। युवा मस्तिष्कों में प्रतिस्पर्धात्मक भावना तथा अपनी मातृ संस्था के प्रति गर्व का ज़ज्बा भरने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय दर्जे के साथ ही, विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय रैंकिंग फ्रेमवर्क पर रेटिंग का परीक्षण करना चाहिए, जिसे शीघ्रता से विकसित करने की जरूरत है।
9. सरकार ने हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र में कौशल और उत्कृष्टता बढ़ाने के अनेक कदम उठाए हैं। परंतु मूल्यांकन प्रणालियों में अंतर के कारण विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय प्रणाली में अपने प्रमाण पत्रों की स्वीकृति तथा रोजगार अवसरों को हासिल करने में कठिनाई आती रही है।
10. विकल्प आधारित अंक प्रणाली की पहल से विद्यार्थियों को देश और विदेश के उच्चतर शिक्षण संस्थानों में अबाध आवागमन सुनिश्चित होगा। विद्यार्थियों द्वारा अर्जित अंक अंतरित किए जा सकते हैं तथा एक संस्था से दूसरी संस्था में स्थानांतरित होने पर उनके लिए ये बहुत महत्त्वपूर्ण होंगे। मुझे बताया गया है 23 केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने पहले ही विकल्प आधारित अंक प्रणाली लागू कर दी है। मैं शेष विश्वविद्यालयों से आगामी अकादमिक वर्ष से इस प्रणाली को कार्यान्वित करने पर विचार करने का आग्रह करता हूं।
मित्रो,
11. विश्वविद्यालय समग्र रूप से समाज के लिए एक आदर्श होता है। इसकी प्रेरक शक्ति कक्षाओं और अध्यापन से आगे तक जाती है। इसके इस प्रभाव को अधिकाधिक हित के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने व्यापक सामाजिक-आर्थिक महत्त्व वाली अनेक पहलें की हैं। स्वच्छ भारत मिशनका लक्ष्य 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक भारत को स्वच्छ बनाना है। सांसद आदर्श ग्राम योजनामें समुदाय सहभागिता के जरिए चुनिंदा गांवों के समेकित विकास की परिकल्पना की गई है। मैं आपसे आग्रह करता हूं जैसा कि मैंने गत वर्ष राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से किया था, आप सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत कम से कम पांच गांवों को आदर्श गांवों में बदलने के लिए कार्य आरंभ करें।
मित्रो,
12. मेरी अब तक की टिप्पणियों में,मैंने कुछ ऐसे मुद्दों को छुआ है जिन पर आप विचार-विमर्श करेंगे। हमारे लिए ऐसे उभरते हुए वैश्विक रुझानों को पहचानना भी जरूरी है जो दुनिया भर में उच्च शिक्षा में भारी बदलाव ला सकते हैं। उच्च शिक्षा की बढ़ती लागत तथा शिक्षार्थियों के बदलते स्वरूप तथा प्रौद्योगिकीय नवान्वेषण के कारण ज्ञान की संस्थाओं के वैकल्पिक मॉडलों का सृजन हो रहा है।
13. भौतिक अवसंरचना तथा शैक्षिक सुविधाओं के निर्माण की लागत, शैक्षिक और गैर-शैक्षिक कर्मचारियों के बढ़ते वेतन ने विश्वविद्यालय की वित्तीय स्थिति पर अत्यधिक दबाव डाला है। सरकार से प्राप्त निधि के सीमित होने के कारण, भौतिक अवसंरचना तथा शैक्षिक सुविधाओं के सृजन की लागत, ऊंची फीस के रूप में विद्यार्थियों को भुगतनी पड़ती है। विश्वविद्यालय जहां पहले नए विद्यार्थियों को शिक्षित करते थे वहीं अब उन पर संपूर्ण आजीविका के दौरान कर्मियों के प्रशिक्षण और पुन: प्रशिक्षण का दायित्व आ गया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में अगले कुछ दशकों के दौरान 47 प्रतिशत पेशों के स्वचालन की भविष्यवाणी की गई है। नवान्वेषण, जहां कुछ रोजगारों को समाप्त कर देता है, कुछ को बदल देता है तथा कुछ नए सृजित करता है, इसलिए कार्यबल को अपने कौशल और क्षमताओं को उन्नत और परिष्कृत करने के लिए आजीवन सीखते रहना होगा।
14. बढ़ते हुए खर्च और गतिशील मांग की दोहरी जरूरतों का समाधान ई-सक्षम शिक्षण के व्यापक प्रयोग से किया जा सकता है। व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों, जो पहली बार 2008 में आरंभ हुए थे, से विद्यार्थी ऑनलाइन व्याख्यान सुन सकते हैं और पाठ्यक्रम सामग्री पढ़ सकते हैं तथा कक्षा में मिलने वाली उच्च शिक्षा की आंशिक लागत पर ही उपाधि हासिल कर सकते हैं। युवा उदीयमान प्रतिभाओं के लिए सक्रिय शिक्षण का अध्ययन वेब (स्वयं) तथा व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों (मूक्स) से उच्च शिक्षा प्रणाली से अध्यापन में तेजी, मांग और प्रवीणता का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा उच्च शिक्षण संस्थाओं को शिक्षण हेतु प्रौद्योगिकी के प्रयोग से अधिकतम फायदा हासिल करने के लिए वातावरण तैयार करना चाहिए।
15. परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों की अपनी समस्या है। उनसे विद्यार्थी प्रेरक अध्यापकों से व्यक्तिगत बातचीत और शिक्षण,उसके परिणामस्वरूप मूल्यों को ग्रहण करने तथा परस्पर व्यक्तिगत और संप्रेषण कौशल के लाभ से वंचित हो जाते हैं। समय-समय पर कक्षा परिचर्चा अथवा मिश्रित व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों के साथ-साथ ऑन लाइन अनुदेश पारंपरिक अध्यापन के बुनियादी तत्त्वों को बनाए रखने का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
16. चाहे व्यापक मुक्त ऑन लाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से हो अथवा औपचारिक शिक्षा प्रणाली के माध्यम से उच्च शिक्षण संस्थानों को हमारे विद्यार्थियों में आधारभूत मूल्यों का समावेश करने पर विशेष बल देना होगा। अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘‘एक पीढ़ी का स्कूली कक्षा संबंधी दर्शन अगली पीढ़ी का शासन संबंधी दर्शन होगा।’’ हमारी सभ्यता ने, बुनियादी मूल्यों के रूप में देशप्रेम, बहुलवाद, सहिष्णुता, ईमानदारी और अनुशासन का समर्थन किया है। हमारा लोकतंत्र इन मूल्यों पर समृद्ध हुआ है। अगली पीढ़ी को शक्ति के अंतर्निहित स्रोत के रूप में हमारी विविधता,समावेशिता तथा आत्मसात करने की क्षमताओं की पहचान करना सीखना चाहिए।
मित्रो,
17. जब शिक्षित जनसमूह अपने चिंतन और विचारों की आपस में गुंथी हुई धाराओं से नवान्वेषण की एक नदी तैयार करता है तब समाज सर्जनात्मक उद्यम का रूप लेता है। अध्यापकों को अपनी जिज्ञासा शांत करने,स्थापित ज्ञान पर प्रश्न उठाने, जांच के पश्चात ही किसी कथन को स्वीकार करने तथा दक्षता प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। हमारे विद्यार्थियों में ऐसी वैज्ञानिक प्रवृत्ति आवश्यक है जो उनकी कल्पना को श्रेणियों और कक्षा के दायरे से आगे ले जा सके। विशेषकर, उनके ऊर्जावान और जिज्ञासु मस्तिष्क को निखारने के लिए पुस्तकों के जरिए अध्ययन और शिक्षण की प्रवृत्ति को समाविष्ट करना होगा। पुस्तकें सामाजिक और सांस्कृतिक अवरोधों को भी तोड़ती हैं। डॉ. एस. राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘पुस्तकें ऐसी माध्यम हैं जिनके द्वारा हम संस्कृतियों के बीच सेतु का निर्माण करते हैं।’’
मित्रो,
18. केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की रूपांतर प्रक्रिया के नेतृत्व करने का भारी दायित्व है। मुझे विश्वास है कि आपके नेतृत्व में वे इसमें खरा उतरेंगे। मेरी सचिव ने पहले ही इस सम्मेलन के प्रारूप के बारे में विस्तार से बता दिया है। मुझे उम्मीद है कि आपके विचार-विमर्श से नवान्वेषी समाधान उभरेंगे तथा मैं इन दो दिनों के दौरान आपकी परिचर्चा के परिणामों के प्रति उत्सुक हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!