कुलाध्यक्ष सम्मेलन के प्रथम दिन उद्योग और शैक्षिक संस्थानों के बीच समझौता ज्ञापनों के आदान-प्रदान के बाद भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का सम्बोधन
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 04.11.2015
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शुभ संध्या!
1. सर्वप्रथम,मैं आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं। आज हमारे देश की उच्च शिक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण दिन है। राष्ट्रपति भवन में पहली बार प्रतिभावान मानस,उद्योग प्रमुख और 114 केंद्रीय संस्थानों के शिक्षा अग्रणी उच्च शिक्षा क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए एक साझे मंच पर एकत्र हुए हैं।
2. मैं स्वीकार करता हूं कि अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के आरंभ में मैं उच्च शिक्षा के केन्द्रीय संस्थानों के कुलाध्यक्ष की भूमिका के प्रति अनभिज्ञ था। अभी तक विभिन्न विश्वविद्यालयों की मेरी यात्रा के अंतर्गत100 से ज्यादा संस्थानों के दौरों तथा प्रख्यात शिक्षाविदों के साथ विचार विमर्श से इन संस्थानों के सम्मेलनों की एक शृंखला राष्ट्रपति भवन में आयोजित हुई। फरवरी, 2013से आरंभ करते हुए, अब तक सात सम्मेलन आयोजित किए गए हैं। मुझे समूह में तीन बार केंद्रीय विश्वविद्यालयों,दो बार राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा एक-एक बार भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के प्रमुखों से बातचीत करने का अवसर मिला है। इन चर्चाओं के परिणामस्वरूप सिफारिशों से सभी भागीदारों को अत्यधिक लाभ हुआ है।
3. इन सम्मेलनों के दौरान हुए विचार-विमर्श निम्नवत पर केंद्रित थे :
- शिक्षा की गुणवत्ता,अनुसंधान और नवान्वेषण में सुधार तथा संकाय विकास।
- संयुक्त अनुसंधान तथा संकाय और विद्यार्थी आदान-प्रदान के लिए अंतरराष्ट्रीय संबद्धता स्थापित करना।
- संस्थानों की वरीयताओं में सुधार।
- सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्कों के अत्यधिक प्रयोग तथा वहनीय मूल्यों पर उत्तम शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए परिवर्तित विशाल मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का निर्माण।
- संस्थानों के प्रबंधन ढांचे में पूर्व विद्यार्थियों की और अधिक भागीदारी।
- उद्योग का शैक्षिक संस्थानों के साथ घनिष्ठ संयोजन।
इन कुछ वर्षों में प्राप्त परिणाम उल्लेखनीय रहे हैं। इसका श्रेय सभी भागीदारों के समर्पित सामूहिक कार्य को जाता है।
देवियो और सज्जनो,
4. मेरा यह निरंतर आग्रह कि एक भी विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय के बिना हम विश्व शक्ति बनने की आकांक्षा नहीं कर सकते,उन संस्थानों ने मान लिया है जिन्होंने अब और अधिक सक्रिय तथा व्यवस्थित ढंग से अंतरराष्ट्रीय वरीयता प्रक्रियाओं पर विचार करना आरंभ कर दिया है। पहली बार,दो भारतीय संस्थानों को क्यूएस वरीयता में सर्वोच्च 200में स्थान हासिल हुआ है। 47वें स्थान पर भारतीय विज्ञान संस्थान,बंगलौर तथा 179वें स्थान पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,दिल्ली अत्यंत सराहना और बधाई के पात्र हैं। यदि हम अगले 4-5 वर्षों तक सर्वोच्च 10-15संस्थानों को पर्याप्त निधि मुहैया करवाएं तो ये संस्थान निश्चित रूप से अगले कुछ वर्षों में विश्व शैक्षिक वरीयता के सर्वोच्च100 में प्रवेश कर जाएंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा भारत आधारित दृष्टिकोण से स्थापित राष्ट्रीय संस्थागत वरीयता ढांचों के जरिए हमारे संस्थानों को राष्ट्रीय और वैश्विक रूप से स्पर्द्धा करने में मदद मिलेगी। राष्ट्रीय संस्थानों, इसके विद्यार्थियों और इसके पूर्व विद्यार्थियों को गौरव की भावना प्रदान करने के अलावा,उच्च वरीयता गुणवत्तापूर्ण संकाय मेधावी विद्यार्थियों को आकर्षित करने,विद्यार्थियों के लिए विकास और रोजगार के नए अवसर खोलने तथा स्तर में निरंतर सुधार के मानदंड उपलब्ध करवाएगा।
5. नवान्वेषण भविष्य की निधि हे। नवान्वेषण अनुसंधान को संपत्ति में बदल देता है। यदि हमने इस वास्तविकता को नहीं पहचाना और अभी हमारे देश ने सुदृढ़ नवान्वेषण संस्कृति सृजित करने पर एकाग्रता से कार्य शुरू नहीं किया तो हम आधुनिकता की प्रगति में पिछड़ जाएंगे। फरवरी, 2013 में मैंने विश्वविद्यालयों से बुनियादी नवान्वेषकों के साथ संयोजन स्थापित करने के लिए कहा था। प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक रही है।60 से अधिक केंद्रीय संस्थानों ने शैक्षिक समुदाय और बुनियादी नवान्वेषणों के बीच संवाद का एक मंच प्रदान करने के लिए नवान्वेषण क्लब आरंभ किए हैं। अप्रैल, 2014में, भारतीय विज्ञान संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों के प्रमुखों से मिलने पर,मैंने एक नवान्वेषण नेटवर्क तैयार करने के लिए इन क्लबों के कार्यकलापों को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसी तकनीकी संस्थाओं में स्थित नवान्वेषण विकास केंद्रों के साथ जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। इस प्रयास पर और अधिक जोर देने की आवश्यकता है। मुझे ज्ञात है कि राष्ट्रीय नवाचार प्रतिष्ठान ने बुनियादी नवान्वेषणों को तीन क्षेत्रों में बांटने के बाद उनकी एक सूची का संकलन किया है। मुझे विश्वास है कि केंद्रीय संस्थानों तथा सहभागी उद्योगों के लिए यह एक उपयोगी दस्तावेज होगा। मुझे विश्वास है कि बुनियादी नवान्वेषकों के उद्यमियों और वित्त प्रदाताओं के साथ इस संपर्क से अनेक शुरुआत होंगी।
देवियो और सज्जनो,
6. उद्योग और शैक्षिक समुदाय के बीच एक मजबूत संपर्क शैक्षिक और औद्योगिक वातावरण सृजन का एक अहम घटक है। अब तक आयोजित सम्मेलनों में प्रतिभागी सहमत थे कि इस वातावरण को और सुदृढ़ बनाना चाहिए। इसलिए आज का दिन ऐतिहासिक है क्योंकि उद्योग मुखियाओं और शैक्षिक संस्थानों के प्रमुखों ने 44समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। यह एक और उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए उद्योग की प्रतिबद्धता तथा दूसरी ओर,शैक्षिक संस्थानों की औद्योगिक साझीदारों के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने की मजबूत इच्छा दर्शाता है। मैं इस पहल में,राष्ट्रपति सचिवालय के साथ सहयोग करने के लिए सभी उद्योग अग्रणियों विशेषकर प्रमुख धुरी के तौर पर भारतीय उद्योग परिसंघ की सराहना करता हूं। मैं उद्योग - शैक्षिक समुदाय संवाद के वातावरण को अनुकूल बनाने के लक्ष्य से युक्त इन समझौता ज्ञापनों को अंतिम रूप देने के प्रयासों के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की प्रशंसा करता हूं।
7. आज, सम्मेलनों के प्रतिभागियों को प्रो. सी.एन.आर. राव,प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन और श्री कैलाश सत्यार्थी के प्रेरक शब्द सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। इन महान प्रतिभाओं ने मौलिक क्षेत्रों की यात्रा की हैं तथा विषम परिस्थितियों में भी उत्कृष्टता प्राप्त की है। मैं यहां उपस्थित होने के लिए अपना समय निकालने तथा अपने परिवर्तनकारी विचारों को प्रतिभागियों के साथ बांटने के लिए उनका धन्यवाद करता हूं।
8. अपनी बात समाप्त करने से पूर्व,मैं महात्मा गांधी के इस विचार को आपके साथ बांटना चाहता हूं, ‘अपने उद्देश्य के प्रति अप्रतिम विश्वास से ओत-प्रोत दृढ़निश्चयी भावना से युक्त एक छोटा समूह इतिहास के पथ को बदल सकता है।’आज यहां उपस्थित जनसमूह उसी दृढ़निश्चयी पुरुषों और महिलाओं के छोटे समूह का प्रतिनिधित्व करता है। उद्देश्य स्पष्ट है। हमें अब अग्रसर होना है।
धन्यवाद।